पुरस्कार -कहानी

जयशंकर प्रसाद आर्द्रा नक्षत्र; आकाश में काले-काले बादलों की घुमड़, जिसमें देव-दुन्दुभी का गम्भीर घोष। प्राची के एक निरभ्र कोने से स्वर्ण-पुरुष झाँकने लगा था।-देखने लगा महाराज की सवारी। शैलमाला के अञ्चल में समतल उर्वरा भूमि से सोंधी बास उठ रही थी। नगर-तोरण से जयघोष हुआ, भीड़ में गजराज का चामरधारी शुण्ड उन्नत दिखायी पड़ा। … Read more

उसने कहा था-चन्द्रधर शर्मा गुलेरी

बडे-बडे शहरों के इक्के-गाडिवालों की जवान के कोडाें से जिनकी पीठ छिल गई  है, और कान पक गये हैं, उनसे हमारी प्रार्थना है कि अमृतसर के बम्बूकार्ट वालों की बोली का मरहम लगायें।  जब बडे-बडे शहरों की चौडी सडक़ों पर घोडे क़ी पीठ चाबुक से धुनते हुए, इक्केवाले कभी घोडे क़ी नानी से अपना निकट-सम्बन्ध … Read more

एक टोकरी-भर मिट्टी-माधवराव सप्रे 

किसी श्रीमान् जमींदार के महल के पास एक गरीब अनाथ विधवा की झोंपड़ी थी। जमींदार साहब को अपने महल का हाता उस झोंपड़ी तक बढ़ाने की इच्‍छा हुई, विधवा से बहुतेरा कहा कि अपनी झोंपड़ी हटा ले, पर वह तो कई जमाने से वहीं बसी थी। उसका प्रिय पति और इकलौता पुत्र भी उसी झोंपड़ी … Read more

रांगेय राघव – गदल – कहानी

बाहर शोरगुल मचा। डोडी ने पुकारा – ”कौन है?”कोई उत्तर नहीं मिला। आवाज आई – ”हत्यारिन! तुझे कतल कर दँूगा!”स्त्री का स्वर आया – ”करके तो देख! तेरे कुनबे को डायन बनके न खा गई, निपूते!”डोडी बैठा न रह सका। बाहर आया।”क्या करता है, क्या करता है, निहाल?” – डोडी बढक़र चिल्लाया – ”आखिर तेरी … Read more

  || निर्मल वर्मा || परिन्दे ||

अँधेरे गलियारे में चलते हुए लतिका ठिठक गयी। दीवार का सहारा लेकर उसने लैम्प की बत्ती बढ़ा दी। सीढ़ियों पर उसकी छाया एक बैडौल कटी-फटी आकृति खींचने लगी। सात नम्बर कमरे में लड़कियों की बातचीत और हँसी-ठहाकों का स्वर अभी तक आ रहा था। लतिका ने दरवाजा खटखटाया। शोर अचानक बंद हो गया। “कौन है?” … Read more