RIP – REST IN PEACE (आरआईपी – शांति में विश्राम करें।)

RIP – RIP stands for Rest in Peace.(rip full form):

यह विचारधारा पश्चिम के पैगंबरवादी एकेश्वरवाद से ली गई है। इसका अर्थ होता है की आप शांति में विश्राम करें। 

पूर्व व पश्चिम कीविचारधाराओं का आधार (East and West themes)

प्रश्न यह उठता है कि ऐसा क्यों कहा जाता है तो इसका उत्तर यह है की जो प्राचीन परंपराएं हैं संसार भर में उसमें से भारतीय परंपरा अपने जीवन तो स्वरूप में आज भी विद्यमान है इस प्रकार यूरोप में पगेनिज्म जो अब तेजी से बढ़ रहा है इस तरह की जो विचारधाराए है जो यह मानती है कि मनुष्य का जन्म अर्थात मनुष्य के शरीर का जन्म होता है तो उसकी मृत्यु भी होती है क्योंकि जिसका जन्म हुआ है उसकी मृत्यु निश्चित है।

भारतीय धार्मिक संप्रदायों के सभी धर्म ग्रंथो में यह बात मूल रूप से पाई जाती है और भारतीय जनमानस में यह है बहुत ही सामान्य ढंग से प्रदर्शित होती है वह मानते हैं कि व्यक्ति का जन्म होता है अर्थात व्यक्ति आता है और वह यह शरीर धारण करके यहां पर कुछ समय रहता है और फिर उसे छोड़कर अर्थात जब शरीर मृत हो जाता है अर्थात् प्राण, जीवात्मा उससे निकल जाती है तो फिर वह उस शरीर को छोड़कर अन्यत्र किसी और शरीर को धारण कर लेता है। अतः इस मान्यता के अनुसार जो व्यक्ति है वह मृत नहीं होता। अपितु उसका शरीर अमृत होता है और वह अजर अमर आत्मा माना जाता है। जिस प्रकार कोई व्यक्ति फटे हुए कपड़े उतार कर नए वस्त्र धारण कर लेता है उसी प्रकार यह है आत्मा अपने शरीर को जो कि नष्ट हो गया है। उसे छोड़कर फिर अन्यत्र नए शरीर को धारण कर लेता है।  किंतु पैगंबरवादी एकेश्वरवाद वाली पश्चिमी विचारधारा में यह माना जाता है कि यह जीवन व्यक्ति को दोबारा प्राप्त नहीं होता है। अतः जो कुछ करना है इसी जन्म में कर लो। इसी विचारधारा पर भारत में भी फिल्में बनने लगी हैं। वह कहती हैं जिंदगी न मिलेगी दोबारा अर्थात् जो कुछ करना है फटाफट और अभी कर डालो। तब प्रश्न यह उठता है कि फिर वह और किस तरह की विचारधाराओं को मानते हैं। तो वह यह मानते हैं कि पैगंबरवादी एकेश्वरवाद के अंतर्गत इसराइल के यहूदी और इसी संप्रदाय के ईसाईयत सहित सभी संप्रदाय और इस्लाम के सभी संप्रदाय आते हैं। क्योंकि ये सभी, इनका उत्पत्ति स्थान एक ही है, और वह है यहूदी संस्कृति।

आपको स्वर्ग या नरक में भेजने का आधार गॉड कि खुशी है। यदि वे‌ नाखुश हुये तो आपको नरक में जाना होगा। उनकी खुशी के लिये किये गये कार्य ही उचित कार्य हैं। स्वर्ग को देने वाले हैं।

पश्चिम में मुक्ति की अवधारणा का अभाव, स्वर्ग व नरक कि प्राप्ति का आधार ईश्वर के द्वारा दिया गया निर्णय:

