कबीर ग्रंथावली (संपादक- हजारी प्रसाद द्विवेदी) पद संख्या 170 अर्थ सहित
पद:170 वै क्यू कासी तजै मुरारी। तेरी सेवा-चोर भये बनवारी।। जोगी-जती-तपी संन्यासी। मठ-देवल बसि परसै कासी।। तीन बार जे नित् प्रति न्हावे। काया भीतरि खबरि न पावे।।देवल-देवल फेरी देही। नांव निरंजन कबहुँ न लेही।।चरन-विरद-कासी को न दैहूं। कहै कबीर भल नरकहि जैहूं।। शब्दार्थ : – देवल=देवालय । अरसं = स्पशॆ, उपयोग । विरद=यश । … Read more