MPPSC सहा.प्राध्यापक परीक्षा-2022-हिंदी परीक्षा तिथि-09/06/2024-SET-B-Q.26-30


सहा.प्राध्यापक परीक्षा-2022-हिंदी

26. निम्नलिखित में से किसकी प्रेरणा से स्वामी दयानंद  ने हिन्दी में व्याख्यान देना शुरू किया ?

(A) महर्षि देवेन्द्रनाथ

(B) केशवचन्द्र सेन

(C) ईश्वरचंद्र विद्यासागर

(D) नवीनचंद्र राय

MPPSC सहायक प्राध्यापक परीक्षा-2022 द्वितीय प्रश्न पत्र हिंदी परीक्षा तिथि-09/06/2024-SET-B

उत्तर – (B) केशवचन्द्र सेन

स्वामी दयानंद सरस्वती जी दिसम्बर 1872 में कलकत्ता आये। उस समय कलकत्ता के ब्रह्म-समाज के धुरन्धर विद्वान्- महर्षि देवेन्द्रनाथ ठाकुर, केशवचन्द्र सेन, राज नारायण बसु, पंडित हेमचन्द्र चक्रवर्ती आदि स्वामीजी से मिलने आये। कहा जाता है कि उस समय के चोटी के विद्वान् श्री केशवचन्द्र सेन ने स्वामीजी से पूछा-‘‘क्या आप कभी केशवचन्द्र से मिले हैं?’’ स्वामीजी ने हँसते हुए कहा-‘‘हाँ, अभी-अभी मिल रहा हूँ।’’ सारा वातावरण इस उत्तर से आह्लादित हो गया। इस अवसर पर श्री केशवचन्द्र सेन ने एक और प्रश्न पूछा-‘‘स्वामी जी! वेद का इतना महान् विद्वान् होकर आप अंग्रेजी नहीं जानते हैं? यह दुःख की बात नहीं है? ’’स्वामीजी ने फिर हँसते हुए कहा-‘‘यह भी कम दुःख की बात नहीं है कि आपके जैसा उद्भट विद्वान् संस्कृत नहीं जानता है।’’ एक बार फिर सारा वातावरण आनन्द से ओत-प्रोत हो उठा।

https://hi.quora.com/स्वामी-दयानंद-सरस्वती-ने-3

27. हिन्दी के प्रचार प्रसार हेतु नागरी प्रचारिणी सभा, काशी की स्थापना कब हुई ?

(A) 14 सितंबर 1949

(B) 24 जनवरी 1877

(C) 26 जनवरी 1865

(D) 10 मार्च 1883

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उत्तर – XXXXX ( Delete ho shayad)

नागरी प्रचारिणी सभा : एक परिचय

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स्थापना -1893 ई. स्थान – काशी

नागरी प्रचारणी सभा की स्थापना 16 जुलाई 1893 को तीन विद्वानों के द्वारा काशी में की गई।

1. रामनारायण मिश्र

2. श्यामसुन्दर दास

3.  शिवकुमार सिंह 

इन तीन विद्वानों ने मिलकर नागरी प्रचारणी सभा की स्थापना ‘काशी’ में की।

1. नागरी प्रचारणी सभा के सर्वप्रथम अध्यक्ष हुए – राधाकृष्णदास।

2. 1900 से 1908 ई. तक बाबु श्यामसुंदर दास इसके अध्यक्ष रहे।

3. 1908 से 1916 ई. तक श्याम बिहारी मिश्र व शुकदेव बिहारी मिश्र इसके अध्यक्ष रहे।

इस सभा द्वारा मूल्यवान हिंदी ग्रंथों का प्रकाशन किया जाता था।

इस सभा ने 1896 ईसवी में ‘काशी’ से ‘नागरी प्रचारणी’ नामक एक त्रैमासिक पत्रिका का प्रकाशन भी शुरू किया जिसमें अनेक उच्च स्तरीय शोधपरक लेख छपा करते थे

इसी सभा द्वारा हिंदी के प्रचार प्रसार के लिए 1910 ईस्वी में हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग की स्थापना की गई।

इसके बाद हिंदी साहित्य की समृद्धि का काम सभा ने अपने हाथ में रखा एवं प्रचार प्रसार का काम इस सम्मेलन को सौंप दिया गया।

