पश्चिमी पैगम्बरवाद  कि वर्तमान स्थिति (The current state of Western religions.)

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पंकज सक्सेना और संजय दीक्षित जी के वार्तालाप पर आधारित।(TJD PODCAST 11)

Table of Contents

ट्रेलर :

मेरी दृष्टि से अगर एक दृष्टि होना चाहिए, एक आयाम जिसका हमें समझना बहुत आवश्यक है।

रिलीजन, मजहब इतने ग्रंथ हमने हिंदुओं ने जो बनाए विश्व में और किसी रिलीजन और किसी सभ्यता ने  नहीं दिये। 

पीपल ऑफ द बुक

तो इनका जो यह दावा है पीपल ऑफ द बुक का वह कहां से आता है? लोगों को लगेगा कि यह ज्ञान का प्रेम है, ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। लोगों को लगेगा यह विद्या का प्रेम है ,ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। जब वे कहते हैं, पीपल को उनका केवल एक पुस्तक से  होता है और उनके कहने करती है इस पुस्तक के बाहर ज्ञान नहीं है।

अगर हम कहें उनका स्वयं ही अगर आप उनकी पुस्तक पढ़ें, तो उस पर चर्चा हो रही, भारत पाकिस्तान हुआ, सीरिया और लेबनान का बंटवारा हुआ, इजरायल और जॉर्डन का बंटवारा हुआ, तुर्की ने या जो क्रिश्चियन हैं उनका नरसंहार किया, पूरे संसार 

में हम देखें तो हमें जो हंसने एजेंडा है के पॉलिटिकल इंसान के हमें बार बार अमेठी से पहले में लेनी में यूरोप और भूमध्यसागर के आसपास के क्षेत्र बनाया दूसरे में उन्होंने अमेरिका और अफ्रीका को बनाया जो है वो एशिया की ओर अग्रसर है और उनका प्लान ही तो आगे बढ़ता जा रहा है कोरिया को इस्तीमोर को कर चुके हैं और भारत सोच मूर्तिपूजक संप्रदाय है, कोई रोमन धर्म को पालन करने वाले लोग है वहां जाकर आप उनके उनके मंदिर के बाहर उनके देवी देवताओं को कह रहे हैं कि यह पिशाच है कि भूत है

है इनको नष्ट करना चाहिए। तुम पापी हो, इस मंदिर को तोड़ना चाहिए। जब आप ऐसी बातें करें तो बहुत स्वाभाविक है कि आज नहीं तो कल आपकी पिटाई होगी।  मु सलमान लगभग दो बिलियन से ऊपर हैं हम एक बिलियन है क्योंकि हमारा एक देश है।

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प्रारंभ :

नमस्ते ! पॉडकास्ट के इस संस्करण में आपका स्वागत है आज हमारे साथ हैं पंकज सक्सेना जी, पंकज सक्सेना जी जो हैं वो बृहत हैदराबाद के को फाउंडर हैं और आज हमारे साथ बात करेंगे। कुछ गंभीर विषयों पर आपका स्वागत है पंकज जी नमस्कार बहुत बहुत।

विश्व के कुछ मुख्य बिलीफ सिस्टम

संजय दीक्षित जी –

आप तो अंतरराष्ट्रीय संबंधों का काफी विश्लेषण करते रहते हैं। यदि अंतरराष्ट्रीय संबंधों को समझना हो, एक जिसको हम कह सकते हैं सही दृष्टिकोण से और सही पृष्ठभूमि से तो उसके लिए क्या अध्ययन आवश्यक है?

रिलीजन और मजहब की समझ

मेरी दृष्टि से अगर एक दृष्टि होना चाहिए एक आयाम जिसको में समझना बहुत आवश्यक है विश्व दृष्टि को समझना तो वह रिलीजन मजहब उसको समझना बहुत बहुत आवश्यक है । और वैसे तो रिलीजन धर्म नहीं है और धर्म अलग है रिलीजन अलग है। परन्तु, जो भी अधर्म में जी बिल्कुल दृष्टि से बिल्कुल सही बात देगा।

और जो धर्म भी है परंतु अगर विश्व राजनीति को बहुत गहराई से समझना है तो धर्म क्या है और रिलीजन क्या है? इन दोनों को समझना बहुत आवश्यक है।

क्योंकि जो मनुष्य समाज पर मनुष्य इतिहास पर और व्यक्तियों पर भी सबसे गहरा प्रभाव जिन कुछ आयामों को पड़ता है उसमें एक हमारी अर्थव्यवस्था है, राजनीति है, टेक्नोलॉजी तकनीकी है, और मजहब रिलीजन अथवा धर्म यह बहुत आवश्यक है। इसको अगर आपने दृष्टि को नहीं समझा, तो पिछले दो हज़ार वर्षों से खासतौर से क्योंकि हम रिलीजन की जब बात करें तो बात आती है।

Prophetic monotheism( पैगंबरवादी एकेश्वरवाद ) की जो पैगम्बरवादी एकेश्वरवाद की शुरुआत की और उसको समझे बिना विश्व इतिहास को विश्व समाज को समझना तो बिल्कुल ही असंभव तो ये जो Prophetic monotheism वाली एकेश्वरवाद है।

संजय दीक्षित जी

संजय दीक्षित जी – -तो यह जो पैगंबरवादी एकेश्वरवाद है उसको समझने के लिए उसकी दृष्टि विकसित करने के लिए क्या आवश्यक है?

पंकज सक्सेना जी -।  –

पैगंबरवादी एकेश्वरवाद को कैसे समझें?

उसको समझना बहुत आसान है। अगर हम तुलना करें किसी और धार्मिक मत कुछ मिलेगा क्योंकि जब सनातन धर्म को समझे जाएंगे तो एक ओर से अनुभूति की दृष्टि से तो बहुत आसान है परंतु अगर ग्रंथों की ओर जाएंगे तो बहुत सारे ग्रंथ है परन्तु एकेश्वरवादी आपको समझना बहुत आसान है क्योंकि इनकी पुस्तकें एक ही होती तो अगर ईसाइयत की बात करें तो बाइबल है और इस्लाम की बात करें तो जैसा हम जानते ही है कुरान है । कुरान के साथ क्योंकि उनका जो शरिया कि पाठ है उनकी विधि है वे हदीस से डिराइव होती है वहां से निकलती हैं।

इसमें कुछ पुस्तकों को पढ़ना आवश्यक हो जाता है तो इस्लाम में आपको वहां उसका अध्ययन करना पड़ता है परंतु इनकी साई की जो है की मानसिकता है उसको आप कुरान में बहुत अच्छे से ढूंढ सकते हैं और बाइबल में भी इनकी दृष्टि को बहुत अच्छे से जान सकते हैं।

इनके बारे में एक फ्रेश phrase का प्रयोग होता  hai एक वाक्यांश का प्रयोग होता है।  उपलब्ध बुक अब पीपल ऑफ द बुक बड़ा एक अहले किताब अहले किताब हिंदुओं को बहुत हास्यपद सा यह पता लगता है क्योंकि पुस्तकें जितना ग्रंथ हमने हिंदुओं ने सनातनियों ने जो बनाए इतने तो और किसी विश्व और किसी सभ्यता अरे ग्रंथ नहीं लिखे तो इनका जो ये दावा है पीपल ऑफ द बुक का वह कहां से आता है तो उसमें अगर थोडा सा गहराई में जाएं यह बहुत भिन्न बात है। 

लोगों को लगेगा कि यह ज्ञान का प्रेम है ऐसा बिल्कुल भी नहीं लोगों को लगेगा यह विद्या का प्रेम है ऐसा बिल्कुल भी नहीं जब वे कहते हैं पीपल तो उनका अर्थ केवल एक पुस्तक से होता है और उनके कहने का अर्थ है इस पुस्तक के बाहर ज्ञान नहीं है।

मोजेस का वृत्तांत

आपको जो भी ढूंढना है वह इस पुस्तक के अंदर है इसका ऐतिहासिक पृष्ठभूमि ऐसी है कि मोसेस जब

जो इनके एक पैगम्बर है बाइबल के और वहां से निकलते हैं जब जेब से निकलते हैं। ओल्ड टेस्टामेंट पर और जब इजरायल की ओर जा रहे होते हैं अपने अनुयायियों को लेते हुए तो उनके पास भूमि नहीं है,

यह बड़ी विचित्र बात है उनके पास भूमि नहीं है और उन्हें जाकर भूमि को घेरना है तो उस समय वह उनको एकजुट कैसे रखें उसके लिए वह कहते हैं कि ये जो यहोवा ने जो हमें यह जो नियम दिए हैं यह पुस्तक है या बाइबल पुस्तक है। इसलिए आप पीपल ऑफ द बुक हो, तो भूमि के हमारा बाकी पूरे विश्व में हमारा जो

जुड़ाव है वह भूमि से रहता है और जब आपको जो जुडाव उस भूमि से रहता है तो आप उसका समर्थन करते हैं। आप उसका सम्मान करते हैं परंतु इन और यहां इनका एक मूल प्रकृति है यह किसी भी भूमि उस वहां का क्षेत्र की बोली भाषा पहनावा भोजन संस्कृति धर्म का सम्मान नहीं करते उसको नष्ट करने का प्रयास करते हैं।

क्योंकि इनके जो आरंभ में ही बीज है कि आपको भूमि से लेना देना नहीं है। आपका जो पहचान है वह ड्राइव होती है वह निकलती है इस पुस्तक से तो पीपल ऑफ द बुक हैं तो इनकी बुक का अध्ययन करें तो bahut स्पष्ट रूप से की साइकिल पर पहुंच गए।

माताभूमि:पुत्रो अहं। वहां नहीं है।

सिद्धांत लागू नहीं होगा यह सिद्धांत बिल्कुल नहीं है वे भूमि के भूखे हैं परन्तु किसी एक भूमि से उनका जुड़ाव बिल्कुल भी नहीं, तो एक भूमि उनके लिए ऐसा नही कि यह बहुत पवित्र भूमि है।  इस तरह के विचार उनमें है ही नहीं। क्योंकि उनका उनका जो माध्यम का विचार किसी और रूप से ही करता है और इस कारण से अगर इकोलॉजिकल दृष्टि से देखें तो भी वे जहां गए हैं उन्होंने उस भूमि का और वहां की सभ्यता का वहां की संस्कृति का विनाश ही किया।  उसका कारण यह उनका जुड़ाव भूमि से कभी रहा ही नहीं है। वे एक कोलोनियल जो उपनिवेशवादी विचारधारा आरंभ से ही है। अब देखिए कि जब  इजरायल की स्थापना होती है। जब वो कानानाईट्स का  जो massacre  है उसके बाद ही, आपको एक पुरानी सभ्यता को हटाकर और ऐसे हटाकर, निकालकर भी नहीं , उनका नरसंहार करते हैं। आपकी उत्पत्ति आपके जो देश की है वह है प्रोमिस लैंड कि स्थापना की पुरानी सभ्यता का नरसंहार का देते हैं। 

Jealous God की  अवधारणा

 और आपने जो कमाल की बात कही उसमें बिल्कुल स्पष्ट लिखा है कि I am a jealous God yah kya dharna hai? अब Yah बहुत सुंदर prashna hai  और पुनः अगर कोई हिन्दू यह बात सुनें। कि जो गॉड (God ) है और जो परम हो सकता है कुछ देवी देवता में लग सकते हैं किसी एक दूसरे से परन्तु जो परम चेतना है वह एक ही है।  हमारे वह  ईर्ष्या ही क्यों करेगी, क्योंकि उसके अलावा और कुछ है ही नहीं। तो आप ईर्ष्या का जो सिद्धांत है भगवान यह के संदर्भ में वह हमें जो है वह समझ नहीं आता। पर उनके लिए जो है वह बहुत ही महत्वपूर्ण है। क्योंकि उनका पूरा अस्तित्व ही गैर है।

वह अगर हम कहें उनका स्वयं ही शत्रु बोध, अगर आप उनकी पुस्तक पढ़ें, तो उसमें चर्चा किसकी हो रही है कि आपको ऐसा नहीं करना है। आपको ऐसा नहीं करना है। शत्रु शत्रु शत्रु।

इस्लाम की ओर झुकते जाना अर्थात्  बहिर्मुखता :

आपको इनके विरुद्ध युद्ध लड़ना है। इसलिए कहा जाता है कि जब एक मुसलमान सच्चा मुसलमान बनता है, मजहब की ओर झुकता है, तो वह बहिर्मुखी हो जाता है। वो यह ध्यान देने लगता है कि उसकी स्त्री मोहल्ले की स्त्री हिन्दुओं की स्त्री गैर मुसलमानों कि स्त्री किस प्रकार से जो पहनावा पहन रही हैं या विश्व में राजनीति कैसी हो रही?  जब एक हिन्दू अंतर होता है तो ध्यान साधना और अपने अंदर की यात्रा करता है। तो इसका कारण है कि उनकी पुस्तक में चर्चा ही जो है वह चर्चा ही शत्रु शत्रु शत्रु की चर्चा है। और उनका अस्तित्व ही दूसरे के अस्तित्व को नाश करके उसके ऊपर अपनी इमारत को खड़ा करने का ही अस्तित्व है।  और यह आप देख सकते हैं,  वास्तव में भी ऐसा ही जितनी भी चर्च, आज जो बड़ी प्रमुख हैं वहां किसी न किसी मूर्ति पूजक धर्म पैगन आदि के किसी मंदिर के अस्तित्व के ऊपर ही वे खड़ी हुई हैं।

