MPPSC सहा.प्राध्यापक परीक्षा-2022 हिंदी SET-B Q.76-80


76. “पद्माकर की भाषा में बुंदेलखंडी रंग और मैदानी  नदी का प्रवाह है।”

?उपरोक्त कथन इनमें से किसका है ?

(A) नगेन्द्र

(B) रामचन्द्र शुक्ल

(C) रामविलास शर्मा

(D) बच्चन सिंह

MPPSC सहायक प्राध्यापक परीक्षा-2022 द्वितीय प्रश्न पत्र हिंदी परीक्षा तिथि-09/06/2024-SET-B

उत्तर-(D) बच्चन सिंह

Hindi Sahitya Ka Dusra Itihas

Printed page no 210

77. मिश्रबन्धुओं के अनुसार ‘बिहारी सतसई’ में दोहों की कुल संख्या कितनी हैं ?

(A) 715

(B) 700

(C) 725

(D) 710

MPPSC सहायक प्राध्यापक परीक्षा-2022 द्वितीय प्रश्न पत्र हिंदी परीक्षा तिथि-09/06/2024-SET-B

उत्तर – Not Given

 इक्कीसवाँ अध्याय । विहारीकाल (१७०७ से १७२० तक) (३५१) महाकवि बिहारीलाल जी ।

ये महाशय ककोर कुल के माथुर ब्राह्मण थे। इनका जन्म अनुमान से संवत् १६६० में ग्वालियर के निकट बसुवागोविंद‌पुर में हुआ था। इनकी वाल्यावस्था बुंदेलखंड में बीती और तरुणा- वस्था में ये मथुरा अपनी ससुराल में रहे। कहते हैं कि इनके टीकाकार कृष्ण कवि इन्हीं के पुत्र थे। इनका मरण-काल अनु- मान से संवत् १७२० समझ पड़ता है। ये महाशय जैपूर के मिर्ज़ा महाराजा जयसिंह के यहाँ रहा करते थे। कहते हैं कि एक समय जयसिंह एक छोटी सी रानी के प्रेम में ऐसे मग्न हो गये थे कि कभी बाहर निकलते ही नहीं थे। इस पर निम्नलिखित दोहा विहारी जी ने किसी तरह से महाराज के पास भिजवाया:-

नहिँ पराग नहिँ मधुर मधु नहिँ विकास यहि काल। अली कली ही साँ विध्यो आगे कौन हवाल ॥

इसको पाकर महाराज बाहर निकले और तभी से दरबार में विहारी का बड़ा मान होने लगा। इस के बाद कहते हैं कि बिहारी को प्रति दोहा १ अशरफ़ी मिलती रही और ये महाशय समय समय पर दोहे बना कर महाराज को देते रहे। इसी तरह सात सौ दोहे एकत्र हो गये, जो पीछे क्रमबद्ध कर दिये गये। इनके कुलविषयक कुछ लोग सन्देह उठाते और इन्हें भाट बतलाते हैं। हम ने हिन्दीनवरल में इनके चौवे होने के विषय में कुछ प्रमाण दिये हैं। पीछे से यह निश्चयरूप से जान पड़ा कि ये महाशय चावे थे। इन के वंशज अमरकृष्ण चौवे बूंदी दरवार के राजकवि हैं, जिन का कथन इस ग्रन्थ में संवत् १९५३ के कवियों में किया गया है। उन्होंने दो छन्दों द्वारा अपने पिता से लेकर विहारी- लाल तक सब पूर्व पुरुपों के नाम गिना दिये हैं। वह दोनों छन्द उनके वर्णन में लिखे हैं।

सतसई में कुल ७१९ दोहे हैं और ७ दोहों में उसकी प्रशंसा की गई है। इस ग्रंथ पर बहुत से कवियों ने टीकायें कों चौर बहुतों ने इसी के प्रतिविंव पर कुंडलिया, सवैया, श्लोक, शेर इत्यादि वनाये हैं। इनके टीकाकारों में सूरति, चंद्र (पठान सुल्तान अली), कृष्ण, सरदार और भारतेंदु जी सुकवि हैं। इनकी

