(MPPSC सहायक प्राध्यापक(Assistant Professor) परीक्षा, प्रथम प्रश्नपत्र, परीक्षा तिथि 09/06/2024) Que-35-36-37

35. Where was Rani Awanti Bai of the 1857 related to?

(A) Rajgarh

(B) Sohagpur

(C) Ramgarh

(D) Shahgarh

(MPPSC सहायक प्राध्यापक(Assistant Professor) परीक्षा, प्रथम प्रश्नपत्र, परीक्षा तिथि 09/06/2024)

35. 1857 ई. की “रानी अवन्ती बाई” का संबंध किस स्थान से था ? 

(A) राजगढ 

(B) सोहागपुर 

(C) रामगढ 

(D) शाहगढ 

Ans – (C) रामगढ 

यह मध्य प्रदेश में रामगढ़ राज परिवार की महिला नायिका थीं। विद्रोह करने के बाद अंग्रेजी सरकार ने इनके परिवार की जमींदारी को जप्त करके अन्य लोगों को जमींदार बना दिया था। 1857 के भारतीय विद्रोह के दौरान ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की एक कट्टर विरोधी के रूप में जानी जाती हैं ।

36. Which book was written Keshavdas to teach Maharaja Indrajit Singh’s Pativrata Ganika Raipraveen?

(A) Nakhshikh

(B) Ratan Bavani

(C) Rasik Priya

(D) Kavi Priya

(MPPSC सहायक प्राध्यापक(Assistant Professor) परीक्षा, प्रथम प्रश्नपत्र, परीक्षा तिथि 09/06/2024)

36. केशवदास ने महाराजा इन्द्रजीत सिंह की पतिव्रता गणिका रायप्रवीण को शिक्षा देने के लिए किस ग्रंथ की रचना की थी ? 

(A) नखशिख 

(B) रतनबावनी 

(C) रसिकप्रिया 

(D) कविप्रिया

Ans – (D) कविप्रिया

ये इंद्रजीत सिंह के दरबारी कवि थे,’कविप्रिया’ ग्रन्थ की रचना इंद्रजीत सिंह की प्रेमिका गणिका प्रवीण राय को शिक्षा देने के लिए की गयी थी।

केशवदास (1555-1617)

केशवदास का जन्म 1555 में और मृत्यु 1617 में हुई। इनके पूर्वज संस्कृत के विद्वान थे। ये ओरछा नरेश महाराजा रामसिंह के भाई इंद्रजीत सिंह के सभा-कवि थे। यहाँ इनका बहुत सम्मान था। केशवदास द्वारा रचित सात ग्रंथ मिलते हैं- कविप्रिया, रसिकप्रिया, रामचंद्रिका, वीरसिंह चरित, विज्ञान गीता, रतन बावनी और जहाँगीर-जस चंद्रिका। कविप्रिया और रसिकप्रिया काव्यशास्त्रीय पुस्तकें हैं। कहा जाता है कि कविप्रिया की रचना महाराजा इंद्रसिंह की पतिव्रता गणिका रायप्रवीण को शिक्षा देने के लिए हुई थी।

केशवदास का उल्लेख राम-भक्ति शाखा के प्रसंग में हो चुका है। उन्होंने ‘रामकथा’ का वर्णन रामचंद्रिका में किया है। किंतु छंदों की विविधता, अलंकारों की बहुलता एवं चमत्कार-प्रियता के कारण उसे भक्ति साहित्य की कोटि में रखना उचित नहीं जान पड़ता। केशव का महत्त्व इस बात में है कि उन्होंने पहली बार संस्कृत साहित्यशास्त्र में निरूपित काव्यांगों पर हिंदी में विचार किया। इसके पूर्व कृपाराम, मोहनलाल मिश्र, करनेस आदि ने रस, श्रृंगार और अलंकार पर अलग-अलग पुस्तकें लिखी थीं, पर एक साथ सभी काव्यांगों का परिचय नहीं दिया था। केशव ने यही किया और इसीलिए वे हिंदी के प्रथम आचार्य माने जाते हैं। वे काव्य में अलंकार को अधिक महत्त्व देते थे। संभवतः इसीलिए उन्होंने आनंदवर्धनाचार्य, मम्मट आदि रसवादी आचायर्यों का अनुकरण करके भामह आदि अलंकारवादी आचार्यों का अनुकरण किया। केशव ने जो काव्य विवेचन किया है उसमें मौलिकता नहीं है, वह संस्कृत के काव्यशास्त्र के आचार्यों का अनुकरण है।