देवालयों को तोडकर निर्माण की परंपरा

अमेरिका में तो बहुत स्पष्ट दिखता है, अगर आप मैक्सिको में जाएं, तो उनके जो मैक्सिको और सेंट्रल जो मध्य अमरीका है उनके जो करती है वहां पर तो बहुत स्पष्ट है कि आपको नीचे जो जिस प्रकार से काशी विश्वनाथ में दिखती है कि किस प्रकार से मस्जिद जो है वो एक मंदिर के ऊपर खड़ी हुई है। उस प्रकार से वहां भी होता तो इनका अस्तित्व ही

एन्टी पीस, एंटी आइडेंटिटी है। और पाकिस्तान का देखिए जब से पाकिस्तान बना है भारत के बिना उसकी कोई कल्पना ही नहीं, उसे उसका पूरा अस्तित्व ऐसा है की भारत का नाश करना है।

समाज को बलपूर्वक बदलना

तो यह इनके पैगम्बर वाद की जद में है। यह दूसरी संस्कृति सभ्यताओं का विनाश करके उनकी समाज को अपना अनुयायी बनाकर उनके संसाधनों का प्रयोग करके और समृद्धि लाना।  इस प्रकार से एक कह सकते हैं कि कोलोनियल आरंभ से ही वह कोलोनियल विचारधारा है जो कि का नाम है कि Massacres me आपको दिखती है। वहां से पूरे ईसाइयत का जो इतिहास है वह वैसा ही है।

Eastern Roman empire jab banta hai.

Catherine mixi ki bahut Sundar pustak hai the dark age. Bahut Sundar aur bahut dardnak hai aapko bahut kasht hota hai usko padhakar. Agar kisi Ko yah lagta hai ki yah Shayad nahin kiya hai to use yahi itihaas dekhna chahie.

जब ग्रीस में जब constentenopal banta hai  बनता है या जो अभी आज का स्वरूप है उससे पहले जो ईसाई स्वरूप लेता है जब पड़ोसन तीन जब धन पर रोमन एम्पायर जब बनता है constentenopal पल इसाई हो जाता है । तो उसके बाद जो प्रॉसिक्यूशन हुआ है जो मारकाट हुई है,  गैर इसाइयों की जिस प्रकार से उनको कैसी मिक्सी की बड़ी सुंदर पुस्तक है जिसमें आती है जिसमें उन्होंने डाक नहीं है जिस पर बहुत सुंदर और बहुत दर्दनाक है बहुत आपको कष्ट होता है उसको पड़ती है कि और किसी को अगर ऐसा लगे कि यह इन्होंने यह नहीं किया है तो वे इसके बारे में जांच कर सकते हैं।

रिलीजस कर्तव्य :

और उसके बाद कैसे एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में जो मूर्ति पूजक हैं उनका रहना कैसे असंभव हो रहा है। और उनमें कितने अच्छे-अच्छे दार्शनिक थे और वह फिर कैसे इधर-उधर मारे मारे फिरते हैं यह उसमें दिखाई देता है। जैसे-जैसे वहां पर क्रिश्चियनिटी बढ़ती जाती है वैसे-वैसे वहां की जो सुंदर सभ्यता है वहां का जो दर्शन है वहां की जो परंपराएं हैं क्रमशः नष्ट होती जाती है यह बहुत दर्दनाक है। जिसको ओपन Community की जो आज हम कल्पना करते हैं वह व्यवस्थाएं वह सभ्यताएं वैसे ही थी। जिसमें आप विचारों को प्रतिपादित कर सकते हैं जिसमें आप ज्ञान विज्ञान की अनुसंधान की कल्पना कर सकते हैं उसे आगे बढ़ा सकते हैं। ऐसी संस्कृति थी।

शहीद कौन हैं?

और ये लोग बहुत शहीद शहीद बोलते हैं जो कहीं न कहीं जाकर शहीद हुए हैं तो वह किस प्रकार शहीद हुए हैं यह देखिए। ऐसा क्यों हुआ ? ऐसे क्यों शहीद हुए। तो एक तो उनकी आधी कहानी काल्पनिक और गढ़ी हुई है उनका कोई आधार नहीं है।

इस्लाम में अधिक किया है तो अगर आप इतिहास देखें तो ईसाइयों से आरंभ होता है पहले पालमाहिरा कि देवी का  जो मंदिर के ऐसे विनाश, इस तरह से वह किया जाएगा। वह एक के बाद एक उनके विग्रह से  देवी की जो विग्रह है उसको कैसे खंडित करते हैं।

इस प्रकार से एक और एक क्षेत्र के बाद दूसरे क्षेत्र में इस प्रकार से जो वह मूर्तिपूजक वहां के जो संप्रदाय हैं उनका रहना असंभव हो रहा है उनके जो दार्शनिक है वह एक नगर से भाग कर दूसरे नगर जाते हैं और कैसे एक के बाद एक के बाद ईसाइयत जैसे जैसे आती जाती है। वैसे वैसे जो सुंदर सभ्यता है जो ऊंची दार्शनिक सभ्यता है जो जिसको हम आज ओपन सोसाइटी की जो कल्पना करते हैं जिसमें कि आप विचारों को प्रतिपादित कर सकते हैं।  जिसमें आप ज्ञान विज्ञान की चर्चा कर सकते हैं।  उसका अनुसंधान कर सकते हैं।  ऐसा समाज ही मिश्र के पास था, जो कि इसाइयत ने नष्ट किया, तो उनका अस्तित्व ही नष्ट करने पर है । जब रोमन यह मात्र और शहीद शहीद सारे इनके पास से कहीं न कहीं जाकर शहीद हुए।  पूछें कि आप ऐसा क्यों हुआ कि सब क्यों मारे गए?  तो आदि कहानियां है बनाई गई है उसमें से कुछ मारे भी नहीं गए।

परंतु अगर मारे भी गए हैं तो अगर आप का इतिहास देखें तो वहाँ जहाँ पर सौ प्रतिशत मूर्तिपूजक संप्रदाय हैं।  कोई रोमन धर्म को पालन करने वाले लोग हैं वहां जाकर आप उनके उनके मंदिर के बाहर उनके देवी देवताओं को कह रहे हैं कि ये पिशाच हैं यह भूत हैं यह शैतान हैं इनको नष्ट करना चाहिए। तुम पाप में रह रहे हो तुम पापी हो। इस मंदिर को तोड़ना चाहिए। जब आप ऐसी बातें करेंगे तो बहुत स्वाभाविक है कि आज नहीं तो कल आप की पिटाई होगी।  

मिलेनियम डेवलपमेंट गोल

 और जो उनके साथ हुआ वह इतिहास में है भी तो यह हुआ ही क्यों ? क्योंकि उनका अस्तित्व भी निर्धारित है,  किसी दूसरे के अस्तित्व का नाश करने पर।  उसके बिना उनका अस्तित्व नहीं, हम वायरस से एक बार मैंने एक लेख लिखा था कि हम कोरोना की बात कर रहे हैं। सबसे बड़ा पढ़ने में महामारी है जो सबसे लंबी महामारी है वह तो पैगम्बरवादी एकेश्वरवाद की शुरुआत है, जो दो हज़ार वर्षों से चलता रहा, क्योंकि आपकी अगर गुण देखें तो ये किसी एक बॉडी को एक स्वस्थ मनुष्य को एक स्वस्थ समाज को पहले ग्रसित करता है।  जब उसको ग्रसित कर लेता है, तो धीरे धीरे उसके अंदर जो दूसरे संस्थान हैं जो उनके व्यक्ति हैं जो उनके धर्म हैं उनकी रीतियाँ हैं उनकी नीतियां हैं उन सबको नष्ट कर देता है। जैसे वह नष्ट हो जाता है तब वह किसी दूसरे शरीर की ओर रुख कर लेता है।  अब अभी आप देखें कि पोप ने बड़ा प्रसिद्ध उनका कथन है कि तीसरा मिलेनियम एशिया का है।

पॉप का एक प्रसिद्ध कथन है आप उसको तो देखिए कि ईसाइयत के लिए कि पहले मिलेनियम में यूरोप और भूमध्यसागर के आसपास के उन्होंने जो क्षेत्र हैं उनको ईसाई बनाया। दूसरे में उन्होंने अमेरिका और अफ्रीका बनाया, और अब जो है वह एशिया की ओर अग्रसर है। और उनका प्लान देखो, तो आगे बढ़ता जा रहा है। कोरिया को धर्मांतरित कर चुके हैं।

इसतितिमोर को कर चुके हैं।  और भारत और चीन में उनका प्रयास बड़े जोर-शोर से चल रहे हैं।

संजय दीक्षित जी-

 तो पूरा इतिहास और जो इनके आपस में संबंध हैं, वह आप इन्हीं पर आधारित मानते हैं। 

क्योंकि मैं देखता हूँ सामने एक सिद्धांत है जिसको सैर बोलते

उसको कई बार सैर नहीं कहते हैं। जैसे फतवा  आलमगिरी में जो है वह किताब शरिया के अनुसार उसको बोलते हैं वो है। 

तो उसने यह दिया हुआ है कि भी आपको जो है वो

गैर मुसलमानों से कैसे बर्ताव करना है। दो जो इंटरनेशनल रिलेशंस जिसको हम आज पहले है

उस पर जो आजकल इंटरनेशनल रिलेशंस है तो क्या आप मानते हैं कि वो प्रतिच्छाया आज भी है?

 पंकज सक्सेना जी -।  -जी बिल्कुल! क्योंकि आज भी जो यह मजहब है। शक्तिहीन होने की बजाय तो और शक्तिशाली हो गये और ईसाइयत अगर अपना जो जन्मस्थान है जन्मस्थान तो इसराईल अगर बोला जाए तो वहां तो वह बहुत क्षीण है, परन्तु यूरोप, यूरोप के बाद अमेरिका, अफ्रीका और एशिया जैसे देशों में बहुत शक्तिशाली हो गई है।

क्रिश्चियनिटी और यूनिवर्सिटी सिस्टम

  तो उसका प्रभाव तो दो हजार वर्षों से है। अभी तक है। क्योंकि देखिए इनका ये हमें इतिहास के लोंग arms  जो हैं उनको देखना बहुत आवश्यक है कि इनकी सोच कितनी लंबी होती।  अब इनका अगर आप इतिहास देखें, इसाइयत तो बहुत चतुर है,  इसमें जो भी नई धारा और धारा के ऊपर बैठ जाते हैं उसमें इसाइयत नया जो शब्दावली है उसका गढ़ना करते हैं। और शब्दावली के सहारे ही ऐसा युद्ध को आगे बढ़ाते थॉमस एक्विनास ने आज जो हम यूनिवर्सिटी सिस्टम देखते हैं जो विश्वविद्यालय का तंत्र है इसकी जड में कहीं उन्होंने नॉलेज को weapanise kiya इस किया। शिक्षा को शस्त्र की तरह उन्होंने प्रयोग किया।

और सदैव केवल शस्त्र की तरह ही प्रयोग किया जब थॉमस एक्विनास ने समझा कि अब वह  अगस्टिन और टर्टोलियन  का जो  फेथ  का मामला था अब वह थोड़ा क्षीण होगा। तो हमको अब हमको यह भी रुख लेना है। तो उन्होंने जब यूनिवर्सिटी सिस्टम बनाया तो उसकी जड़ों में उन्होंने यह डाला की किस प्रकार इसाई हित की रक्षा की जा सकती है।

और इस प्रकार के आपको स्कॉलर जो शोधकर्ता है निकाल सकेंगे। ऐसा कर सकेंगे। तो उनकी जो दृष्टि है वो आदमी सीमेन हंटिंगटन ने नब्बे के दशक में बड़ी सुंदर पुस्तक लिखी और उसमें वह बार बार यही कह रहा है वह  लिविंग क्रिश्चियन है परन्तु वह कह रहा है कि हमें यह मानना पड़ेगा कि रिलीजन बहुत शक्तिशाली है और आज भी वह एक आयाम है।  जिसका प्रभाव पूरे इतिहास के ऊपर पड़ता है।