तो यह संस्कृति की मूलभूत विचारधारा यह मानती है की आपने जो कुछ भी ऐसे कार्य किए हैं जिससे ईश्वर प्रसन्न होगा तो वह आपको सदा के लिए स्वर्ग भेज देगा और यदि आपने उसके प्रसन्नता के लिए कार्य नहीं किए हैं और ऐसे कार्य किए हैं जो उन्हें अच्छे नहीं लगता तो वह आपको सदा के लिए नर्क में भेज देगा और यह हिसाब कब होगा यह लेखा-जोखा कब देखा जाएगा जबकि प्रलय का दिन आएगा जिस दिन ईश्वर सबका हिसाब करेगा और तब तक आपको अपनी कब्र में सोए रहना है जहां पर आपको दफन किया गया है वहां पर आप तब तक विश्राम करेंगे जब तक ईश्वर के हिसाब का दिन ना आ जाए अर्थात यही रेस्ट इन पीस का सामान्य अर्थ है भिन्न-भिन्न स्रोतों के अनुसार और प्रचलित मान्यताओं के अनुसार जन सामान्य में होने वाली चर्चाओं के अनुसार सामान्यतः इसका यही अर्थ लगाया जाता है पश्चिमी विचारधारा में मुक्ति की कोई कल्पना नहीं है। वहां पर लोक लोकांतरों की कोई बात नहीं है। अतः वह स्वर्ग एवं नरक तक सीमित है और उनमें किसी भी प्रकार की उपासना पद्धतियों  का सामान्यतः अभाव देखा जाता है। भारतीय साधना पद्धति यों कि तुलना में।

RIP meaning in hindi, RIP meaning : 

इस प्रकार इस रिप अर्थात रेस्ट इन पीस का अर्थ हुआ की आप उस प्रलय के या कयामत के दिन तक अपनी कब्रगाह में स्थित होकर विश्राम करें अर्थात वहीं पर रहे इसीलिए आपको वह घर बना कर दिया गया है। इसलिए जब भी आप अपने किसी समूह में रिप या रिप लिखा हुआ देखते हैं तो उसे यह अर्थ लगे कि इसका अर्थ है कि अब आप जन्म में करने वाले अन्य शरीरों को धारण नहीं करेंगे ऐसा कहने वाला आपसे कहना चाहता है।

कयामत की  अवधारणा :

जब किसी की मृत्यु हो जाती है तब यह इसीलिए कहा जाता है कि आप अब अपने नए घर में उसे समय तक विश्राम करें जब तक आपके कर्मों का हिसाब नहीं हो जाता और ईश्वर के यहां से आपको बुलावा नहीं आ जाता और जब तक आपको स्वर्ग अथवा तो नरक की प्राप्ति नहीं हो जाती क्योंकि आपके कर्मों के अनुसार जब आपका हिसाब हो जाएगा तब फिर आप अपने कब्रगाह रूपी निवास को छोड़कर स्वर्ग में अथवा नरक में आपकी ईश्वर की प्रसन्नता के अनुसार चले जाएंगे और सदा वहीं रहेंगे।

कयामत एवं प्रलय कि अवधारणा में अंतर :

कयामत कि पश्चिमी अवधारणा में जिस दिन आपके स्वर्ग या नरक में जाने का निर्णय गॉड के माध्यम से किया जाता है उसे दिन को कयामत कहा जाता है उसे दिन के बाद आप सदा के लिए स्वर्ग में चले जाते हैं या फिर आपको नरक में भेज दिया जाता है जबकि भारतीय परंपरा में स्वर्ग एवं नरक की अवधारणा सदा के लिए नहीं है बल्कि वह आपके कर्मों को भोगने की एक जगह है जिस प्रकार आप मेहनत करके व्यापार करके धन का अर्जन करते हैं तो फिर आप किसी फाइव स्टार होटल या ऐसी किसी अच्छी जगह पर जाकर उसका अपने खुशी के लिए उपयोग कर सकते हैं इस प्रकार की परंपरा भारतीय विचारधारा में स्वर्ग की है जैसे आपके पैसे समाप्त हो जाने पर फिर आपको उसे होटल में रहने नहीं दिया जाता इस प्रकार आपको स्वर्ग से भी धकेल दिया जाता है और यदि आपके पाप कर्म किए हैं तो जैसे गंदा कपड़ा धोबी घाट में धोने के लिए भेजा जाता है और वहां पर उसे तरह-तरह से धोया जाता है पटका जाता है साफ किया जाता है उसी प्रकार व्यक्ति नरक में भेजा जाता है और वहां पर उसे यह सिखाया समझाया जाता है कि आपने जो कर्म किए हैं वह अनुच्छेद कर्म है और उसका परिणाम इस प्रकार के कष्ट होते हैं किंतु उसके कर्म के भोग पूरे हो जाने के बाद वह उसे नर्क से मुक्ति पा सकता है और कयामत के तरह की अवधारणा भारतीय परंपरा में प्रलय की है किंतु प्रलय के समय यह लोग जलमग्न हो जाता है और सृष्टि का जो नैसर्गिक चक्र है वह प्रभावित हो जाता है सारी प्राकृतिक शक्तियों अस्त-व्यस्त हो जाती है और महाप्रलय में तो 12 सूर्य की गर्मी के समान गर्मी होती है और फिर अनेक दीर्घकाल तक वर्षा होती रहती है जिससे रहने के लिए कोई भी स्थान नहीं बचता और इस प्रकार जीवन समाप्त हो जाता है और उसे ही महा प्रलय कहा जाता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि भारतीय प्रलय की अवधारणा और पश्चिम की कयामत की अवधारणा भिन्न-भिन्न है।

