UGCNET-EXAM-SECOND-PAPER-HINDI- परीक्षा तिथि -18/06/2024 Q.66-70


66. डॉ. तुलसीराम को छोटी उम्र में अंतर्राष्ट्रीय राजनीति की तरफ अनजाने में ही खींचनेवाले तीन लोग कौन थे ?

(1) मुन्नर, सोनई, जेदी 

(2) चिखुरी, परशुराम, पौहारी बाबा 

(3), फक्कड़ बाबा, नग्गर, मुरली सिंह 

(4) जलंधर, बंकिया डोम, बदलू 

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उत्तर – (1) मुन्नर, सोनई, जेदी 

“आज जब मैं अंतरराष्ट्रीय राजनीति में एक बड़े सेंटर का प्रोफ़ेसर व अध्यक्ष बन चुका हूं तो यह स्वीकारने में गर्व होता है कि इसके पीछे मेरी प्रेरणा के असली जनक वो तीन गरीब मजदूर थे, जिन्होंने मुझे छोटी उम्र में अंतरराष्ट्रीय राजनीति की तरफ अनजाने ही खींचा था। इनमें एक थे सोवियत संघ के ‘समोहीखेती’ वाले मुन्नर चाचा, दूसरे डांगे को ‘डंगरिया’ कहने वाले सोनई तथा तीसरे थे, दढियल जेदी चाचा।”

मुर्दाहिया (Murdahiya) आत्मकथा का सारांश

67. ‘भूल गलती’ कविता में कैदी के रूप में दरबार में लाए गए व्यक्ति के बारे में आयी इन पंक्तियों को, पहले से बाद के क्रम में लगाइए। 

A. समूचे जिस्म पर लत्तर 

B. नामंजूर/उसको जिंदगी की शर्म की-सी शर्त 

C. पहने हथकड़ी वह एक ऊँचा कद 

D. बेख़ौफ़ नीली बिजलियों को फेंकता 

E. वह क़ैद कर लाया गया ईमान 

नीचे दिए गए विकल्पों में से सही उत्तर का चयन कीजिए : 

(1) C, A, E, D, B 

(2), B, D, C, E, A 

(3) D, B, A, E, C 

(4) B, A, D, E, C 

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उत्तर – (1) C, A, E, D, B 

A. समूचे जिस्म पर लत्तर 1.2

B. नामंजूर/उसको जिंदगी की शर्म की सी शर्त 2.1

C. पहने हथकड़ी वह एक ऊँचा कद 1.1

D. बेखौफ नीली बिजलियों को फेंकता 1.4

E. वह कैद कर लाया गया ईमान… 1.3

68. सूची-I के साथ सूची-II का मिलान कीजिए: 

नीचे दिए गए विकल्पों में से सही उत्तर का चयन कीजिए: 

(1) A-III, B-1, C-II, D-IV 

(2) А-І, В-ІI, С-III, D-IV 

(3) A-IV, B-1, C-II, D-III 

(4). A-III, B-II, C-IV, D-I 

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उत्तर –  (3) A-IV, B-1, C-II, D-III 

  • रामशरण जोशी – अपनो के पास, अपनों से दूर
  • यात्रा चक्र – धर्मवीर भारती
  • गोविन्द मिश्र – धुंध भरी सुर्खी (1979 ई०), दरख्तों के पार शाम (1980 ई०), झूलती जड़े (1990 ई०), परतों के बीच (1997 ई०)

69. ‘सतपुड़ा के जंगल’ कविता में किस वाद्ययंत्र का उल्लेख हुआ है? 

(1) मादल 

(2) इकतारा 

(3) बाँसुरी 

(4) ढोल 

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उत्तर – (4) ढोल 

इन वनों के ख़ूब भीतर,  

चार मुर्ग़े, चार तीतर,  

पाल कर निश्चिंत बैठे,  

विजन वन के बीच बैठे,  

झोंपड़ी पर फूस डाले  

गोंड तगड़े और काले  

जब कि होली पास आती,  

सरसराती घास गाती,  

और महुए से लपकती,  

मत्त करती बास आती,  

गूँज उठते ढोल इनके,  

गीत इनके गोल इनके।  

सतपुड़ा के घने जंगल  

नींद मे डूबे हुए-से  

ऊँघते अनमने जंगल। 


अधिक पढने के लिए क्लिक करें  : सतपुड़ा के जंगल 

70. ‘मानस का हंस’ के अनुसार उपन्यास के अंतिम अंश में तुलसीदास ‘विनय पत्रिका’ के किस छन्द को अन्तिम छन्द कहते हुए उसे गाने लगते हैं? 