नकारकर जीतना कठिन क्यों

जिन धडों में उसने विश्व को बांटा, आज भी वही धड़े कार्य कर रहे हैं। और भले ही आपको अकादमी में उन्हें कितना भी नापसंद करें कितना भी उनसे मुंह मोड़ लें परन्तु वह उनकी भविष्यवाणी है, वह शब्दश: सत्य हो रही है राजनीति में। और देखिए जब दम होता है राजनेताओं को और बड़े बड़े साम्राज्यों को कि वो इस्लाम और ईसाइयत। जैसे दो हज़ार चौदह वर्षों से पुराने जो शक्तियां हैं मजहबी उनको नकार के उनसे जीत में सफल नहीं हो पाये। जिस प्रकार से सोवियत यूनियन ने सोचा कि उनमें  1969-1970 के दशक में कि वह तो इतना शक्तिशाली हो चुका है। उसने इतने सारे देशों को के ऊपर कब्जा कर लिया है और अफगानिस्तान में कर सकता है। 

जिस देश ने भी ऐसा सोचा है कि हम इस्लाम को जाने बिना  हरा देंगे तो वह नहीं हारा है क्योंकि आप उसकी प्रकृति को नहीं समझ रहे हैं वह हार सकता है किंतु उसकी प्रकृति को समझे बिना ऐसा संभव नहीं है। यह सारे इतिहास से दिखाई देता है कि ऐसा नहीं हुआ है।

शत्रु की जब तक आप शक्ति नहीं समझेंगे तब तक आप शत्रु को पराजित नहीं कर सकते।

और उसने प्रयोग करना चाहा इस्लामी आतंकवादियों का जिससे कि वह वहां की जो हो सकता है उसको स्थापित कर सकें परंतु हुआ इस्लामी आतंकवादियों ने सोवियत यूनियन का प्रयोग किया।  सत्ता में आए और सबसे पहले फिर उनको उससे बाहर किया।  अमरीका ने भी ऐसा ही सोचा उनके साथ भी ऐसा होगा। जिस देश में जिस ऐसे राज्य ने यह समझा है कि हम इस्लाम को उसको नकार दें। नकारकर नहीं  हराया जा सकता है। 

रामस्वरूप जी : योगिक चित्त भूमि से इन्हें समझना :

उसकी प्रकृति को समझकर या मानकर शत्रु की जब तक आप शक्ति नहीं समझेंगे तब तक आप शत्रु को पराजित नहीं कर सकते, श्री रामस्वरूप जी का सबसे बड़ा जो योगदान है इस पूरे समय में वह यह है कि वहां वे योगिक चित्त भूमि कि वे बातचीत करते हैं वहां वह शत्रु की शक्ति को भी बहुत अच्छे से स्थापित करते हैं।  पहली बार की जो एकाग्र, निरुद्ध, एकाग्र चित्त भूमि है जिससे सात्विक देवता निकलते हैं। फिर क्षिप्त और विक्षिप्त चित्त भूमि है। तो ऐसा नहीं कि उनके पास शक्ति नहीं है। ऐसा नहीं है । कि इनमें कोई सच्चाई नहीं परन्तु वह जिस चित्तभूमि से आ रहे हैं वह शत्रु की भूमि है।  वहां से ऐसे ही देवता आएंगे और उनकी असली जो प्रकृति उसको समझना बहुत आवश्यक है।  तो जब तक हम उसको नहीं समझेंगे। तो फिर उनके साथ कैसे निपटेंगे। 

एक ही अनफिनिश्ड एजेंडा है

हमारे देश की इकॉनमी, हमारे पूरे विश्व की जो अर्थव्यवस्था है पूरे विश्व की राजनीति है वह उस पर कार्य करती है। भारत पाकिस्तान हुआ ही क्यों? सीरिया और लेबनान का बंटवारा हुआ ही क्यों ? इजरायल और जॉर्डन का बंटवारा हुआ क्यों, तुर्की ने आर्मेनिया जो क्रिश्चियन है उनका नरसंहार

 किया क्यों, पूरे विश्व में हम देखें तो एक ही, हमें जो अनफिनिश्ड एजेंडा है वही मिलेगा।

इस्लाम के पॉलिटिकल इस्लाम के हमें बार बार हम देखते हैं तो अगर आप राजनीति को नहीं समझेंगे या एलीफेंट इन  रूम को न देखने वाली बात है।  और

यह बिल्कुल निश्चित है कि लोग ऐसा प्रयास बार बार करते हैं अकादमी में, हम हर रोज देखते मीडिया में हम हर रोज देखते हैं कि ऐसा प्रयास हो रहा है। परंतु आप देखिए कि उसके बिना आप मजहब  और धर्म की राजनीति को समझे बिना आप विश्व की राजनीति और  समाज को समझ ही नहीं सकते।

संजय दीक्षित जी-

कोई उदाहरण लें जिससे इसको समझा जा सके। 

चलिए चलिए बात करते प्रथम विश्व युद्ध की यह प्रथम विश्व युद्ध के जो तात्कालिक कारण हमें दिखते हैं उनको इस पृष्ठभूमि से कैसे जोड़ा जा सकता है?

पंकज सक्सेना जी -। –  विश्वयुद्ध में जब इन्होंने जब सामना किया क्योंकि वह जो यूरोप के देश वह तो ऐसा वैसा ही थे । तो उसमें तो यह समीकरण कम थे परन्तु जब इन्होंने विश्व युद्ध जब बना और जब पूरे विश्व में जब वह फैला तो जिस प्रकार के जो है जिससे जो फिलिस्तीन से अथवा जो सऊदी अरब से जो आ रहे हैं उनका जो अगर आप और कोट अभी  करें तो उनकी जो प्रेरणा है वह मझहबी है और दूसरे विश्व युद्ध में तो जो फिलिस्तीन का जो मैं नाम है अभी नहीं हो रहा जो है हज हुसैन अल अमीनी उन्होंने नरसंहार का प्लान किया। कार्यान्वित भी किया। तो इसमें मजहब के आधार पर ही है सब हुआ। 

और अर्थव्यवस्था में अगर इसका वह असर देखें। भारत में भी देखें तो अगर आप भारत के कई नगर जहां इनका ऐसे नगर जहां पर उनकी जनसंख्या बहुत अधिक है वहां पर अगर आप इन्हें देखें तो वहां पर यह गंदी चाल में रह लेंगे सब कुछ सह लेंगे किंतु इनका जो मजहब है वह उनके सबसे ऊपर है ऐसा नहीं है कि सरकार उनके लिए कुछ भी नहीं करती सरकार तो बहुत करती है हिंदुओं से भी अधिक उनके लिए करती है किंतु यह अपने मजहबी विचारधाराओं से ऐसे रहते हैं यह जहां रहते हैं वहां की अर्थव्यवस्था बहुत बुरी रहती है।

मुस्लिम और अर्थव्यवस्था

मानव तक यह अर्थव्यवस्था के सारे लाभ पहुंचे और इसके बाद भी उनके लिए जो उनका मजहब है वह ऊपर है। वह भले ही वह चाल में रह लेंगे भले ही वह गंभीर अवस्था में रह लेंगे परंतु उनके लिए एकजुट रहना, गलियों में रहना और वह शक्ति बनाए रखना बहुत आवश्यक है।  जो यूरोप का पूरा इतिहास है वह उसमें की बात यह मजाक की बात चल रही कि यूरोप में शायद कुछ छोड़ दिया है। 

और वहां पर रिफ्यूजी जा रहे हैं उन रिफ्यूजी हैं जिसका मजहब है इस्लाम और उन रिफ्यूजी कि  जो आस्था है इस्लाम में, बहुत गाढ़ी है तो आज जो फ्रांस में जो दंगे हो रहे हैं जो जर्मनी में पहली बार लोगों को यह बात बहुत कम पता है जर्मनी में पहली बार उनकी मेट्रो ट्रेन है उसमें पुरुष और स्त्रियों के लिए सत्तर वर्ष बाद उन्होंने अलग अलग डिब्बों कि व्यवस्था की है। 

उसका कारण यही है कि जो रिफ्यूजी आ रहे हैं जो अरब देशों से उनको वह सम्मान नहीं है।

 जर्मनी में जो स्त्रियां है जो लड़कियां है और बहुत के बाद एक  के बाद एक केस हो रहे हैं और चुपचाप 

उन्होंने अलग अलग बनादी है तो आज वह मजहब को नकारना चाह रहा है परन्तु जो रिफ्यूजी जो है वो मुझे कोई ध्यान में रखते हुए अपने भाई भतीजों को अपने परिवार को  लाकर बसा रहे हैं।

संजय दीक्षित जी-

 चूंकि हम अंतरराष्ट्रीय संबंधों की बात कर रहे हैं

इसको यदि जो विश्व युद्ध के बाद जो नई वैश्विक संरचना बनी न्यू वर्ल्ड ऑर्डर उसने इसको हम कैसे देखने का प्रयास करती  है? 

पंकज सक्सेना जी -।  –

यह बहुत सुंदर संजय दीक्षित जी – है। क्योंकि  1945  के बाद विश्व बना उसके ऊपर यह जो मजहब की छाप है और भी स्पष्ट रूप से देखने को मिलती है। अगर आप देखें कि टर्की जो देश है वह पहले दो विश्वयुद्ध में तो हम उसकी गतिविधियां जानते हैं परंतु दूसरे विश्वयुद्ध के बाद वो नेटो का एक अभिन्न अंग बन गया। उसका अर्थ है कि पश्चिम अमरीका के साथ बहुत अच्छे से बातचीत करने लगा और पश्चिम अमेरिका के साथ उसके संबंध बहुत अच्छे होते हैं दूसरी ओर चूंकि भारत में एक कह सकते हैं कि नेहरू जी का समाजवाद से बड़ा अच्छा जो प्रेम था। कम्युनिज्म से साम्यवाद से बहुत प्रेम था तो सोवियत यूनियन की ओर जो उन्होंने पूर्णतः जो रुख कर लिया उसके कारण पाकिस्तान‌ का जो समर्थन अमरीका ने और पश्चिमी ने जो किया तो ये दो देश और इनकी राजनीति पूरे विश्व पर बहुत प्रभावी हो गई।  सऊदी अरब जब पश्चिम ने जो इनके तानाशाह हैं उनको थोड़ा कंट्रोल करने का नियमन करने का प्रयास किया परंतु उसमें ऐसी तानाशाही के बाद एक के बाद एक को पुष्ट करते गए। उसका असर यह हुआ कि यूनाइटेड नेशन की जो घटना हुई। उसमें सत्तावन इस्लामी देश इतना बड़ा ब्लॉक जो एक जुट होकर वोट करें। आप किसी भी इसु  पर देख लीजिए। जो वोटिंग होती है अगर उसमें ऐसा कोई ईसु नहीं है जो इस्लाम के अंदर का नहीं है तो लगभग सारे जो देश है वह एकजुट होकर एक ही उस पर वोट करते हैं और मुसलमान लगभग दो बिलियन से ऊपर है। हम एक बिलियन हैं। चूंकि हमारा एक ही देश है। तो ये भी बड़ी बात कह सकते हैं कि दुर्व्यवहार होता है कि हमको एक वोट मिलता है।  और उनको सत्तावन वोट मिलता है।  और इस प्रकार से यूनाइटेड नेशन को, धारा वही दे रहे हैं आज यूनाइटेड नेशन कि  जो सिक्योरिटी काउंसिल के एक और जो अडवाइजरी मेंबर हैं ह्यूमन राइट्स की जो एडवाइजरी काउंसिल है उसमें सऊदी अरब देश है तो यह  कैसी अवधारणा है।

 जो करेगा इसको हम ऐसे ह्यूमन राइट्स में।

संजय दीक्षित जी – –

 इसको थोड़ा सा दूसरी तरफ से देखना चाहता था कि जो नयी वैश्विक संरचना है उस  संरचना में जुलाई नैशनल संरचना है शो कि द्वितीय विश्व युद्ध ने

एक मतावलंबी जो है वह जीते  तो उन मतावलंबियों ने वैश्विक संरचना अपने स्थिति के अनुसार की गयी। उसमें जो उन्होंने को वीटो पावर दिए आज  5 मै सें जो चार देश हैं। देश तो पूरी तरह से क्रिश्चियन हैं पश्चिम एशिया रूस है उसके अंदर । तो वहाँ तक उन्होंने ज्ञात चीन ताइवान को लिया था बाद में अंतरराष्ट्रीय अदालत ने उसके कारण उन्होंने ताइवान को जो मेनलैंड चाइना को दे दिया। लेकिन जो कोल्ड वॉर हुआ।  कोल्ड वॉर बहुत सारे मैंने देखे हैं चिंतक वो यह कहते हैं कि कोल्ड वॉर का जो बाद में जो परिणाम निकला जो पश्चिम के लिए सुखद था उपरांत भी उन्होंने उसके साथ वही देश द्वेष रखा तो उसके मूल में जो दो क्रिश्चियन विचारधाराएं है वो हैं। जी हां आज भी यदि देखा जाए अंतरराष्ट्रीय दृष्टि से अगर कॉमन सेंस से देखें तो यूएस का जो राइवल है यूएस का जो चुनौती करता है वह चीन है।  लेकिन उनका जो पूरा इंडस्ट्रियल मिलिट्री इंडस्ट्रियल काम्पलेक्स है जो उनका इस्टैब्लिशमेंट है पूरी तरह से किसी तरह रूस को रूस को डाऊन करो, रूस को डाउन करो। 

तो क्या ये जो आपस के जो इनके झगडे   हैं

एक आप केवल वेस्टर्न क्रिश्चियन कैथोलिक प्रोटेस्टेंट वर्सेस और , orthodox क्या मूल में इसको माना जा सकता है।  Otherwise तो यह मूर्खता लगती है कि आप जो है वो अपने प्रतिद्वंदी के ऊपर फोकस करके रूस के ऊपर focus हमारा एक समय आप के नेटो का सदस्य बनना चाहता था। जो आपने बनने नहीं दिया।  और लगातार जो है उसको घेरने का  प्रयास करते रहे।   इसके पीछे कोई समझदारी तो नहीं यह क्या है??

