MPPSC सहा.प्राध्यापक परीक्षा-2022 हिंदी-SET-B Q.36-40


36. मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी की स्थापना कब हुई ?

(A) 1953 ई.

(B) 1954 ई.

(C) 1955 ई.

(D) 1956 ई.

MPPSC सहायक प्राध्यापक परीक्षा-2022 द्वितीय प्रश्न पत्र हिंदी परीक्षा तिथि-09/06/2024-SET-B

उत्तर –  (B) 1954 ई.

इस अकादमी की स्थापना सन् 1954 में हुई। उस समय इसका मुख्यालय नागपुर था। बाद में मध्यप्रदेश की स्थापना के बाद इसका मुख्यालय भोपाल बना। साहित्य अकादमी अपने प्रारंभिक काल से मध्यप्रदेश के ही नहीं तो देश के ख्यातिलब्ध साहित्यकारों के कृतित्व एवं व्यक्तित्व का परिचय समाज के सामने लाने को प्रयत्नरत है। प्रारंभिक काल में अकादमी जहाँ कुछ ख्यातिलब्ध साहित्यकारों जैसे- मैथिलीशरण गुप्त, सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला, माखनलाल चतुर्वेदी आदि कवियों की जन्म जयंती मनाती रही है, वहीं समय के साथ अनेक कार्यक्रमों को दिशा देने का प्रयत्न किया है। जैसे-जैसे अकादमी आगे बढ़ी उसका चौमुखी विस्तार हुआ है।

37. भवानी प्रसाद मिश्र किस पत्रिका के संपादक रहे हैं ?

(A) माधुरी

(B) वागर्थ

(C) कल्पना

(D) युगबोध

MPPSC सहायक प्राध्यापक परीक्षा-2022 द्वितीय प्रश्न पत्र हिंदी परीक्षा तिथि-09/06/2024-SET-B

उत्तर – (C) कल्पना

काव्य-संग्रह -‘गीतफ़रोश’, ‘सतपुड़ा के जंगल’, ‘सन्नाटा’, ‘बुनी हुई रस्सी’ व ‘खुशबू के शिलालेख’ आदि। 

संस्मरण – जिन्होंने मुझे रचा 

निबंध – कुछ नीति कुछ राजनीति 

बाल साहित्य – तुकों का खेल 

संपादन –  कल्पना (साप्ताहिक), विचार (साप्ताहिक)

पुरस्कार एवं सम्मान -‘पद्मश्री’, ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’, ‘शिखर सम्मान’, व ‘ग़ालिब पुरस्कार’ आदि। 

38. जीवन पर अब दिन-रात कड़ा पहरा है, शासन है, या तम का प्रभाव गहरा है? यह पंक्तियाँ किस कविता से उधृत हैं ?

(A) वीरों का कैसा हो बसंत

(B) विप्लव गान

(C) बलि पंथी के लिए

(D) कैदी और कोकिल

MPPSC सहायक प्राध्यापक परीक्षा-2022 द्वितीय प्रश्न पत्र हिंदी परीक्षा तिथि-09/06/2024-SET-B

उत्तर –

क़ैदी और कोकिला

माखनलाल चतुर्वेदी 
क्या गाती हो?  

क्यों रह-रह जाती हो?  

कोकिल, बोलो तो!  

क्या लाती हो?  

संदेशा किसका है?  

कोकिल, बोलो तो!  

ऊँची काली दीवारों के घेरे में,  

डाकू, चोरों, बटमारों के डेरे में,  

जीने को देते नहीं पेट-भर खाना,  

मरने भी देते नहीं, तड़प रह जाना!  

जीवन पर अब दिन-रात कड़ा पहरा है,  

शासन है, या तम का प्रभाव गहरा है?  

हिमकर निराश कर चला रात भी काली,  

इस समय कालिमामयी जगी क्यों आली? 

क्यों हूक पड़ी? 

वेदना-बोझ वाली-सी; 

कोकिल, बोलो तो!  

क्या लुटा?  

मृदुल वैभव की रखवाली-सी,  

कोकिल, बोलो तो!  

