कबीर ग्रंथावली (संपादक- हजारी प्रसाद द्विवेदी) के पद संख्या -160
Kabir Granthavali Sampadak hajari prasad dwivedi पद : 160 अर्थ सहित (Pad -160) लोका मति के भोरा रे। जो काशी तन तजै कबीरा, तौ रामहिं कहा निहोरा रे।। तब हम वैसे अब हम ऐसे, इहै जनमका लाहा रे।। राम-भगति-परि जाकौ हित चित, ताकौ अचिरज काहा रे।। गुर-प्रसाद साधकी संगति, जग जीते जाइ जुलाहा रे।। कहै … Read more