UGCNET-EXAM-SECOND-PAPER-HINDI- परीक्षा तिथि -18/06/2024 Q.61-65


61. ‘असाध्यवीणा’ कविता में वर्णित प्रियंवद के नीरव एकालाप में आए संबोधनों को, पहले से बाद के क्रम में लगाइए। 

A. ओ दीर्घकाय ! 

B. ओ स्वर-संभार! 

C. ओ शरण्य। 

D. ओ विशाल सही 

E. ओ रस-प्लावन ! 

नीचे दिए गए विकल्पों में से सही उत्तर का चयन कीजिए: 

(1). C, B, E, A, D 

(2) B, E, C, A, D 

(3) E, C, A, D, C 

(4) D, A, B, E, C 

UGCNET-EXAM-SECOND-PAPER-HINDI- परीक्षा तिथि -18/06/2024

उत्तर – (4) D, A, B, E, C 

D, A, B, E, C,

A. ओ दीर्घकाय !  ओ दीर्घकाय! Page-05

B. ओ स्वर-संभार! ओ स्वर-संभार! Page-9.1

C. ओ शरण्य। ओ शरण्य! Page-9.3

D. ओ विशाल सही ‘ओ विशाल तरु!  Page-04

E. ओ रस-प्लावन ! ओ रस-प्लावन! Page-9.2

Asadhya Veena-असाध्य वीणा

62. निम्न में से किन आलोचना पुस्तकों के लेखक मुक्तिबोध हैं : 

A. नयी कविता का आत्म संघर्ष तथा अन्य निबंध 

B. लघुमानव के बहाने हिंदी कविता पर एक बहस 

C. इतिहास और परंपरा 

D. नये साहित्य का सौंदर्यशास्त्र 

E. कामायनी एक पुनर्विचार 

नीचे दिए गए विकल्पों में से सबसे उपयुक्त उत्तर का चयन कीजिए : 

(1) केवल E, C, A 

(2) केवल B, C, 

(3) केवल A, D, E 

(4) केवल E, B, C 

UGCNET-EXAM-SECOND-PAPER-HINDI- परीक्षा तिथि -18/06/2024

उत्तर – (3) केवल A, D, E 

ज्ञानपीठ ने ही ‘चाँद का मुँह टेढ़ा है’ प्रकाशि‍त किया था। इसी वर्ष नवंबर १९६४ में नागपुर के विश्‍वभारती प्रकाशन ने मुक्तिबोध द्वारा १९६३ में ही तैयार कर दिये गये निबंधों के संकलन नयी कविता का आत्मसंघर्ष तथा अन्य निबंध’ को प्रकाशि‍त किया था।

इनकी प्रमुख आलोचनात्मक कृतियाँ है- नए साहित्य का सौंदर्यशास्त्र, कामायनी: एक पुनर्विचार।


अन्य महत्वपूर्ण जानकारी

ग्रंथानुक्रमणिका

चाँद का मुँह टेढ़ा है – (कविता संग्रह), 1964, भारतीय ज्ञानपीठ.

नई कविता का आत्मसंघर्ष तथा अन्य निबंध (निबंध संग्रह), 1964, विश्वभारती प्रकाशन.

एक साहित्यिक की डायरी (निबंध संग्रह), 1964, भारतीय ज्ञानपीठ.

काठ का सपना (कहानी संग्रह), 1967, भारतीय ज्ञानपीठ.

विपात्र (उपन्यास), 1970, भारतीय ज्ञानपीठ.

नये साहित्य का सौंदर्यशास्त्र, 1971, राधाकृष्ण प्रकाशन.

सतह से उठता आदमी (कहानी संग्रह), 1971, भारतीय ज्ञानपीठ

कामायनी: एक पुनर्विचार, 1973, साहित्य भारती.

भूरी-भूरी खाक धूल – (कविता संग्रह), 1980, नई दिल्ली, राजकमल प्रकाशन.

मुक्तिबोध रचनावली, नेमिचंद्र जैन द्वारा संपादित, (6 खंड), 1980, राजकमल प्रकाशन.

समीक्षा की समस्याएं, 1982, राजकमल प्रकाशन.

wikiLink

63. ‘फिर विकल हैं प्राण मेरे!’ यह गीत महादेवी वर्मा की किस पुस्तक में पहली बार संकलित हुआ? 

(1) नीहार 

(2) रश्मि 

(3), नीरजा 

(4) सान्ध्य गीत 

उत्तर – (4) सान्ध्य गीत 

फिर विकल हैं प्राण मेरे!

तोड़ दो यह क्षितिज मैं भी देख लूं उस ओर क्या है!

जा रहे जिस पंथ से युग कल्प उसका छोर क्या है?

क्यों मुझे प्राचीर बन कर

आज मेरे श्वास घेरे?

सिन्धु की नि:सीमता पर लघु लहर का लास कैसा?