बंदी सोते हैं, है घर-घर श्वासों का  

दिन के दुख का रोना है नि:श्वासों का,  

अथवा स्वर है लोहे के दरवाज़ों का,  

बूटों का, या संत्री की आवाज़ों का,  

या करते गिननेवाले हाहाकार।  

सारी रातों है—एक, दो, तीन, चार—!  

मेरे आँसू की भरी उभय जब प्याली,  

बेसुरा! मधुर क्यों गाने आई आली?  

क्या हुई बावली?  

अर्द्ध रात्रि को चीख़ी,  

कोकिल, बोलो तो!  

किस दावानल की  

ज्वालाएँ हैं दीखी?  

कोकिल, बोलो तो!  

निज मधुराई को कारागृह पर छाने,  

जी के घावों पर तरलामृत बरसाने,  

या वायु-विटप-वल्लरी चीर, हठ ठाने,—  

दीवार चीरकर अपना स्वर अजमाने,  

या लेने आई इन आँखों का पानी?  

नभ के ये दीप बुझाने की है ठानी!  

खा अंधकार करते वे जग-रखवाली  

क्या उनकी शोभा तुझे न भाई आली?  

तुम रवि-किरणों से खेल,  

जगत् को रोज़ जगानेवाली,  

कोकिल, बोलो तो,  

क्यों अर्द्ध रात्रि में विश्व  

जगाने आई हो? मतवाली—  

कोकिल, बोलो तो!  

दूबों के आँसू धोती रवि-किरनों पर,  

मोती बिखराती विंध्या के झरनों पर,  

ऊँचे उठने के व्रतधारी इस वन पर,  

ब्रह्मांड कँपाते उस उदंड पवन पर,  

तेरे मीठे गीतों का पूरा लेखा  

मैंने प्रकाश में लिखा सजीला देखा।  

तब सर्वनाश करती क्यों हो,  

तुम, जाने या बेजाने?  

कोकिल, बोलो तो!  

क्यों तमोपत्र पर विवश हुई  

लिखने चमकीली तानें?  

कोकिल, बोलो तो!  

क्या?—देख न सकती जंज़ीरों का पहना?  

हथकड़ियाँ क्यों? यह ब्रिटिश-राज का गहना!  

कोल्हू का चर्रक चूँ?—जीवन की तान,  

गिट्टी पर अंगुलियों ने लिक्खे गान!  

हूँ मोट खींचता लगा पेट पर जूआ,  

ख़ाली करता हूँ ब्रिटिश अकड़ का कूआँ।  

दिन में करुणा क्यों जगे, रुलानेवाली,  

इसलिए रात में ग़ज़ब ढा रही आली?  

इस शांत समय में,  

अंधकार को बेध, रो रही क्यों हो?  

कोकिल, बोलो तो!  

चुपचाप, मधुर विद्रोह-बीज  

इस भाँति बो रही क्यों हो?  

कोकिल, बोलो तो!  

काली तू, रजनी भी काली,  

शासन की करनी भी काली,  

काली लहर कल्पना काली,  

मेरी काल-कोठरी काली,  

टोपी काली, कमली काली,  

मेरी लोह-शृंखला काली,  

पहरे की हुंकृति की व्याली,  

तिस पर है गाली, ऐ आली!  

इस काले संकट-सागर पर  

मरने को, मदमाती—  

कोकिल, बोलो तो!  

अपने चमकीले गीतों को  

क्योंकर हो तैराती?  

कोकिल, बोलो तो!  

तेरे 'माँगे हुए' न बैना,  

री, तू नहीं बंदिनी मैना,  

न तू स्वर्ण-पिंजड़े की पाली,  

तुझे न दाख खिलाये आली!  

तोता नहीं; नहीं तू तूती,  

तू स्वतंत्र, बलि की गति कूती  

तब तू रण का ही प्रसाद है,  

तेरा स्वर बस शंखनाद है।  

दीवारों के उस पार  

या कि इस पार दे रही गूँजें?  

हृदय टटोलो तो!  

त्याग शुक्लता,  

तुझ काली को, आर्य-भारती पूजे,  

कोकिल, बोलो तो!  

तुझे मिली हरियाली डाली,  

मुझे नसीब कोठरी काली!  

