कबीर ग्रंथावली (संपादक- हजारी प्रसाद  द्विवेदी) के पद संख्या 207 अर्थ सहित

कबीर पद: 207 नैहरमें दाग लगाय आई चुनरी। ऊ रँगगरेजवा कै मरम न जानै, नहिं मिलै धोबिया कौन करै उजरी। तनकै कूंडी ज्ञान का सौदन, साबुन महँगा बिचाय या नगरी। पहिरि-ओढ़ीके चली ससुरारिया, गौवाँ के लोग कहै बड़ी फुहरी। कहैं कबीर सुनो भाई साधो, बिन सतगुरु कबहूँ नहिं सुधरी।।  भावार्थ :- नैहरमें दाग लगाय आई … Read more