UGCNET-EXAM-SECOND-PAPER-HINDI- परीक्षा तिथि -18/06/2024 Q.141-145


141. उपर्युक्त अनुच्छेद के अनुसार भारत कैसा देश है? 

(1) एकजातीय 

(2) द्विजातीय 

(3) त्रिजातीय

(4) बहुजातीय 

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उत्तर -(4) बहुजातीय 

142. उपर्युक्त अनुच्छेद के अनुसार पाणिनि का संबंध है : 

(1) नालंदा से 

(2) तक्षशिला से 

(3) पाटिलीपुत्र से 

(4) काशी से 

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उत्तर -(2) तक्षशिला से 

143. उपर्युक्त अनुच्छेद के अनुसार, 1857 के स्वाधीनता संग्राम का केन्द्र था : 

(1) बंगाल 

(2) हैदराबाद 

(3) कर्णाटक 

(4) हिन्दी प्रदेश 

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उत्तर – (4) हिन्दी प्रदेश 

144. उपर्युक्त अनुच्छेद के अनुसार हिन्दी प्रदेश में नवजागरण की शुरूआत होती है : 

(1) वेद मंत्रों की रचना से 

(2) 1857 के स्वाधीनता संग्राम से 

(3) शंकराचार्य के दर्शन से 

(4) शिवाजी द्वारा राज्यसत्ता स्थापित करने से 

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उत्तर – (2) 1857 के स्वाधीनता संग्राम से 

145. उपर्युक्त अनुच्छेद के अनुसार किसने महाराष्ट्र में मराठीभाषी जाति की जातीय राज्यसत्ता स्थापित की ? 

(1) शिवाजी 

(2) गुरू रामदास 

(3) नामदेव 

(4) ज्योतिबा फुले

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उत्तर –  (2) गुरू रामदास 

निम्नलिखित अवतरण को ध्यानपूर्वक पढ़िए और संबंधित प्रश्नों के उत्तर दीजिए: 

(146 से 150) 

भारत में सामन्तवाद के मूल लक्षण अन्य देशों में सामन्तवाद के मूल लक्षणों से बहुत भिन्न नहीं थे। भूमि, जो कृषि उत्पादन का बुनियादी साधन है, सामन्ती प्रभु की सम्पत्ति होती थी। उत्पादन के साधनों के मालिक लोग किसानों के समुदाय द्वारा पैदा किये गये अतिरिक्त माल को अपने इस्तेमाल के लिए हड़प लेते थे। 

भारत एक विशाल देश है। इसलिए यह आश्चर्य की बात नहीं है कि यहाँ अलग-अलग क्षेत्रों में सामन्ती सम्बन्धों के रूप अलग-अलग थे। इतने पर भी कुछ ऐसे समान लक्षण थे जो भारतीय सामन्तवाद की अपनी विशिष्टता थे-युगों पुराने ग्राम समुदाय, कृषि और दस्तकारी का एक-दूसरे से घुला-मिला होना, बिरादरी के कबीली सम्बन्धों का जारी रहना, जाति प्रथा और अस्पृश्यता का विकास, और इस सबके साथ-साथ दास प्रथा के अवशेषों और यहां तक कि आदिम साम्यवाद के अवशेषों का भी जारी रहना। इस देश में सामन्तवाद का धीरे-धीरे ही विकास हुआ और उसका आगमन भयंकर सामाजिक उथल-पुथल और वर्ग संघर्षों से सम्बंधित नहीं रहा। भारतीय सामन्तवाद की एक दूसरी विशिष्टता थीः भूमि का सामूहिक स्वामित्व। यह सामूहिक स्वामित्व प्राचीन काल से ही चाल आ रहा था और यह सामन्तवाद के साथ भी जारी रहा, यद्यपि औपचारिक रूप में ही। किन्तु समान स्वामित्व के साथ-साथ निजी स्वामित्व भी जारी था।  

भारतीय सामन्तवाद का एक दूसरा लक्षण यह था कि भूमि कभी-कभी मंदिरों को दान कर दी जाती थी। इन मंदिरों की देख-भाल प्रायः ब्राह्मण पुजारी करते थे। कभी-कभी ब्राह्मणों को सीधे-सीधे जमीन दान कर दी जाती थी। इस प्रकार के एक दान का उल्लेख रा.श. शर्मा ने अपनी पुस्तक में किया है। इस राजा का नाम प्रवरसेन द्वितीय था। एक हजार ब्राह्मणों को एक ग्राम दान में देते हुए दान-पत्र में कहा गया था कि ये ब्राह्मण इस शर्त पर ही गाँव को अपने कब्जे में रख सकते हैं कि “वे राज्य के विरुद्ध राजद्रोह न करें, ब्राह्मणों की हत्या न करें, चोरी और व्यभिचार न करें, राजाओं को विष देकर उनकी हत्याएं न रचाएं, युद्ध न छेड़ें और दूसरे गांवों को त्रस्त न करें।” चीनी यात्री फाहियान (ईसवी सन् चौथी शताब्दी) ने बताया है कि उन दिनों मठों को खेत, बागीचे और चौपाये दान में दिये जाते थे।

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