प्रत्यक्ष ज्ञान
प्रत्यक्ष ज्ञान के भेदों का निरूपण करते हुए आचार्य कहते है कि प्रत्यक्ष दो प्रकार का होता है (1) निर्विकल्पक प्रत्यक्ष, (2) सविकल्पक प्रत्यक्ष ।
निर्विकल्पक प्रत्यक्ष का स्वरूप है निष्प्रकारकं ज्ञानं निर्विकल्पकम्’ अर्थात् निष्प्रकारक ज्ञान को निर्विकल्पक प्रत्यक्ष कहते है। न्याय-वैशेषिक मत में प्रकार का अर्थ विशेषण होता है, अतः प्रकारता का अर्थ ‘विशेषणता’ है। जो ज्ञान विशेषणता से रहित होता है वह निर्विकल्पक कहलाता है। निर्विकल्पक शब्द की व्युत्पत्ति है ‘निर्गत. विकल्पो यस्मात् स निर्विकल्पकः’ अर्थात् जिससे समस्त विकल्प निकल गए हों वह निर्विकल्पक कहलाता है। निर्विकल्पक पद में प्रयुक्त विकल्प का अर्थ है – ‘नामजात्याद्ययोजना’ । किसी ज्ञान में प्रतीत होने वाले नाम, जाति, गुण आदि को ही विकल्प कहा जाता है। जिस ज्ञान में नाम, जाति इत्यादि की प्रतीति नहीं हुआ करती है वही निर्विकल्पक ज्ञान कहलाता है। आशय यह है कि जिस ज्ञान में वस्तु के केवल स्वरूप मात्र की अनुभूति होती है, उसकी किसी विशेषणता का अनुभव नहीं होता है उसे ही निर्विकल्पक ज्ञान कहते हैं। उदाहरणरूप में अबोध बालक तथा किसी मूक व्यक्ति का ज्ञान निर्विकल्पक ज्ञान के तुल्य होता है बालमूकादिविज्ञानसदृश निर्विकल्पकम्’ । तर्कसंग्रहकार ने निर्विकल्पक ज्ञान का स्वरूप ‘इदं किंचित्’ (यह कुछ है) रूप से निरुपित किया है। किसी पदार्थ का प्रथम दर्शन होने पर जब हमें यह कुछ है’ इस प्रकार से वस्तु के केवल अस्तित्व मात्र का अनुभव होता है तो वही ज्ञान निर्विकल्पक ज्ञान माना जाता है।
सविकल्पक प्रत्यक्ष का स्वरूप है सप्रकारकं ज्ञानं सविकल्पकम् अर्थात् सप्रकारक ज्ञान को सविकल्पक प्रत्यक्ष कहते है। सविकल्पक शब्द की व्युत्पत्ति है – विकल्पेन सहितः सविकल्प अर्थात् जिसमे विकल्प विद्यमान हो वह सविकल्पक कहलाता है। सविकल्पक का अर्थ है ‘नामजात्याद्ययोजनासहित सविकल्पकम्। जो ज्ञान नाम, जाति आदि प्रकार से युक्त होता है उसे सविकल्पक ज्ञान कहते हैं। आशय यह है कि जिस ज्ञान में विशेषण, विशेष्य तथा उनके मध्य के सम्बन्ध की प्रतीति होती है उसे ही सविकल्पक ज्ञान कहा जाता है। सविकल्पक ज्ञान का उदाहरण है यह डित्थ है’ यहाँ डित्थ एक व्यक्तिविशेष का नाम है जो कि इस ज्ञान में भासित हो रहा है, इसलिए यह सविकल्पक ज्ञान है। इसी प्रकार ‘यह श्याग है इरा ज्ञान में श्याग एक
वर्ण है जो किसी पदार्थ का विशेषण है, इसलिए यह भी सविकल्पक ज्ञान है। मानव जीवन का समस्त व्यवहार सविकल्पक ज्ञान के आधार पर ही होता है।
विशेष : न्याय वैशेषिक मत में प्रत्यक्ष की प्रक्रिया इस प्रकार है आत्मा मनसा संयुज्यते, मन इन्द्रियेण, इन्द्रियमर्थेनिति अर्थात् सर्वप्रथम आत्मा मन से संयुक्त होती है, इसके बाद मन विषयानुरूप इन्द्रिय से संयुक्त होता है, पुनश्च इन्द्रिय विषय के साथ संयुक्त होती है जिसके पश्चात् ज्ञान की उत्पत्ति हो जाती है। निर्विकल्पक ज्ञान को वैशिष्ट्यानवगाहि ज्ञान तथा सविकल्पक ज्ञान को वैशिष्ट्यावगाहि ज्ञान’ भी कहा जाता है। यद्यपि निर्विकल्पक ज्ञान से किसी प्रकार की प्रवृत्ति नहीं होती है तथापि उसे पूर्व में स्वीकार किए बिना सविकल्पक ज्ञान की सिद्धि नहीं हो सकती है। इस दर्शन में निर्विकल्पक ज्ञान की सिद्धि अनुमान प्रमाण से की जाती है।
