kabir ke pad arth sahit.
पद: 203
ऐ कबीर, तै उतरि रहु, संबल परो न साथ।
संबल घटे न पगु थके, जीव बिराने हाथ।।1।।
कबीरा का घर सिखरपर, जहाँ सिलहली मैल।
पाँव न टिकै पिपीलिका, खलकन लादे बैल।।2।।
शब्दार्थ :-
सिलहली = पिच्छिल, फिसलने लायक। गैल = रास्ता । खलकन = दुनिया |
भावार्थ :-
ऐ कबीर, तै उतरि रहु, संबल परो न साथ।
संबल घटे न पगु थके, जीव बिराने हाथ।।1।।
वे अपने आप से कहते हैं कि हे कबीर तू उधर क्यों नहीं जाता क्योंकि तेरे साथ संभल अर्थात किसी का सहारा नहीं है। फिर वह आगे कहते हैं कि भले ही किसी का साथ ना हो पर नहीं मेरा सहारा घटता है और ना ही मेरे पैर थकते हैं यह जो जीवन है यह अकेले ही चल रहा है।
कबीरा का घर सिखरपर, जहाँ सिलहली मैल।
पाँव न टिकै पिपीलिका, खलकन लादे बैल।।2।।
वह कहते हैं कि कबीर का जो घर है वह शिखर पर है अर्थात बहुत ऊंचाई पर है जहां पर बहुत चट्टाने हैं और उसे पर वह बसा हुआ है वह कहते हैं कि जहां पर चींटी का पर भी टिक नहीं सकता वहां पर जो है। खलकत का हिंदी अर्थ है सृष्टि या भीड़, झुंड, जनसाधारण, जनता। अर्थात कहते हैं कि वह ईश्वर का जो अनुभव है वह सहस्त्रार चक्र में है ऊंचाई पर है आकाश वत है वहां पर कोई नहीं ठहर सकता किंतु मैं उस अनुभव में स्थित हुआ हूं कि जहां पर उसने सारे संसार को आश्रय दिया है और वह सारे संसार को अपने में बांधकर लटकाए हुए है।