संक्षिप्त परिचय:
बप्पा रावल एक ऐसा नाम है जिसने इस देश से अरबों का नामोनिशान मिटा दिया। और वो तीन विशेष कमियाँ क्या हैं?। सबसे पहले तो यह पूरा का पूरा जो इतिहास हमें पढ़ाया जाता है वो दिल्ली का इतिहास है। यानी दिल्ली और उसके आसपास जिसको मध्य युगीन इतिहास कहते हैं।
इन लोगों का फिर तुगलक को पढ़ लेंगे फिर मुगल आ जाएंगे और बीच में छोटे मोटे जो है उनको भी पढ़ लेंगे। लेकिन जो उत्कर्ष है जिसको में मानता हूं। सात सौ बारह ईस्वी में मुहम्मद बिन कासिम यहां आया। इनका अंधानुकरण इस्लाम का और इनकी कट्टरता इनकी बर्बरता इनकी नृशंसता।
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आप सभी का स्वागत है मैं हूं आपके साथ निधीश गोयल जेडी कन्वर्सेशन में एक बार फिर से आप सभी का अभिनंदन है। मेरे साथ हैं चेयरमैन जयपुर डायलॉग्स के श्रीमान संजय जी संजय जी आपका बहुत बहुत स्वागत है।
इनसे जो इतिहास की बात करते हैं न तो, बहुत से पहलू हमारे सामने निकलकर के आते हैं कुछ टर्निंग प्वाइंट की बात भी होती है और बात जब भारत के इतिहास की और में राजस्थान का नाम न आए ऐसा हो नहीं सकता जब बात राजस्थान की आती है तो एक उस किरदार की बात जरूर आती है जिस किरदार के कारण से कहा जाता है कि हिंदुस्तान चार सौ साल तक इस्लामिक आक्रमणकारियों से जरा बच के रहा वो नाम है शूरवीर बप्पा रावल का। संजय जी से जानते हैं इनके बारे में। संजय जी।
बप्पा रावल एक ऐसा नाम है जिसने इस देश से अरबों का नामोनिशान मिटा दिया। आपको पता होगा कि अरब संस्कृति और अरब सेनाएं कितनी तेजी से पूरे विश्व में फैली थीं।
सात सौ बारह तक तो वो लगभग पूरा का पूरा उत्तरी अफ्रीका विजय करके और स्पेन में बढ़ गई थी। आप देखिए कि छः सौ बत्तीस ईस्वी में हजरत मोहम्मद शांत होते हैं और उसके बाद लगभग पचास साल के अंदर अंदर अरब सेनाओं ने पूरा का पूरा उत्तरी अफ्रीका विजय कर लिया था।
इनमें उनकी एंट्री हो चुकी थी। और यूरोप में भी घुस गए थे लेकिन यहां तो सात सौ बारह तक पहले नहीं खोज पाए क्योंकि राजा दाहिर ने उनको वहाँ रोककर रखा। अरब से है जो थी , आपका उमैयत खलीफा थे।
उस समय पर जो आपका खलीफा थे खलीफा उनके अंदर में गवर्नर थे। जिसका नतीजा था। बिन कासिम यह उसने आकर सिंध में राजा दाहिर को हराया। हॉलांकी राजा दाहिर इससे पहले कम से कम आठ दस बार इनकी सेनाओं को हरा चुके थे। इस बात को कोई नहीं कहता। हमारा जो इतिहास है उसमें सबसे बड़ी समस्या यह है जो भी भारतीय इतिहास पढ़ाया गया उसने तीन विशेष कमियां हैं।
और वो तीन विशेष कमियां हैं, सबसे पहले तो यह पूरा का पूरा जो इतिहास में पढ़ाया जाता है वो दिल्ली का इतिहास है यानी दिल्ली और उसके आस पास इतिहास पढ़ाया जाता है जिसको मध्ययुगीन इतिहास कहते हैं जबकि यदि छोटा सा एक मैं कहता हूं कि एक अलाउद्दीन खिलजी का कोई 20-30 साल का कार्यकाल छोड़ दें और मुगलों का लगभग
यह लगा लीजिए कि डेढ़ सौ साल का कार्यकाल यदि छोड़ दें तो उसके अतिरिक्त जो उनका लगभग छः सौ साल का 1192 से लेकर और सत्रह सौ सात(1707) जो उनका उत्कर्ष है ये पाँच सौ साल का लगभग है। इसमें वह उत्तर भारत के कुछ चुनिंदा हिस्सों में जो वर्तमान भारत भी है वर्तमान भारत और उसमें जो ब्रिटिश भारत और पाकिस्तान के जो दोनों हिससे अलग हुए उनको भी मिला लें तो वो पूरे भारत का दस प्रतिशत हिस्सा भी नहीं होता था।
