निशा की, धो देता राकेश-विसर्जन मैं अनन्त पथ में लिखती जो-मिटने का खेल निश्वासों का नीड़-संसार वे मुस्काते फूल, नहीं-अधिकार घायल मन लेकर सो जाती-निर्वाण जिन नयनों की विपुल नीलिमा-समाधि के दीप से छाया की आँखमिचौनी-अभिमान घोर तम छाया चारों ओर-उस पार जो मुखरित कर जाती थी-आना इस एक बूँद आँसू में-उत्तर स्वर्ग का था नीरव उच्छवास-मेरा जीवन गिरा जब हो जाती है मूक-नीरव भाषण मधुरिमा के, मधु के अवतार-फूल जो तुम आ जाते एक बार
रश्मि (द्वितीय याम)
चुभते ही तेरा अरुण बान-रश्मि (कविता) रजतरश्मियों की छाया में-दुःख किन उपकरणों का दीपक-जीवन दीप कुमुद-दल से वेदना के-कौन है? स्मित तुम्हारी से छलक-मेरा पता दिया क्यों जीवन का वरदान-उपालम्भ कह दे माँ क्या अब देखूँ-दुविधा तुम हो विधु के बिम्ब-मैं और तू न थे जब परिवर्तन-रहस्य अलि कैसे उनको पाऊँ-उलझन अश्रु ने सीमित कणों में-प्रश्न जिसको अनुराग सा-पपीहे के प्रति विश्व-जीवन के उपसंहार-अन्त चुका पायेगा कैसे बोल-क्रय सजनि तेरे दृग बाल-क्यों नीरजा (तृतीय याम) धीरे धीरे उतर क्षितिज से पुलक पुलक उर, सिहर सिहर तन कौन तुम मेरे हृदय में विरह का जलजात जीवन बीन भी हूँ मैं तुम्हारी रागिनी भी हूँ रुपसि तेरा घन-केश पाश मधुर-मधुर मेरे दीपक जल मेरे हँसते अधर नहीं जग की आँसू-लड़ियाँ देखो कैसे सँदेश प्रिय पहुँचाती टूट गया वह दर्पण निर्मम मधुवेला है आज लाये कौन संदेश नए घन प्राणपिक प्रिय-नाम रे कह क्या पूजन क्या पूजन क्या अर्चन रे लय गीत मदिर-अप्सरि तेरा नर्तन सुन्दर उर तिमिरमय घर तिमिरमय सांध्यगीत (चतुर्थ याम) प्रिय! सान्ध्य गगन मेरा जीवन रागभीनी तू सजनि निश्वास भी तेरे रँगीले जाने किस जीवन की सुधि ले शून्य मन्दिर में बनूँगी आज मैं प्रतिमा तुम्हारी रे पपीहे पी कहाँ शलभ मैं शापमय वर हूँ मैं किसी की मूक छाया हूँ न क्यों पहचान पाता मैं नीर भरी दुख की बदली झिलमिलाती रात मेरी फिर विकल हैं प्राण मेरे चिर सजग आँखे उनींदी आज कैसा व्यस्त बाना कीर का प्रिय आज पिंजर खोल दो ओ अरुण वसना जाग जाग सुकेशिनी री क्यों मुझे प्रिय हों न बन्धन हे चिर महान् तिमिर में वे पदचिह्न मिले