Secularism Power and Politics
पंथनिरपेक्षता पद एवं राजनीति
जवाब। (यह ऊपर कि लिंक के जवाब में लिखा गया है।)
ऊपर दी हुई लिंक पर जिन भी महोदय ने यह लिखा है कि जो बड़े पदों पर बैठे हुए व्यक्ति हैं उन्हें अपने सार्वजनिक जीवन और आस्था को अलग-अलग रखना चाहिए। उसका प्रदर्शन नहीं करना चाहिए। उन्होंने एक जज की तरह इस बात का फैसला भी कर दिया है कि कोई व्यक्ति क्यों गलत है। और क्यों सही है। उनके कहने का अंतिम अर्थ यह है कि कोई व्यक्ति अगर बड़े पदों पर होता है तो उसे नास्तिक होना चाहिए और उनके अनुसार धर्मनिरपेक्षता की परिभाषा नास्तिकता होनी चाहिए अर्थात वह किसी भी धर्म को मानने वाला न हो। उनके अनुसार धर्मनिरपेक्ष का अर्थ है कि किसी भी धर्म को न मानने वाला जबकि धर्मनिरपेक्ष शब्द वर्तमान में इस प्रकार से लागू ही नहीं होता। न हीं संविधान ऐसा कहता है। क्योंकि संविधान की जो मूल प्रति थी पहली प्रति थी उसमें तो स्वयं भगवान राम लक्ष्मण और सीता जी आदि की फोटो को चित्रित किया गया था। तब फिर यह संविधान की मूल भावनाओं के विरुद्ध संविधान निर्माताओं ने कैसे कर दिया होगा। वस्तुत धर्मनिरपेक्षता नहीं secularism का अर्थ पंथनिरपेक्षता होता है पंथनिरपेक्षता का अर्थ है कि आप किसी भी पथ विशेष की ओर आकर्षित न हो किसी एक पंथ की ओर झुक कर आप दूसरे पथ को अच्छा या बुरा न कहें आप। ईश्वर की उपासना किसी भी पंथ में रहकर कर सकते हैं किंतु वे सभी पथ न्याय के मार्ग में बाधक नहीं बनेंगे। नहीं बनने चाहिए।
यहां पर यह बात स्पष्ट है कि आप किसी भी मार्ग से ईश्वर की आराधना कर सकते हैं और वह जो है न्याय के मार्ग पर बाधक नहीं होने चाहिए तात्पर्य इतना है । किंतु यह महोदय कहते हैं कि उन्हें नास्तिक हो जाना चाहिए अगर ऐसा है तो जो व्यक्ति आस्तिक है फिर उसका तो किसी भी बड़े पदों पर वह आसीन हो ही नहीं सकते जबकि वस्तु स्थिति यह है कि कोई भी व्यक्ति जो बड़े पदों पर होता है वह आस्तिक भी हो सकता है और नास्तिक भी हो सकता है।
अमेरिका के नोटों पर लिखा रहता है we trust in god. वीट्रस्ट इन गोड अर्थात् हम गोड पर विश्वास करते हैं। तो इसका अर्थ यह हुआ कि वह संपूर्ण राष्ट्र जो संसार का सबसे प्रभावशाली बलशाली राष्ट्र माना जाता है वह मूर्ख है। और ऐसे लोग जो यह कहते हैं कि ऐसा होना चाहिए वैसा होना चाहिए वही अधिक बुद्धिमान है।
वस्तुतः ऐसा कहना स्वयं एक पक्ष नास्तिकता के पक्ष में खड़े होकर अपने दुराग्रह को सभी के ऊपर लागू करने जैसा है कोई व्यक्ति अगर सुप्रीम कोर्ट में प्रधान न्यायाधीश है या कोई प्रधानमंत्री है या कोई राष्ट्रपति है तो वह उनका जो एक व्यक्तिगत अधिकार हैउसे कैसे त्याग सकते हैं या वह उस अधिकार से वंचित कैसे किया जा सकता हैं क्योंकि यह तो उनका संवैधानिक एवं मूल अधिकार है। उसका हनन कैसे किया जा सकता है। इतनी सी बात इन दुराग्रही लोगों को समझ में नहीं आती।
