UGCNET-EXAM-SECOND-PAPER-HINDI- परीक्षा तिथि -18/06/2024 Q.136-140


136. रामविलास शर्मा की निम्नलिखित रचनाओं को, प्रथम प्रकाशन वर्ष के अनुसार, पहले से बाद के क्रम में लगाइए। 

A. भारतेंदु हरिश्चंद्र 

B. भारतेंदु युग और हिंदी भाषा की विकास परम्परा 

C. भाषा और समाज 

D. महावीर प्रसाद द्विवेदी और हिंदी नवजागरण 

E. निराला की साहित्य साधना-भाग दो 

नीचे दिए गए विकल्पों में से सही उत्तर का चयन कीजिए : 

(1) E, C, B, D, A 

(2) A, B, C, D, E 

(3) B, A, C, E, D 

(4) B, D, A, C, E 

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उत्तर – (3) B, A, C, E, D 

A. भारतेंदु हरिश्चंद्र -भारतेंदु हरिश्चन्द्र (1942),

B. भारतेंदु युग और हिंदी भाषा की विकास परम्परा 

C. भाषा और समाज (1961)

D. महावीर प्रसाद द्विवेदी और हिंदी नवजागरण (1977)

E. निराला की साहित्य साधना-भाग दो (1972) -निराला की साहित्य साधना (तीन-भाग) – (1969, 1967-76, साहित्य अकादमी पुरस्कार-1970),

137. प्रथम प्रकाशन वर्ष के अनुसार, निम्नलिखित पत्रिकाओं को, पहले से बाद के क्रम में लगाइए। 

A. हिन्दी प्रदीप 

B. बिहार बंधु 

C. भारत बंधु 

D. हिंदोस्थान 

E. देशहितैषी 

नीचे दिए गए विकल्पों में से सही उत्तर का चयन कीजिए : 

(1), A, B, D, C, E 

(2) C, A, B, D, E 

(3) A,B,E, D 

(4) B, C, A, E, D 

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उत्तर –  (4) B, C, A, E, D 

A. हिन्दी प्रदीप (1877)

B. बिहार बंधु (1872)

C. भारत बंधु (1876)

D. हिंदोस्थान (1883)

E. देशहितैषी  

हिन्दी प्रदीप, हिन्दी की एक मासिक पत्रिका थी जिसका प्रथम अंक 1877 ई. में प्रकाशित हुआ। इस पत्र का विमोचन भारतेन्‍दु हरिश्चन्‍द्र ने किया था। यह पत्रिका प्रयाग से निकलती थी और इसका सम्पादन बालकृष्ण भट्ट के द्वारा किया जाता था।बिहार में मीडिया की शुरुआत 1872 में बिहार बंधु के साथ हुई थी। बिहार बंधु बिहार का पहला दैनिक हिंदी समाचार पत्र था।

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138. अरस्तू के विरेचन सिद्धांत की तुलना किस भारतीय काव्यशास्त्री के सिद्धांत से की जाती है?

(1) क्षेमेंद्र 

(2). अभिनव गुप्त 

(3) महिमभट्ट 

(4) विश्वनाथ 

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उत्तर – (2) अभिनव गुप्त 

139. अर्ध-मागधी प्राकृत के संबंध में सत्य कथन हैं: 

A. जैन आचार्यों ने शास्त्रों की रचना में इस भाषा को अपनाया। 

B. इसका तत्कालीन रूप मथुरा के आसपास व्यवहृत होता था। 

C. ‘स’, ‘ष’ के स्थान पर ‘श’ का प्रयोग अर्धमागधी की प्रमुख विशेषता 

D. अर्ध-मागधी प्राकृत की स्थिति मागधी और शौरसेनी प्राकृतों के बीच मानी गई है। 

E. अर्ध-मागधी प्राकृत के अर्धमागधी अपभ्रंश से अवधी बोली का संबंध माना जाता है। 

नीचे दिए गए विकल्पों में से सही उत्तर का चयन कीजिए : 

(1) केवल A, C और E 

(2) केवल A, C और D 

(3) केवल A, B और E 

(4), केवल A, D और E 

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उत्तर – (4), केवल A, D और E 

140. महात्मा गांधी द्वारा व्यक्त किए गए विचार हैं 

A. “भारत भूख से मर रहा है, क्योंकि उसे उस रोजी-रोजगार से वंचित कर दिया गया है जो उसे रोटी दे सकता है” 

B. “अस्पृश्यता जाति प्रथा की उपज नहीं, बल्कि ऊँच नीच की उस भावना की उपज है जो हिंदू धर्म में घुस आई है और उसे भीतर से खोखला कर रही है।” 

C. “यदि कोई ऐसा सत्य है, जो मानवता से पूर्ण असंबद्ध है, तो हमारे लिए वह पूर्णतः अस्तित्व हीन है।” 

D. “मेरा धर्म मनुष्य का धर्म है, जिसमें परम अथवा अपरिमित की व्याख्या मानवता के अर्थों में की जाती है।” 

E. “वे लोग जो यह कहते हैं कि धर्म का राजनीति से कोई संबंध नहीं है, यह नहीं जानते कि धर्म का मतलब क्या है?” 

नीचे दिए गए विकल्पों में से सबसे उपयुक्त उत्तर का चयन कीजिए: 