केशवदास की रचनाओं में काव्य की दृष्टि से सर्वाधिक विचारणीय रामचंद्रिका है। इसकी रचना केशवदास ने वाल्मीकि के स्वप्न में कहने पर की थी। यह हनुमन्नाटक और प्रसन्नराघव की शैली में रचित है। पृथ्वीराज रासो के समान इसमें छंद जल्दी-जल्दी परिवर्तित होते हैं। रचना नाटकीय संवादों से परिपूर्ण है। एक ही पंक्ति में पात्रों के बीच प्रश्नोत्तर करा देने की शैली में केशवदास निपुण हैं, जैसे भरत-कैकेयी का यह प्रश्नोत्तर- ‘मातु ! कहाँ नृपताप’? ‘गए सुरलोकहिं, ‘क्यों’? ‘सुत शोक लिए’।

रामचंद्रिका के संवादों की प्रशंसा की गई है। केशवदास दरबारों के वैभव-वातावरण का वर्णन करने में सिद्धहस्त हैं। किंतु कथा-प्रसंगों की समुचित योजना या मार्मिक प्रसंगों की पहचान में प्रायः वे चूक जाते हैं। वाग्विदग्धता, अलंकारों, छंदों के ज्ञान के उपयोग की आतुरता और चमत्कार-प्रियता उनकी सहृदयता को कुंठित कर देती हैं। लेकिन यह नहीं कहा जा सकता कि उन्हें कवि-हृदय मिला ही नहीं था। लक्षणों के उदाहरणों के रूप में प्रस्तुत उनकी अनेक रचनाएँ सहृदयों को प्रभावित करने में समर्थ हैं।

यद्यपि केशव हिंदी के प्रथम आचार्य हैं, किंतु रीति-ग्रंथों की विरल परंपरा चिंतामणि (1609) से चली। रीति काव्य की परंपरा के प्रवर्तक केशव हैं या चिंतामणि, इसे लेकर विवाद होता है। इनका प्रसिद्ध ग्रंथ कविकुल कल्पतरु है। इस काल के अन्य प्रसिद्ध आचार्य कवि भीखारीदास (18वीं शती), ग्रंथनाम काव्य-निर्णय; तोषं (1634), ग्रंथनाम सुधानिधि; कुलपति (1670), ग्रंथनाम रस रहस्य; सुखदेव मिश्र (1673), ग्रंथनाम रसार्णव आदि हैं। इनके उपजीव्य संस्कृत ग्रंथ काव्य-प्रकाश, साहित्य दर्पण, रसमंजरी, चंद्रलोक और कुवलयानंद हैं।

37. In Bundelkhand three famous poets have become famous by the name of “Vrihadalayi” who among the following was not involved in this?

(A) Isuri

(B) Gangadhar

(C) Gunasagar

(D) Khyalram

(MPPSC सहायक प्राध्यापक(Assistant Professor) परीक्षा, प्रथम प्रश्नपत्र, परीक्षा तिथि 09/06/2024)

37. बुन्देलखण्ड में तीन प्रसिद्ध कवि “वृहदलयी” के नाम से विख्यात है । निम्न में कौन इसमें शामिल नहीं है ? 

(A) ईसुरी 

(B) गंगाधर 

(C) गुणसागर 

(D) ख्यालराम 

Ans – ( C) गुणसागर

ख्यालीराम बुंदेली फाग के लिए ख्यात कवि हुये।

ईसुरी भी।भारतेन्दु युग के लोककवि ईसुरी पं गंगाधर व्यास के समकालीन थे और आज भी बुंदेलखंड के सर्वाधिक लोकप्रिय कवि हैं। ईसुरी की रचनाओं में ग्राम्य संस्कृति एवं सौंदर्य का वास्तविक चित्रण मिलता है। उनकी ख्‍याति फाग के रूप में लिखी गई उन रचनाओं के लिए हैं, जो विशेष रूप से युवाओं में बहुत लोकप्रिय हुईं।

पंडित गुण सागर सत्यार्थी जी कि विशेषता यह है कि- ईसुरी की देशकाल-परिस्थितियों में और श्री सत्यार्थी जी के देश-काल में सौ वर्ष का अन्तराल है। अतः उन्होंने मात्र भाषा और छन्द ही  ईसुरी से लिया है। जबकि अभिव्यक्ति वर्तमान देश- काल परिस्थितियों के यथानुसार है अभिधा से ऊपर प्रतीकवाद इत्यादि प्रयोग इस संकलन में विशेष उल्लेखनीय हैं। 

इन सभी से यह लगता है की गुण सागर सत्यार्थी जी ही व्रत रही से भिन्न हैं।