कबीर ग्रंथावली (संपादक- हजारी प्रसाद  द्विवेदी) पद संख्या 195-196 अर्थ सहित

पद: 195 करो जतन सखी साँई मिलनकी। गुड़िया गुड़वा सूप सुपलिया,तजि दें बुधि लरिकैयाँ खेलनकी। देवता पित्तर भुइयाँ भवानी,यह मारग चौरासी चलनकी। ऊँचा महल अजब रँग बँगला,साँईंकी सेज वहाँ लगी फूलनकी। तन मन धन सब अपनि कर वहाँ,सुरत सम्हार परु पइयाँ सजनकी। कहै कबीर निर्भय होय हंसा,कुंजी बता दयो ताला खुलनकी।  भावार्थ :-  कबीरदास जी … Read more

कबीर ग्रंथावली (संपादक- हजारी प्रसाद  द्विवेदी) पद संख्या 197 अर्थ सहित

पद: 197 गुरु बड़े भृंगी हमारे गुरु बड़े भृंगी। कीटसों ले भृंग कीन्हा आपसो रंगी। पाँव औरै पंख औरै और रँग रंगी। जाति कूल ना लखै कोई सब भये भृंगी। नदी-नाले मिले गंगे कहलावै गंगी। दरियाव-दरिया जा सामने संग में संगी। चलत मनसा अचल कीन्ही मन हुआ पंगी। तत्त्मे निःतत्त दरसा संग में संगी। बंधतें … Read more

कबीर ग्रंथावली (संपादक- हजारी प्रसाद  द्विवेदी) पद संख्या 198 अर्थ सहित

पद:198 पिया मेरा जागे मैं कैसे सोई री। पाँच सखि मेरे सँगकी सहेली, उन रँग रँगी पिया रंग न मिली री। सास सयानी ननद-बोरानी, उन डर डरी पिय सार न जानी री। दादस ऊपर सेज बिछानी, चढ़ न सकौ मारी ला लजानी री। रात दिवस मोहिं कूका मारे, मैं न सुनी रचि रहि संग जार … Read more

कबीर ग्रंथावली (संपादक- हजारी प्रसाद  द्विवेदी) पद संख्या 199 अर्थ सहित

पद: 199 बहुत दिनन की जोवती, बाट तुम्हारी राम।जिव तरसे तुझ मिलन कूँ, मनि नाहीं विश्राम।।1।। बिरहिन ऊठै भी पड़े, दरसन कारनि राम।मूवाँ पीछे देहुगे, सो दरसन किहिं काम॥2।। मूवां पीछे जिनि मिलै, कहै कबीरा राम। पाथर घाटा लौह सब, पारस कोणों काम॥3।। बासुरि सुख, नाँ रैणि सुख, ना सुख सुपिनै माहिं। कबीर बिछुट्‌या राम … Read more

कबीर ग्रंथावली (संपादक- हजारी प्रसाद  द्विवेदी) पद संख्या 200 अर्थ सहित

पद: 200 परबति परबति मैं फिरता, नैन गँवाए रोई। सो बूटी पाऊँ नहीं, जातै जीवन होई।।1।। नैन हमारे जलि गए, छिन छिन लोड़े तुज्झ। नां तू मिलै न मैं सुखी, ऐसी बदन मुज्झ।।2।। सुखिया सब संसार है, खाये अरु सोवै। दुखिया दास कबीर है, जागै अरु रोवै।।3।। भावार्थ :- परबति परबति मैं फिरता, नैन गँवाए … Read more

कबीर ग्रंथावली (संपादक- हजारी प्रसाद  द्विवेदी) के पद संख्या 201 अर्थ सहित

kabir ke pad arth sahit. पद: 201 आई न सकौ तुज्झपै, सकूँ न तुज्झ बुलाइ। जियरा यौही लेहुगे, विरह तपाइ तपाइ।।1।। यहु तन जालौ मसि करौ, लिखौ रामका नांऊँ। लेखणि करूँ करंककी, लिखि लिखि राम पठाऊँ।।2।। इस तनका दीवा करौ, बाती मेलूँ जीव। लोही सिचौ तेल ज्यूँ, कब मुख देखौ।।4।। कै बिरहिनकूँ मीच दे, कै … Read more

कबीर ग्रंथावली (संपादक- हजारी प्रसाद  द्विवेदी) पद संख्या 202 अर्थ सहित

पद: 202 कबीरा प्याला प्रेमका, अंतर दिया लगाय। रोम रोमसे रमि रह्या, और अमल क्या खाए।।1।।      कबीरा हम गुरु-रस पिया, बाकी रही न छाक। पाका कलस कुम्हार का, बहुरि न चढ़सी चाक।।2।।    राता-माता नामका, पीया प्रेम अघाय। मातवाला दीदार का, माँगें मुक्ति बलाय।।3।। भावार्थ :- कबीर दास जी कहते हैं कि मैं प्रेम का … Read more

कबीर ग्रंथावली (संपादक- हजारी प्रसाद  द्विवेदी) के पद संख्या 203 अर्थ सहित

kabir ke pad arth sahit. पद: 203 ऐ कबीर, तै उतरि रहु, संबल परो न साथ। संबल घटे न पगु थके, जीव बिराने हाथ।।1।। कबीरा का घर सिखरपर, जहाँ सिलहली मैल। पाँव न टिकै पिपीलिका, खलकन लादे बैल।।2।। शब्दार्थ :- सिलहली = पिच्छिल, फिसलने लायक। गैल = रास्ता । खलकन = दुनिया |  भावार्थ :- … Read more

कबीर ग्रंथावली (संपादक- हजारी प्रसाद  द्विवेदी) के पद संख्या 204-205 अर्थ सहित

kabir ke pad arth sahit. पद: 204 काल खड़ा सिर उपरे, जागु बिराने मीत जाका घर है गैलमे, सो कस सोय निचीत।।1।। भावार्थ  :  मोह की निद्रा में सोए हुए लोगों को वे कहते हैं कि हे मित्र! सर पर काल खड़ा है किसी भी समय मृत्यु आ सकती है इसलिए अब परमार्थ को प्राप्त … Read more

कबीर ग्रंथावली (संपादक- हजारी प्रसाद  द्विवेदी) के पद संख्या 206 अर्थ सहित

kabir ke pad arth sahit. पद: 206 सब दुनी सयानी मैं बौरा, हम बिगरे बिगरौ जनि औरा। मैं नहिं बौरा राम कियो बौरा, सतगुरु जार गयौ भ्रम मोरा। बिद्या न पढूँ वाद नहिं जाँनूं, हरि गुण कथत-सुनत बौ बौराँनुं।। काम-क्रोध दोऊ भये बिकारा, आपहि आप जरै संसारा।। मिठो कहा जाहि जो भावे, दास कबीर रांम … Read more