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बिहारी सतसई के दोहे की संख्या:

डॉ नागेन्द्र के अनुसार: इसमें 713 दोहा और 6 सोरठा छंद है। पूरा 719 छंद है।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार: 700 दोहा बताया गया है।

बाबू जगन्नाथ दास ‘रत्नाकर’ के द्वारा संपादित ‘बिहारी रत्नाकर’ में 700 दोहे है।

78 “तो पर वारौं उरवसी, सुनु राधिके सुजान । तू मोहन के उर बसी, है उरबसी-समान ।।” यहाँ ‘उरबसी’ में कौन-सा अलंकार है ?

(A) श्लेष

(B) उपमा

(C) रूपक

(D) यमक

MPPSC सहायक प्राध्यापक परीक्षा-2022 द्वितीय प्रश्न पत्र हिंदी परीक्षा तिथि-09/06/2024-SET-B

उत्तर – (D) यमक

यमक अलंकार

जिस काव्य में एक ही शब्द की बार-बार पुनरावृत्ति होती है, जबकि उन शब्दों का अर्थ अलग-अलग होता है, तो उसे यमक अलंकार कहते है। 

जैसे- 

कनक-कनक ते सौ गुनी, मादकता अधिकाय। 

या खाए बौराय जग, या पाए बौराय ॥

79. बिहारी के पिता केशवराय के गुरु कौन थे ?

(A) नरहरिदास

(B) सुखदेव मिश्र

(C) गंगाधर दीक्षित

(D) कृष्णभट्ट देव

MPPSC सहायक प्राध्यापक परीक्षा-2022 द्वितीय प्रश्न पत्र हिंदी परीक्षा तिथि-09/06/2024-SET-B

उत्तर – ???? Unknown 

80. “प्रेम मार्ग का ऐसा प्रवीण और धीर पथिक त जवाँदानी का ऐसा दावा रखने वाला ब्रजभाषा क दूसरा कवि नहीं हुआ ।” उक्त कथन आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने इनमें से किस कवि के लिए कहा ?

(A) पद्माकर

(B) आलम

(C) देव

(D) घनानन्द

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उत्तर – (D) घनानन्द

घनानन्द की काव्यभाषा

(सर्वेश सिंह)

अपने इतिहास में, घनानन्द की काव्यभाषा के बारे में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल लिखते हैं- “इनकी-सी विशुद्ध, सरस और शक्तिशालिनी ब्रजभाषा लिखने में और कोई कवि समर्थ नहीं हुआ। विशुद्धता के साथ प्रौढ़ता और माधुर्य भी अपूर्व ही है। विप्रलम्भ श्रृंगार ही अधिकतर इन्होंने लिखा है। ये वियोग श्रृंगार के प्रधान मुक्तक कवि हैं।”

कहना न होगा की घनानन्द की कविता के बारे में शुक्ल जी ने ये बातें सिर्फ़ चलते-चलते ही लिख दी हैं। हालाँकि ‘विशुद्ध, सरस, शक्तिशालिनी, प्रौढ़ता और माधुर्य’ ज़रूर ऐसे आधार हैं जिन पर काव्यभाषा को परखा जा सकता है। पर ऐसा शुक्ल जी ने अपने इतिहास में और अन्यत्र भी, विस्तार से कहीं किया नहीं है।

फिर भी, घनानन्द की कविता का असर शुक्ल जी के मन पर बहुत गहरा है। यह उनकी कविता की ही ताक़त थी की शुक्ल जी ने, शायद अनचाहे ही, उनके लिए ये उदात्त वाक्य लिखे – ” ‘प्रेम की पीर’ ही को लेकर इनकी वाणी का प्रादुर्भाव हुआ। प्रेममार्ग का ऐसा प्रवीण और धीर पथिक तथा ज़बाँदानी का ऐसा दावा रखनेवाला ब्रजभाषा का दूसरा कवि नहीं हुआ।”

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