इस सभा द्वारा 1896 ईस्वी में स्थापित ‘आर्यभाषा पुस्तकालय’ देश में हिंदी का सबसे बड़ा पुस्तकालय माना जाता है।

इस सभा द्वारा केंद्र सरकार की सहायता से ‘हिंदी विश्वकोश’ का संपादन भी किया गया है इसके अब तक 12 भाग प्रकाशित हो चुके हैं।

हिंदी का सर्वाधिक प्रामाणिक एवं विस्तृत कोश ‘हिंदी शब्दसागर’ भी केंद्र सरकार की सहायता से 10 खंडों में प्रकाशित करवाया गया है।

Other Source : 

https://m.bharatdiscovery.org/india/नागरी_प्रचारिणी_सभा

28. नागरी वर्णमाला को मुख्यतः कितने वर्गों में विभक्त किया गया है ?

(A) 5

(B) 26

(C) 52

(D) 2

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उत्तर – (A) 5

देवनागरी लिपि pdf download

https://www.indiapost.gov.in/VASHindi/DOP_PDFFiles/1_15_देवनागरी%20लिपि.pdf

http://jkppgcollege.com/e-content/hindi-Mr-Pardeep-Singh-Sahota.pdf

देवनागरी लिपि तथा हिंदी वर्तनी का मानकीकरण – मानक हिंदी वर्णमाला तथा अंक

https://www.chd.education.gov.in/sites/default/files/devanagarilipiandhindivartanikamankikaran.pdf

29. निम्नलिखित में से देवनागरी लिपि के नामकरण में ‘लोकनागरी’ नाम किसने दिया था ?

(A) डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी

(B) धीरेन्द्र वर्मा

(C) आचार्य रामचन्द्र शुक्ल

(D) आचार्य विनोबा भावे

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उत्तर – (D) आचार्य विनोबा भावे

    देवनागरी लिपि का लोकनागरी नाम आचार्य विनोबा भावे ने दिया। 

30. देवनागरी लिपि मूलतः क्या है ?

(A) वर्णनात्मक

(B) अक्षरात्मक

(C) चित्रात्मक

(D) प्रतीकात्मक

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उत्तर – (B) अक्षरात्मक

भाषावैज्ञानिक दृष्टि से देवनागरी लिपि अक्षरात्मक (सिलेबिक) लिपि मानी जाती है। लिपि के विकाससोपानों की दृष्टि से “चित्रात्मक”, “भावात्मक” और “भावचित्रात्मक” लिपियों के अनंतर “अक्षरात्मक” स्तर की लिपियों का विकास माना जाता है। पाश्चात्य और अनेक भारतीय भाषाविज्ञानविज्ञों के मत से लिपि की अक्षरात्मक अवस्था के बाद अल्फाबेटिक (वर्णात्मक) अवस्था का विकास हुआ। सबसे विकसित अवस्था मानी गई है ध्वन्यात्मक (फोनेटिक) लिपि की।

“देवनागरी” को अक्षरात्मक इसलिए कहा जाता है कि इसके वर्ण अक्षर (सिलेबिल) हैं- स्वर भी और व्यंजन भी।

“क”, “ख” आदि व्यंजन सस्वर हैं- अकारयुक्त हैं। वे केवल ध्वनियाँ नहीं हैं अपितु सस्वर अक्षर हैं। अतः ग्रीक, रोमन आदि वर्णमालाएँ हैं। परंतु यहाँ यह ध्यान रखने की बात है कि भारत की “ब्राह्मी” या “भारती” वर्णमाला की ध्वनियों में व्यंजनों का “पाणिनि” ने वर्णसमाम्नाय के 14 सूत्रों में जो स्वरूप दिया है- उसके विषय में “पतंजलि” (द्वितीय शताब्दी ई.पू.) ने यह स्पष्ट बता दिया है कि व्यंजनों में संनियोजित “अकार” स्वर का उपयोग केवल उच्चारण के उद्देश्य से है।  वह तत्वतः वर्ण का अंग नहीं है। इस दृष्टि से विचार करते हुए कहा जा सकता है कि इस लिपि की वर्णमाला तत्वतः ध्वन्यात्मक है, अक्षरात्मक नहीं।

Source : देवनागरी लिपि मूलत: क्या है?