सयुक्तसमवायः, प्रत्यक्षज्ञानहेतुरिन्द्रियार्थसन्निकर्षः षड़िवध सयोग, संयुक्तसमवेतसमवाय, समवाय, समवेतसमवाय, विशेषणविशेष्यभावश्चेति । चक्षुषा घटप्रत्यक्षजनने संयोगः सन्निकर्षः । घटरूपप्रत्यक्षजनने संयुक्तरामवायय सन्निकर्षः। चक्षुः संयुक्ते घटे रूपरय समवायात्। रूपत्वसामान्यप्रत्यक्षे, संयुक्तरागवेतरामवायः सन्निकर्षः । चक्षु संयुक्त घटे रूपं समवेतम्, तन्त्र रूपत्वस्य समवायात्। श्रोत्रेण शब्दसाक्षात्कारे समवायः सन्निकर्ष । कर्णविवरवर्त्याकाशस्य श्रोत्रत्वाच्छब्दस्याकाशगुणत्वाद् गुणगुणिनोश्च सगवायात्। शब्दत्वसाक्षात्कारे रागवेतरागवाय रान्निकर्षः। श्रोत्ररागवेते शब्दे शब्दत्वरय सगवायात्। अभावप्रत्यक्षे विशेषविशेष्यभावः रान्निकर्षः । घटाभाववद् भूतलम् इत्यत्र चक्षुः सयुक्ते भूतले घटाभावस्य विशेषणत्वात्। एव सन्निकर्षषट्कजन्य ज्ञान प्रत्यक्षम्, तत्करणम् इन्द्रियम्। तस्मादिन्द्रियं प्रत्यक्षप्रमाणमिति सिद्धम् ।
व्याख्या: तर्कसंग्रहकार आचार्य अन्नम्भट्ट के अनुसार इन्द्रिय और अर्थ (विषय) का सन्निकर्ष प्रत्यक्ष ज्ञान का हेतु है । ज्ञानेन्द्रियों की संख्या 5 है – वधु, श्रोत्र, त्वक्, रसना एवं घ्राण। प्रत्येक ज्ञानेन्द्रिय नियत विषय का ही ग्रहण करती है जैसे चसु रूप का, श्रोत्र शब्द का, त्पक स्पर्श का, रसना रस का तथा घ्राण गन्ध का। जब कोई इन्द्रिय अपने नियत विषय के साथ संयुक्त होती है तो उस सन्निकर्ष से उत्पन्न ज्ञान को ही प्रत्यक्ष कहते हैं। इन्द्रिय एवं अर्थ के मध्य होने वाला यह सन्निकर्ष 6 प्रकार का होता है (1) संयोग, (2) संयुक्तसमवाय, (3) संयुक्तसमवेतसमवाय, (4) समवाय, (5) समवेत समवाय, (6) विशेषणविशेष्यभाव
चक्षु इन्द्रिय से घट आदि द्रव्य के प्रत्यक्षज्ञान में संयोग नामक सन्निकर्ष होता है। सभी इन्द्रिय द्रव्य ही है। यदि इन्द्रियो के विषय भी द्रव्य ही है तो उन इन्द्रियो और विषयो का सन्निकर्ष सयोग सन्निकर्ष ही होता है क्योकि द्रव्ययो सयोग अर्थात् द्रव्यो का संयोग ही होता है ऐसा नियम है। चक्षु इन्द्रिय के द्वारा घट नामक द्रव्य का प्रत्यक्ष होता है तो वहाँ संयोग सन्निकर्ष ही होता है। वक्षुरिन्द्रिय तैजस द्रव्य है और घट पार्थिव द्रव्य है। उन दोनों के संयोग सन्निकर्ष से चाक्षुष प्रत्यक्ष हुआ। ज्ञान की एक प्रक्रिया होती है, जिस प्रक्रिया के निर्विघ्न समाप्ति होने पर ही ज्ञान होता है। किसी भी ज्ञान होने के लिए पहले आत्मा से संयुक्त मन इन्द्रिय से जुड़ता है और मन से संयुक्त इन्द्रिय अर्थ (विषय) से जुडता है, उसके उपरान्त ज्ञान होता है।
