कुटज
हजारी प्रसाद द्विवेदी कहते हैं, पर्वत शोभा-निकेतन होते हैं। फिर हिमालय का तो कहना ही क्या। पूर्व और अपार समुद्र – महोदधि और रत्नाकर – दोनों को दोनों भुजाओं से थाहता हुआ हिमालय ‘पृथ्वी का मानदंड’ कहा जाय तो गलत क्यों है? कालिदास ने ऐसा ही कहा था। इसी के पाद-देश में यह जो श्रृंखला … Read more