MPPSC-सहायक प्राध्यापक परीक्षा द्वितीय प्रश्न पत्र हिंदी-SET-B-Q.N.16-20


16. लोकगीत को ‘आर्येतर सभ्यता की वेदश्रुति’ किसने माना है ?

(A) हजारी प्रसाद द्विवेदी

(B) आचार्य रामचन्द्र शुक्ल

(C) महावीर प्रसाद द्विवेदी

(D) डॉ. नगेन्द्र

MPPSC सहायक प्राध्यापक परीक्षा द्वितीय प्रश्न पत्र हिंदी परीक्षा तिथि-09/06/2024-SET-B

उत्तर – (B) आचार्य रामचन्द्र शुक्ल

लोकगीत

लोकगीत ‘आर्येतर सभ्यता की वेदश्रुति’ (पं. हजारी प्रसाद द्विवेदी), ‘समूची संस्कृति के पहरेदार’ (महात्मा गांधी), ‘किसी भी राष्ट्र की संस्कृति को प्रदीप्त करने वाली सुरीली बानगी’ (डॉ. नन्दलाल कल्ला) है। राष्ट्र जीवन की सत्यकथा जानने का सबसे प्रामाणिक मार्ग लोकगीत ही है। मध्य प्रदेश के करमा जाति के गीतों में उल्लेख है कि ‘यदि तुम मेरे जीवन की सच्ची कहानी जानना चाहो तो मेरे गीतों को सुनो।’ यही सत्यसूत्र है, मनुष्य की हृदय वीथियों से निकलकर राष्ट्र को जानने-समझने का।

Source : https://www.google.co.in/books/edition/मध्यकालीन_भारत/xjxYEAAAQBAJ?hl=en&gbpv=1&dq=लोकगीत+को+%27आर्येतर+सभ्यता+की+वेदश्रुति%27+किसने+माना+है+%3F&pg=PA231&printsec=frontcover

17. लोक साहित्य में ‘पैवाड़ा’ शब्द निम्न में से किस विधा के लिए प्रयुक्त होता है ?

(A) लोक-कहावत

(B) लोक-मुहावरा

(C) लोक-गाथा

(D) लोक-गीत

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उत्तर –

डॉ. कृष्णदेव उपाध्याय ने भोजपुरी लोकसाहित्य पर व्यापक शोध-कार्य किया है। उन्होंने भारतीय लोकसाहित्य के सैद्धान्तिक पक्ष को उजागर करते हुए लोकगाथा की परिभाषा इस प्रकार दी है -‘लोकगाथा वह गाथा या कथा है जो गीतों में कही गई है’ (उपाध्याय 1960: 12)। महाराष्ट्र में लोकगाथा के लिए ‘पवाड़ा’ शब्द प्रचलित है। गुजराती लोकसाहित्य के नामी विद्वान झवेरचंद मेघाणी लोकगाथा को ‘कथागीत’ नाम देते हैं। राजस्थानी के विद्वान सूर्यकरण पारीक ‘बैलेड’ के लिए ‘गीत कथा’ नाम देते हैं।[उपरोक्त विद्वानों की परिभाषाओं के अवलोकन से यह तथ्य स्पष्ट होता है कि लोकगाथा कहीं न कहीं गायन से संबंध रखती है और लोकसाहित्य का काव्य प्रधान रूप है। (लोकगाथाओं की भारतीय परंपरा और राजस्थानी लोकगाथाओं का स्वरूप | Sahapedia )

पोवाड़ा महाराष्ट्र का प्रसिद्ध लोक गायन है। मुख्यतः यह शिवाजी महाराज के युद्ध कौशल का यशोगान तथा स्तुति है। यह वीर रस के गायन एवं लेखन प्रकार है और महाराष्ट्र में लोकप्रिय है। भारत में इसका उदय १७वी शताब्धि में हुआ। इसमें ऐतिहासिक घटना सामने रखकर गीत की रचना की जाती है। इस गीत प्रकार की रचना करनेवाले गीतकारों को शाहिर कहां जाता है।

18. बुंदेली साहित्य में ‘नौरता’ निम्न में से किस प्रकार  का लोकगीत है ?