दिल्ली का इतिहास ही भारत का इतिहास नहीं है :
लेकिन इतिहास में हमें सिर्फ वही बताया जाता है। आप पूरा का पूरा पढ़ेंगे तो आप आप गुलाम वंश भी पढ़
लेकिन इतिहास में हमें सिर्फ वही बताया जाता है। आप पूरा का पूरा पढ़ेंगे तो आप आप गुलाम वंश भी पढ़ लेंगे।
आप खिलजियों का भी पूरा पढ़ लेंगे। उनको एक एक बादशाह को पढ़ लेंगे उसके बाद लोग उनके एक एक बादशाह को पढ़ लेंगे।
इन लोगों का पर तुगलक को पढ़ लेंगे फिर मुगल आ जाएंगे और बीच में छोटे मोटे जो हैं उनको भी पढ़ लेंगे। आप सबको, लेकिन जो उत्कर्ष जिसको मैं मानता हूँ, सात सौ बारह ईस्वी में मोहम्मद बिन कासिम यहाँ आया सात सौ तेरह में बप्पा रावल का जन्म होता है। और बहुत छोटी सी आयु में आप समझ गए कि सात सौ तेईस (723) ईस्वी में उनको दस वर्ष की अवस्था में उनको गद्दी मिलती है। उसके बाद फिर वो जो कासिम से युद्ध लड़ते लड़ते परमार कमजोर पड़ चुके थे। उनको हराकर गुहिल्य वंश के थे । गुहिल वंश बोलते हैं जिसको गोहिल बोलते हैं जिनसे आपके गहलोत भी आते हैं जिसमें वह वंश भी बनता है।
उसको उसकी परंपरागत छोड़कर इन्होंने मेवाड़ का स्वतंत्र राज्य चित्तौड़ ने परमारों से जीतकर चित्तौड़गढ़ है वहां स्थापित किया और उसके बाद फिर इन्होंने दृष्टि घुमाई अरबों की तरफ। और सात सौ तिरेपन (753 ) ईस्वी में इन्होंने राजपाट छोड़ दिया, संन्यास ले लिया।
जिस प्रकार से भारतीय परंपरा है वानप्रस्थ की उस तरह से। इस अवधि में उन्होंने अरबों को, आप देखिए, कि बिल्कुल अरब की सीमा तक खदेड़ दिया। उनको ईरान तक से बाहर कर दिया। जो आज हमारे यहां जो टेरिटरी बताई जाती है ईरान है, खुरासान है। खुरासान में आज अफगानिस्तान और ईरान आदि आता है। जो सेंट्रल एशिया का हिस्सा लेंगे यहां तक उनको खदेड़ कर दिया और इस बुरी तरह से पीटा, कि वो दोबारा कभी भारत में आये ही नहीं हैं।
इस्लामियों की बर्बरता :
भारत का जो सारा का सारा जो आप और इस्लामी शासन मिलता है वह अफगानों का और तुर्कों का मिलता है।
कौन थे समझे आप, यह जो हैं यह सारे के सारे मध्य एशिया से आने वाले लोग थे। मध्य एशिया से आने वाले तुर्क थे और बर्बरता आप जानते हैं अफगानिस्तान है। तो ये सारे भारत पर आक्रमण किए और भारत पर जो राज किया ये नव इस्लामी थे, नव इस्लामी होने के कारण इनका जो आप कह सकते हैं कि है इनका अंधानुकरण । इस्लाम का और इनकी कट्टरता इनकी बर्बरता इनकी नृशंसता वह कुछ और ही दर्जे की थी, न कहते हैं न नया मुल्ला नया मुल्ला बांग ज्यादा देता है। या नया मुला प्याज ज्यादा खाता है।
होता क्या है कि जब कोई नव परिवर्तित व्यक्ति होता है तो फिर जो पुराने होते हैं वो उसको संदेह की दृष्टि से देखते हैं। तो उनकी दृष्टि में अपने को स्थापित करने के लिए यह फिर नित नए स्वांग रचकर और भी अधिक अपने आप को पुरानो से कट्टर दिखाने का स्वांग करते हैं। ईरान और अरब देशों में यही प्रतिस्पर्धा आप बार बार देखते हो के शिया और सुन्नी में प्रतिस्पर्धा क्या है?
