Padma Shri Nadi Vaidya Hemraj Manjhi

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पद्मश्री नाड़ी वैद्य श्री हेमराज माँझी 

नाड़ी वैद्य : नाड़ी वैद्य होने से क्या तात्पर्य है? नाड़ी  वैद्य वे वैद्य होते हैं जो शरीर में उपस्थित नाड़ियों  की स्थिति को देखकर रोग एवं स्वास्थ्य का पता लगा लेते हैं। योग एवं आयुर्वेद के अनुसार भारतीय शास्त्रों में 72000 नाड़ियों  की संख्या कहीं गई है। अति सूक्ष्म नाड़ियों  की संख्या तो इससे भी अधिक कही गई है। जो प्राणों का वहन करती है रक्त का वहन करती है संवेदनाओं का बहन करती है। इस प्रकार नाड़ियां अनेकों प्रकार की होती हैं और इसलिए यह एक सूक्ष्म और संवेदनशील विज्ञान है। जो अत्यंत कुशाग्र बुद्धि और संवेदनशील लोगों के द्वारा ही अच्छी तरह से जाना एवं समझा जा सकता है। यह आयुर्वेद की प्राचीन विद्या है जो अब लुप्तप्राय हो रही है।

वर्तमान में किसी भी छोटी बड़ी बीमारी के लिए लोग जब डॉक्टर के पास जाते हैं तो वह उन्हें अनेकों टेस्ट के लिए बोलते हैं अर्थात् उन्हें यह पता नहीं चलता कि वह किस अवस्था में और क्या कर रहे हैं। इस प्रकार वे लोग अब मशीनों का सहारा लेते हैं और मशीन जैसा कहती हैं उसी प्रकार वे लोग औषधियां देते हैं। इलाज करते हैं। इससे खर्च भी अधिक होता है और मशीनों पर आधारित होना पड़ता है। जिससे कई बार उतनी सूक्ष्म और उस प्रकार की जानकारी नहीं मिल पाती है जो जानकारी चिकित्सक को उपलब्ध होनी चाहिए। जो कि मशीन में सोचने समझने की शक्ति नहीं होती, संवेदनशीलता नहीं होती, इसलिए वह एक निश्चित पैटर्न पर ही अपना परिणाम दे सकती है किंतु नाड़ी  वैद्य इन सबसे परे वास्तव में जो स्थिति है उसका पता लगाता है।

  श्री मांझी नाड़ी  वैद्य है और वह अनेक वर्षों से यह कार्य कर रहे हैं। वे न केवल नाड़ी  वैद्य हैं बल्कि वे एक नॉमिनल चार्ज पर ही सभी का इलाज करते हैं। क्योंकि आयुर्वेद का सिद्धांत है कि किसी भी व्यक्ति को ऐसे लोग जिनके पास पैसे नहीं है निर्धन है परेशान हैं है उनसे बिना किसी मूल्य के भी उनकी चिकित्सा करनी चाहिए यह उचित है किंतु जिनके पास पर्याप्त धन संपदा है या कोई राजा है उनसे पर्याप्त धन लेना चाहिए क्योंकि वह धन दे सकते हैं इस प्रकार आयुर्वेद के अनुसार जो लोग बहुत ही गरीब हैं निर्धन हैं लाचार हैं उनकी सेवा का प्रावधान किया गया है। और इस गुणधर्म को श्री माँझी  अच्छी तरह से निर्वाह कर रहे हैं। जिससे समाज में उनकी प्रतिष्ठा है और उनकी विद्या का भी प्रचार प्रसार हो रहा है और उनका यश इतना फैल गया कि सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया है। यह सरकार की एक प्रशंसनीय नीति भी कही जाएगी। वे  नाड़ी वैद्य हैं और जड़ी बूटियों से पांच दशकों से इलाज कर रहे हैं  उन्होंने हजारों लोगों का इलाज किया है। उनके पास प्रतिदिन 100 से अधिक लोग अपनी चिकित्सा हेतु आते हैं।