जवाब। (यह ऊपर कि लिंक के जवाब में लिखा गया है।)
ऊपर दी हुई लिंक पर जिन भी महोदय ने यह लिखा है कि जो बड़े पदों पर बैठे हुए व्यक्ति हैं उन्हें अपने सार्वजनिक जीवन और आस्था को अलग-अलग रखना चाहिए। उसका प्रदर्शन नहीं करना चाहिए। उन्होंने एक जज की तरह इस बात का फैसला भी कर दिया है कि कोई व्यक्ति क्यों गलत है। और क्यों सही है। उनके कहने का अंतिम अर्थ यह है कि कोई व्यक्ति अगर बड़े पदों पर होता है तो उसे नास्तिक होना चाहिए और उनके अनुसार धर्मनिरपेक्षता की परिभाषा नास्तिकता होनी चाहिए अर्थात वह किसी भी धर्म को मानने वाला न हो। उनके अनुसार धर्मनिरपेक्ष का अर्थ है कि किसी भी धर्म को न मानने वाला जबकि धर्मनिरपेक्ष शब्द वर्तमान में इस प्रकार से लागू ही नहीं होता। न हीं संविधान ऐसा कहता है। क्योंकि संविधान की जो मूल प्रति थी पहली प्रति थी उसमें तो स्वयं भगवान राम लक्ष्मण और सीता जी आदि की फोटो को चित्रित किया गया था। तब फिर यह संविधान की मूल भावनाओं के विरुद्ध संविधान निर्माताओं ने कैसे कर दिया होगा। वस्तुत धर्मनिरपेक्षता नहीं secularism का अर्थ पंथनिरपेक्षता होता है पंथनिरपेक्षता का अर्थ है कि आप किसी भी पथ विशेष की ओर आकर्षित न हो किसी एक पंथ की ओर झुक कर आप दूसरे पथ को अच्छा या बुरा न कहें आप। ईश्वर की उपासना किसी भी पंथ में रहकर कर सकते हैं किंतु वे सभी पथ न्याय के मार्ग में बाधक नहीं बनेंगे। नहीं बनने चाहिए।
यहां पर यह बात स्पष्ट है कि आप किसी भी मार्ग से ईश्वर की आराधना कर सकते हैं और वह जो है न्याय के मार्ग पर बाधक नहीं होने चाहिए तात्पर्य इतना है । किंतु यह महोदय कहते हैं कि उन्हें नास्तिक हो जाना चाहिए अगर ऐसा है तो जो व्यक्ति आस्तिक है फिर उसका तो किसी भी बड़े पदों पर वह आसीन हो ही नहीं सकते जबकि वस्तु स्थिति यह है कि कोई भी व्यक्ति जो बड़े पदों पर होता है वह आस्तिक भी हो सकता है और नास्तिक भी हो सकता है।
अमेरिका के नोटों पर लिखा रहता है we trust in god. वीट्रस्ट इन गोड अर्थात् हम गोड पर विश्वास करते हैं। तो इसका अर्थ यह हुआ कि वह संपूर्ण राष्ट्र जो संसार का सबसे प्रभावशाली बलशाली राष्ट्र माना जाता है वह मूर्ख है। और ऐसे लोग जो यह कहते हैं कि ऐसा होना चाहिए वैसा होना चाहिए वही अधिक बुद्धिमान है।
वस्तुतः ऐसा कहना स्वयं एक पक्ष नास्तिकता के पक्ष में खड़े होकर अपने दुराग्रह को सभी के ऊपर लागू करने जैसा है कोई व्यक्ति अगर सुप्रीम कोर्ट में प्रधान न्यायाधीश है या कोई प्रधानमंत्री है या कोई राष्ट्रपति है तो वह उनका जो एक व्यक्तिगत अधिकार हैउसे कैसे त्याग सकते हैं या वह उस अधिकार से वंचित कैसे किया जा सकता हैं क्योंकि यह तो उनका संवैधानिक एवं मूल अधिकार है। उसका हनन कैसे किया जा सकता है। इतनी सी बात इन दुराग्रही लोगों को समझ में नहीं आती।