कबीर ग्रंथावली (संपादक- हजारी प्रसाद  द्विवेदी) पद संख्या 170 अर्थ सहित

पद:170 वै क्यू कासी तजै मुरारी। तेरी सेवा-चोर भये बनवारी।। जोगी-जती-तपी संन्यासी। मठ-देवल बसि परसै कासी।। तीन बार जे नित् प्रति न्हावे। काया भीतरि खबरि न पावे।।देवल-देवल फेरी देही। नांव निरंजन कबहुँ न लेही।।चरन-विरद-कासी को न दैहूं। कहै कबीर भल नरकहि जैहूं।। शब्दार्थ :  –   देवल=देवालय । अरसं = स्पशॆ, उपयोग । विरद=यश । … Read more

कबीर ग्रंथावली (संपादक- हजारी प्रसाद  द्विवेदी) पद संख्या 171 अर्थ सहित

पद: 171 बहुविध चित्र बनाय कै, हरि रच्यौ क्रीडा-रास। जेहि न इच्छा झुलिवे की, ऐसी बुधि केहि पास।। झुलत-झुलत बहु कलप बीते, मन न छोड़े आस। रचि हिंडोला अहो-निसि हो चारि जुग चौमास।। कबहुँ ऊँचसे नीच कबहूँ, सरग-भूमि ले जाय। अति भ्रमत भरम हिंड़ोलवा हो, नेकु नहिं ठहराया।। डरत हौं यह झूलबे को, राखु जादवराय। … Read more

कबीर ग्रंथावली (संपादक- हजारी प्रसाद  द्विवेदी) पद संख्या 172 अर्थ सहित

पद: 172 चली मैं खोजमे पियकी। मिटी नहीं सोच यह जियकी।। रहे नित पास ही मेरे। न पाऊँ यार को हेरे।। बिकल चहुँ ओरको धाऊँ। तबहुँ नहिं कंतको पाऊँ।। धरो केहि भाँतिसो धीरा। गयौ गिर हाथ से हीरा।। कटी जब नैन की झांई। लख्यौ तब गगनमें साईं।। कबीरा शब्द कहि त्रासा। नयन में यारको बासा।।    … Read more

कबीर ग्रंथावली (संपादक- हजारी प्रसाद  द्विवेदी) पद संख्या 173 अर्थ सहित

पद: 173 तलफै बिन बालम मोर जिया। दिन नहिं चैन रात नहिं निंदिया, तलफ तलफके भोर किया। तन-मन मोर रहंट-अस डोलै, सून सेज पर जनम छिया। नैन चकित भए पंथ न सूझै, साईँ बेदरदी सुध न लिया। कहत कबीर सुनो भइ साधो, हरो पीर दुख जोर किया। भावार्थ :- कबीर दास जी अपनी विरह वेदना … Read more

कबीर ग्रंथावली (संपादक- हजारी प्रसाद  द्विवेदी) पद संख्या 174 अर्थ सहित

पद: 174 अबिनासी दुलहा कब मिलिहौ, भक्तन के रछपाल॥टेक॥ जल उपजल जल ही से नेहा, रटत पियास पियास। मैं बिरहिनि ठाढ़ी मग जोऊँ, प्रीतम तुम्हरी आस॥1॥ छोड़्यो गेह नेह लगि तुमसे, भई चरन लौलीन। तालाबेलि होत घट भीतर, जैसे जल बिन मीन॥2॥ दिवस न भूख रैन नहिं निद्रा, घर अँगना न सुहाय। सेजरिया बैरिनि भइ … Read more

कबीर ग्रंथावली (संपादक- हजारी प्रसाद  द्विवेदी) पद संख्या 175 अर्थ सहित

पद: 175 नैना अंतरि आव तू, ज्यूं हौं नैन झंपेउ। ना हौं देखूं और कूं, नां तुझ देखन देऊँ। कबीर रेख सिन्दूर की काजल दिया न जाई। नैनूं रमैया रमि रहा,  दूजा कहाँ समाई । मन परतीति न प्रेम-रस, ना इस तन में ढंग। क्या जाणौ उस पीव सूं कैसी रहसि संग।।” भावार्थ :- कबीरदास … Read more

कबीर ग्रंथावली (संपादक- हजारी प्रसाद  द्विवेदी) पद संख्या 176 अर्थ सहित

पद: 176 नैंनो की करि कोठरी, पुतली पलंग बिछाय। पलकों की चिक डारि कै, पिय को लिया रिझाय।।1।। प्रियतम को पतिया लिखूं, कहीं जो होय बिदेस। तनमें, मनमें, नैनमें, ताकौ कहा संदेस।।2।। भावार्थ :-  कबीर दास जी कहते हैं कि अपने निर्गुण राम रूपी प्रियतम को रिझाने के लिए मैं क्या करूंगी तो कहते हैं … Read more

कबीर ग्रंथावली (संपादक- हजारी प्रसाद  द्विवेदी) पद संख्या 177-178 अर्थ सहित

पद: 177 अँखियाँ तो झांई परी, पंथ निहारि-निहारि। जीभड़ियाँ छाला पड्या, राम पुकारि-पुकारि। विरह कमंडल कर लिये वैरागी दो नैन । माँगै दरस मधूकरी छके रहैं दिन रैन ॥ सब रंग तात रबाब तान, विरह बजाबै नित्त और न कोई सुनि सकै, कै साईं कै चित्त।। भावार्थ :- संत कबीर जी कहते हैं कि ईश्वर … Read more

कबीर ग्रंथावली (संपादक- हजारी प्रसाद  द्विवेदी) पद संख्या 179 -180 अर्थ सहित

पद: 179 दुलहिनि तोहि पियके घर जाना। काहे रोवो काहे गावो काहे करत वहाना।। काहे पहिरयौ हरि हरि चुरियाँ पहिरयौ प्रेम कै बाना। कहै कबीर सुनो भाई साधो, बिन पिया नहिं ठिकाना।। भावार्थ:-  कबीरदास जी कहते हैं की हे मनुष्य अथवा तो है प्राणियों तुम तो उस दुल्हन की तरह है जिसे 1 दिन अपने … Read more

कबीर ग्रंथावली (संपादक- हजारी प्रसाद  द्विवेदी) के पद संख्या 181-183 अर्थ सहित

kabir ke pad arth sahit. कबीर के पद पद: 181 अब तोहि जान न देहुँ राम पियारे ज्यूँ भावै त्यूँ होहु हमारे॥ बहुत दिननके बिछुरे हरि पाये,, भाग बड़े घर बैठे आये। चरननि लागि करौं बरियाई। प्रेम प्रीति राखौं उरझाई। इत मन-मंदिर रहौ नित चोपै, कहै कबीर करहु मति घोषैं॥ भावार्थ :- संत कबीर दास … Read more