ख. रमैणी समग्र । (Ramaini Samagra)
।। सतपदी रमैंणी।।
कहन सुनन को जिहिं जग कीन्हाँ,
कहन सुनन को जिहिं जग कीन्हाँ, जग भुलॉन सो किन्हुँ न चीन्हों ।।
सत, रज, तम थैं किन्हीं माया, आपण माँझै आप छिपाया ।।
ते तौ आधि अनंद सरूपा, गुन पल्लव विस्तार अनूपा ।।
साखा तन चैं कुसुम गियाँनों, फल सो आछा राम का नामाँ ।।
सदा अचेत चेत जिव पंखी, हरि तरवर कर बास । ।
झूठ जगि जिनि भूलसी जियरे, कहन सुवन की आस । ।
व्याख्या –
कहन सुनन को जिहिं जग कीन्हाँ, जग भुलॉन सो किन्हुँ न चीन्हों ।।
सत, रज, तम थैं किन्हीं माया, आपण माँझै आप छिपाया ।।
कबीरदास जी कहते हैं कि कहने सुनने के लिए जिन्होंने इस संसार की रचना की है संसार उसी को भूल गया है और कोई भी उसे पहचानता नहीं है अथवा कोई भी उसे अनुभूति से जानता नहीं है।
ते तौ आधि अनंद सरूपा, गुन पल्लव विस्तार अनूपा ।।
साखा तन चैं कुसुम गियाँनों, फल सो आछा राम का नामाँ ।।
वह तो आदि और आनंद स्वरूप है उसके गुण तो अद्भुत और अत्यंत विस्तृत हैं उसकी तुलना किसी से भी नहीं की जा सकती वह अनूप है। आगे वे कहते हैं कि उसकी शाखा यह शरीर है और उसका फूल ज्ञान है, और उसका उत्तम फल है राम का नाम अर्थात ईश्वर का अनुभव।
सदा अचेत चेत जिव पंखी, हरि तरवर कर बास । ।
झूठ जगि जिनि भूलसी जियरे, कहन सुवन की आस । ।
कबीर दास जी समझाते हुए कहते हैं की मोह निद्रा में सदा सोए रहने वाले अचेत रहने वाले हे प्राणी तू सचेत हो जा अर्थात जाग जा वे कहते हैं किस जीव रूपी पक्षी हरि रूपी वृक्ष पर निवास कर अर्थात उनको जान ले। तो यह संसार यह जग झूठा है और इस झूठे संसार के लिए तूने उसके स्वरूप ईश्वर को अपने ह्रदय से भुला दिया है यह अच्छा नहीं है। यह संसार कहने सुनने भर को है इससे अधिक इसमें कोई आशा नहीं रखनी चाहिए।
विशेष :-
(१) यहां पर सॉंगरूपक अलंकार है।
(२) संसार की निःसारता की ओर संकेत है तथा ज्ञान के द्वारा ईश्वर का अनुभव प्राप्त करने का संदेश दिया गया है।
✓
।।निरंतर।।
सूर् बिरख यहु जगत उपाया, समझि न परे बिषम तेरी माया ।।
साखा तीन पत्र जुग चारी, फल दोइ पापै पुंनि अधिकारी ।।
स्वाद अनेक कथ्या नहीं जाँही, किया चरित्र सो इनमैं नाँही ।।
तेतो आहि निनार निरंजना, आदि अनादि न आँन ।।
कहन सुनन कौ कीन्ह जग, आपै आप भुलान । ।
व्याख्या-
सूर् बिरख यहु जगत उपाया, समझि न परे बिषम तेरी माया ।।
उत्पन्न किया यह जगत रूपी वृक्ष अस्तित्वहीन और नीरस है। हे ईश्वर! तेरी यह विचित्र माया मेरी समझ से परे है।
साखा तीन पत्र जुग चारी, फल दोइ पापै पुंनि अधिकारी ।।
स्वाद अनेक कथ्या नहीं जाँही, किया चरित्र सो इनमैं नाँही ।।
वे संसार के विषय में रहते हैं कि इसकी तीन शाखाएं अर्थात् तीन गुण है वे हैं रजोगुण तमोगुण और सत्व गुण, इसमें चार युग हैं वे हैं सतयुग, त्रेता युग, द्वापर युग एवं कलियुग। इस संसार में दो फल प्राप्त होते हैं जिन्हें जिस का अधिकार होता है उन्हें उसी प्रकार का फल प्राप्त होता है और वे दो फल हैं पाप और पुण्य। इस सृष्टि में अनेक प्रकार के स्वाद अर्थात अनेक प्रकार के अनुभव हैं, इन्द्रियों के भोग विलास के पदार्थ हैं जो कहे नहीं जा सकते। किंतु जिसने संसार की रचना की है वह ईश्वर रूपी चरित्र इसमें सहज ही, माया के अज्ञान के आवरण से, दिखाई नहीं देता वह अनुपस्थित रहता है। छुपा रहता है।
तेतो आहि निनार निरंजना, आदि अनादि न आँन ।।
कहन सुनन कौ कीन्ह जग, आपै आप भुलान । ।