छत्तीसगढ़ की वर्तमान सरकार के मुख्यमंत्री ने भी उनका बहुत सम्मान किया है और उन्होंने उन्हें प्रोत्साहित करते हुए यह कहा कि आपके साथ ही यह विद्या समाप्त नहीं हो जानी चाहिए। यह विद्या अगली पीढ़ियों को भी मिले इसके लिए कृपया आप हमारी वर्तमान पीढ़ी को भी इस विद्या को प्रदान करें। ताकि यह सरल एवं अत्यंत प्रभावशील विद्या हमारे भविष्य में भी लोगों को काम आए, क्योंकि वह यह विद्या अत्यंत महत्वपूर्ण है।

 सरकार को चाहिए कि वह आयुर्वेद की इस प्रकार की विधाओं के अध्ययन के लिए विशेष प्रकार की संस्थाओं की स्थापना करें और वहां पर इस प्रकार के लोगों को प्रवेश दे जिनमें इस प्रकार की विद्या सीखने की मूलभूत और नैसर्गिक क्षमता है।

वे आदिवासी बहुल क्षेत्र बस्तर में वहां की जड़ी बूटियां लाकर और लोगों का इलाज करते हैं उनके पास लोग भारत के आंध्र प्रदेश आदि विभिन्न राज्यों से आते हैं और अनेकों लोग अमेरिका आदि देशों से भी उनके पास चिकित्सा करवाने के लिए आते रहते हैं। 

यह भारतीय आयुर्वेदिक विद्या के सम्मान और गौरव का विषय है। वे छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले में रहते हैं और उन्होंने अपना पूरा जीवन इन्हीं जड़ी बूटियां को समझने, उनके योग बनाने और उनसे औषधि बनाकर लोगों की बीमारी ठीक करने में अपना सारा समय लगा दिया है। वे इसे अपना सार्थक समय कहते हैं क्योंकि वे लोगों के भले में उपयोगी सिद्ध हुए। वे आम लोगों की दिन-रात अपनी चिकित्सा के द्वारा सेवा करते रहे हैं और वे कहते हैं कि जब तक मेरी सांस चलेगी तब तक मैं चाहता हूं कि मैं इसी प्रकार लोगों की सेवा करता रहूंँ। यह उनका अद्भुत दृष्टिकोण है जो बड़ा ही कल्याणकारी है।

और आश्चर्यजनक बात यह है कि ऐसे स्थान पर जहां आधुनिक चिकित्सा प्रणाली के लिए आवश्यक सुविधाएंँ उपलब्ध नहीं होती वहां पर इस विद्या से वे बड़ी ही सरलता सहजता और दक्षता पूर्वक अपनी चिकित्सा करते हैं और लोगों के जीवन और स्वास्थ्य की रक्षा करते हैं। और क्योंकि इसमें अत्यधिक धन की आवश्यकता भी नहीं होती इसलिए यह  निर्धन और गरीब लोगों को वरदान के रूप में प्राप्त हो जाती है। इस प्रकार की चिकित्सा पद्धति में जिसे हम वात रोग कहते हैं जो संधियों में तरह-तरह के दर्द को उत्पन्न करता है। जकड़न अकड़न आदि उत्पन्न करता है। इस प्रकार के वात जनित रोगों में यह आयुर्वेदिक चिकित्सा ही एकमात्र चिकित्सा पद्धति है जो अत्यधिक प्रभावी देखी गई है। जबकि आधुनिक चिकित्सा पद्धति में लोग वात रोगों को समझ तक नहीं पाते हैं और steroids जैसी औषधियों को देने से वे मरीज के शरीर का सत्यानाश कर देती हैं उसमें इतनी गर्मी आ जाती है कि उनके शरीर पर फोले आ जाते हैं और फिर वह जीवन भर के लिए अपने शरीर को क्षत विक्षत कर लेते हैं।

पुरस्कारों कि घोषणा पर श्री मांझी ने भी छत्तीसगढ़ की राज्य सरकार एवं केंद्र सरकार जिन्होंने उन्हें पद्मश्री का पुरस्कार दिया है उनके लिए उनकी उन्होंने प्रशंसा की है और कहा है कि यह  अत्यंत हर्ष की बात है कि ऐसे खोए हुए या दुर्गम स्थानों पर भी ऐसी सरकारों की दृष्टि रहती है और वह ऐसे लोगों को पद्मश्री जैसे सम्मानों के लिए चुनते हैं यह सभी के लिए बहुत अच्छा है।

(मनोज कुमार धुर्वे)