रे रे जीव अपनां दुःख न सँभारा
कबीर ग्रंथावली- डॉ. श्यामसुंदरदास (रमैणी ) ।।निरंतर।। रे रे जीव अपनां दुःख न सँभारा, रे रे जीव अपनां दुःख न सँभारा, जिहिं दुःख व्याप्या सब संसारा ।। माया मोह भूले सब लोई, कयंचित लोभ माँनिक दीयौ खोई ।। मैं मेरी करि बहुत बिगूता, जननीं उदर जनम का सूता ।। बहुतैं रूप भेष बहु कीन्हाँ, जुरा … Read more