तेरा नभ भर में संचार,  

मेरा दस फुट का संसार!  

तेरे गीत कहावें वाह,  

रोना भी है मुझे गुनाह!  

देख विषमता तेरी-मेरी,  

बजा रही तिस पर रण-भेरी!  

इस हुंकृति पर,  

अपनी कृति से और कहो क्या कर दूँ?—  

कोकिल, बोलो तो!  

मोहन के व्रत पर,  

प्राणों का आसव किसमें भर दूँ?—  

कोकिल, बोलो तो!  

फिर कुहू!... अरे क्या बंद न होगा गाना?  

इस अंधकार में मधुराई दफ़नाना!  

नभ सीख चुका है कमज़ोरों को खाना,  

क्यों बना रही अपने को उसका दाना?  

तिस पर करुणा-गाहक बंदी सोते हैं,  

स्वप्नों में स्मृतियों की श्वासें धोते हैं!  

इन लोह-सीखचों की कठोर पाशों में  

क्या भर दोगी? बोलो, निद्रित लाशों में?  

क्या घुस जाएगा रुदन  

तुम्हारा निःश्वासों के द्वारा?—  

कोकिल, बोलो तो!  

और सवेरे हो जाएगा  

उलट-पुलट जग सारा?—  

कोकिल, बोलो तो!

स्रोत :

पुस्तक : क्षितिज भाग-1, (कक्षा-9) (पृष्ठ 87) रचनाकार : माखनलाल चतुर्वेदी प्रकाशन : एन.सी. ई.आर.टी संस्करण : 2022

39. माखनलाल चतुर्वेदी ने इनमें से कौन-सी पत्रिका का संपादन कार्य नहीं किया ?

(A) प्रभा

(B) प्रताप

(C) प्रतीक

(D) कर्मवीर

MPPSC सहायक प्राध्यापक परीक्षा-2022 द्वितीय प्रश्न पत्र हिंदी परीक्षा तिथि-09/06/2024-SET-B

उत्तर -(C) प्रतीक

पत्रकारिता और माखनलाल चतुर्वेदी

श्री माखनलाल चतुर्वेदी निर्भीक पत्रकार भी थे। पत्रकार के रूप में उनका व्यक्त्तित्त्व शत-शत अवरोधों के सामने न तो झुका और न ही बिका और 1913 में जब श्री कालूराम गंगराडे ने “प्रभा” मासिक का प्रकाशन किया तो इन्होंने 30 रुपये मासिक वेतन पर सहायक संपादक के रूप में अपने आपको पूर्ण रूप से इस कार्य से जोड़ दिया। इनमें मुख्य थे श्री माधवराव सप्रे, श्री गणेश शंकर विद्यार्थी, आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी, महात्मा मुंशीराम तथा पंडित विष्णु दत्त शुक्ल । “प्रभा” के माध्यम से माखनलाल जी ने राष्ट्रीय और सामाजिक जागरण का कार्य संपन्न किया।

माखनलाल जी ने तन-मन से “प्रभा” की सेवा की। परन्तु अनेकानेक कठिनाइयों के कारण “प्रभा” बारह अंक प्रकाशित होने के बाद बंद हो गई। बन्द होने का विशेष कारण था कि मध्यप्रान्त में हिन्दी का कोई अच्छा प्रेस न था और “प्रभा” पूना से छपती थी। अतः अनेकानेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था। एक वर्ष बाद गणेश शंकर विद्यार्थी के प्रयत्नों से “प्रभा” फिर कानपुर से प्रकाशित हुई। “प्रभा” के संपादन एवं प्रकाशन में वे इतने तल्लीन हो गए कि उन्होंने घर-गृहस्थी के सुखों को त्याग दिया तथा अपनी पत्नी की आहुति भी प्रभा की पत्रकारिता के यज्ञ में चढ़ा दी। परन्तु आर्थिक संकटों के कारण एक वर्ष बाद “प्रभा” पुनः बंद हो गई। “प्रभा” की विभिन्न सम्पादकीय टिप्पणियों और विविध विषयों पर आपके विचार आज साहित्य की अक्षय निधि हैं।

