मध्यप्रदेश की  भाषा और बोली (MP Ki Bhasha Aur Boli)

मध्यप्रदेश की मुख्य भाषा हिन्दी है। प्रदेश में हिन्दी का व्यवहार व्यापक रूप से होता है। हिन्दी की लिपि देवनागरी है। हिन्दी का प्रयोग यहाँ गाँव से लगाकर शहर तक सरकारी काम-काज, शिक्षा, पठन-पाठन और सामान्य पत्र व्यवहार में किया जाता है। हिन्दी के साथ अन्य भाषा-भाषी लोग भी मध्यप्रदेश में रहते हैं। जो अपनी-अपनी … Read more

कबीर ग्रंथावली- डॉ. श्यामसुंदरदास-

ख. रमैणी समग्र । (Ramaini Samagra) (3)रमैंणी तू सकल गेहगरा [ राग सूहौ ] तू सकल गेहगरा, सफ सफा दिलदार दीदार,  तेरी कुदरति किनहूँ न जानी, पीर मुरीद काजी मुसलमानी ।।  देवी देव सुर नर गण गंध्रप, ब्रह्मा देव महेसुर ।  तेरी कुदरत तिनहूँ न जाँनी । । टेक । । शब्दार्थ-  गहगरा = सर्वव्यापी, … Read more

कबीर ग्रंथावली- डॉ. श्यामसुंदरदास-।। सतपदी रमैंणी।।

ख. रमैणी समग्र । (Ramaini Samagra)  ।। सतपदी रमैंणी।। कहन सुनन को जिहिं जग कीन्हाँ,  कहन सुनन को जिहिं जग कीन्हाँ, जग भुलॉन सो किन्हुँ न चीन्हों ।।  सत, रज, तम थैं किन्हीं माया, आपण माँझै आप छिपाया ।। ते तौ आधि अनंद सरूपा, गुन पल्लव विस्तार अनूपा ।।  साखा तन चैं कुसुम गियाँनों, फल … Read more

करि बिसतार जग धंधै लाया(रमैणी)- कबीर ग्रंथावली- डॉ. श्यामसुंदरदास

।।निरंतर।। करि बिसतार जग धंधै लाया, करि बिसतार जग धंधै लाया, अंध काया थैं पुरिष उपाया ।।  जिहि जैसी मनसा तिहि तैसा भावा, ताकूँ तैसा कीन्ह उपावा ।।  ते तौ माया मोह भुलानाँ, खसम राँम सो किनहूं न जानाँ ।।  जिनि जाण्याँ ते निरमल अंगा, नहीं जाँण्याँ ते भये भुअंगा ।।  ता मुखि विष आवै … Read more

अलख निरंजन लखै न कोई

कबीर ग्रंथावली- डॉ. श्यामसुंदरदास (रमैणी ) ।।निरंतर।। अलख निरंजन लखै न कोई, अलख निरंजन लखै न कोई, निरभै निराकार है सोई।।  सुनि असथूल रूप नहिं रेखा, दृष्टि अद्रिष्टि छिप्यौ नहीं देखा ।।  बरन अबरन कथ्यौ नहीं जाई, सकल अतीत घट रह्यौ समाई ।।  आदि अंत ताहि नहिं मधे, कथ्यौ न जाई आहि अकथे ।।  अपरंपार … Read more

|| बड़ी अष्टपदी रमैंणी || एक बिनाँनी रच्या बिनांन,

कबीर ग्रंथावली- डॉ. श्यामसुंदरदास- ख. रमैणी समग्र । (Ramaini Samagra) || बड़ी अष्टपदी रमैंणी || एक बिनाँनी रच्या बिनांन, एक बिनाँनी रच्या बिनांन, सब अयाँन जो आपैं जांन ।।  सत रज तम थैं कीन्हीं माया, चारि खानि बिस्तार उपाया ।।  पंच तत ले कीन्ह बंधानं, पाप पुंनि माँन अभिमानं ।।  अहंकार कीन्हें माया मोहू, संपति … Read more

कबीर ग्रंथावली- डॉ. श्यामसुंदरदास-सोई उपाय करि यहु दुःख जाई (रमैणी )

।।निरंतर।। सोई उपाय करि यहु दुःख जाई,  सोई उपाय करि यहु दुःख जाई, ए सब परहरि बिसैं सगाई ।।  माया मोह जरैं जग आगी, ता संगि जरसि कवन रस लागी ।।  त्राहि-त्राहि करि हरी पुकारा, साधु संगति मिलिब करहुं बिचारा ।।  रे रे जीवन नहीं विश्रामाँ, सब दुःख खंडन रॉम को नाँमाँ ।।  राम नाम … Read more

रे रे मन बुधिवत भंडारा, 

कबीर ग्रंथावली- डॉ. श्यामसुंदरदास (रमैणी ) ।।निरंतर।। रे रे मन बुधिवत भंडारा,  रे रे मन बुधिवत भंडारा, आप आप ही करहुं बिचारा ।। कवन सर्वांनों कौन बौराई, किहि दुःख पड़ये किहि दुःख जाई ।।  कवन सार को आहि असारा, को अनहित को आहि पियारा।।  कवन साँच कवन है झूठा, कवन करु को लागै मीठा ।। … Read more

भरा दयाल विषहर जरि जागा, 

कबीर ग्रंथावली- डॉ. श्यामसुंदरदास (रमैणी ) ||  दुपदी रमैंणी  || भरा दयाल विषहर जरि जागा,  भरा दयाल विषहर जरि जागा, गहगहान प्रेम बहु लागा ।।  भया अनंद जीव भयै उल्हासा, मिले राम मनि पूगी आसा ।।  मास असाढ़ रवि धरनि जरावै, जरत-जरत जल आइ बुझावै ।।  रुति सुभाइ जिमीं सब जागी, अंमृत धार होइ झर … Read more

रे रे जीव अपनां दुःख न सँभारा,

कबीर ग्रंथावली- डॉ. श्यामसुंदरदास (रमैणी ) ।।निरंतर।। रे रे जीव अपनां दुःख न सँभारा, रे रे जीव अपनां दुःख न सँभारा, जिहिं दुःख व्याप्या सब संसारा ।।  माया मोह भूले सब लोई, कयंचित लोभ माँनिक दीयौ खोई ।।  मैं मेरी करि बहुत बिगूता, जननीं उदर जनम का सूता ।।  बहुतैं रूप भेष बहु कीन्हाँ, जुरा … Read more