पंकज सक्सेना जी -।  –

तो यह मजहबी दुराग्रह है इसके पीछे स्पष्ट दिखता है। क्योंकि अगर आप ईस्टर्न यूरोप में भी देखें तो पोलैंड जो आज बहुत शक्तिशाली रूप से मुस्लिम को  को अपने अंदर नहीं आने दे रहा है।  उसके रिजेक्ट करने का पश्चिम ने उसको इतना समर्थन दिया है उसका कारण यह है कि वह कैथलिक देश है।  तो इससे यह तो orthodoxy के प्रति अब अगर हम देखें कि पश्चिम ने अगर सर्बिया कि jo bombing ki  उसका कारण यह है कि वह इसाइयों अर्थात् एक्सरसाइज तो वह जो फर्स्ट ग्रेड ईसाई है।  जो अगर आप प्रोटेस्टेंट और कैथलिक रोमन कैथलिक देखें क्योंकि फ्रांस रोमन कैथलिक है। मुस्लिम जर्मनी आधा और शक्तिशाली देशों में पश्चिम के घरों में देखें तो मुख्यतः वह प्रोटेस्टेंट है। जैसे यूके जो नार्दर्न यूरोप है और जो अमरीका है लगभग प्रोटेस्टेंट है। और हाउस में सबसे मुख्य जो देश में शक्तिशाली देशों में से एक है जो कि कहते हैं तो ये दोनों और प्रोडक्ट्स के विरुद्ध

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 वह रूस के विरुद्ध भी खड़े होते हैं।  वह सभी यूगोस्लाविया का विघटन हुआ तो जिस प्रकार से उन्होंने इतना विरोध किया कि यहां तक कि बोस्निया के साथ है और भौमिक की सर्बिया की ओर उनकी उसके कई क्षेत्रों की उसके घर में भी यहां तक कि अगर भारत के पास में देखें वर्मा में मिलिट्री डिक्टेटरशिप है।  बोलते पर ऐसी तानाशाही तो पूरे विश्व में कई लगभग पचास से साठ अभी देश निकल आएंगे। जिसमें ऐसी तानाशाही है तो भारत की दृष्टि से है। अंतरराष्ट्रीय संबंधों का जो निष्पादन है

वो कैसे हो रहा है कैसे किया जाना चाहिए। भारत की दृष्टि में भी अगर हम इंटरनेशनल रिलेशंस को देखें और जो Geo पॉलिटिक्स को देखें भारत की जो स्थिति है उसमें बहुत महत्वपूर्ण है,  कि मतलब तो ध्यान रखें अभी जो समीकरण बन रहे हैं क्योंकि चीन बहुत बड़ा शत्रु बन उभर रहा है। और चीन को कंट्रोल करने के लिए नियमित करने के लिए अमरीका को अब ऐसा लग रहा है कि भारत का कुछ ना कुछ साथ देना होगा।

हमें यह ध्यान रखें कि अमरीका ने जिस जिन जिन देशों का साथ दिया है पिछली शताब्दी में जिस प्रकार से पंकज सक्सेना जी -।  कोरिया के विरुद्ध में दक्षिण कोरिया का जब साथ दिया तो आज हम देखते हैं कि बयालीस प्रतिशत वैसा ही हो चुका है।  और जो कि पिछले एक वर्षों की घटना है जब अमरीकी सेना है जब यहां पर

जब द्वितीय विश्वयुद्ध में उसके बाकी घटा है उसके पहले साई मिश्रा ने वहां थे परंतु बहुत कम संख्या में इतनी बड़ी संख्या में तो आप हमारे आंखों के सामने देखते देखते उन्होंने एक बहुत बड़ा भूभाग जो उसको वो धर्मांतरित कर लिया तो हमको ऐसी कई दृष्टियों से या देखना होगा।

भारत के अंदर इसाइयत और शक्तिशाली होती जा रही है।  हम देख रहे हैं कि जैसे जगन रेड्डी

उनके पिता वाईएसआर रेड्डी जो इसाई चीफ मिनिस्टर जो आंध्रा को मिले और बहुत दुर्भाग्य हुआ कि तेलंगाना आंध्र दो अलग राज्य बनने और उसमें एक राज्य सम्पूर्णता एक इसाई चीफ मिनिस्टर की ओर चला गया। तो उनका सीधा संपर्क है। वह कई पश्चिमी देश और वेटिकन सिटी के साथ रहता तो अंग्रेजी का कुछ तो इस स्तर तक वहां के जो धर्म है संस्कृति का उसका लास्ट तो कर रहे हैं।

अगर आप विजयवाड़ा जून की सांस्कृतिक राजधानी मानी जाती है। विजयवाड़ा में जो कृष्णा नदी पर जो बराज बना है जो पुल बना है डैम है उसको जैसे ही आप पार करें, हर दूसरा घर चर्च है।  और इतना बड़ा क्रॉस लगा है। यह उनकी सांस्कृतिक राजधानी जो विजयवाड़ा रहा है या उसके बाहर की बात मैं आपको बता दूं और वहां पर एक हर दूसरा घर ऐसा ही है अगर आपको तट पर जाए।

पास के  सारे जो जिले है वो हर दूसरा हर तीसरा जो घर चर्च है लोग वहां के बता दें कि पच्चीस प्रतिशत लगभग वहां धर्मांतरण हो चुका है।

तमिलनाडु में तो बहुत पहले से यह कार्य मीडियम जो संप्रदाय हैं जो विचारधारा वाले है वो ईसाइयत के साथ मिलकर और यह लेकिन तमिलनाडु में है।

सफल हो नहीं पा रहे इतना सफल नहीं हो पाया। कहते हैं क्रिप्टो जो तमिल लोग कहते हैं कि क्रिप्टो आठ नौ दस प्रतिशत है और पेपर पर वो सारे पाँच छः प्रतिशत है परन्तु तमिलनाडु बहुत कम सफलता मिली है। अगर हम तुलना करें आंध्रप्रदेश से जून को होगी अभी तमिलनाडु में है यदि देखें तो घर घर में है

आध्यात्मिकता लेकिन यह बड़े आश्चर्य की बात है कि आध्यात्मिक होते हुए भी हुए नास्तिक विचारधारा वाली सरकार को चुने हुए हैं।  सरकार को एक यह कहें कि एक राजनीतिक विचारधारा को पोस्ट करते रहते हैं उसमें भी धोखा कैसे दे रहे हैं। वो जोन के चीफ मिनिस्टर है जो उनके मुख्यमंत्री हैं और हुआ जो पाती है कि उनके जो निजी जीवन में वे बड़े धार्मिक हैं  स्थलों उनकी पत्नी जाकर गाय की पूजा करती हैं और वह अनुष्ठान भी सब कराते रहते हैं। लेकिन जब वह पहले जब असेंबली में जाते हैं तो धर्म की जड़ें खोदने का तो पूर्ण प्रयास करते हैं। तमिलनाडु में मंदिरों का जो प्रभाव है वह बहुत  रहा है उसका भी यह कारण है कि हर गली में एक बारह सौ वर्ष पुराना ऐसा मंदिर है, देवालय है जिस पर पूजा आज भी निरंतर हो रही तो उसके कारण उसका प्रभाव वहां बचा हुआ है। पंजाब देखें तो पंजाब में जो पूरे जो बैपटिस्ट चर्च वहां है जो कैथलिक चर्च वहां है एक के बाद एक पंजाब में बहुत धर्मांतरण कर रहे हैं । अगर पंकज सक्सेना जी -।  पूर्व की ओर देखें जहां सीधा आपको इंटरनेशनल रिलेशन जो पॉलिटिक्स से जो संपर्क मिलेगा नागा जो जनजातियां है इनको धर्मांतरित करना आरंभ कर दिया था। अंग्रेजों ने क्योंकि वह बॉर्डर मैं वही नीति रखते थे कि बॉर्डर के जो ट्राई हिल ट्रायल्स है उनको आधार मान कर लेना चाहिए।  जिससे वह ब्रिटिश एम्पायर है, ब्रिटिश राज है, उसके साथ हो गए।  तो ऐसा इन्होंने मिजो मिजोरम में को कूकी चिन जो ट्राइब्स हैं उनके साथ किया। नागालैंड में नागा कचिन जो ट्राइब्स है उनके साथ उन्होंने इस प्रकार से धर्मांतरित किया।

यह स्वतंत्रता के बाद और तेज होता गया। उसका कारण यह है कि जो चर्चे हैं पूरे विश्व की वह एक साधन  बन गये। जो वहां जो बैपटिस्ट चर्च और जो पैसबायैट्रिन चर्च जो सबसे शक्तिशाली चर्च हैं नागालैंड की और मिजोरम में भी जो बड़ी शक्तिशाली चर्च है वह कौन्ड्यूट बन गए।

चीन अमरीका पाकिस्तान यह भारत में अराजकता फैलाने का और इन पथों के द्वारा ही चर्च के द्वारा ही या अराजकता फैलाता रहा। और भारत के विरोध में ही देखिये यह तो हिंदू हैं और उनको ऐसा पता बता बता कर  कि उन्होंने पूरे उन क्षेत्रों को इसाई कर लिया।  आज का यह परिणाम हमें भुगतना पड़ रहा है। मैंतेई में अभी हम मणिपुर पर हम चर्चा कर चुके हैं। मणिपुर में जो वादी है वह वहां पर मैं हिंदू रहते हैं जो कि लगभग पैंतालीस प्रतिशत है और चारों ओर से पहाड़ियों से घिरा हुआ है जो सौ प्रतिशत ईसाई है। अब बॉर्डर अगर हम देखें सीमावर्ती इलाका जो क्षेत्र हमारा जो वर्मा से मिलता है वह सौ प्रतिशत ईसाई आर्मी को आज अगर सीमा पर अपनी पकड़ रखनी है तो की और नागा जो मिलिटेंट है उनसे उनको संबंध बनाए रखने पड़ते हैं। इस कारण से इस

यहां यह सरकार भी मैं तो जबकि जो उनके चीफ मिनिस्टर है वहां उस संप्रदाय से रखते हैं।

संबंध रखते हैं वो भी कुछ कर नहीं पा रहे हैं क्योंकि जो स्टेट है उसको बॉर्डर पर उन सीमा पर, उन जातियों से जो है संबंध रखने हैं, तो इसके कारण आपके देश के अंदर धर्मांतरण बढ़ रहा है परंतु आप कुछ नहीं कर सकते हैं। 

 सामने देखते हो तो यह पूरा अगर आप देखें आज अरुणाचल प्रदेश को एक एक करके

अरुणाचल प्रदेश के अगर आप भूगोल देखें तो इतना बड़ा है, चीन से लेकर वर्मा तक उसका बॉर्डर है। और पिछले तीस वर्षों में उन्होंने पचास लगभग पैंतालीस प्रतिशत वहां पर धर्मांतरण हो गया है।

वहां के जो मूल में उनका समूह सम्पूर्ण विनाश कर दिया और  यहां पर हमें शोध करने चाहिए। वहां दो जिले हैं जो बिल्कुल पूर्व में एंजो  और दिमांग और यहां पर एक ऐसी जनजाति है जो धर्मान्तरित हो गई है।

वह अपने जंगलों का संसाधनों का प्रोटेक्शन नहीं करती और वहां पर जो इकोलॉजिकल डिस्ट्रक्शन है वह सबसे अधिक है और वहीं जो जनजाति वहां के लोकल धर्म और हिंदू धर्म को मानती वह उन जंगलों की वन की संसाधनों की रक्षा करती है।  क्योंकि उन्होंने भी देखता हूं क्योंकि वहाँ उन उन