शिया सुन्नियों में प्रतिस्पर्धा :
ईरान जो है वे नये मुल्ले हैं। अरब जो हैं वह मूल हैं।
ईरान अपने आपको अधिकतर दिखाने का प्रयास करता रहता था। बप्पा रावल हैं आपके शुरू किया इनको हराना। सबसे पहले कराची सिंध से यहां से निकाला फिर इनको आपके मुल्तान से भगाया, मुल्तान से भगाकर इनको ईरान तक खदेड़ा, बिल्कुल जो आज का जो अरब है इराक वाला लगभग वहां की सीमा तक इनको बाहर कर दिया। और उसमें जो वैक्यूम क्रिएट हुआ उसमें बाद कि और सभ्यताएं ईरान की जो शिया सभ्यताएं वो बाद में हुये। पहले ईरान सुन्नी था। ईरान शिया नहीं था जो आज आप देखते हैं, पूरा का पूरा शिया, उस समय सुन्नी शासक में है। वह बाद में फिर उन्होंने इधर सफाया किया।
रावलपिंडी का नामकरण :
गजनी गोल विजय किया गजनी में अपना गवर्नर स्थापित किया और सबसे बड़ा जो प्रतीक है। रावल का, वो है रावलपिण्डी, रावलपिंडी का तो नाम ही बप्पा रावल के नाम से है। कई ये बप्पा रावल की वीर गाथाएं थीं। जिसको कहें संक्षेप में और उन्होंने आठवीं शताब्दी से लेकर फिर ग्यारहवीं शताब्दी में यह गाथा है। आप महमूद गजनी को तीन सौ साल पूरी तरह से भारत को एक जिसको कह सकते हैं कि एक सुरक्षा कवच अभेद्य जैसा देकर रखा। तीन सौ साल हम उस बप्पा रावल की वजह से बचे।
300 वर्षों तक जिनके नाम का भय:
प्रश्न – आपने तीन सौ साल कहा कि हम बप्पा रावल की वजह से बचे, बहुत ही एक रोमांचित करने वाली बात है लेकिन बप्पा रावल तीन सौ साल तक जीवित नहीं रहे थे तो ऐसा क्या किया था ?
टेरर था। या इस रास्ते में टैक्टिक्स थी क्योंकि बप्पा रावल के बारे में कहा जाता है कि जब उन्होंने अरबों को वहां तक खदेड़ा तो बहुत बीच में चौकियां जो है उन्होंने स्थापित कर दी इन चौकियों के कारण से अगर आता भी तो उन्हीं चौकियों से लड़ता भिड़ता और वापिस लौट जाता था।
प्रश्न – तो तीन सौ साल की टैक्टिक्स जो थी वो अगर आप बता पाएं?