चक्षु इन्द्रिय से घट के रूप का प्रत्यक्ष होने मे सयुक्त-समवाय-सन्निकर्ष होता है। पृथिवी आदि द्रव्यों में समवाय से विद्यमान गुण, क्रिया, जाति का इन्द्रिय के साथ जो सन्निकर्ष होता है, वह संयुक्त समवाय होता है क्योंकि चक्षु संयुक्त घट में समवाय सम्बन्ध से स्थित गुणभूत रूप के प्रत्यक्ष में संयुक्तसमवाय नामक सन्निकर्ष ही रहता है। चक्षु से संयुक्त घट गुणी द्रव्य गुणी द्रव्य है और घट में विद्यमान रूप गुण ही है। अतः वह समवाय सम्बन्ध से विद्यमान है, क्योंकि गुण और गुणी का समवायसम्बन्ध होता है। इस प्रकार गुणों का द्रव्यसमवेत का प्रत्येक प्रत्यक्ष सयुक्तसमवाय सन्निकर्ष होता है।
चक्षु से रूपत्व जाति के प्रत्यक्ष में संयुक्त समवेत समवाय सन्निकर्ष माना जाता है। चक्षु के द्वारा संयुक्त घट है, घट में रूप समवाय सम्बन्ध से विद्यमान है और उसी रूप में रूपत्व जाति भी समवाय सम्बन्ध से ही है। इस प्रकार द्रव्यसयुक्तसमवेत समवेत के प्रत्यक्ष में संयुक्तसमवेतसमवाय सन्निकर्ष होता है।
श्रोत्रेन्द्रिय से शब्द नामक गुण के प्रत्यक्ष ज्ञान में समवाय नामक सन्निकर्ष होता है। विषय उस इन्द्रिय का गुण है तो गुणगुणिनो. समवाय. इस नियम के अनुसार इन्द्रिय और विषय का समवाय सन्निकर्ष होता है। श्रवणेन्द्रिय से शब्द का प्रत्यक्ष होता है। श्रवणेन्द्रिय कर्णविवरवर्ती आकाशरूप है। इस प्रकार श्रोत्रेन्द्रिय से शब्द का समवाय रान्निकर्ष होता है।
श्रोत्रेन्द्रिय से शब्दत्व जाति के प्रत्यक्ष मे समवेतसमवाय सन्निकर्ष होता है। विषय उसी इन्द्रिय का गुणरूप हो तो उस गुण में विद्यमान जाति का उसी इन्द्रिय के द्वारा ग्रहण करने में समवेतसमवाय सन्निकर्ष होता है। श्रोत्र में समवाय सम्बन्ध से शब्द से शब्द है, उसी शब्द में समवाय सम्बन्ध से शब्दत्य जाति है। इस प्रकार शब्दत्व जाति के प्रत्यक्ष ज्ञान में समवेतसमवाय सन्निकर्ष हुआ।
अभाव के प्रत्यक्षज्ञान में विशेषण विशेष्यभाव सन्निकर्ष माना जाता है। जब घटाभाववद् भूतलम्’ इस तरह प्रतीति होती है, तब घटाभाव विशेषण है, भूतल विशेष्य। जब गूतले घटो नारित इस तरह की प्रतीति होती है, तब भूतल विशेषण होता है और घटाभाव विशेष्य। इस प्रकार अभाव के प्रत्यक्षज्ञान में विशेषण-विशेष्य भाव सन्निकर्ष होता है।
सयोग आदि छ सन्निकर्षों से उत्पन्नज्ञान को प्रत्यक्ष कहते हैं। इस ज्ञान की करण इन्द्रियों है। अत एव इन्द्रिय ही प्रत्यक्ष प्रमाण है, यह सिद्ध होता है।
विशेष छः सन्निकर्षों से होने वाला ज्ञान ही प्रत्यक्षज्ञान है। एतादृश प्रत्यक्ष ज्ञान के प्रति व्यापार वाला असाधारण कारण छ प्रकार की इन्द्रिय ही प्रत्यक्ष प्रमाण है। इन्हीं से हमें प्रत्यक्ष ज्ञान होता है।
- MPPSC सहायक प्राध्यापक परीक्षा-2022 II प्रश्नपत्र व्याख्या सहित हल
- MPPSC- State Engineering Service 2022 – MPPSC
- MPPSC-UNANI MEDICAL-2021- GS-PAPER
- MPPSC- State Engineering Service 2020- GS-PAPER
- MPPSC- State Engineering Service 2021- GS-PAPER
- About Culture-संस्कृति के विषय में
- About Institution-संस्था के विषय में
- ACT.-अधिनियम
- Awareness About Geography-भूगोल के विषय में जागरूकता
- Awareness About Indian History-भारतीय इतिहास के विषय में जागरुकता
- Awareness About Maths-गणित के बारे में जागरूकता
