121.जयशंकर प्रसाद के नाटक ‘चन्द्रगुप्त’ में चाणक्य के संवाद हैं।
A. शत्रु की उचित प्रशंसा करना मनुष्य के धर्म है।
B. भाषा ठीक करने से पहले मैं मनुष्यों को ठीक करना चाहता हूँ।
C. अन्य देश मनुष्यों की जन्मभूमि हैं, यह भारत मानवता की जन्म भूमि है।
D. महत्वाकांक्षा का मोती निश्वरता की सीपी में रहता है।
E. ईश्वर ने सब मनुष्यों को स्वतंत्र उत्पन्न किया है।
UGCNET-EXAM-SECOND-PAPER-HINDI- परीक्षा तिथि -18/06/2024
उत्तर – B. भाषा ठीक करने से पहले मैं मनुष्यों को ठीक करना चाहता हूँ।
A. शत्रु की उचित प्रशंसा करना मनुष्य के धर्म है।
B. भाषा ठीक करने से पहले मैं मनुष्यों को ठीक करना चाहता हूँ। ✅
C. अन्य देश मनुष्यों की जन्मभूमि हैं, यह भारत मानवता की जन्म भूमि है।
D. महत्वाकांक्षा का मोती निश्वरता की सीपी में रहता है।
E. ईश्वर ने सब मनुष्यों को स्वतंत्र उत्पन्न किया है।
सप्तम् दृश्य
(मगध का बन्दीगृह)
वररुचि -विष्णुगुप्त! मेरा वार्तिक अधूरा रह जायेगा। मान जाओ। तुमको पाणिनि के कुछ प्रयोगों का पता भी लगाना होगा जो उस शालातुरीय वैयाकरण ने लिखे हैं। फिर से एक बार तक्षशिला जाने पर ही उनका…
चाणक्य – मेरे पास पाणिनि में सिर खपाने का समय नहीं। भाषा ठीक करने से पहले मैं मनुष्यों को ठीक करना चाहता हूँ, समझे!
वररुचि -जिसने ‘श्वयुवमघोनामतद्धिते ‘ सूत्र लिखा है, वह केवल वैयाकरण ही नहीं, दार्शनिक भी था! उसकी अवहेलना!
122. करीमुद्दीन किस कहानी का पात्र है।
(1) दुनिया का अनमोल रतन
(2) गैंधीन
(3) परिंदे
(4) सिक्का बदल गया
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उत्तर – (1) (3) परिंदे
परिंदे – विषयः- कहानी में नायिका लतिका अपने प्रेमी कैप्टन नेगी की मृत्यु के बाद एक पहाड़ी स्कूल में अकेलेपन की जिंदगी का चित्रण किया गया है। पात्रः- लतिका , डाॅ. मुखजी, मिस वुड, ह्युवर्ट, करीमुद्दीन जूली आदि।
123. मिश्र बंधुओं द्वारा रचित ‘मिश्र बंधु विनोद’ कुल कितने भागों में विभक्त है?
(1) आठ
(2) तीन
(3) चार
(4) एक
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उत्तर – (3) चार OR (1) आठ
8 bhi ho sakta hai.
मिश्रबंधु नाम के तीन सहोदर भाई थे, गणेश बेहारी, श्याम बेहारी और शुकदेव बेहारी। ग्रंथ ही नहीं एक छंद तक की रचना भी तीनों जुटकर करते थे। इसलिये प्रत्येक की रचनाओं का पार्थक्य करना कठिन है। आदिकाल |मिश्र बंधुओं ने 1913 में मित्र बंधु विनोद लिखा यह चार भागों में विभाजित था. प्रथम तीन भाग 1913 में तथा चतुर्थ भाग 1934 में प्रकाशित हुआ था. मिश्र बंधुओं ने 8से अधिक भागों में विभाजित किया था।
https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.378174/page/n99/mode/2up
124. तुलसीदास रचित ‘रामचरित मानस’ में ‘रामराज्य’ संबंधी वर्णन की पंक्तियाँ हैं।
A. नहिं भय सोक न रोग
B. बड़े भाग मानुष तन पावा
C. सब गुनग्य पंडित सब ज्ञानी
D. देत ईस बिनु हेतु सनेही
E. सब उदार सब पर उपकारी
नीचे दिए गए विकल्पों में से सही उत्तर का घूयन कीजिए :
(1) केवल A, B और C
(2) केवल B, C और D
(3) केवल B, D और E
(4) केवल A, C और E
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उत्तर – (4) केवल A, C और E
A. नहिं भय सोक न रोग ✅
B. बड़े भाग मानुष तन पावा
C. सब गुनग्य पंडित सब ज्ञानी ✅
D. देत ईस बिनु हेतु सनेही
E. सब उदार सब पर उपकारी ✅
चौपाई :
सब निर्दंभ धर्मरत पुनी। नर अरु नारि चतुर सब गुनी॥
सब गुनग्य पंडित सब ग्यानी। सब कृतग्य नहिं कपट सयानी॥4॥
भावार्थ:-सभी दम्भरहित हैं, धर्मपरायण हैं और पुण्यात्मा हैं। पुरुष और स्त्री सभी चतुर और गुणवान् हैं। सभी गुणों का आदर करने वाले और पण्डित हैं तथा सभी ज्ञानी हैं। सभी कृतज्ञ (दूसरे के किए हुए उपकार को मानने वाले) हैं, कपट-चतुराई (धूर्तता) किसी में नहीं है॥4॥
सब उदार सब पर उपकारी। बिप्र चरन सेवक नर नारी॥
एकनारि ब्रत रत सब झारी। ते मन बच क्रम पति हितकारी॥4॥
भावार्थ:-सभी नर-नारी उदार हैं, सभी परोपकारी हैं और ब्राह्मणों के चरणों के सेवक हैं। सभी पुरुष मात्र एक पत्नीव्रती हैं। इसी प्रकार स्त्रियाँ भी मन, वचन और कर्म से पति का हित करने वाली हैं॥4॥
Source Of Proof : रामराज्य का वर्णन webduniya
बरनाश्रम निज निज धरम निरत बेद पथ लोग।
चलहिं सदा पावहिं सुखहिं नहिं भय सोक न रोग।।
राम के राज्य में प्रत्येक व्यक्ति वर्णाश्रम के अनुकूल आचरण करता है, धर्म में तत्पर होकर वेद विहित मार्ग पर चलता है, और सुख पाता है। उनके जीवन में किसी प्रकार का भय, शोक, रोग नहीं है। तुलसी के वर्णाश्रम पर विचार करते हुए उदयभानु सिंह ने लिखा है “उनकी दृष्टि में मानव-धर्म, वर्ण-धर्म, आश्रम-धर्म, राज-धर्म और स्त्री-धर्म धर्म के प्रमुख रूप हैं; इनके समुचित परिपालन पर ही समाज का कल्याण निर्भर है। अपनी धर्म-भावना की इसी पृष्ठभूमि में उन्होंने अपने युग की धार्मिक-सामाजिक परिस्थितियों का चित्रण किया है (तुलसी काव्यमीमांसा, पृष्ठ-193) ।”
125. हिन्दू नवोत्थान, ‘मुस्लिम नवोत्थान’ शीर्षक प्रकरण ‘संस्कृति के चार अध्याय’ के किस अध्याय में संकलित हैं
(1) प्रथम अध्याय
(2) द्वितीय अध्याय
(3) तृतीय अध्याय
(4) चतुर्थ अध्याय
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उत्तर – (4) चतुर्थ अध्याय
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