कबीर ग्रंथावली (संपादक- हजारी प्रसाद  द्विवेदी) के पद संख्या -160

Kabir Granthavali Sampadak hajari prasad dwivedi पद : 160 अर्थ सहित (Pad -160) लोका मति के भोरा रे। जो काशी तन तजै कबीरा, तौ रामहिं कहा निहोरा रे।। तब हम वैसे अब हम ऐसे, इहै जनमका लाहा रे।। राम-भगति-परि जाकौ हित चित, ताकौ अचिरज काहा रे।। गुर-प्रसाद साधकी संगति, जग जीते जाइ जुलाहा रे।। कहै … Read more

कबीर ग्रंथावली (संपादक- हजारी प्रसाद  द्विवेदी) पद संख्या -161-162 अर्थ सहित

kabir ke pad arth sahit. पद: 161 पूजा-सेवा-नेम-व्रत, गुड़ियनका-सा खेल जव लग पिउ परसै नहीं, तब लग संसय मेल।। भावार्थ :- पूजा करना, सेवा करना, तरह-तरह के नियमों का पालन करना, व्रत रखना यह सभी वस्तुएं या यह सभी क्रियाकलाप आध्यात्मिक क्षेत्र में गुड़ियों के खेल जैसा है अर्थात् जैसे छोटे बच्चे गुड्डी गुड़िया से … Read more

कबीर ग्रंथावली (संपादक- हजारी प्रसाद  द्विवेदी) के पद संख्या 163 अर्थ सहित

kabir ke pad arth sahit. पद: 163 मेरा-तेरा मनुआँ कैसे इक होई रे। मैं कहता हौ ऑखिन देखि, तू कहता कागद्की लेखी। मैं कहता सुरझावन हारी, तू राख्यौ उरझाई रे। मैं कहता तू जागत रहीयो, तू रहता है सोई रे। मैं कहता निर्मोही रहियो, तू जाता है मोहि रे। जुगन जुगन समुझावत हारा, कही न … Read more

कबीर ग्रंथावली (संपादक- हजारी प्रसाद  द्विवेदी) के पद संख्या 164 अर्थ सहित

kabir ke pad arth sahit. पद: 164 दुलहिन अँगिया काहे न धोवाई। बालपने की मैली अँगिया बिषय-दाग परि जाई। बिन धोये पिय रीझत नाहीं, सेजसे देत गिराई। सुमिरन ध्यानकै साबुन करि ले सत्तनाम दरियाई। दुबिधाके भेद खोल बहुरिया मनकै मैल धोवाई। चेत करो तीनों पन बीते, अब तो गवन नागिचाई। पालनहार द्वार हैं ठाढ़े अब … Read more

कबीर ग्रंथावली (संपादक- हजारी प्रसाद  द्विवेदी) पद संख्या 165 अर्थ सहित

kabir ke pad arth sahit. पद:165 मोरि चुनरी में परि गयो दाग पिया। पाँच तत्व की बनी चुनरिया, सारेहसै बंद लागे जिया। यह चुनारी मोरे मैके ते आई ससुरेमे मनुवाँ खोय दिया। मलि मलि धोई दाग न छूटे ज्ञानकी साबुन लाय पिया। कहै कबीर दाग कब छुटिहै जब साहब अपनाय लिया। भावार्थ :- कबीर दास … Read more

कबीर ग्रंथावली (संपादक- हजारी प्रसाद  द्विवेदी) के पद संख्या 166 अर्थ सहित

kabir ke pad arth sahit. पद:166 तेरा जन एक आध है कोई। काम-क्रोध अरु लोभ बिवर्जित, हरिपद चीन्हैं सोई॥ राजस-तामस-सातिग तीन्यु, ये सब तेरी माया। चौथै पद कौ जे जन चिन्हें, तिनहि परम पद पाया॥ असतुति-निंदा-आसा छांडै, तजै मांन-अभिमानां । लोहा-कंचन समि करि देखै, ते मूरति भगवाना॥ च्यंतै तो माधो च्यंतामणि, हरिपद रमै उदासा। त्रिस्ना … Read more

कबीर ग्रंथावली (संपादक- हजारी प्रसाद  द्विवेदी) पद संख्या 167 अर्थ सहित

kabir ke pad arth sahit. पद: 167 अबूझा लोग कहाँलौ बूझे बुझनहार बिचारो।। केते रामचंद्र तपसी से जिन जग यह भरमाया। केते कान्ह भये मुरलीधर तिन भी अन्त न पाया।। मच्छ-कच्छ बाराह स्वरूपी वामन नाम धराया। केते बौध भये निकलंकी तिन भी अन्त न पाया।। केतिक सिध-साधक-सन्यासी जिन बन बास बसाया। केते मुनिजन गोरख कहिये … Read more

कबीर ग्रंथावली (संपादक- हजारी प्रसाद  द्विवेदी) के पद संख्या 168 अर्थ सहित

kabir ke pad arth sahit. पद: 168 साधो, देखो जग बौराना ।साँची कहौ तौ मारन धावै, झूठे जग पतियाना ।हिन्दू कहत, राम हमारा, मुसलमान रहमाना ।आपस में दौऊ लड़ै मरत हैं, मरम कोई नहिं जाना ।बहुत मिले मोहि नेमी-धर्मी, प्रात करे असनाना ।आतम-छाँड़ि पषानै पूजै, तिनका थोथा ज्ञाना ।आसन मारि डिंभ धरि बैठे, मन में … Read more

कबीर ग्रंथावली (संपादक- हजारी प्रसाद  द्विवेदी) के पद संख्या 168अर्थ सहित

kabir ke pad arth sahit. पद: 168 साधो, देखो जग बौराना ।साँची कहौ तौ मारन धावै, झूठे जग पतियाना ।हिन्दू कहत, राम हमारा, मुसलमान रहमाना ।आपस में दौऊ लड़ै मरत हैं, मरम कोई नहिं जाना ।बहुत मिले मोहि नेमी-धर्मी, प्रात करे असनाना ।आतम-छाँड़ि पषानै पूजै, तिनका थोथा ज्ञाना ।आसन मारि डिंभ धरि बैठे, मन में … Read more

कबीर ग्रंथावली (संपादक- हजारी प्रसाद  द्विवेदी) के पद संख्या 169 अर्थ सहित

kabir ke pad arth sahit. पद:169 मीयाँ तुम्हसौ बोल्याँ बणि नहीं आवै। हम मसकीन खुदाई बन्दे तुम्हरा जस मनि भावै।। अलह अवलि दीनका साहिब, जोर नहीं फुरमाया। मुरिसद-पीर तुम्हारै है को, कहौ कहाँथै आया।। रोजा करै निवाज गुजारै कलमै भिसत न होई। सतरि काबे इक दिल भीतरि जे करि जानै कोई।। खसम पिछांनि तरस करि … Read more