जहां पर टाइगर है जो वहां पर है

जन्म जीव जंतु है उनको भी देवी देवता के रूप में मानते हैं पकड़कर खाते भी हैं। कुछ उसमें से जानवर हो परन्तु वह पूरी जो प्रकृति है उसके प्रति उनका आदर सम्मान का भाव है। जो सनातन धर्मियों में रहता है। जो मूर्तिपूजक रहता है, परन्तु जो ईसाई में कन्वर्ट हो जाते हैं उनको धर्मांतरित हो जाते हैं उनकी दृष्टि नहीं रहती तो पूरे नॉर्थ ईस्ट में आप देखिए सीधा जो उसका रिश्ता है जो नाता है वह मजहब के साथ है। 

बांग्लादेश अधिक खतरनाक है 

बंग्लादेश चूंकि अलग हो गया, पहले पाकिस्तान बनाकर बांग्लादेश बना तो यह सारी आतंकवादी संस्थाएं हम कितना भी कहा करें हमारा है। बंगलादेश भारत और पाकिस्तान जैसा नहीं बल्कि मैं तो यह कहूंगा पाकिस्तान से हमें इतना घाटा नहीं हुआ। जितना कि बांग्लादेश से होगा। चार करोड़ बांग्लादेशी मुसलमान हमारे लगभग साढ़े तीन करोड़ जो तीन से चार करोड़ जो है इस समय देश में हैं। इतना पाकिस्तान से तो कुछ मेरे ख्याल से हजारों से अधिक नहीं आ पाए होंगे जो कि बांग्लादेश तो आज उसका विभाजन ही मजहब के आधार पर हुआ और आज वही आपका जो पॉलिटिक्स में सबसे बड़े शत्रु नहीं तो अगर आप इन बातों पर ध्यान नहीं देंगे।  जहां लोग या मजहब कि यह बड़ा सुंदर एक और प्रसंग है। हमें प्रधानमंत्री मोदी जी ने अभी एक समझौता किया था बांग्लादेश के साथ जिसमें कुछ दो हजार एन्क्लेव एक्सक्लेव  जो थे उसका आदान प्रदान किया था।

अब वह केवल पेपर पर करने के लिए बचा हुआ था क्योंकि उसमें ऐसा था एक्सक्लेव क्या होता है  तो भारत के कई टुकड़े बांग्लादेश के अंदर और बांग्लादेश के टुकड़े भारत के अंदर परन्तु जो बांग्लादेश के अंदर भारत के टुकड़े थे वहां सौ प्रतिशत मुसलमान होते क्योंकि किसी हिन्दू कि यह हिम्मत नहीं है कि वहां जाकर चारों तरफ बांग्लादेश के जाते और है परन्तु जो भारत के अंदर बांग्लादेश के तब रहे थे वहीं भी सौ प्रतिशत लगभग मुसलमान हैं क्योंकि उनकी पूरी हिम्मत है कि भारत के जनतंत्र में रहकर भारत के संसाधनों का प्रयोग करके और आसपास चारों ओर हिंदू रहे और फिर भी वह सफल। 

एक अपार्टमेंट का उदाहरण :

क्योंकि हमने यह भी देखा कि एक मल्टी एक अपार्टमेंट है जिसमें केवल एक मुसलमान परिवार है। 

जहां आठ सौ मुस्लिम  हिन्दू परिवार होंगे और वह हिंदू परिवार उसको बिना देखे अगर वहाँ कुछ अच्छा नहीं करेंगे तो कभी उनकी ओर देखेंगे भी नहीं।  परन्तु यह यह सारी सेकुलर जो बातें हैं और ढह जाती हैं।  आप रह कर देखिए कैसे अपार्टमेंट में एक हिन्दू परिवार का रहना कितना कठिन है जहां कि आठ सौ मुसलमान हैं। तो यहाँ अगर आप मजहब को नहीं देखेंगे व्यक्तिगत रूप से सामाजिक रूप से राष्ट्रीय रूप से तो यह राजनीति न समझ में आने वाली है न उसकी कोई उपाय करने वाले हैं। भारत और पश्चिम के जो अंतरराष्ट्रीय संबंध हैं उनका इस परिप्रेक्ष्य से आप विश्लेषण करें।

उनमें भी  बहुत महत्वपूर्ण है यूनाइटेड नेशन ने जो ह्यूमन राइट्स का चार्टर लिखा है वह क्रिश्चियन राइट्स चाहता है। उसमें जो धर्मांतरण का जो है

जो सब रिलीजन को एक बोला है जिसमें धर्म को रिलीजन से उन्होंने इक्वेट कर दिया है। यह कि कैसे है उसमें कहते हैं कि सबको एक दूसरे को कन्वर्ट करने का बराबर का अधिकार है। यह ऐसा कहना है कि शेर और बकरी को एक दूसरे को खाने का बराबर अधिकार है। दोनों को और हमने उनको एक कमरे में छोड़ दिया है अब हम जानते हैं कि सच में क्या होगा परंतु उन्होंने ईसाइयत कई मुख्य अवधारणाओं को ह्यूमन राइट्स की भाषा में बदलती नए वाक्यांशों में डालकर जो जीवन जो आज जो सारी ह्यूमन राइट्स का जो हम शोर सुनते हैं वह भारत की सारी संस्थाओं के विरोध में खड़ा होगा।  क्योंकि आधार यही है।

अगर आप हिंदू परिवार की ओर देखें जो नारीवादी जो एलजीबीटीक्यू अधिकार के जो समर्थक हैं जो बाकी सारे अधिकारों के समर्थक हैं। परिवार के विरुद्ध में बोलते हैं वहां हिंदू धर्म के विरोध में बोलते हैं कि ब्राह्मणों के, कहीं भी विश्व में अफ्रीका में कुछ हो जाए या कोलंबिया के अंदर कुछ होता है।

दक्षिण अफ्रीका में तो गलतियां तो ब्राह्मण की है। और जमैका से लेकर कैनेडा तक में निकल पड़े Brahmanical Patriarchy डाउन के जो है तमगे लेकर खड़ा किया जाता है। आज इंटरनेशनल पॉलिटिक्स में वह कितना महत्वपूर्ण है आप देखिए।  जो बहुत महत्वपूर्ण पुस्तक आई जिसमें कास्ट को रेस एक इक्वेट किया वो आज उसके रिव्यू देखिये आज आप  अमेजन पर देखिये, चालीस से पचास हजार रिव्यू  हैं उसके।

लाखों करोड़ों में बेची  गई है और उसको पूरे विश्व में फैला रहे हैं उसको। उसका कारण यह है कि जब उसके पंखपीछे आज जो हिंदू यूएस में रह रहे आज उनको उन्हीं नियमों का पालन करना पड़ रहा है। 

संजय दीक्षित ज)-

कास्ट बेस्ड रिजर्वेशन या ऐसे नियमों को लाया जा रहा है। वहां सुप्रीम कोर्ट ने ही उड़ा दिया उसको अमेरिका में।  जी! लेकिन वो प्रयास हम वहां पर उमड़ा हुआ लेकिन और चूंकि उड़ा दिया तो उसे बहुत दुखी है और यहां भारत में भी आते हैं कि इंडियन एक्सप्रेस में भी उसकी चर्चा होती है । हमारा सबसे बड़ा लेफ्टिस्ट पेपर  तो वैसे इंडियन एक्सप्रेस द हिंदू से भी बड़ा है।

पंकज सक्सेना जी -।  –

 शायद जी बहुत प्रभावी है और हिंदू से अधिक प्रभावी रहा इंडियन एक्सप्रेस में तो वो अगर आप पूरे विश्व में।

राम रामनाथ गोयनका की परंपरा को पूरा ऐसा कर दिया नष्ट कर दिया। बल्कि कह सकते हैं कि केवल एक कुछ समय के लिए वह हिंदू हुआ था जब गोयनका जी जब उसके चला रहे थे। 

 बस उसके पहले और बाद में कोई ऐसा कुछ होगा में बहुत से लोग देखते पूरे रूप से वो बदल दिया जाए, तो ऐसी आपको व्यक्तिगत जीवन में सामाजिक जीवन में और अंतरराष्ट्रीय जीवन में पश्चिम से जो हमारे संबंध है अंतरसंबंध है उसमें भी आपको यात्रा कूदता दिखती है। और इन्हीं आधार पर जहां ईसाइयों का ईसाई देशों का मुसलमान देशों से तक रहा है वहां पर तो ईसाई देश साइन देशों का समर्थन करेंगे परंतु अगर किसी गैर ईसाई और गैर मुसलमान देश अथवा हिंदू देश या बहुत देर से अगर उनका कोई झगड़ा है तो आप आराम से जो अंग्रेजों का पॉलिसी थी कि वह अगर मुसलमान दो धड़े है तो जो फेवर अगर करते थे तो वह इस्लाम का ही करते थे।  इसी प्रकार से पश्चिम की भी नीति भारत के विरोध में ऐसी है और भारत को खड़े होना नहीं देना चाहते क्योंकि मैं तो कहता हूं कि भारत स्टालिन ग्राम हो सकता है प्रॉफिट एक मदद का जो पैग़म्बर वादी के शुरुआत जिस तरह से हमने लड़कर जिसको बेगम धर्म घर बोला जाए तो पूरे विश्व में एक ही उदाहरण है केवल हिंदुओं ने अपने जो देव देवालय है लड़कर उनको प्राप्त की है सोमनाथ को प्राप्त किया है और इस लॉ की इस विधि के जरिए भी उन्होंने राम जन्मभूमि को पुनः प्राप्त किया है और फिर से मंदिर बना।  ऐसी हार  इनको कहीं नहीं मिली।

इस कारण से उनकी नीतियों में भारत को वह अभी अगर आप इंटरनेशनल में देखेंगे तो बहुत ऊंचा करके नहीं आते होंगे परन्तु वे भारत को कभी ऊपर में देना नहीं चाहते हैं उसका कारण हमारा धर्म है और अगर कल को हम धर्मांतरित हो जाते हैं तब तक तो हुए पूरे समर्थन में आ रहे हैं जो कि वो पूरी तैयारी करें

हुई और कई प्रांतों में भारत में आगे बढ़ रहे हैं लेकिन जिस तरह से पश्चिम जो है वह स्वयं एक तरह से पिछड़ता जा रहा है उसका डिक्लाइन हो रहा है और आप देख सकते हैं कि जैसे आप अगर रही यूएसए का फ्रांस का इनका सा उदाहरण लें तो समाज है जो पूरी तरह से सदा गया है उनकी जो है जो संस्थाएं हैं वह समाप्त होती जा रही है परिवार समाप्त होते जा रहे है तो क्या उनमें इतनी ऊर्जा बचेगी इस समय है हमारा जो भारत है पुनर्जागरण हो रहा है।

लगता है जी जी बिल्कुल और यह पुनरुत्थान की ओर अग्रसर है और राजनीतिक रूप से भी और आर्थिक रूप से लिए सामाजिक रूप से भी क्या कह सकते हैं कि समाज में थोड़ी बहुत विषमताएं और वह जो है वह लेकिन उनके ऊपर बातचीत लगातार होती रहेगी तो ये जो पश्चिम की शक्ति है वो कैसे इसे उत्थान की ओर अग्रसर भारत को रोक पाएंगे। 

भारत की स्थिति :

भारत तो आपने बिल्कुल ठीक पर कई भारत में तो पुनर्जागरण निश्चित हो रहा अभी आगे कहा जाता है देखने वाली बात है परन्तु पुनर्जागरण हो रहा है इसके तो हम उसको नकार नहीं सकते या तो बिल्कुल सत्य बात है। इस कारण से पश्चिम भारत के जितने भी शत्रु वह बड़े स्तर भी हो गए और जो आपने कहा कि पश्चिम में तो यूरोप में तो बहुत कम शक्ति बची है कि समाज के स्तर पर वह कोई सामना कर पाए परंतु उनके पास आज भी धन की स्थिति और राजनैतिक जो तंत्र है पूरे विश्व में जगत में जो संस्थाओं की शक्ति है वो उनके पास  है आज उसका प्रयोग हुआ।  अगले चार पाँच छः दशक तो तो बहुत शक्तिशाली रूप से भारत के विरुद्ध हिंदू हितों के विरुद्ध वे करते रहेंगे। परंतु उनकी शक्ति हो रही है बिल्कुल सही बात है अमरीका बहुत एक शक्तिशाली देश है वह करता था, आज भी है परन्तु ये जो जिस प्रकार से जेंडर डिबेट ने उनको उनकी कमर तोड़ रखी है। और आगे आने वाले दशकों में वहां और भी भयंकर होने वाला है। उससे यह भी कमजोर होता है हमें शक्तिहीन होता हुआ  दिख रहा परन्तु जैसा हमने पहले चर्चा की कि पैगम्बरवादी एकेश्वरवाद  शुरुआत में वायरस जैसी एक जो क्षमता है कि है वहां तो क्षीण हो जाएंगे।  परंतु भारत और चीन में अगर उन्होंने पंद्रह से बीस प्रतिशत की आबादी धर्मांतरित कर ली तो वे हमारे देश के अंदर इतना बड़ा शत्रु जो जनित हो जाएगा कि उसका सामना करना हमारे लिए बड़ा कठिन होता जाएगा।