“प्रभा” की अकाल मृत्यु माखनलाल जी के संकल्प और शक्ति को नहीं तोड़ पाई। कालान्तर में वही निष्ठा “कर्मवीर” में प्रतिफलित हुई। 17 जनवरी, 1920 को जबलपुर से साप्ताहिक “कर्मवीर” निकला। इसके प्रधान सम्पादक श्री सप्रे जी तथा सम्पादक माखनलाल चतुर्वेदी थे। इस समय तक (1920) चतुर्वेदी जी सशस्त्र क्रांति के विचारों की सक्रियता से विश्राम लेकर गांधी जी की राजनीति में सहयात्री हो गए थे। “कर्मवीर” नामकरण का भी अपना इतिहास है। पत्र का नामकरण एक ऐसे लोकनायक जीवित व्यक्ति के अनुरूप रखना था जो राष्ट्र के जीवन में नवीन चेतना भर रहा था। उन दिनों महात्मा गांधी जनजीवन में कर्मवीर मोहनदास कर्मचंद गांधी कहलाते थे अतः जन-जीवन में नवीन क्रांति उत्पन्न करने के पवित्र उद्देश्य से नये साप्ताहिक का नाम “कर्मवीर” रखना माखनलाल जी का ही व्यक्तिगत साहस था।

“कर्मवीर” ने देशी रियासतों के दुराचारी राजा-महाराजाओं का खूब भंडा फोड किया। मध्यभारत के एक महाराजा ने उन्नीस हजार रुपये देकर “कर्मवीर” का मुँह बन्द करना चाहा, किन्तु चतुर्वेदी जी ने आर्थिक कठिनाइयों के होने पर भी इस धनराशि को ठुकरा दिया और “कर्मवीर” का ईमान बेचने से इन्कार कर दिया। यह पत्र बहुत समय तक देशी राज्यों की प्रजा का मुखपत्र बना रहा। एक बार तो अठारह रियासतों ने इसका प्रवेश बन्द कर दिया। परन्तु फिर भी इन्होंने बड़े साहस से स्थिति का सामना किया।

“कर्मवीर” साप्ताहिक और “प्रभा” में चतुर्वेदी जी की प्रायः वे सभी कविताएँ प्रकाशित हुई थीं, जिन्होंने तत्कालीन हिन्दी काव्य में, क्रांतिकारी एवम् राष्ट्रीय विचारधारा को एक विशिष्ट काव्य प्रवृत्ति के रूप में प्रतिष्ठित कर दिया। सन् 1920 ई. में वे झण्डा-सत्याग्रह में गिरफ्तार हुए और नागपुर जेल के अपने कारावास काल में, उन्होंने शहीद सत्याग्रही हरदेव नारायण सिंह की स्मृति में “झण्डे की भेंट” नामक अपनी प्रसिद्ध कविता लिखी जो “प्रभा” के झण्डा अंक में प्रकाशित हुई थी, उसकी कुछ पंक्तियाँ निम्नलिखित हैं-

ले झण्डा, चल पड़ा, प्राण का मोह छोड़, वह तरुण युवा। 

उसकी गति पर अहा। देश के अमरों को भी क्षोभ हुआ ।।

        सजा हुई, जंजीरे पहनी, दुर्बल था, पर वार हुए, 

मट्टी, पोट, चक्कियों, कोल्हू, हँस-हँस कर स्वीकार हुए। 

मातृभूमि में तोरी सूरत देख, सभी सह जाऊँगा।

दे में दण्ड, आर्यबालक, हूँ, पस्तक नहीं झुकाऊँगा ।।

जेल से छूटते ही चतुर्वेदी जी पुनः “कर्मवीर” के सम्पादन में प्राणपण से जुट गए। उस समय असहयोग आन्दोलन अपनी चरम सीमा पर था और “कर्मवीर” के सम्पादकीय लेखों ने उसे मध्यप्रदेश में तीव्रतर बनाने में भारी योग दिया था। 12 मई, 1921 ई. की रात को पुलिस उन्हें “कर्मवीर” कार्यालय से हथकड़ी लगाकर ले गई और उन्हें कठोर कारावास का दंड मिला।