कबीर दास जी आगे कहते हैं कि वह ईश्वर तो इस सारे प्रपंच से भिन्न और निराकार स्वरूप है वह निरंजन है अर्थात उसे नेत्रों से देखा नहीं जा सकता अर्थात वह इंद्रियों का विषय नहीं है उसे इंद्रियों से ग्रहण नहीं किया जा सकता वह आदि और अनादि की उपाधि से रहित है। उसने केवल काम चलाओ बातें अर्थात कहने सुनने के लिए इस संसार की रचना की है और उसमें अपने आप को छुपा लिया है और सारा संसार उसे भूल गया है उसकी रचना इस संसार को तो लोग देखते हैं किंतु उसके रचनाकार का भी अनुभव नहीं करते उससे अनभिज्ञ हैं।
विशेष :-
(१) रमैंणीमें साँगरूपक अलंकार का प्रयोग है।
(२) इस रमैंणी के माध्यम से अद्वैतवाद की स्थापना की गयी है। माया उस ईश्वर की ही शक्ति है जिससे यह संसार निर्मित है। और उसमें भी वही व्याप्त है। उसके सिवा और कुछ भी नहीं है।
✓
।।निरंतर।।
जिनि नटवै नटसारी साजी,
जिनि नटवै नटसारी साजी, जो खेलै सो दीसै बाजी।।
मो बपरा थैं जोगती ढीठी, सिव बिरंचि नारद नहीं दीठी।।
आदि अंति जे लीन भये हैं सहजैं जांनि संतोखि रहे हैं ।।
सहजै राम नांम ल्यौ लाई, राम नाम कहि भगति दिढ़ाई ।।
रॉम नॉम जाका मन माँना, तिन तौ निज सरूप पहिचानाँ ।।
निज सरूप निरंजना निराकार अपरंपार अपार ।।
राम नाम ल्यौ लाइसि जियरे, जिनि भूलै बिस्तार ।।
व्याख्या-
जिनि नटवै नटसारी साजी, जो खेलै सो दीसै बाजी।।
मो बपरा थैं जोगती ढीठी, सिव बिरंचि नारद नहीं दीठी।।
नटवै अर्थात जिन्होंने इस इस ऱगमंच का निर्माण किया है, जो भी इसमें खेलता है वज्ह उन सबको साक्षी रुप होकर देखता रहता है।
आदि अंति जे लीन भये हैं सहजैं जांनि संतोखि रहे हैं ।।
सहजै राम नांम ल्यौ लाई, राम नाम कहि भगति दिढ़ाई ।।
कबीरदास जी कहते हैं कि मैंने सहज में ही राम नाम से प्रीति कर ली है और राम नाम लेकर मैंने अपनी भक्ति को दृढ़ कर लिया है। अर्थात मैं अब इस मार्ग से विचलित नहीं होता।
रॉम नॉम जाका मन माँना, तिन तौ निज सरूप पहिचानाँ ।।
जिनके मन में जिन्होंने इस राम नाम को धारण कर लिया है उन्होंने तो यथार्थ में अपने ही निज स्वरूप को पहचान लिया है
निज सरूप निरंजना निराकार अपरंपार अपार ।।
वह निजी स्वरूप निरंजन है अर्थात वह आंखों से दिखाई नहीं देता वह निराकार है अर्थात उसका कोई आकार नहीं है वह अपरंपार है अर्थात उसकी कोई सीमा नहीं है वह पार पाने के योग्य नहीं है ऐसा वह अपार है।
राम नाम ल्यौ लाइसि जियरे, जिनि भूलै बिस्तार ।।
इस माया रूपी विस्तृत अर्थात व्यर्थ का विस्तार प्रदर्शित करने वाला यह झूठा संसार है। माया का अर्थ ही है कि जो नहीं है किंतु दिखती है। इसे व्यक्ति को भूल जाना चाहिए और अपने हृदय में राम नाम की प्रीति को बढ़ाना चाहिए उसे धारण करना चाहिए।
विशेष :-
(१) सांसारिक विषयों से बचने का एकमात्र सहारा राम का नाम है। उसके माध्यम से ब्रह्म अथवा अपने निज स्वरूप को पहचाना जा सकता है।
(२) ईश्वर सर्वव्यापी है। वही सृष्टि का आदि और अंत है।
द्वारा : एम. के. धुर्वे, सहायक प्राध्यापक, हिंदी
Latest Post:
- MPPSC PRELIMS 2024 QUESTION PAPER SET-C IN ENGLISH pdf Download
- MPPSC PRELIMS 2024 QUESTION PAPER IN HINDI pdf Download
- MPPSC-PRELIMS EXAM PAPER-01(GENERAL STUDIES)-2024-SOLVED PAPER WITH DETAILED SOLUTIONS-EXAM DATE-23-06-2024 Que.No.91-100
- MPPSC-PRELIMS EXAM PAPER-01(GENERAL STUDIES)-2024-SOLVED PAPER WITH DETAILED SOLUTIONS-EXAM DATE-23-06-2024 Que.No.81-90
- MPPSC-PRELIMS EXAM PAPER-01(GENERAL STUDIES)-2024-SOLVED PAPER WITH DETAILED SOLUTIONS-EXAM DATE-23-06-2024 Que.No.71-80