क्योंकि हम देखें कि एक धड़ा तो पहले से ही पैगम्बर वादी एकेश्वरवाद का इस्लाम का एक धड़ा और  अगर ईसाइयत का भी हो जाता है । तो अगर तीस पच्चीस से तीस प्रतिशत ही भारत कि आबादी ऐसी हो जाती है तो। बहुत आसान नहीं, मैं नहीं कह रहा कि फिर भी हम जीत नहीं सकते, परन्तु आसान नहीं होगा। तो कमजोर होने पर क्योंकि हमने सत्तर वर्ष में धर्म की शिक्षा अपने बच्चों को नहीं  दी हमने, तीन पीढ़ियां ऐसी निकल चुकी हैं, जिन्हें कोई जो नित्य कर्म नहीं करते, जिन्हें हिन्दू धर्म की अवधारणा नहीं है।

जिनके आधार पर हम देखते हैं कि कुछ गीत लिखने वाले कहते हैं कि हिन्दू धर्म तो जो है, कुछ भी नहीं है आपमें कोई आस्था नहीं है कोई विश्वास नहीं है कोई श्रद्धा नहीं है। 

संजय सर – तो अभी आप ऐसे मनोज मुंतशिर की बात कर रहे थे। 

हां मैं उन्हीं की बात कर रहा हूं।

बात कर रहा था तो ऐसी अवधारणा है उनकी। अब  तक हम मनोज  शुक्ला रहे।  मेरे मेरे ख्याल से उनका सरनेम  शुक्ला है। था।  और वे उसके बावजूद मुंतशिर  लिखें और जब उनके पिताजी चालीसा पढ़ते थे तो यह कुछ ऐसी वैसी  जिसकी उसकी बात करने लगते थे तो उस  स्थिति से राष्ट्र  कि स्थिति इस स्तर तक आ पहुंची है । तो इसमें हमारे लिए सामना करना इसलिए कठिन हो गया है क्योंकि तीन पीढ़ियों तक हमने धर्म की शिक्षा अपने बच्चों को नहीं दी। अच्छी बात  यह है कि ऑल्टरनेटिव मीडिया जैसे जयपुर डायलॉग से जिसका एक धड़ा है हम शत्रु के बारे में अपने समाज को जानकारी देने का प्रयास कर रहे हैं और स्वयं बहुत की भी है कि हम क्या हैं?  हमें अपने शास्त्रों में विश्वास करके उनका अध्ययन करना चाहिए।  उनका सम्मान करना चाहिए। जो हमारे तंत्र हैं,  जो दस हजार वर्षों से कम से कम चलते आए जो मंदिर हैं, जो मंदिर का तंत्र है जो हमारे सामाजिक तंत्र हैं, जो हमारे शिक्षित वर्ग हैं।  उनका हमें सम्मान करना चाहिए। ज्ञान की पिपासा है हमारे समाज में यह भाव भी बढ़ रहा है और यह भाव अगर बढ़ता रहा, यह स्वयं बोध, अगर हमारे अंदर शक्तिशाली हो गया। साथ में हमें यह भी पता चल गया, हमारी सीमा है और हमारा केंद्र रहा है तो हम अच्छे से सामना कर पाएंगे।  परन्तु हमारे शत्रु भी बहुत शक्तिशाली हैं और वह भी पूरे प्रयास कर रहा है। और यह तो स्वाभाविक ही है कि शत्रु सारे प्रयास करेगा।  

संजय दीक्षित जी – – तो आप ये बताएं इस समय जो यूरोप में जो स्थिति है जिसमें एक तो लगभग ऐसा युद्ध चल रहा है जिसमें आशंका हो रही कि कहीं यह तृतीय विश्व युद्ध में परिवर्तित न हो जाए और दूसरी तरफ एक पूरी तरह से इस्लाम का एक प्रकार से अघोषित आक्रमण चल रहा है यूरोप के बड़े बड़े देशों में फ्रांस में  बेल्जियम में इंग्लैंड  में। इसको आप आगे कैसे देखते हैं कि क्या इस्लाम और क्रिश्चियनिटी में युद्ध होगा?

पंकज सक्सेना जी -।  – 

मेरा तो मानना यह है इसमें कि तीसरा विश्व युद्ध चल रहा है। इसकी प्रकृति भिन्न है। दूसरे विश्व युद्ध तक टैंक वॉरफेयर एक किसी मैदान में इस और के टैंक इस पक्ष के टैंक उस पक्ष की टैंक यहां की सेनाएं वहां की सेना इस प्रकार से युद्ध होता था। परंतु इस्लाम का जो आविष्कार है कि पूरी जनता को ही जो है योद्धा बना देना।  तो उसमें तो ऐसा ओपन युद्ध करने की कोई आवश्यकता ही नहीं। उसमें तो आप अपनी जनता को केवल वहां रहने भेज दीजिए और युद्ध हर क्षण चलता रहेगा। 

एक गली में पहले एक कोई ऐसी रिफ्यूजी कोई परिवार आएगा,  उसके बाद वह दूसरों को लायेगा। फिर धीरे-धीरे करके जब पाँच हो जाएंगे तो ऐसी हरकतें करने लगेंगे कि गैर मुसलमान परिवारों के लिए वहां पर रहना बहुत कठिन हो जायेगा। फिर एक एक करके एक स्ट्रीट एक गली उनकी हो जाएगी और ऐसा कर हर गली गली मुहल्ले और नगर करते करते वे पूरे देश को ले लेंगे। तो इसमें अगर हम पहले की स्थिति देखें ये अभी अगर पिछले पच्चीस साल में जो हुआ तीस चालीस वर्ष में भी हुआ। तो यूरोप में अगर मुसलमानों की स्थिति देखें तो दो तीन देश हुआ करते थे। जैसे अल्बानिया जो यूगोस्लाविया के साथ में एक जो साम्यवादी जो देश था वह लगभग अस्सी पचासी प्रतिशत से ऊपर मुसलमान रहा, और तुर्की का राज क्योंकि रहा पूर्वी यूरोप पर दक्षिणी और पूर्वी यूरोप पर बहुत समय तक रहा। तो उसके कुछ ऐसे जिले बन गए।जो बोस्निया हर्जेगोविना करके जो देश है वहां पर बहुत सारे मुसलमान बच गए।  फिर अगर मुसलमानों की स्थिति देखें इस विश्व युद्ध के पहले रूस के अंदर क्योंकि रूस में जो मंगोल जो शासन रहा और उसके बाद मंगोल  का धर्मांतरण हुआ तो उसमें जब वो

इस्लाम को उन्होंने अपनाया, तो बहुत सारे मुस्लिम

क्षेत्र और उसके अंदर थे। जिस प्रकार से काऊकेशस जो पर्वत है उनमें चेचन्या,इंगोशतिया  इस प्रकार के बहुत सारे कवर दिनो बल्गारिया  में कोई एक जाति उनकी इस प्रकार से दागिस्तान ऐसे बहुत सारे छोटी छोटी नेशनलिटी  हुआ करते हैं। 

कहते हैं सिटी वह तातार जो क्रीमिया में जो हुआ जो रूस ने अभी ओकरा पूर्वी यूक्रेन से लेने से पहले जो क्रीमिया लिया वहां पर वह हुआ करते थे तो ऐसे मुस्लिम कुछ इन्क्लेव रूस के अंदर बहुत सारे थे। अब इसमें साम्यवाद का भी एक बहुत बड़ा हाथ है इसको फैलाने में को बढ़ाने में स्टालिन ने अपने समय में राज करने के लिए बहुत सारे समुदाय को एक भूगोल में एक स्थान से उठाकर दूसरे स्थान पर रखा तो ऐसा उसे किया कि तातार को उठाकर में आंकड़े से उठाकर कहीं मास्को के पास बिठा दिया अथवा साइबेरिया ले गया तो साम्यवादी युग में जब सोवियत यूनियन बना मॉस्को के चारों ओर बहुत सारे छोटे छोटे इस्लामिक गढ़ मिशन बन गए जो आज भी मॉस्को से अस्सी सौ किलोमीटर की दूरी पर नब्बे प्रतिशत अस्सी प्रतिशत छोटे से राज्य है जो प्रवेश है परन्तु वह मुस्लिम राजत्व यूरोप में दीप बहुत अंदर और बहुत पंकज सक्सेना जी -।  में भी इस प्रकार के कुछ मुस्लिम राज्य थे और कजाकिस्तान तौर पर निशान यह जो सारे देश है सेंट्रल एशिया के यह है तो एशिया में पर चूंकि वहां पर राज था। रूस का तो उनका जो कॉलोनाइजर था वह रूस था तो रूस के रास्ते होते हुए हुए मास्को में और यूरोप में बहुत अच्छे से घुसपैठ कर रहे थे तो यह स्थिति यहां थी अब जब दूसरा विश्व युद्ध होता है और एक के बाद एक एशियाई और अफ्रीकी देश स्वतंत्र होने लगते है तो जो उनकी जो जनता है जो उनकी जनसंख्या है वह धीरे धीरे यहां पर आने लगती है और उन्हें सौ पैंतालीस के बाद उनकी नियम इतने बदल जाते हैं क्योंकि उनके पास समस्या थी। वाकई दूसरे विश्वयुद्ध में बड़े जघन्य नरसंहार हुई थी यहूदियों के और दूसरे और समुदाय को भी तो उसके कारण और पिछड़ों और को उस समय मार दिया जाता था। बहुत सारे घटनाओं तो उनको बचाने के लिए उन्होंने दोनों और ऐसे बहुत सारे नियम रखें कि किसी क्या अगर विश्व युद्ध हो रहा है यह ग्रह युद्ध हो रहा है तो वहां से अगर कोई शरणार्थी आता है तो क्या करें। वे एक तो सेक्यूलर हो गये और ईसाई ही ईसाई को क्यों मारे।   तो इस प्रकार से उन्होंने ईसाई जगत को ध्यान में रखते हुए। यह नियमों की गणना ईसाई जगत के अंदर हम एक दूसरे को दो कैथलिक देश हैं या दो प्रोटेस्टेंट देश है वह तो एक दूसरे को ऐसा नहीं करेंगे।  क्योंकि और सेकुलर हो चुके हैं तो हम ऐसा नियम बनाते हैं कि अगर वहाँ ग्रह युद्ध रहा है तो हमारे कोई आता है तो उसे शरण देते थे।  अब यहां देखिए उनकी विचारधारा पर अपनी हावी थी कि उन्हें लगा कि जो जिस प्रकार से हमने रिलीजन को क्षीण कर दिया। 

 बजट को अपने देश में पैसा इस्लाम के साथ भी हो गया होगा परन्तु सामने के साथ व हुआ नहीं और इस कारण से जो एंटी कोलोनियल था जो पोस्ट कोलोनियल युग था जो उपनिवेश वादी जो समय था उसके बाद इन देशों में धीरे धीरे करके जनसंख्या बढ़ने अगर आज की स्थिति देखें तो जो पश्चिमी यूरोप है जिसको पश्चिमी सभ्यता का गढ़ माना जाता है।  हर देश में कहीं हर लगभग हर देश में पाच प्रतिशत तो इनकी जनसंख्या है। जो बड़ी घोषित और रूस कनाडा का कहना है कि ब्रुसेल्स में उन्होंने मजहब के आधार पर जनगणना बंद कर दिए।  क्योंकि अगर वो करते हैं तो बड़ा उसमें विवाद हो सकता है। 

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संजय सर – तो लेकिन दूसरे उसकी जो कहते हैं चालीस से बयालीस प्रतिशत तक जनसंख्या हिस्से में इस्लामिक है जो पियू की राजधानी तो दशा तो इनकी बहुत खराब है। आप इस समय चल रहा है फ्रांस के परिप्रेक्ष्य में इसको कैसे देखते है ? क्या वहां ग्रह युद्ध की संभावना है ?

पंकज सक्सेना जी -।  – क्यों कह रहा हूं।

संजय दीक्षित जी – -क्योंकि जब यह दंगे आरंभ हुए थे तो पहले चार पाँच दिन न केवल पुलिस और मुस्लिम में चल रहा था। इस दंगा बंगाल हैं आक्रमण है उसको

लेकिन उसके बाद पांचवें दिन से जो उनकी लोकल पॉपुलेशन थी वो बाहर निकलकर सड़कों पर प्रतिरोध करना उन्होंने आरंभ कर दिया। जैसा कि भारत में दंगे होते तो आप देखें कि यहां जो पोपुलेशन होती है वह तुरंत ही प्रतिरोध करती थी।  राज्य उनको रोकता है। तो वहां पर भी यह है आरंभ होता देखा गया और उसके बाद पर राज्य ने कुछ सख्त अलावा उठाए इंटरनेट बंद किया बहुत सारे कार्य किए जिनके लिए व भारत की आलोचना करते रहे हैं।

एक और उसके बाद फिर पर नियंत्रण ले आया और अब उन्होंने पूरी तरह से उन लोगों को गिरफ्तार करके और उनको न्यायिक प्रक्रिया पर ले जाने का यह मुहिम छेड़ रखी है। आगे बढ़ता है तो आप क्या तुम ग्रह युद्ध की जिसमें दो समुदाय आमने सामने हो जाए ऐसी कोई संभावना दिखती है क्या आपको?

