Maldives LakshaDweep Bharat aur Vishwa

मालदीव्स लक्षद्वीप भारत और विश्व

अंततः मालदीव और पाकिस्तान जैसे देश ऐसा व्यवहार क्यों करते हैं इसके पीछे मूलभूत कारण क्या हैं?

lakshadweep capital- capital of lakshadweep

Kavaratti

कवरत्ती भारत में केंद्र शासित प्रदेश लक्षद्वीप की राजधानी है। कवरत्ती द्वीप केरल राज्य के तट से 360 किमी दूर 10.57°N 72.64°E पर स्थित है। 404 किमी (218 एनएमआई) की दूरी पर भारतीय मुख्य भूमि पर निकटतम प्रमुख शहर है।

lakshadweep airport- Agatti – lakshadweep island

अगाती-अगत्ती लक्षद्वीप के सबसे खूबसूरत लैगूनों में से एक है। इस द्वीप पर हवाई अड्डा बना हुआ है। विमान से, जैसे ही कोई लैंडिंग के लिए पहुंचता है, उसे द्वीप पर हवाई पट्टी का एक मनमोहक दृश्य दिखाई देता है। अगत्ती द्वीपों का आभासी प्रवेश द्वार है। यहां सभी आधुनिक सुविधाओं से युक्त 20 बिस्तरों वाला पर्यटक परिसर स्थापित किया गया है। इंडियन एयरलाइंस अगत्ती के लिए उड़ान संचालित करती है, जिससे यह लक्षद्वीप में सबसे सुलभ द्वीपों में से एक बन जाता है

वर्तमान में भारत और उसके आसपास के देशों में यह चर्चा बड़े जोरों पर है हॉट टॉपिक बना हुआ है कि भारत के प्रति मालदीव का आक्रमक रुक आक्रामक किंतु संभवत मूर्खतापूर्ण रूप और चीन के प्रति अपना मित्रता का दिखावा यह बहुत ही संवेदनशील विषय बन गया है। इसे अनेकों दृष्टियों से समझा जा सकता है इसे एक प्रकार से समझा जा सकता है कि यह पाकिस्तान के ही तरह होने का प्रयास कर रहा है कि उल्टा चोर कोतवाल को डांटे। एक तो गलती खुद करें और उसके लिए दूसरों को दोष दें।

मालदीव के नए राष्ट्र प्रमुख ने अभी हाल ही में चीन की यात्रा की अभी वह वही है और वहां के मंत्रियों ने जिस तरह से बयान दिया है इससे यह साबित होता है कि वह गुंडागर्दी की भाषा बोल रहे हैं कि जो तुम हमारा क्या बिगाड़ लोगे किंतु उसे यह नहीं भूलना चाहिए कि वह भारत ही है जो उसके एक इशारे पर उसकी रक्षा के लिए अपनी सेनाएं तैनात कर देता है और इस प्रकार की तैनाती से उसने विद्रोहियों और तख्तापलट से मालदीव की रक्षा भी की है। अभी कुछ ही वर्षों पूर्व जब वहां पर पीने का पानी नहीं था, तब भारत ने ही पीने का पानी मालदीव को उपलब्ध कराया था। इस दृष्टिकोण से देखें तो मालदीव बहुत ही कृतघ्न राष्ट्र है जो किसी के किए गए उपकार का बदला अपकार से देता है।आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? इसे हम मूलभूत दृष्टिकोण से समझने का प्रयास करेंगे।

इसे हम पाकिस्तान को साथ लेकर चलते हुए समझेंगे कि पहले पाकिस्तान का जो निर्माण है वह तो हुआ इस्लाम के नाम पर था। और कट्टर पंथ के नाम पर था किंतु जैसे-जैसे वहां पर कट्टरपंथियों का बोलबाला बढ़ता गया पाकिस्तान की हालत उतनी ही खराब होती गई। उसकी आर्थिक राजनीति के सामाजिक सभी तरह से वहां पर पाकिस्तान की दुर्दशा हो रही है क्योंकि इसके मूल में उसकी शिक्षा पद्धति उसकी राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय नीतियों और उसके सोचने का ढंग इसके लिए पूरी तरह से उत्तरदाई है। पाकिस्तान उस भूमि में बसा है जो अखंड भारत का सबसे अधिक ऊर्वर  क्षेत्र समझा जाता था। सामग्र संस्कृति और सभ्यता का जिसे हम वैदिक संस्कृति कह सकते हैं का निर्माण पाकिस्तान की भूमि पर ही अधिकांशतः हुआ है हड़प्पा और मोहनजोदड़ो या सिंधु घाटी की सभ्यता भी पाकिस्तान की धरा पर ही फली फूली है। किंतु वर्तमान में ऐसा क्या हो गया है कि पाकिस्तान की आर्थिक दुर्दशा हो गई है न वह शिक्षा में उन्नत हो रहा है न ही वहां पर कोई ऐसे अच्छे आविष्कार या अच्छे महापुरुषों का प्रादुर्भाव हो रहा है इसके पीछे कारण क्या है?