सावरकर का सद्गुण विकृति सिद्धाँत और बप्पा रावल :
मैं बताता हूँ बप्पा रावल जो थे वो बहुत ही एक प्रैक्टिकल किस्म के व्यक्ति थे। तो उन्होंने अपनी चौकियां स्थापित की और दूसरा जो उन्होंने अरबों के साथ लड़ाई लड़ी सौ एक, जो कई बार हमारे भारतीय शासकों में और भारतीय क्षत्रपों में भारतीय क्षत्रियों में एक सद्गुण विकृति है। सदैव देखने को मिली वो सद्गुण विकृति है कि वे जानते हैं कि अरब किस तरह की लड़ाई लड़ते हैं किस प्रकार की नृशंसता करते हैं जिसको टोटल वॉर कहते हैं। वे सिविलियन पॉपुलेशन को भी नहीं छोड़ते हैं जबकि हमारे यहाँ जो परंपरा थी उसमें योद्धा योद्धा से लड़ता था राजा राजा से लड़ता था। सेनाएं सेनाएं रहती थीं। मेगस्थनीज की जो इंडिका है उसमें एक वर्णन आता है बड़ा सुंदर, वह कहता है,”मैं यह देखकर आश्चर्य चकित हो गया कि दो सेनाएं आपस में लड़ रही हैं और बगल में जो किसान है वो अपना खेत जोत रहे हैं।”
Total War : Everything is fare in love and war का असर:
क्योंकि परंपरा यही थी। यह सबसे पहले जब एलेक्जेंडर यहां, आया तब उसने पहली बार सिविलियंस के ऊपर आक्रमण किया। जिसके कारण चाणक्य ने फिर अपनी चोटी बांधकर और यह प्रण किया कि इन दुष्टों को इन यवनों को यहां से हटाएंगे क्योंकि वह हमारे जीवन मूल्यों पर आघात कर रहा था। वो इस प्रकार का कयास सिद्धांत लेकर आया था। यह जो पहले यहां नहीं जाना जाता था वहां सेनाएं सेना से लडती थी।
पूर्व पक्ष अतिआवश्यक है :
जब बप्पा रावल ने इनका आप पूर्व पक्ष किया जो हमारे यहाँ बहुत बाद में नहीं किया। उसका हमें बहुत नुकसान उठाना पड़ा। विशेषकर मैं कई बार पृथ्वीराज चौहान यद्यपि शूरवीर थे लेकिन यह पूर्व पक्ष की कमी हमेशा मैं इंगित करता रहता हूँ। उनमें उन्होंने बिल्कुल यह नहीं
हालांकि जो सामने वाला है उसका युद्ध सिद्धांत क्या है? तो उस युद्ध सिद्धांत को पहचान कर बप्पा रावल ने बिल्कुल उनके साथ उसी प्रकार से व्यवहार व्यवहार किया
नृशंसता का उत्तर नृशंसता का सिद्धांत :
है या के कहा जाता है कि साथ इसका बड़ा उल्लेख किया जाता है कि साहब हमने जो है कभी स्त्रियों से या इस्लाम के जो म्लेच्छ कहते हैं उनकी स्त्रियों से विवाह नहीं किया। यहां ऐसा बप्पा रावल ने जहां भी गए वहां उनके जो राजवंश थे उनको हराकर ही और उनसे गुलामी करवाके, दास बनाकर और उनकी जो स्त्रियाँ थी उनसे विवाह किया और उनको विवाह करके अपने साथ लाए। और यदि वह नृशंसता करते थे तो बप्पा रावल भी उतनी ही नृशंसता से बल्कि उससे भी अधिक नृशंसता से उनका उत्तर देते थे।
बाद में हमारे यहाँ यह हुआ है आप देखेंगे। बाद में उनकी जब नृशंसता नहीं होती थी तो उनको बिल्कुल भय नहीं होता था कि हम तो नृशंसता करेंगे लेकिन यह जब अगर हमको हरा भी लेंगे तो ये तो हमारे सिविलियन है उनको छोड़ देंगे। हमारे स्त्रियों के साथ बुरा व्यवहार नहीं करेंगे। तो वह बड़े इसमें मस्त रहते थे के जस्ट वन वे ट्रैफिक।