(1), कबहुँक हाँ यहि रहनि रहाँगो। 

(2) मारुति-मन, रूचि भरत की लखि लषन कही है। 

(3) जाके प्रिय न राम बैदही 

(4) जानि प्रहिचानि मैं बिसारे हौं कृपानिधान 

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उत्तर – 

… … … 

गड़ाहट से तुलसीदास की आंखे खुल गई- “रामू !”

“हां प्रभु जी !

“ग्राज कौन तिथि है ?”

गगाराम मित्र को बाते करते देखकर तुरन्त बोल उठे “श्रावण कृष्ण तीज । अब तो ब्राह्म वेला आ गई।”

तुलसीदास एक क्षण चुप रहे, फिर कहा- “पिछले वर्ष रत्नावली आज ही के दिन गई थी ।”

राजा पास आ गए । उनके हाथ पर पोले से अपना हाथ रखकर कहा- “अब कैसा जी है भइया ?”

“निर्मल गंगा जल जैसा। गाने को जी चाहता है, रामू।”

• “जी, प्रभु जी !”

“आज स्वप्न में मैंने ‘विनयपत्रिका’ के अन्तिम छन्द को दृश्य रूप मे देखा है। मेरी काव्य स्फूति अन्तिम बार उसे अंकित करने को ललक रही है। एक बार मुझे सव जने सहारा देकर बैठा तो दो।” झटपट सहारा दिया गया। ..

(३८० – मानस का हंस)

रामू तत्पर बैठ गया । बाग धीरे-धीरे गाने लगे –

“मारुति-मन, रुचि भरत  की lakhi lashan कही है।   

कलिकालहु नाथ, नाम सो प्रतीति-प्रीति- एक किंकर की निवही है ॥1 ॥

सकल सभा सुनि ल उठी, जानी रीति रही है। 

कृपा गरीब निवाज की, गरीब को साहव वाँह गही है ॥२॥ देखत.

गरीब को साहब बाँह गही है ।॥२॥

विहॅसि राम कह्यो, ‘सत्य है, सुधि में हैं लही है।’ 

मुदित माथ नावत, बनी तुलसी अनाथ की, 

परी रघुनाथ-हाथ सही है ॥३॥

अंतिम पंक्ति उन्होने स्वर खोचकर गाई, उसके पूरी होते ही गर्द हो गई। रामू उनके सिर को सहारा देने के लिए लपका। बेनीमाध तलवे सहलाने लगे । कैलास ने नाडी पर हाथ रखा। बोले- “इन्हें लो भगत जी, जल्दी करो। मेरा यार चला।” कहते हुए उनका गला उसी भाव मे फिर कहा-

“राम नाम जस बरनि कै, भयो चहत अब मौन । 

तुलसी के मुख दीजिए, अवही तुलसी सोन ॥”

रामू ने जल्दी-जल्दी धरती पर कोने में पहले ही से रखा हुआ कर लीपा । गोस्वामी जी घरती पर ले लिए गए। तुलसी दल, स गंगा जल उनके घरघराते कण्ठ में डाला गया। सब लोग मौन होकर ओर दृष्टि लगाए बैठे थे। गले की घरघराहट्ट ने भी मानो राम शब्द । रहा था। आखे एकाएक खुल गई, सबके चेहरों को देखा, दीवार पर हनुमान और सियाराम के चित्रो की ओर देख।। देखते ही रहे देखते गए । बाहर ऐसी विजली चमकी कि उसकी कौघ भीतर तक आ पहुंची जोर से बरस रहा था। सबकी आखें भी वैसी ही बरस रही थी ।

श्री रामनवमी, गुरुवार

२३ मार्च, १९७२ ६०

राति ६-३४


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