(A) ऋतु गीत

(B) त्यौहार गीत

(C) श्रम गीत

(D) यात्रा गीत

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उत्तर –  (B) त्यौहार गीत

बुन्देली संस्कृति का लोकोत्सव नौरता

अश्वनि शुक्ल प्रतिपदा से पूरे नौ दिन तक ब्रह्ममुहूर्त में गांव की चौपालों या नगरों के बड़े चबूतरों पर अविवाहित बड़ी बेटियों द्वारा सरजित एक रंग बिरंगा ऐसा संसार दिखता है जिसमें एक व्यवस्था होती है, संस्कार होते हैं। रागरंग और लोकचित्रों में बुन्देली गरिमा होती है। हमारी बेटियां एक साथ गीत संगीत, नृत्य चित्रकला और मूर्ति कला, साफ-सफाई संस्कारों से मिश्रित लोकोत्सव नौरता मनाती है। चौरस लकड़ी के तख्ते पर या दीवार पर अथवा नीम के ही मोटे तने पर मिट्टी से बनाई गयी एक विराट दैतयाकार प्रतिमा जिसका श्रृंगार चने की दाल, ज्वार के दाने, चावल, गुलाबास के फूलों से सजाया और अलंकृत किया जाता है। इसके चबूतरे की रंगोली के समान निर्मित दुदी एवं सूखे रंगों से चौक पूरा जाता है। लड़कियों की स्वर लहरी फूट पड़ती है।

बुन्देली संस्कृति का लोकोत्सव नौरता

19. निम्नलिखित लोकनाट्य को उनसे संबंधित क्षेत्र से सुमेलित कीजिए ।

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उत्तर – (A)

माच (अंग्रेजी में Mach) मालवा का प्रमुख लोक नाट्य रूप है। लोक मानस के प्रभावी मंच माच को उज्जैन में जन्म मिला है। माच शब्द का सम्बन्ध संस्कृत मूल मंच से है। इस मंच शब्द के मालवी में अनेक क्षेत्रों में प्रचलित परिवर्तित रूप मिलते हैं। उदाहणार्थ- माचा, मचली, माचली, माच, मचैली, मचान जैसे कई शब्दों का आशय मंच के समानार्थी भाव बोध को ही व्यक्त करता है। माच गुरु सिद्धेश्वर सेन माच की व्युत्पत्ति के पीछे सम्भावना व्यक्त करते हैं कि माच के प्रवर्तक गुरु गोपालजी ने सम्भवतः कृषि की रक्षा के लिए पेड़ पर बने मचान को देखा होगा, जिस पर चढ़कर स्त्री या पुरुष आवाज आदि के माध्यम से नुकसान पहुँचाने वाले पशु-पक्षियों से खेत की रक्षा करते हैं।

20. ‘ठोठ्यो’ या ‘ठोठ्या’ लोकनाट्य के सन्दर्भ में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सत्य नहीं है ?

(A) इसे नकटोरा के नाम से भी जाना जाता है।

(B) यह स्त्रियों के मनोरंजनार्थ स्त्रियों का लोकनाट्य है।

(C) यह बघेलखण्ड का लोकनाट्य है।

(D) इसमें स्त्रियों द्वारा पुरुषों की मानसिकता पर व्यंग्य किया जाता है।

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उत्तर – (C) यह बघेलखण्ड का लोकनाट्य है।

yah vaise baghelkhand me bhi hota hai. parrrr … 

नकटौरा नृत्य- यह नृत्य भी उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में किया जाता है । पूर्वांचल में लड़कों के विवाह वाले घरों में बारात जाने के बाद उन घरों की महिलाएं, पुरुषों का वेश धारण कर रात भर हास-परिहास युक्त नाटक व नृत्य करती हैं । इस प्रकार के नृत्य प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में किए जाते हैं तथा अलग-अलग नामों से जाने जाते हैं । उत्तर प्रदेश के लोक नृत्य (Folk dances of Uttar Pradesh)

नटकौरा अथवा नकटौरा में गीतों का बाहुल्य होता है। इन गीतों को नकटा या नटका या कहीं-कहीं जलुआ कहा जाता है। इन नकटा गीतों की कोई विशिष्ट विधा याशैली नहीं होती, परन्तु ये मनोरंजन से भरभूर होते हैं। अस्तु नकटौरा को एक तरह गीतपरक नृत्य नाटिका कहा जा सकता है जो पूरी तरह से स्त्री-प्रधान है। जिसको खेलने वाली भी स्त्रियां और दर्शक भी स्त्रियां। यह लोक नाट्य का वह स्वरूप है, जिसमें संभ्रान्त महिलाओं की भी सक्रिय भागीदारी होती है।

https://uphindisansthan.in/pdfs/sahitya-bharti/2020/april-june.pdf

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