पंकज सक्सेना जी -। –   यह संभावना को लगभग हर देश में दिखती है क्योंकि इनकी और इसका कारण यह है लोग कहेंगे कि आठ प्रतिशत ही तो हैं या नौ प्रतिशत ही तो हैं पर अगर आप उनकी जनसंख्या और वहां पर उनकी जो आयु है उसका आकलन करें।

तो जो मुसलमान समुदाय हैं इन सारे देशों में वह लगभग अगर आप देखेंगे अट्ठारह वर्ष से लेकर पैंतालीस वर्ष की आयु के जो मेल है उनकी बहुतायत है। और अगर आप यूरोप के पश्चिमी यूरोप को लगभग सभी देशों के समुदाय देखें तो वहां कई कई देशों में तो पचपन से साठ प्रतिशत केवल वृद्ध लोग हैं। तो अगर आपको जनसंख्या जब सड़क पर दो गुटों के बीच में जब लड़ाई होती है अगर वहाँ देखें तो जो लड़ने में सक्षम हैं एक फिजिकल वायलेंस करने में सक्षम है उसका पंकज सक्सेना जी -।  देने में सक्षम है लगभग बराबर से उनकी जनसंख्या होती दिख रही है।  ऐसे कई देशों में तो गृहयुद्ध की संभावना तो होगी फ्रांस का तो कहा जाता है।

यूरोप में दंगे, राज्य और जन जागृति :

ब्रिटेन के बड़े प्रसिद्ध कमेंटेटर थियोडोर डालर इस  पर लिखते हैं कि फ्रांस में जब ऐसा दंगा होता है केवल और केवल आर्मी का ही उस समय अधिकार चलता है। और आर्मी के रास्ते ही वे नियंत्रण कर पाते हैं। 

परंतु गृहयुद्ध तो होगा इसमें उनके आम जनों को तो जीतना कठिन है उनका राज्य तो जैसे फ्रांस आज शक्तिशाली है परन्तु उनका राज्य इतने अंदर तक सड चुका है। जब ऐसा कुछ दंगा होता है तब तो थोड़े हो होके और सामना करने को आ जाते हैं कुछ समुदाय परंतु देखिए कि उन्होंने जिस प्रकार का सोशल जस्टिस वेल्स सोशल वेलफेयर जो राज्य बनाया उसमें ऐसा हो गया है कि किसी किसी देश में ग्रीस देश में  अस्सी प्रतिशत तक जनसंख्या वृद्ध है और बाकी सब  पंद्रह बीस प्रतिशत जनता पर निर्भर हैं ‌। अब उनके पास काम करने वे स्वयं तो जो नीचे का काम है वह करना नहीं चाहते हैं।  इसके लिए उन्हें लेबर चाहिए, सस्ता लेबर चाहिए। वह लेबर इन देशों से लाने का सोचते भी हैं परंतु उसके साथ जो सामाजिक मजहबी समस्या आती है।

विलासी जीवन का प्रभाव

उसको नकारना चाहते हैं तो उस कारण से भी जैसे यह थोड़ा दंगा शांत होता है। वे फिर यह कहेंगे कि हमें तो अधिकार चाहिए। अगर आप वहां ऐसे लगभग सारे देशों में आपको जो बेरोजगारी भत्ता मिलता है, तो आप न भी काम करें तो भी आपको सरकार दे रही।  तो अगर इस प्रकार का जीवन आपको जीना है तो आपको जो निचले काम उनको कराने के लिए बाहर के इमीग्रेंट लेबर चाहिए और इसलिए ऐसी विचारधारा भी गढ़ते रहते हैं इनके लिए जो मल्टी कल्टी जिसको नायपॉल उपहास उड़ाया करते थे।  मल्टी कल्टी कहकर कि मल्टी कल्चरल सोसाइटी हो उसकी गणना भी ये लोग इस कारण से करते हैं कि इन्हें इस प्रकार के लेबर चाहिए।  पर उसके साथ जो मजहबी  समस्या आती है उसका सामना करने में बहुत कम देश में हैं।

संगठन का अभाव :

 फ्रांस जाना जाता है पैरिस जैसे  गुड लाइफ के बारे में कि आप गुड फूड गुड सेक्स और एक, एक ईवनिंग जो है।  इसकी इतनी अवधारणाएं न राज्य कुछ है न राष्ट्र कुछ है न जेंडर कुछ है । और न ही धर्म अथवा मजहब कुछ है। तो जब यह सब चला गया तो उनमें लड़ने की क्षमता ही नहीं बची।  परिवार नहीं बचा,  परिवार धर्म नहीं बचा वहां समुदाय नहीं बचा जब वहां सब लोग अकेले रह रहे हैं और उनका जो जीवन चर्या वह  यह है कि शाम को हम डेटिंग करने निकलते हैं तो वहां परिवार बहुत कम बचे और जहां परिवार नहीं बचा वहां बड़ा समुदाय बड़ा गुट कैसे होगा वहां का सामना करने आने वाले बहुत कम लोग आ पाएंगे।  

वियना अटैक का उदाहरण :

विएना में भी जो अटैक हुआ अभी कुछ वर्ष पहले जो विएना को उनका चरम जो कुछ नगर हैं उनमें पेरिस के समकक्ष माना जाता है। कई दृष्टि से वहां पर बड़े एक से एक वैज्ञानिक और विचारक भी हुए।  पश्चिम के और आज भी बहुत सुंदर माना जाता है।  वहां पर आतंकवादी आए और जो संध्या को जो वहां पर  रेस्टोरेंट में संध्या में जो  बैठे रहते हैं लोग जो खाना खा रहे हैं संगीत सुन रहे हैं। उन पर स्ट्रे बुलेट्स  से उन्होंने फायर करके और इस तरह से उन्होंने हत्या की। जबकि ऑस्ट्रिया में इतनी अभी जनसंख्या इस स्थिति तक नहीं पहुंची परंतु ऑस्ट्रिया कभी यही दशा है। लोग जर्मनी से यह आशा करते थे कि अगर फ्रांस थोडा सा है तो जर्मनी से आशा है कि जर्मनी कुछ इनके विरोध में लड़ेगा।  उनकी पार्टी भी क्रिश्चियन डेमोक्रेट नाम में ही क्रिश्चियन था परंतु उनका राइट है आप उनके डिबेट देखिए उनका जो राइट है यूरोप के कंटेंट का जो राइट है उसने इतने बैटल लूस कर दिए हैं उसने इतने युद्ध खोये हैं लड़ाइयां खो दी  हैं कि वहां उनका राइट और लेफ्ट में बहुत अंतर नहीं दिखता,  एक दो विषयों को छोड़कर।  एंजेला मर्केल के ऊपर आरोप लगते थे कि यह तो वही नाजी जैसे राज वापस लाना चाहती हैं। उन्होंने उस दाग को धोने के लिए, जो अरब यह जो इनवेजन हुआ यूरोप को उसको उन्होंने उसका आरंभ किया।  एक तरह से उन्होंने  अगुवाई की उस  अब इन्वेजन की  तो जर्मनी जो अब, अगर हम यूरोप को देखें फ्रांस जर्मनी और यूके  तीन अगर जो पावर हाउस हैं।  तीन देश हैं और इन तीनों देशों में आठ से नौ प्रतिशत तो जर्मनी में अब अनऑफिशियल हो गई।  और फ्रांस और यूके में तो ऑफिशल पॉपुलेशन है। तो इनकी स्थिति तो बड़ी खराब है।

और अब जो इनफ्लेक्स हुआ है इनवेजन हुआ है उसमें तो londonistan  की लेखिका हैं वे कहती हैं कि ये जन गणना जो करते हैं उसमें बहुत डेटा के साथ खिलवाड़ करते हैं। क्योंकि पेनिक न हो जाएं इसलिए।

लंदन के कई जो पूरे हिस्से हैं वो आधे से अधिक इस्लामी हो चुके हैं। पर ऐसा न हो इस कारण से वह लोग पेनिक न करें उसमें कई देते हैं जो हमें पृष्ठ पर दिखते हैं उनकी जनसंख्या उससे भी अधिक हो चुकी है।

यूरोप अमेरिका के भरोसे

प्र – आप नहीं देखते कि इसका कोई हल निकाल पायेंगे?

पंकज सक्सेना जी -।  – यह अपने ऊपर तो नहीं निकाल पाएंगे इनकी एक आशा थी कि अमरीका इनका समर्थन करेगा पर अमेरिका अब अगले दो तीन दशक में अपनी समस्याओं में उलझा हुआ। वो  तो वोक हो गया है ।  डॉनल्ड ट्रंप ने बहुत अच्छी अमरीका के लिए बहुत अच्छी बात थी कि अब आप लीबिया में क्या हो रहा है यह भूल जाइए वियतनाम में क्या हो रहा है भूल जाइए अब आप अपने देश को शक्तिशाली बनाइए।  अपनी सीमाओं का ध्यान रखिए।  जो कि अब उनकी स्थिति ऐसी आ गई है कि वह पूरे विश्व में इस प्रकार से हस्तक्षेप जैसा पहले करते आए थे वैसा नहीं कर रहे हैं, तो वह  भी कमजोर हो रहा है शक्तिहीन हो रहा है और दूसरे एक एक करके इन देशों का क्योंकि उन्होंने उसके सिद्धांतों का ही  विघटन कर दिया है।  

राष्ट्र के रूप में उनका विघटन :

जिस प्रकार से राष्ट्र नहीं होता वे स्पेन, स्पेन में इतनी जनसंख्या नहीं है मुसलमानों की क्योंकि वहां सोशल बेनिफिट्स  नहीं मिलते । ढाई से तीन पर्सेंट ऐसा लगभग है ऑफिशल चार के लगभग कहा जाता है परन्तु फिर भी देखी स्पेन का जो संविधान है वहां यह आज्ञा देता देता है कि अगर कोई एक क्षेत्र एक राज्य अलग होना चाहे तो बहुत आसान है। हो तो वह जो बार्सिलोना के जो उनका जो नगर है वह बड़ा इकॉनोमिक पावर हाउस है। अर्थव्यवस्था के रूप से देखें तो वह जो हिस्सा है वह कहता है हम अलग हों। तो स्पेन कभी भी हम विघटित होते हुए देख सकते हैं। आज हमने प्लविसाइट चुनाव देखा इंग्लैंड में स्कॉटलैंड के अलग होने का तो वह जो भी हार गए परंतु आगे जाकर भी ऐसा चुनाव हो सकता है। उसमें वो  हार  सकते हैं।  अब अगर पंकज सक्सेना जी -।  यूरोप की बात करें तो स्कैंडिनेवियन कंट्री जिनको बोला जाता है इनकी जनसंख्या इतनी कम है स्वीडन सबसे अधिक जनसंख्या लगभग एक करोड़। 

नॉर्वे पैंसठ लाख  जो दिल्ली का मतलब ये चारों देश  मिलाकर दिल्ली के बराबर इनकी जनसंख्या हो पायेगी। तो इनका जो माल्मो जो नगर है, जो स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम के पास मान्मो है वह लगभग मुसलमानों ने ले लिया,  तीस से पैंतीस प्रतिशत उनकी जनसंख्या हो गई।  डेनमार्क अभी उनको सोशल वेलफेयर बेनिफिट नहीं दे रहा है बस केवल निकलने दे रहा है।  इस कारण से भी डेनमार्क में इतनी बुरी स्थिति नहीं है। पर और फिनलैंड में कम है परन्तु नॉर्वे और स्वीडन की जो स्थिति है  वह बहुत अच्छी नहीं है।

 अगर हम दक्षिणी यूरोप की बात करें तो स्पेन और पुर्तगाल तो हमने बोला ही इटली की भी क्योंकि जो दक्षिणी इटली है दक्षिण इटली में बहुत सारे जो अफ्रीकी समुदायों आकर बसने और युगोस्लाविया अगर हम फार्मर यूगोस्लाविया की हम बात करते हैं तो क्रोएशिया और स्लोवेनिया में तो कम इनकी जनसंख्या है। परंतु अब जो सर्बिया बचा है जिसमें से आपने कोसोवो  भी निकाल दिया। उसके अंदर भी बहुत सारे मुस्लिम जिले हैं जैसे वज्वोदीना जिसमें मुस्लिम जनसंख्या बहुत तेज है। 