क्योंकि पाकिस्तान इस प्रकार की नीति का पालन करता है कि वह भाग्यवाद को अपनी स्थिति के लिए उत्तरदाई मानता है और वह पुरुषार्थ के लिए ध्यान नहीं देता। किसी के भी उपकार को वह यह समझता है कि यह उसकी आवश्यकता थी उसे हमसे कुछ चाहिए था और इसीलिए उसने हमारी सहायता की है और इसीलिए हमारा उसके प्रति कोई भी उत्तरदायित्व नहीं बनता है। क्योंकि ईश्वर ने उन्हें सब कुछ उनके भाग्य के कारण दिया है। यही हाल मालदीव्स का भी है वहां के भी मंत्री गणों के मन में यही बात जमकर बैठ गई है कि उन्हें जो कुछ मिला है वह ऊपर वाले से मिला है और इसमें भारत का कोई सहयोग या किसी प्रकार का उपकार नहीं है और इसीलिए वे बार-बार भारतीय राष्ट्र को नीचा दिखाने का प्रयास करते हैं भले ही उनका अस्तित्व किसी तिनके के समान ही क्यों न हो।

इस प्रकार यह दिखाई देता है कि उनकी गलत नीतियां इस प्रकार के रसों को जिस प्रकार किसी व्यक्ति को इस प्रकार की नीतियां अधोगति में डालते हैं और अंतत उसे विनाश के मार्ग पर ले जाती है उसी प्रकार देशों का भी इस प्रकार का चरित्र उसे विनाश के घर में ले जाता है और यह प्रत्यक्षता इन राष्ट्रों को ले भी जा रहा है क्योंकि यह मूलभूत सृष्टि की नीति है।

अब प्रश्न यह उठता है कि मालदीव किस प्रकार से भारत को अपमानित कर रहा है जबकि उसकी आय का मूलभूत स्रोत और न केवल आएगा बल्कि उसकी सुरक्षा और समृद्धि का कारण भी भारतवर्ष ही है। किंतु यह बात इतनी छोटी नहीं है कि मालदीव केवल एक बार क्षमा प्रार्थी हो जाने पर वह पूरी तरह से सुधर जाएगा क्योंकि यह सुधारना अब उसके वश में नहीं है उसके अपने देश के लोगों में जो शिक्षा के संस्कार जो नीति के संस्कार गहरे उतर गए हैं वह कट्टरता की ओर जा रहे हैं और कट्टरता की ओर जाने के कारण वह अब और अधिक कट्टरता की ओर जाएंगे क्योंकि उन्हें रोकने वाली और कोई सट्टा उन पर प्रभाव नहीं डाल सकती। वर्तमान में उनकी नीतियां कैसी है यह एक उदाहरण से समझी जा सकती है ऑस्ट्रेलिया की आई हुई एक पर्यटक लड़की के साथ जब वहां पर बलात्कार हुआ तो उसने पुलिस में अपनी समस्या रखनी चाही। उनका सहयोग लेना चाह और अपराधियों को दंड दिलाना चाहा। किंतु मालदीव की समस्या मालदीव की नीति इस प्रकार की है जिस प्रकार की पाकिस्तान की है कि वह रेप या बलात्कार को एक भयंकर अपराध न मानकर एक सामान्य घटना की तरह देखते हैं। और उसमें किसी भी प्रकार की रुचि लेने से दूर रहते हैं वही उसे छात्रा के साथ भी हुआ और वह निराश होकर ऑस्ट्रेलिया चली गई। यह एक उदाहरण है। इसी प्रकार की अनेकों नीतियां भी मालदीव को इस प्रकार का स्थान बनाती हैं जहां पर पर्यटन के लिए न जाना ही उचित है।

अब विकल्प के रूप में क्यों लक्षद्वीप में जाना चाहिए तो पहले तो बात यह है कि लक्षद्वीप भारत का ही अंग है और वहां पर भारत के ही कानून लागू होते हैं। और वह मालदीव की अपेक्षा सुरक्षित है और सुरक्षित होने के साथ-साथ यहां पर खर्च भी उतना नहीं है। और यह है सरलता से यहां से जाया भी जा सकता है। देश की संपत्ति देश में ही हम सुरक्षित रख सकते हैं। और इस बहाने यदि लक्षद्वीप को विकसित किया जाए तो जो दूसरे देशों के लोग हैं, वे भी सरलता से भारत की ओर डायवर्ट हो सकते हैं। जैसे रसिया इटली फ्रांस जर्मनी और भी जहां के पर्यटक मालदीव जाते हैं उन सबको सरलता से लक्षद्वीप में आकर्षित किया जा सकता है। क्योंकि उन दोनों में प्राकृतिक समानता है कानूनी रूप से लक्षद्वीप भारत का अंग होने से अधिक सुरक्षित है और भारत की नीतियां विश्व कल्याण के दृष्टिकोण से अत्यंत अनुकूल हैं। इसके बहुत व्यापक प्रभाव हो सकते हैं कि यदि भारत में ही पर्यटन होता है तो भारत का पैसा बाहर नहीं जाएगा दूसरा इसका असर यह है कि दूसरे देशों का पैसा भारत में आएगा और इस प्रकार से भारत का पैसा बचेगा और बाहर से भी पैसा आएगा तो भारत की समृद्धि बढ़ेगी । और भारत की समृद्धि बढ़ाने पर भारतीय संस्कृति का प्रचार प्रसार होगा और भारतीय संस्कृति के प्रचार प्रसार में वसुधैव कुटुंबकम अर्थात सभी के कल्याण की भावना निहित होने के कारण यह समग्र संसार के लिए कल्याणकारी सिद्ध होगा।

लक्षद्वीप आर्थिक रूप से राजनीतिक रूप से सामाजिक रूप से और संवैधानिक एवं कानूनी नीतियों के माध्यम से उसे एक उत्कृष्ट सारे विश्व में एक अत्यंत उत्कृष्ट और आकर्षित करने वाला पर्यटन स्थल बना सकता है। बस उस पर थोड़ा सा ध्यान देने की आवश्यकता है।