“प्रभा”, “कर्मवीर” और “प्रताप” के माध्यम से उन्होंने देश की जनता में व्याप्त जड़ता को तोड़ा एवं क्रांति का संदेश दिया। इस दृष्टि से कर्मवीर मध्य प्रदेश की पत्रकारिता की एक विशिष्ट उपलब्धि है। उनकी पत्रकारिता ने आत्मशौर्य एवं अपराजेय भावना को जन-जन में भरा और लेखकों, कवियों तथा पत्रकारों की एक ऐसी पीढ़ी तैयार की जिनकी अभिव्यक्ति निरन्तर आग से नहाती रही। पत्रकारिता के क्षेत्र में श्री माखनलाल चतुर्वेदी का योगदान ऐतिहासिक महत्व रखता है।

egyankosh Source : https://egyankosh.ac.in/bitstream/123456789/28310/1/Unit-39.pdf

40. भवानी प्रसाद मिश्र किस ‘सप्तक’ के कवि हैं ?

(A) पहला सप्तक

(B) दूसरा सप्तक

(C) तीसरा सप्तक

(D) चौथा सप्तक

MPPSC सहायक प्राध्यापक परीक्षा-2022 द्वितीय प्रश्न पत्र हिंदी परीक्षा तिथि-09/06/2024-SET-B

उत्तर – (B) दूसरा सप्तक

भवानी प्रसाद मिश्र (जन्म: २९ मार्च १९१४ – मृत्यु: २० फ़रवरी १९८५) हिन्दी के प्रसिद्ध कवि तथा गांधीवादी विचारक थे। वे ‘दूसरा सप्तक’ के प्रथम कवि हैं।

हिंदी में चार सप्तक प्रकाशित हुए हैं। इनके कवियों की सूची निम्नलिखित है।

‘तारसप्तक’ का प्रकाशन 1943 ई. में हुआ। तार सप्तक का प्रकाशन भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा सन् 1943 ई० में किया गया है। प्रथम तार सप्तक में 7 कवियो की कविताएँ संकलित है। इसी क्रम में अज्ञेय ने दूस्रा सप्तक तथा तीसरा सप्तक प्रकाशित किया।

बाद में नामवर सिंह ने चौथा सप्तक भी प्रकाशित किया गया।

तार सप्तक के कवि (1943 ई.)

  1. गजानन माधव मुक्तिबोध
  2. आ० नेमिचन्द्र जैन
  3. भारत भूषण अग्रवाल
  4. प्रभाकर माचवे
  5. गिरिजाकुमार माथुर
  6. रामविलास शर्मा
  7. अज्ञेय

दूसरा सप्तक के कवि  (1951)

  1. भवानी प्रसाद मिश्र
  2. शकुन्तला माथुर
  3. हरिनारायण व्यास
  4. शमशेर बहादुर सिंह
  5. नरेश मेहता
  6. रघुवीर सहाय
  7. धर्मवीर भारती

तीसरा सप्तक के कवि ( 1959 ई० )

  1. कुँवर नारायण
  2. कीर्ति चौधरी
  3. सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
  4. मदन वात्स्यायन
  5. प्रयाग नारायण त्रिपाठी
  6. केदार नाथ सिंह
  7. विजयदेव नारायण साही

चौथा सप्तक के कवि (1979 ई० )

  1. अवधेश कुमार
  2. राजकुमार कुंभज
  3. स्वदेश भारती
  4. नंदकिशोर आचार्य
  5. सुमन राजे
  6. श्रीराम वर्मा
  7. राजेंद्र किशोर

तार सप्तक एक काव्य संग्रह है।

अज्ञेय द्वारा 1943 ई० में नयी कविता के प्रणयन हेतु सात कवियों का एक मण्डल बनाकर तार सप्तक का संकलन एवं संपादन किया गया।

Trick : 

प्रथम तार सप्तक – अमूने गिरा प्रभा

दूसरा तार सप्तक – धर्मवीर और शमशेर शंकुतला का हरण करके भागे

तीसरा तार सप्तक – प्रयाग विजय में कीर्ति ने कुँवर सर से केदार के मन की बात कहि

चौथा तार सप्तक – सुश्री राम ने स्वदेशी अवधेश को राजकुमार नन्दकिशोर से मिलाया