(From Wikipedia )

Rest in peace (R.I.P.),[1] a phrase from the Latin requiescat in pace (Ecclesiastical Latin: [rekwiˈeskat in ˈpatʃe]), is sometimes used in traditional Christian services and prayers, such as in the Catholic,[2] Lutheran,[3] Anglican, and Methodist[4] denominations, to wish the soul of a decedent eternal rest and peace.

It became ubiquitous on headstones in the 18th century, and is widely used today when mentioning someone’s death.

Description Edit

The phrase dormit in pace (English: “[he] sleeps in peace”) was found in the catacombs of the early Christians and indicated that “they died in the peace of the Church, that is, united in Christ.”[5][6][7] The abbreviation R.I.P., meaning Requiescat in pace, “Rest in peace”, continues to be engraved on the gravestones of Christians,[8] especially in the Catholic, Lutheran, and Anglican denominations.[9]

Origin Of RIP( RIP की उत्पत्ति) :

रेस्ट इन पीस (आर.आई.पी.), लैटिन रिक्विस्कैट इन पेस (एक्लेसिस्टिकल लैटिन: [rekwiˈeskat in ˈpatʃe]) का एक वाक्यांश है, कभी-कभी पारंपरिक ईसाई सेवाओं और प्रार्थनाओं में उपयोग किया जाता है, जैसे कि कैथोलिक, [2] लूथरन,  [3] एंग्लिकन, और मेथोडिस्ट [4] संप्रदाय, मृतक की आत्मा को शाश्वत आराम और शांति की कामना करते हैं।

यह 18वीं शताब्दी में हेडस्टोन पर सर्वव्यापी हो गया, और आज किसी की मृत्यु का उल्लेख करते समय इसका व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है।

वाक्यांश डॉर्मिट इन पेस (अंग्रेजी: “[वह] शांति से सोता है”) प्रारंभिक ईसाइयों के कैटाकॉम्ब में पाया गया था और संकेत दिया गया था कि “वे चर्च की शांति में विलीन हो गए हैं, यानी, मसीह में एकाकार हो गए हैं।”  [6] [7] संक्षिप्त नाम आर.आई.पी., जिसका अर्थ है रिक्विस्कैट इन पेस, “रेस्ट इन पीस”, ईसाइयों की कब्रों पर उत्कीर्ण किया जाना जारी है, [8] विशेष रूप से कैथोलिक, लूथरन और एंग्लिकन संप्रदायों में। [9]

In the Tridentine Requiem Mass of the Catholic Church the phrase appears several times.[10]

कैथोलिक चर्च के ट्राइडेंटाइन रिक्विम मास में यह वाक्यांश कई बार आता है।

Other variations include “Requiescat in pace et in amore” for “[May he/she] rest in peace and love”, and “In pace requiescat et in amore”. The word order is variable because Latin syntactical relationships are indicated by the inflexional endings, not by word order. If “Rest in peace” is used in an imperative mood, it would be “Requiesce in pace” (acronym R.I.P.) in the second person singular, or “Requiescite in pace” in the second person plural.[11] In the common phrase “Requiescat in pace” the “-at” ending is appropriate because the verb is a third-person singular present active subjunctive used in a hortative sense: “[May he/she] rest in peace.”

