भोपाल : 01/12/2021 19:11
सन् 1857 में भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारी वीरों एवं स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों में मध्यप्रदेश के जनजातीय समाज के महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी टंट्या भील का नाम बड़े सम्मान एवं आदर के साथ लिया जाता है। जनजातीय समाज के इस महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी को भारत का रॉबिनहुड भी कहा जाता है। दिलचस्प पहलू यह है कि टंट्या भील की वीरता, साहस और अप्रतिम स्वतंत्रता भाव से संकट में आये अंग्रेजी शासन के नुमाइंदों ने ही जननायक टंट्या भील को “भारतीय रॉबिनहुड” की उपाधि दी थी।
टंट्या भील का जन्म सन् 1840 में तत्कालीन मध्य प्रांत के पूर्वी निमाड़ (खंडवा जिले) की पंधाना तहसील के बडदाअहीर गाँव में श्री भाऊसिंह भील के घर पर हुआ था। कहीं-कहीं पर सन् 1842 में इनके जन्म का उल्लेख भी मिलता है।
टंट्या भील का वास्तविक नाम तॉतिया था। उन्हें प्यार से टंट्या मामा के नाम से भी बुलाया जाता था। उन्हें सभी आयु वर्ग के लोगों द्वारा आदरपूर्वक “मामा” कहा जाता था। उनका “मामा” नाम का यह संबोधन इतना लोकप्रिय हुआ कि भील जनजाति के लोग आज भी उन्हें “मामा’ कहने पर गर्व महसूस करते हैं। टंट्या भील बचपन से साहसी एवं होशियार थे। वह एक महान निशानेबाज और पारंपरिक तीरंदाजी में दक्ष होने के साथ ही गुरिल्ला युद्ध में अत्यंत निपुण थे। उनको बंदूक चलाना भी आता था। टंट्या भील अदम्य साहस असाधारण चपलता, अद्भुत कौशल के धनी माने जाते थे।
सन् 1857 के समय तक सम्पूर्ण भारत सहित मध्यप्रदेश विशेषकर पूर्वी एवं पश्चिमी निमाड़ तथा मालवा क्षेत्र अंग्रेजों के अत्याचार से त्रस्त हो चुका था। मालवा और निमाड़ क्षेत्रों में अंग्रेजों का शासन स्थापित होने से वे आये दिन नागरिकों पर अत्याचार और जुल्म ढाने लगे और सम्पूर्ण जनजातीय समाज, विशेषकर भील भिलाला लोगों, पर अत्यधिक दमनपूर्ण प्रताड़ित करने लगे। ऐसे समय में ही निमाड़ क्षेत्र में ही एक महान भील (यौद्धा) क्रांतिकारी, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी जननायक टंट्या भील का उदय हुआ।