(1) केवल A, B, E 

(2) केवल A, C, E 

(3), केवल B,D, E 

(4) केवल C, D, E 

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उत्तर –  (1) केवल A, B, E 

A. “भारत भूख से मर रहा है, क्योंकि उसे उस रोजी-रोजगार से वंचित कर दिया गया है जो उसे रोटी दे सकता है” ✅  link

B. “अस्पृश्यता जाति प्रथा की उपज नहीं, बल्कि ऊँच नीच की उस भावना की उपज है जो हिंदू धर्म में घुस आई है और उसे भीतर से खोखला कर रही है।”  ✅

C. “यदि कोई ऐसा सत्य है, जो मानवता से पूर्ण असंबद्ध है, तो हमारे लिए वह पूर्णतः अस्तित्व हीन है।” 

D. “मेरा धर्म मनुष्य का धर्म है, जिसमें परम अथवा अपरिमित की व्याख्या मानवता के अर्थों में की जाती है।” 

E. “वे लोग जो यह कहते हैं कि धर्म का राजनीति से कोई संबंध नहीं है, यह नहीं जानते कि धर्म का मतलब क्या है?” ✅ 

अस्पृश्यता के कारण जाति को नष्ट करना उसी तरह गलत होगा जिस तरह शरीर में बड़े हुए किसी भद्दे अंग के कारण शरीर को नष्ट करना । इसलिए अस्पृश्यता जाति -प्रथा की उपज नहीं है, परंतु उस ऊँच-नीच के भेद की उपज है जो हिन्दू धर्म में पैठ गया है और उसे घुन की तरह भीतर से खाये जा रहा है ।

(141-145)

निम्नलिखित अवतरण को ध्यानपूर्वक पढ़िए 6 और संबंधित प्रश्नों के उत्तर दीजिए: (141 से 145) 

भारत बहुजातीय देश है। यहाँ किसी जाति की अपनी विशेषताओं के साथ सामान्य राष्ट्रीय विशेषताओं पर ध्यान देना उचित है। किन्तु राष्ट्रीय एकता का अर्थ जातीय विशेषताओं का लोप नहीं होता। 

हिन्दी जाति की संस्कृति भारतीय संस्कृति का ही एक अंग है और उसके संदर्भ में ही उसका विकास और महत्व समझा जा सकता है। जब वेद मंत्र रचे गये, तब उस युग के आस पास सिन्धु घाटी की महान् सभ्यता विकसित हुई थी। संस्कृत के विशाल वाङ्मय के एक छोर पर तक्षशिला में पाणिनि हैं और दूसरे छोर पर केरल में शंकराचार्य हैं। आधुनिक भाषाओं में लगभग चौथी ईस्वी शताब्दी से अब तक तमिल साहित्य की अटूट गौरवशाली परंपरा है। जातीय चेतना का प्रसार महाराष्ट्र में सन्तों के द्वारा हुआ और समर्थ गुरु रामदास ने समस्त मराठी भाषियों से एक झंडे के नीचे संगठित होने को कहा जिने साधारण को अपना आधार बनाकर शिवाजी ने भारतीय युद्ध कौशल में क्रान्तिकारी परिवर्तन किया और उन्होंने संसार में सबसे पहले छापेमार लड़ाई का विकास किया। महाराष्ट्र में उन्होंने मराठीभाषी जाति की जातीय राज्यसत्ता स्थापित की। रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद और रवीन्द्रनाथ ठाकुर के बंगाल ने भारतीय नवजागरण में महत्वपूर्ण भूमिका निबाही। 

किसी भी बहुजातीय देश के सामाजिक सांस्कृतिक इतिहास में सभी जातियों का योगदान एक सा नहीं होता यद्यपि वे एक दूसरे को प्रभावित करती रहती हैं। 1857 के स्वाधीनता संग्राम का केन्द्र हिन्दी प्रदेश था, इससे यह सिद्ध नहीं होता कि उसका राष्ट्रीय महत्व नहीं था या दूसरे प्रदेशों में उसके प्रति सहानुभूति नहीं थी या वहां साम्राज्य विरोधी संघर्ष न हुए थे। 

सन् सत्तावन की राज्यक्रान्ति में पंजाब, सीमान्त प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, कर्णाटक, हैदराबाद और विशाल हिन्दी भाषी प्रदेश की जनता ने भाग लिया। इन प्रदेशों में क्रान्ति का विकास एक सा नहीं था, न हो सकता था। 

जातियों के विचार से स्वाधीनता संग्राम में हिन्दुस्तानियों की भूमिका प्रमुख थी। हिन्दी प्रदेश में नवजागरण 1857 के स्वाधीनता संग्राम से शुरू होता है।

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