RIP का इतिहास (History of RIP)

A 7th-century gravestone from Narbonne beginning with requiescunt in pace. It has been interpreted variously as an “inscription relating to the Jews of France”,[12] or as a Jewish inscription.[13]

नार्बोने से 7वीं सदी का एक समाधि-पत्थर, जो गति में अपेक्षित स्कंट से शुरू होता है।  इसकी व्याख्या “फ्रांस के यहूदियों से संबंधित शिलालेख” के रूप में,  या यहूदी शिलालेख के रूप में विभिन्न प्रकार से की गई है। 

The phrase was first found on tombstones some time before the fifth century.[14][15][16] It became ubiquitous on the tombs of Christians in the 18th century,[9] and for High Church Anglicans, Methodists,[17] as well as Roman Catholics in particular, it was a prayerful request that their soul should find peace in the afterlife.[8] When the phrase became conventional, the absence of a reference to the soul led people to suppose that it was the physical body that was enjoined to lie peacefully in the grave.[18] This is associated with the Christian doctrine of the particular judgment; that is, that the soul is parted from the body upon death, but that the soul and body will be reunited on Judgment Day.[19]

विभिन्न पाश्चात्य संप्रदायों में इसका उल्लेख (Use in various religions )

Irish Protestantism (आयरिश प्रोटेस्टेंट): मतभेद

In 2017, members of the Orange Order in Northern Ireland called on Protestants to stop using the phrase “RIP” or “Rest in Peace”.[20] Wallace Thompson, the secretary of the Evangelical Protestant Society, said on a BBC Radio Ulster programme that he would encourage Protestants to refrain from using the term “RIP”.[21] Thompson said that he regards “RIP” as a prayer for the dead, which he believes contradicts biblical doctrine.[22] In the same radio programme, Presbyterian Ken Newell disagreed that people are praying for the dead when they use the phrase.

2017 में, उत्तरी आयरलैंड में ऑरेंज ऑर्डर के सदस्यों ने प्रोटेस्टेंटों से “आरआईपी” या “रेस्ट इन पीस” वाक्यांश का उपयोग बंद करने का आह्वान किया।  इवेंजेलिकल प्रोटेस्टेंट सोसाइटी के सचिव वालेस थॉम्पसन ने बीबीसी रेडियो उल्स्टर कार्यक्रम में कहा कि वह प्रोटेस्टेंटों को “आरआईपी” शब्द का उपयोग करने से परहेज करने के लिए प्रोत्साहित करेंगे।[21]  थॉम्पसन ने कहा कि वह “आरआईपी” को मृतकों के लिए प्रार्थना मानते हैं, जिसके बारे में उनका मानना है कि यह बाइबिल के सिद्धांत के विपरीत है।[22]  उसी रेडियो कार्यक्रम में, प्रेस्बिटेरियन केन नेवेल इस बात से असहमत थे कि जब लोग इस वाक्यांश का उपयोग करते हैं तो वे मृतकों के लिए प्रार्थना कर रहे होते हैं।

Judaism

The expression “rest in peace” is “not commonly used in Jewish contexts”, though some commentators say that it is “consistent with Jewish practice”.[23] The traditional Hebrew expression עליו השלום, literally ‘may peace be upon him’, is sometimes rendered in English as ‘may he rest in peace’.[24][25] On the other hand, some Jews object to using the phrase for Jews, considering it to reflect a Christian perspective.[26][27]

यहूदी विचारधारा :

अभिव्यक्ति “शांति से आराम करो” का प्रयोग “यहूदी संदर्भों में आमतौर पर नहीं किया जाता”, हालांकि कुछ टिप्पणीकारों का कहना है कि यह “यहूदी प्रथा के अनुरूप” है।[23]  पारंपरिक हिब्रू अभिव्यक्ति עליו השלום, जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘उस पर शांति हो’, कभी-कभी अंग्रेजी में ‘उसे शांति मिले’ के रूप में अनुवादित किया जाता है। [24] [25]  दूसरी ओर, कुछ यहूदी यहूदियों के लिए इस वाक्यांश का उपयोग करने पर आपत्ति करते हैं, यह मानते हुए कि यह ईसाई दृष्टिकोण को दर्शाता है। [26] [27]

    This Lutheran Christian grave reads “Rest in Peace” in the local Cieszyn Silesian Polish dialect.

कब्रों पर अंकन की परंपरा:

इस लूथरन ईसाई कब्र पर स्थानीय सिज़िन सिलेसियन पोलिश बोली में “रेस्ट इन पीस” लिखा हुआ है।

    The epitaph R.I.P. on a headstone in a churchyard of Donostia-San Sebastián

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