ऐसा मुझे लगता है, इसको सावरकर जी ने बड़ी सुंदरता से सद्गुण विकृति के रूप में परिभाषित किया है। ये जो सद्गुण विकृति थी यह भी हम बप्पा रावल में नहीं देखते फिर उन्होंने कहा कि आपने उन्होंने संधि की उन्होंने दूसरे राजाओं के साथ जैसे गुर्जर प्रतिहार है
गुर्जर प्रतिहार आपके सौराष्ट्र की तरफ से राजस्थान का जो अभी यह सिरोही और जालौर वाला जो हिस्सा है वहां थे।
उन गुर्जर प्रतिहारों में साथ संधि करके और एक फ्रंट उनका था और बप्पा रावल होते उनके पीछे उनको प्रोटेक्शन दे रहे थे। उनके पीछे से ढाल बने हुए थे और बप्पा रावल आगे जाकर पूरा सफाया करके आ रहे थे।
हमने किसी पर हमला नहीं किया यह वीरता है या विकृति :
एक और हमारे यहां विकृति रही है जिसको हम और कहते हैं हमने किसी पर हमला नहीं किया, हम कहते हैं कि साहब हमने कभी किसी के ऊपर हमला नहीं किया। आप, यह कोई शेखी बघारने वाली बात नहीं है। यह भी एक सद्गुण विकृति है।
क्योंकि यदि हमें अपनी सीमाओं की रक्षा करनी है तो हमें अपनी सीमाओं से आगे जाकर पहले वहां पर आपको लाइन डालनी पड़ेगी, कि यह हमारा बफर जोन है।
अगर अंग्रेजों से, अंग्रेज की जो एम्पायर थी ब्रिटिश एम्पायर थी उसे कुछ भी है तो हमेशा बफर जोन बनाकर करके रखते, जैसे तिब्बत उन्होंने बफर जोन बनाकर रखा हुआ था।
ये आपके स्थान को उन्होंने रसिया(रुस) के साथ बफर जोन बनाया था।
इसीलिए वो जम्मू और कश्मीर का जो गिलगिट एजेंसी उन्होंने ली थी बाद में अपने कब्जे में रहा करती थी वह भी रसिया के खिलाफ बफर जोन के रूप में रखी थी।
यह एक काम जो बप्पा रावल ने भी मुझे लगता है कि उसी कारण हम उन तीन सौ वर्ष तक हम सुरक्षित रह सके।
फिर उसके बाद भी जब महमूद गजनवी ने आक्रमण किया था बाद में फिर उसके भतीजे सालार जंग को हराकर महाराजा सुहेलदेव ने भी, वही उसी प्रकार बप्पा रावल का जो बप्पा रावल की जो युद्ध नीति थी उस पर अमल करते हुए उसी प्रकार उसी नृशंसता और जवाबी कार्रवाई कि थी। उन व्यक्तियों के साथ में किया जो बर्बरता और नृशंसता करते थे।
आततायी हंतव्यम् :
बर्बरता नृशंसता करने वालों को छोड़ देना जो है यह परले दर्जे की मूर्खता है। उनमें से इकहत्तर में भारत ने की, जो पाकिस्तानी अफसर पकड़े गए गए थे, उनको उन्होंने वॉल ट्राइब्यूनल के सामने लाए बिना छोड़ दिया। और उसका परिणाम यह हुआ कि उन्होंने पहले तुरंत ही बलूचिस्तान पर आक्रमण किया। उनमें सबने मिलकर और उसके बाद फिर अपनी रणनीति बनाई की किस तरह से भारत से बदला लेना और हमारे यहां खालिस्तान आरंभ करवाया।
बप्पा रावल से हम यह सीख ले सकते हैं।
शठे शाठ्यम समाचरेत :
यह दिन ही वह है जिसमें ‘शठे शाठ्यम समाचरेत’ का प्रतिपादन हो, एक ओर अपनी सीमाओं को आगे बढ़ाना जो है वो हमारी सुरक्षा का एक सबसे अभेद्य कवच है।
हम यदि अपनी सीमाएं सिंधु नदी तट रखना चाहते हैं तो फिर हमें अपनी सीमाओं को आगे कम से कम दो सौ तीन सौ किलोमीटर आगे ले जाकर और वहां पर सुरक्षा करनी चाहिए। यह एक महत्वपूर्ण युद्ध नीति के पाठ हमें रावल से सीखने को मिलता है।