- Awareness about Medicines
- Awareness About Politics-राजनीति के बारे में जागरूकता
- Awareness-जागरूकता
- Basic Information
- Bharat Ratna-भारत रत्न
- Biography
- Chanakya Quotes
- CLASS 9 NCERT
- CMs OF MP-मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री
- CSIR UGC NET
- e-Test-ई-टेस्ट
- Education
- Education-शिक्षा
- FULL TEST SERIES
- GK
- Granthawali-ग्रन्थावली
- Hindi Biography – जीवन परिचय
- Hindi Literature
- Hindi Literature-हिंदी साहित्य
- HINDI NATAK-हिंदी नाटक
- Hindi Upanyas-हिंदी उपान्यास
- ICT-Information And Communication TEchnology
- Jokes-चुटकुले
- Kabir ji Ki Ramaini-कबीर जी की रमैणी
- KAHANIYAN
- Katha-Satsang-कथा-सत्संग
- Kavyashastra-काव्यशास्त्र
- Meaning In Hindi-मीनिंग इन हिंदी
- Meaning-अर्थ
- MOCK TEST
- Motivational Quotes in Hindi-प्रेरक उद्धरण हिंदी में
- MPESB(VYAPAM)-Solved Papers
- MPPSC
- MPPSC AP HINDI
- MPPSC GENERAL STUDIES
- MPPSC GS PAPER
- MPPSC-AP-HINDI-EXAM-2022
- MPPSC-Exams
- MPPSC-मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग
- Nibandha
- Padma Awardees-पद्म पुरस्कार विजेता
- PDFHUB
- PILLAR CONTENT
- QUOTES
- RSSU CHHINDWARA-राजा शंकर शाह वि.वि. छिंदवाड़ा
- RSSU QUESTION PAPERS
- SANSKRIT
- SANSKRIT VYAKARAN
- SANSKRIT-HINDI
- Sarkari Job Advertisement-सरकारी नौकरी विज्ञापन
- Sarkari Yojna-सरकारी योजना
- Sarkari-सरकारी
- Sarthak News-सार्थक न्यूज़
- SCHOOL
- Theoretical Awareness-सैद्धांतिक जागरूकता
- UGC
- UGC NET
- UGC NET COMPUTER SCIENCE
- UGC NET HINDI MOCK TEST
- UGC NET NEWS
- UGC_NET_HINDI
- UGCNET HINDI
- UGCNET HINDI PRE. YEAR QUE. PAPERS
- UGCNET HINDI Solved Previous Year Questions
- UGCNET-FIRST-PAPER
- UGCNET-FIRSTPAPER-PRE.YEAR.Q&A
- UPSC-संघ लोक सेवा आयोग
- Various Exams
- Yoga
- इकाई – 02 शोध अभिवृत्ति (Research Aptitude)
- इकाई – 03 बोध (Comprehension)
- इकाई – 04 संप्रेषण (Communication)
- इकाई – 07 आंकड़ों की व्याख्या (Data Interpretation)
- इकाई – 10 उच्च शिक्षा प्रणाली (Higher Education System)
- इकाई -01 शिक्षण अभिवृत्ति (Teaching Aptitude
- इकाई -06 युक्तियुक्त तर्क (Logical Reasoning)
- इकाई -09 लोग विकास और पर्यावरण (People, Development and Environment)
- इकाई 08 सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT-Information and Communication Technology)
- इकाई-05 गणितीय तर्क और अभिवृत्ति (Mathematical Reasoning And Aptitude)
- कबीर ग्रंथावली (संपादक- हजारी प्रसाद द्विवेदी)
- कविताएँ-Poetries
- कहानियाँ – इकाई -07
- कहानियाँ-KAHANIYAN
- कहानियाँ-Stories
- खिलाड़ी-Players
- प्राचीन ग्रन्थ-Ancient Books
- मुंशी प्रेमचंद
- व्यक्तियों के विषय में-About Persons
- सार्थक न्यूज़
- साहित्यकार
- हिंदी व्याकरण-Hindi Grammar