UGCNET-EXAM-SECOND-PAPER-HINDI- परीक्षा तिथि -18/06/2024 Q.126-130


126. सूची-1 के साथ सूची-II का मिलान कीजिए: 

नीचे दिए गए विकल्पों में से सही उत्तर का चयन कीजिए : 

(1) A-IV, B-III, C-1, D-II 

(2) A-III, B-IV, C-II, D-I 

(3) А-II, В-1, C-IV, D-III 

(4)  A-III, B-I, C-IV, D-II 

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उत्तर –  (3) А-II, В-1, C-IV, D-III 

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Bharmar Geet Saar – By Ramchandra Shukla


(‘भ्रमरगीत सार’ के पद की प्रथम पंक्ति)(पद के ऊपर उल्लेखित राग का नाम) Book Page NO

A. आयो घोष बड़ो व्यापारी – II. राग काफी → Page 69

B. आए जोग सिखावन पाँड़े – I. राग नट → Page 70

C. हमारे हरि हारिल की लकरी – IV. राग सारंग → Page 77

D. हम तौ कान्ह केलि की भूखी – III. राग धनाश्री →  Page 74

127. ‘हस्तलिखित’ पद में कौन सा समास है? 

(1) कर्म-तत्पुरुष 

(2) करण-तत्पुरुष 

(3) संप्रदान-तत्पुरुष 

(4) अपादान तत्पुरुष 

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उत्तर – (2) करण-तत्पुरुष 

‘हस्तलिखित’​ पद  में  करण तत्पुरुष समास है। जिस समास का उत्तरपद प्रधान हो और पूर्वपद गौण एवं ‘से’ चिह्न का लोप हो उसे करण तत्पुरुष समास कहते हैं। 

128. ‘कामायनी’ के ‘लज्जा’ सर्ग की पंक्तियाँ हैं: 

A. प्राणी, कटुता को बाँट रहा जगती को करता अधिक दीन 

B. वन, गुहा, कुंज, मरु-अंचल में हूँ खोज रहा अपना विकास 

C. मैं एक पकड़ हूँ जो कहती ठहरो कुछ सोच-विचार करो। 

D. इस निविड़ निशा में संमृति की आलोकमयी रेखा क्या है? 

E. नारी! तुम केवल श्रद्धा हो विश्वास-रजत-नग पगतल में, 

नीचे दिए गए विकल्पों में से सही उत्तर का चयन कीजिए : 

(1) केवल A, B और C 

(2) केवल B, C और D 

(3) केवल C, D और E 

(4) केवल A, C और D 

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उत्तर –  (3) केवल C, D और E 

A. प्राणी, कटुता को बाँट रहा जगती को करता अधिक दीन ❌ 

B. वन, गुहा, कुंज, मरु-अंचल में हूँ खोज रहा अपना विकास ❌

C. मैं एक पकड़ हूंँ जो कहती ठहरो कुछ सोच-विचार करो। ✅

D. इस निविड़ निशा में संमृति की आलोकमयी रेखा क्या है? ✅

E. नारी! तुम केवल श्रद्धा हो विश्वास-रजत-नग पगतल में, ✅

‘कामायनी’ का ‘लज्जा’ सर्ग Authentic Source Link  www.hindisamay.com 

“हाँ, ठीक, परंतु बताओगी

मेरे जीवन का पथ क्या है? 

इस निविड़ निशा में संसृति की 

आलोकमयी रेखा क्या है? 

नारी! तुम केवल श्रद्धा हो

विश्वास-रजत-नग पगतल में, 

पीयूष-स्रोत-सी बहा करो 

जीवन के सुंदर समतल में। 

“इतना न चमत्कृत हो बाले

अपने मन का उपकार करो, 

मैं एक पकड़ हूँ जो कहती 

ठहरो कुछ सोच-विचार करो। 

129. किस काव्यशास्त्री ने काव्यास्वादन की अंतिम स्थिति को भोजकत्व कहा है? 

(1) अभिनव गुप्त 

(2) भट्ट लोल्लट 

(3) भट्टनायक

(4) शंकुक 

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उत्तर – (3) भट्टनायक

भोजकत्व – इस व्यापार में पाठक या दर्शक रस का भोग करता है । भोजकत्व का अर्थ रसानुभूति है । भट्टनायक ने रस की स्थिति दर्शक या पाठक में स्वीकार की । अभिनवगुप्त ने संयोग का अर्थ व्यंग्य-व्यंजक सम्बन्ध तथा निष्पत्ति का अर्थ अभिव्यक्ति माना।

भोजकत्व pdf link →  https://egyankosh.ac.in/bitstream/123456789/72672/1/Unit-1.pdf

भट्टनायक (भुक्तिवाद)

उनकी धारणा है कि न तो रस की उत्पति होती है और न अनुमिति ही तथा उसकी अभिव्यक्ति भी नहीं होती बल्कि अनुभव और स्मृति के आधार पर रस की प्रतिति होती है। उन्होने शब्द के तीन व्यापार माने हैं- १) अभिधा २) भावकत्व ३) भोग (भोजतत्व)।

लिंक

130. विज्ञान और कविता के संबंध पर किस पाश्चात्य विचारक ने प्रमुखता से चर्चा की है? 

(1) आई.ए. रिचर्ड्स 

(2) टी.एस. इलिएट 

(3) डॉ. जॉनसन 

(4) कॉलरिज 

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उत्तर – (1) आई.ए. रिचर्ड्स 

मूलतः वैज्ञानिक आइवर आर्मस्ट्रांग रिचर्ड्स ने मनोवैज्ञानिक एवं वैज्ञानिक दृष्टि अपनाते हुए भाषा पर सर्वाधिक गहनता के साथ विचार किया, साथ ही संवेदनों के संतुलन पर बल देते हुए एक नई समीक्षा पद्धति विकसित की। उन्होंने मनोविज्ञान, भाषाविज्ञान और अध्यात्म दर्शन के आलोक में अपने काव्यशास्त्रीय सिद्धांतों की स्थापना की है।

Source Link :

https://www.nascollege.org/econtent/ecotent-10-4-20/DR%20MADHU%20SHARMA/hindii(1)_compressed%20M%20A%20IV%2020-4-1.pdf

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