प्रश्न – बहुत बढ़िया संजय जी आपने बताया है बप्पा रावल के बारे में जिनके कारण से हम कितने सालों तक सुरक्षित रहे। और उसके बाद में वह परंपरा राजा सुहेलदेव से लेकर के अगर आगे तक भी निभाई गई होती तो आज हम उस कंडीशन में नहीं रहते जहां हम हैं। लेकिन मुझे लगता है हमें इतिहास से प्राणवायु प्राप्त करनी होगी, ऑक्सीजन लेनी होगी अपने वर्तमान को सुदृढ़ बनाना होगा। उसके बाद में विक्रमादित्य, राजा सुहेलदेव के आदर्शों पर चलकर होकर के भविष्य को वैसा बनाना होगा जैसा हम एक्चुअली इस भरतों के भारत को देखना चाहते हैं।
कुछ महत्वपूर्ण तथ्य :
- जेम्स टॉड ने लिखा है कि हिन्दू सेना ने ईरान तक अरबों को खदेड़ा और उन्हें कहीं शरण नहीं मिल रही थी। बप्पा रावल मानवीय मस्तिष्क को समझने वाले व्यक्ति थे। बप्पा रावल जब अफगानिस्तान पहुँचे तो गजनी नामक शहर पर उन्होंने किसी सलीम को शासन करते हुए पाया। बप्पा रावल ने सलीम को हरा कर अपने भतीजे को वहाँ बिठाया, जिससे अगले कई शताब्दियों तक वहाँ हिन्दुओं का शासन रहा। बप्पा रावल ने सलीम की बेटी से शादी भी की।
- राजा दाहिर की बेटियों ने लिया बदला, चित्तौड़ की कमान बप्पा रावल के हाथों में
- अरब से लौटते समय दूरदर्शी बप्पा रावल ने कई चेक पोस्ट्स स्थापित किए। राजा दाहिर सेन की बेटियों प्रेमला और सूर्या ने खलीफा से झूठ बोला कि मुहम्मद बिन कासिम ने खलीफा के पास भेजने से पहले उन दोनों को ‘अपवित्र’ कर दिया है। इसे सुनते क्रोशित खलीफा ने कासिम को तलब किया। उसे बाँध कर बंद कर के लाया जा रहा था, लेकिन रास्ते में ही वो कुत्ते की मौत मर गया। बाद में राजा दाहिर की बहादुर बेटियों ने खलीफा को बता दिया कि उन्होंने झूठ बोला था, जिसके बाद क्रूर इस्लामी शासक ने दोनों को दीवार में ज़िंदा दफनाने का हुक्म जारी कर दिया।
- पर्शियन पुस्तक ‘चचनामा’ में इस घटना का जिक्र है। बप्पा रावल की इस जीत के बाद चित्तौर की कमान भी मोरी राजवंश से उनके हाथ में आ गई। उन्हें ‘महाराव’ की उपाधि मिली। उन्हें ‘हिन्द सूरज’ भी कहा गया। उन्हें ‘राजगुरु’ की उपाधि भी मिली। बप्पा को भील समाज ने ‘रावल (रा – राज्य, व – वर्वत/आशीर्वाद, ल – लक्ष्मी/धन)’। पाकिस्तान का ‘रावलपिंडी’ कभी बप्पा रावल का एक बड़ा चेकपोस्ट हुआ करता था, जिस पर उस जगह का ये नाम पड़ा।
- बप्पा रावल ने दर्जनों छोट-बड़े मुस्लिम शासकों को हराया और हिन्दू साम्राज्य का पुनः विस्तार किया। कई ऐसे शासकों की बेटियों से उन्होंने शादियाँ की। इन महिलाओं से उन्हें 130 बेटे हुए, जिनके वंशजों को आज ‘नौशेरा पठान’ कहा जाता है। 8वीं शताब्दी के इस महायोद्धा का नाम शायद ही हमारे पाठ्य पुस्तकों में मिलता हो, जबकि अरबी आक्रांताओं के नाम सभी को बताए जाते हैं। एक गौपालक परिवार से मेवाड़ पर देश हजार वर्ष शासन करने वाले परिवार की स्थापना तक, बप्पा रावल ने हिंदुत्व के लिए बड़ा योगदान दिया। (साभार: ओप इंडिया: लेखक: अनुपम कुमार सिंह )