दीप लघु शिर पर धरे आलोक का आकाश कैसा!

दे रही मेरी चिरन्तनता

क्षणों के साथ फेरे!

बिम्बग्राहकता कणों को शलभ को चिर साधना दी,

पुलक से नभ भर धरा को कल्पनामय वेदना दी;

मत कहो हे विश्व! ‘झूठे

हैं अतुल वरदान तेरे’!

नभ डुबा पाया न अपनी बाढ़ में भी छुद्र तारे,

ढूँढने करुणा मृदुल घन चीर कर तूफान हारे;

अन्त के तम में बुझे क्यों

आदि के अरमान मेरे!


इस पुस्तक में संकलित रचनाएँ

प्रिय! सान्ध्य गगन /  प्रिय मेरे गीले नयन बनेंगे आरती! /  क्या न तुमने दीप बाला? /  रागभीनी तू सजनि निश्वास /  अश्रु मेरे माँगने जब /  क्यों वह प्रिय आता पार नहीं! /  जाने किस जीवन की सुधि ले /  शून्य मन्दिर में बनूँगी /  प्रिय-पथ के यह मुझे अति प्यारे ही हैं /  रे पपीहे पी कहाँ /  विरह की घडियाँ हुई अलि /  शलभ मैं शापमय वर हूँ! /  पंकज-कली! /  हे मेरे चिर सुन्दर-अपने! /  मैं सजग चिर साधना ले! /  मैं किसी की मूक छाया हूँ न क्यों पहचान पाता! /  यह सुख दुखमय राग /  सो रहा है विश्व, पर प्रिय तारकों में जागता है! /  री कुंज की शेफालिके! /  मैं नीर भरी दुख की बदली! /  आज मेरे नयन के तारक हुए जलजात देखो! /  प्राण रमा पतझार सजनि /  झिलमिलाती रात मेरी! /  दीप तेरा दामिनी! /  फिर विकल हैं प्राण मेरे! /  मेरी है पहेली बात! /  चिर सजग आँखे उनींदी /  कीर का प्रिय आज पिंजर खोल दो! /  प्रिय चिरन्तन है सजनि /  ओ अरुण वसना! /  देव अब वरदान कैसा! /  तन्द्रिल निशीथ में ले आये /  यह संध्या फूली सजीली! /  जाग जाग सुकेशिनी री! /  तब क्षण क्षण मधु-प्याले होंगे! /  आज सुनहली वेला! /  नव घन आज बनी पलकों में! /  क्या जलने की रीति शलभ समझा दीपक जाना? /  सपनों की रज आँज गया /  क्यों मुझे प्रिय हों न बन्धन ! /  हे चिर महान्! /  सखि मैं हूँ अमर सुहाग भरी! /  कोकिल गा न ऐसा राग! /  तिमिर में वे पदचिह्न मिले! / महादेवी वर्मा

UGCNET-EXAM-SECOND-PAPER-HINDI- परीक्षा तिथि -18/06/2024

64. अमृतसर में अनजान लड़की से ‘क्या तेरी कुड़माई हो गई? यह सवाल पूछते वक़्त लहना सिंह की आयु थी : 

(1) आठ वर्ष 

(2) दस वर्ष 

(3) बारह वर्ष 

(4) नौ वर्ष 

UGCNET-EXAM-SECOND-PAPER-HINDI- परीक्षा तिथि -18/06/2024

उत्तर –  (3) बारह वर्ष 

उस लड़की की स्मृति भी समय की पर्तों के नीचे दब चुकी है। जिससे उसने कभी पूछा था कि क्या तेरी कुड़माई हो गई ? लेकिन उसके साधारण जीवन में ज़बरदस्त मोड़ तब आता है जब उसकी मुलाकात सूबेदारनी से होती है। पच्चीस साल बाद, यानी जब उसकी उम्र 37 साल की व सूबेदारनी की उम्र 33- 34 साल की है।

eGyankosh Link   

65. ‘भारत दुर्दशा’ नाटक के विभिन्न गीतों के ऊपर शैली/राग का नाम दिया गया है। निम्न में से किन-किन का प्रयोग इस नाटक में है? 

A. राग जयजयवंती 

B. राग रामकली 

C. लावनी  

D. राग चैती गौरी 

E. राग काफी 

नीचे दिए गए विकल्पों में से सही उत्तर का चयन कीजिए: 

(1) केवल A, B और E

(2) केवल B, C और E 

(3) केवल C, D और E 

(4) केवल A, B और D 

UGCNET-EXAM-SECOND-PAPER-HINDI- परीक्षा तिथि -18/06/2024

उत्तर – 

A. राग जयजयवंती  ❌

B. राग रामकली ❌

C. लावनी  ✅

D. राग चैती गौरी ✅

E. राग काफी ✅

(3) केवल C, D और E 

भारतेंदु हरिश्चंद्र-भारतदुर्दशा नाटकSourceLink