बोस्निया हर्जेगोविना में जो बचा हुआ भाग है उसमें भी अब मुस्लिम जनसंख्या बढ़ रही है।  अल्बेनिया और कोसोवो से मुस्लिम जनसंख्या निकल रही है ग्रीस के ऊपर जो छोटा सा देश है मैसिडोनिया, एक आंकड़ा कहता है चौंतीस प्रतिशत वह इस्लामी देश हो गया है।  और यह बीस अट्ठारह से लेकर चौंतीस तक पिछले पंद्रह वर्षों में हुआ।  तो अगर यह ट्रेंड ऐसा ही रहता है अगले दो दशकों में तो एक नया इस्लामिक देश यूरोप के अंदर अभी बनने वाला है  आपके सामने। इसमें सामना और रूस भी बड़ा शक्तिशाली लेबनान ऐसा बन जाएगा।  वह लेबनान जैसा आप वह ग्रह युद्ध छिड़ने वाले चौंतीस प्रतिशत जनसंख्या बड़ी शक्तिशाली है सात आठ प्रतिशत और हो चालीस जैसा कि उन्होंने पार्टियां या तो गृहयुद्ध होगा और उसी स्थिति में इसका कारण यह जैसे बुल्गारिया जो इस पूर्वी यूरोप के जो देश है यहां साम्यवाद का अत्याचार इतना था परिवार को इन्होंने तोड़ा परंतु संस्थाएं बनाकर खड़ी कर दी तो इन्फ्रास्ट्रक्चर उनके पास बहुत कुछ है।  और जो उनके लोग पश्चिम पलायन कर रहे हैं। तो जो यह अफ्रीका और एशिया के जो मुसलमान देश है वहां से लोग आकर उन संस्थाओं को occupy करके बुल्गारिया में तो कहते कुछ घरों को आke  सीधे सीधे खाली घर है जो उनके लोग छोड़कर पश्चिमी यूरोप चले गए और वे आके उन घरों में रहने लगते हैं। उन संस्थाओं को प्रयोग

करने लगते हैं। एक आंकड़े के अनुसार बल्गेरिया भी चौदह से अट्ठारह प्रतिशत शामिल हो चुका है। 

तो और रूस की भी स्थिति कुछ बहुत अच्छी नहीं है क्योंकि उनके जो रूसी हैं जो ईसाई रूसी है उनकी जनसंख्या बहुत तेजी से कम हो रही है।

समाज के इस विघटन की परिणति : 

संजय दीक्षित जी –   यह जो विघटन हो रहा है समाज का और जो इनकी वैसे तो देखें तो,  सामरिक शक्ति तो बहुत बढ़ रही है। अस्त्र शस्त्र की दृष्टि से लेकिन  जो लड़ने वाले लोग हैं  वहीं वे समाप्त होते जा रहे हैं। जो इसमें जो पश्चिम की भोगवादी जो एक सभ्यता है, वह निश्चित रूप से  इसकी कारक है और इसका अंत कहां होगा फिर जाके??

पंकज सक्सेना जी -।  –  यूरोप का अंत अगर उन्होंने सनातन धर्म जैसी किसी, असली धर्म को नहीं पकड़ा। एक ओर वह विज्ञान को रखें जो उसका जो मापदंड है और दूसरी ओर वे धर्म के सनातन धर्म का, अर्थ यह नहीं कह रहा हूं कि वे केवल शिव विष्णु और हिंदू देवी देवताओं की पूजा करें। हम से प्रेरणा लेकर जो श्री रामस्वरूप जी कहते थे वहां के जो स्थानीय धर्म हैं उन देवी देवताओं का पुनः जागरण करें और उसकी स्थापना करें तब जाकर बच सकते हैं। प्रकृति स्थिति प्रकृति स्थित पुनः हो जाएं और अच्छी बात यह एक अच्छा जो चिन्ह व यह है कि पैगिनिज्म है को कहते फास्टेस्ट ग्रोइंग रिलीजन है। 

पैगिनिज्म फास्टेस्ट ग्रोइंग रिलीजन 

 इस्लाम से भी देरी से व एक के बाद एक हर देश में जो मूर्तिपूजा है मंदिर वापस बनाए जा रहे हैं। जो जो होते तो वो  जो हमारे जिस प्रकार से तक होते हैं वह ऐसे रिचुअल करते हैं ऐसी नीतियां और ऐसे वो एक के बाद एक ऐसे मंदिर बना रहे हैं ऐसे पुराने देवी देवताओं की मूर्तियां उनके विग्रह पुनः स्थापित कर रहे हैं।  उनका उनके आसपास यज्ञ जैसे हवन जैसे इस प्रकार के अनुष्ठान कर रहे हैं। तो यह एक अच्छी धारा हो सकती है । ये भी बिखरे हैं, अभी,  अभी उनमें एकमतता नहीं है।

संजय सर –  यह बताया  जा रहा है कि ये जो बाल्टिक देश हैं जो पुराने यूएसएसआर के थे  लातविया लिथुआनिया ऐसा हो नहीं आया और एस्टोनिया  इनमें आपके हिन्दू धर्म का भी काफी तेजी से प्रसार हो रहा है?

पंकज सक्सेना जी   – जी! क्योंकि सौर मत का कहते हैं।  लिथुआनिया में बहुत प्रचार था।  जो उनका मत है हमारा सौर  संप्रदाय है इसमें बहुत समानताएं दिखती हैं। और लिथुआनिया यूरोप का आखिरी अंतिम देश था,  ईसाई बनने वाला।  लगभग सोलहवीं शताब्दी में

आठ सौ वर्ष हुए उसको ईसाई बने हुए। लास्ट पेगन एम्पायर ऑफ यूरोप लिथुआनिया रहा है। तो बाल्टिक में ऐसे बहुत सारे हैं।  फिनलैंड में भी बाल्टिक का एक  हिस्सा एक दृष्टि के अनुसार है।  वहां पर भी ऐसे मिलते हैं।  परंतु पूर्वी यूरोप जैसे में तो कुछ  बुल्गारिया के इस प्रकार के लोगों से भेंट हुई जो बहुत कह रहे हैं कि बहुत तेजी से बहुत मात्रा में वहां पर जो पेगन जो  समुदाय है उसकी बढ़ोतरी हो रही है।  तो यह बहुत आशा की बात है परंतु अगर उनमें ऐसी कोई सनातन धर्म जैसा कोई धर्म वहां जनक नहीं  है तो  उनकी आशा कम है क्योंकि इसाइयत पर अभी भी पुनः नहीं जा सकते, क्योंकि ईसाइयत भी एक रूप से जैसा हम सब जानते हैं इस्लाम जैसा ही एक मजहब है और उसकी रूढ़ियों पर वे   वापस नहीं जाने वाले।  ये पोलैंड हंगरी कुछ अंतिम देश हैं जो इतनी इसाई मूल्यों पर खड़े हुए परंतु अगर आप उनकी उनकी लेखनी देखें उनका जो साहित्य है वहां से निकलता है वह देखें ईसाइयत के नाम पर जिन सिद्धांतों की चर्चा कर रहे हैं उसमें से कई बड़े धार्मिक सिद्धांत हैं। 

बस वो अम्ब्रेला लिए हुए हैं तो धीरे धीरे जब पेगनिज्म और शक्तिशाली होता है यूरोप में तो मुझे लगता है इसमें से कई जो ईसाई अभी शक्ति से अपने आपको ईसाई कहते हैं और धीरे धीरे पपेगनिज्म की ओर आने लगे हैं क्योंकि इसाइयत  तो नहीं हो सकता। अभी चार दिन पहले की घटना है कि जर्मनी में कितने पंद्रह लाख लोगों ने डी लिस्ट कराया। अपने पिछले वर्ष में डीलिस्टिंग है इसलिए क्योंकि आप ईसाई हैं तो आप पर कर लगता है। चर्च एक टैक्स लेती है।  अब अगर आप ऐसा भी नहीं कि इसाई हैं और टैक्स भी पे करना पड़ रहा है को कर भी देना पड़ रहा है तो यह तो किसी को पसंद नहीं होगा। तो वहां से वह लोग भी डीलिस्ट करा लेते हैं।  तो इसाइयत तो बहुत तेजी से घट रही है। यूरोप के अंदर अगर गिरने से बढ़ता है तो सनातन हिन्दुओं का यह कर्तव्य होना चाहिए कि हम अपना कई संप्रदाय लेकर वहां पर प्रसार करें। जैसे श्री रामस्वरूप जी कहते थे कुछ संप्रदाय तो करें जैसे इसकान  बहुत एक्टिव है। बैप्स भी करता है।

भारतीय संप्रदायों के प्रसार का अवसर 

जो पारंपरिक संप्रदाय है उनको भी जाना चाहिए जो हमारे शंकर मठ हैं  जो वैष्णव मत हैं उनको भी अब पश्चिम में जाना चाहिए और अपने धर्म का प्रचार करना चाहिए जिससे कि हिन्दू वहां पर भी जाग्रत हों।  देखिए घाना जैसे देश में जो भारतीय सांस्कृतिक पृष्ठभूमि से बहुत भिन्न है।  इसकोन के कारण स्वामी घनानंद जब हुए तो कुछ लाख तक हिन्दू वहां पर हो गए थे और अफ्रीका के अंदर हरे रामा हरे कृष्ण मंत्र का जाप जो है उनके कारण हुआ था। तो सनातन धर्म के धर्मगुरुओं और धर्म संप्रदाय को पारंपरिक संप्रदायों को भी प्रचार करना चाहिए यह अवसर है हमारा वे भूले भटके हुए अभी वे मार्ग दर्शन के लिए ढूंढ रहे हैं कि उन्हें किस ढंग से मार्गदर्शन मिले।  तो इस समय हमें हमने अगर नहीं किया तो कोई रिलीजन अथवा इस्लाम उसका स्थान ले लेगा। इस्लाम की नियति से बचने के लिए, यूरोप को अपने पैगन धर्म का पुनर्जागरण करना पड़ेगा। सनातन धर्म की अम्ब्रेला के छाते के नीचे। 


www.waht.nhs.uk

Paganism The Old And The New Religion For the West

3 – 4 minutes

Introduction

Paganism has its roots in the pre-Christian religions of Europe. Its re-emergence in Britain parallels that in other western countries, where it has been growing rapidly since the 1950s. The social infrastructure of paganism reflects the value the pagan community places on unity in diversity; it consists of a network of inter-related traditions and local groups served by several larger organisations. In Scotland the Pagan Federation acts as an educational and representative body.

Pagans understand deity to be manifest within nature and recognise divinity as taking many forms, finding expression in goddesses as well as gods. Goddess worship is central in paganism. Pagans believe that nature is sacred and that the natural cycles of birth, growth and death observed in the world around us carry profoundly spiritual meanings. Human beings are seen as part of nature, along with other animals, trees, stones, plants and everything else that is of this earth. Most pagans believe in some form of reincarnation, viewing death as a transition within a continuing process of existence.

Attitudes to healthcare staff and illness

 Most pagans have a positive attitude towards healthcare staff and are willing to seek medical help and advice when sick

Religious practices

Most pagans worship the old pre-Christian gods and goddesses through seasonal festivals and other ceremonies. Observance of these festivals is very important to pagans, and those in hospital will generally wish to celebrate them in some form. As there are many diverse traditions within paganism, you should ask individual patients if they have any special requirements. Some pagans may wish to have a small white candle or a small figure of a goddess on their locker.

Diet

For ethical reasons, most pagans strongly prefer foods derived from organic farming and free-range livestock rearing, while many are vegetarian or vegan.

Fasting

There are no organised fast days, but some pagans choose to fast in preparation for Ostara (spring equinox).

Washing and toilet

Washing and toilet present no unusual problems for pagans

Ideas of modesty and dress

There are no particular points to be noted in this area and few pagans would object to being examined by doctors of the opposite sex.

Death customs

Most pagans believe in some form of reincarnation, viewing death as a transition within a continuing process of existence. Pagans accept death as a natural part of life and will wish to know when they are dying so that they may consciously prepare for it.

Individuals may ask for rituals (soon as possible after death)

Birth customs

As paganism celebrates life, birth is viewed as sacred and empowering. Pagan women will wish to make their own informed decisions regarding prenatal and neonatal care.

Family planning

Pagans will generally plan pregnancies, and use contraception as appropriate. Paganism emphasises women’s control over their own bodies, and the weighty decisions relating to abortion are seen as a personal matter for the woman concerned, who will be supported in the choices she makes.

Blood transfusions, transplants and organ donation

Most pagans would have no objection to blood transfusions and may receive transplants or donate organs for transplant.


आपका बहुत बहुत धन्यवाद पंकज जी और दर्शकों से अनुरोध है कि आप  यहां इस एपिसोड को देख रहे हैं,  इसके साथ में पंकज जी का जो ऑर्गनाइजेशन बृहत हैदराबाद,  बृहत जो है वह यूट्यूब पर भी उपलब्ध है। उसमें कई सारे वैचारिक आपको कार्यक्रम में मिलते रहते हैं तो कृपया बृहत को भी अवश्य सब्सक्राइब करें।  बहुत बहुत धन्यवाद  पंकज जी । 

जय हिंद! वंदेमातरम्!