भरा दयाल विषहर जरि जागा,
कबीर ग्रंथावली- डॉ. श्यामसुंदरदास (रमैणी ) || दुपदी रमैंणी || भरा दयाल विषहर जरि जागा, भरा दयाल विषहर जरि जागा, गहगहान प्रेम बहु लागा ।। भया अनंद जीव भयै उल्हासा, मिले राम मनि पूगी आसा ।। मास असाढ़ रवि धरनि जरावै, जरत-जरत जल आइ बुझावै ।। रुति सुभाइ जिमीं सब जागी, अंमृत धार होइ झर … Read more