गजानन माधव मुक्तिबोध-भूल-गलती कविता
भूल-गलती आज बैठी है जिरहबख्तर पहनकर तख्त पर दिल के; चमकते हैं खड़े हथियार उसके दूर तक, आँखें चिलकती हैं नुकीले तेज पत्थर सी, खड़ी हैं सिर झुकाए सब कतारें बेजुबाँ बेबस सलाम में, अनगिनत खंभों व मेहराबों-थमे दरबारे आम में। सामने बेचैन घावों की अजब तिरछी लकीरों से कटा चेहरा कि जिस पर काँप … Read more