नमक का दारोगा – मुंशी प्रेमचंद

जब नमक का नया विभाग बना और ईश्वरप्रदत्त वस्तु के व्यवहार करने का निषेध हो गया तो लोग चोरी-छिपे इसका व्यापार करने लगे। अनेक प्रकार के छल-प्रपंचों का सूत्रपात हुआ, कोई घूस से काम निकालता था, कोई चालाकी से। अधिकारियों के पौ-बारह थे। पटवारीगिरी का सर्वसम्मानित पद छोड-छोडकर लोग इस विभाग की बरकंदाजी करते थे। … Read more

रानी केतकी की कहानी

-सैयद इंशा अल्ला खां यह वह कहानी है कि जिसमें हिंदी छुट।और न किसी बोली का मेल है न पुट॥सिर झुकाकर नाक रगडता हूं उस अपने बनानेवाले के सामने जिसने हम सब को बनाया और बात में वह कर दिखाया कि जिसका भेद किसी ने न पाया। आतियां जातियां जो साँ सें हैं, उसके बिन … Read more

मारे गये गुलफाम (तीसरी कसम)

कहानी : फणीश्‍वरनाथ रेणु हिरामन गाड़ीवान की पीठ में गुदगुदी लगती है… पिछले बीस साल से गाड़ी हाँकता है हिरामन। बैलगाड़ी। सीमा के उस पार, मोरंग राज नेपाल से धान और लकड़ी ढो चुका है। कंट्रोल के जमाने में चोरबाजारी का माल इस पार से उस पार पहुँचाया है। लेकिन कभी तो ऐसी गुदगुदी नहीं … Read more

राजा निरबंसिया

कमलेश्वर   ”एक राजा निरबंसिया थे,” मां कहानी सुनाया करती थीं। उनके आसपास ही चार-पांच बच्चे अपनी मुठ्ठियों में फूल दबाए कहानी समाप्त होने पर गौरों पर चढाने के लिए उत्सुक-से बैठ जाते थे। आटे का सुन्दर-सा चौक पुरा होता, उसी चौक पर मिट्टी की छः गौरें रखी जातीं, जिनमें से ऊपरवाली के बिन्दिया और सिन्दूर … Read more

कितने पाकिस्तान – कमलेश्वर

कितना लम्बा सफर है! और यह भी समझ नहीं आता कि यह पाकिस्तान बार-बार आड़े क्यों आता रहा है। सलीमा! मैंने कुछ बिगाड़ा तो नहीं तेरा…तब तूने क्यों अपने को बिगाड़ लिया? तू हंसती है…पर मैं जानता हूं, तेरी इस हंसी में जहर बुझे तीर हैं। यह मेहंदी के फूल नहीं हैं सलीमा, जो सिर्फ … Read more

जयशंकर प्रसाद : प्रतिध्वनि

आर्द्रा नक्षत्र; आकाश में काले-काले बादलों की घुमड़, जिसमें देव-दुन्दुभी का गम्भीर घोष। प्राची के एक निरभ्र कोने से स्वर्ण-पुरुष झाँकने लगा था।-देखने लगा महाराज की सवारी। शैलमाला के अञ्चल में समतल उर्वरा भूमि से सोंधी बास उठ रही थी। नगर-तोरण से जयघोष हुआ, भीड़ में गजराज का चामरधारी शुण्ड उन्नत दिखायी पड़ा। वह हर्ष … Read more

रांगेय राघव – गदल – कहानी

बाहर शोरगुल मचा। डोडी ने पुकारा – ”कौन है?”कोई उत्तर नहीं मिला। आवाज आई – ”हत्यारिन! तुझे कतल कर दँूगा!”स्त्री का स्वर आया – ”करके तो देख! तेरे कुनबे को डायन बनके न खा गई, निपूते!”डोडी बैठा न रह सका। बाहर आया।”क्या करता है, क्या करता है, निहाल?” – डोडी बढक़र चिल्लाया – ”आखिर तेरी … Read more

मातृभूमि  – अर्थ साहित

मैथिलीशरण गुप्त एक नीलांबर परिधान हरित पट पर सुंदर है,सूर्य-चंद्र युग मुकुट मेखला रत्नाकर है।नदियाँ प्रेम-प्रवाह फूल तारे मंडन हैं,बंदी जन खग-वृंद शेष फन सिंहासन हैं!करते अभिषेक पयोद हैं बलिहारी इस वेष की,है मातृभूमि !  तू सत्य ही सगुण मूर्ति सर्वेश की॥ दो मृतक-समान अशक्त विविश आँखों को मीचे;गिरता हुआ विलोक गर्भ से हमको नीचे।करके … Read more

शतरंज के खिलाड़ी

प्रेमचंद वाजिदअली शाह का समय था। लखनऊ विलासिता के रंग में डूबा हुआ था। छोटे-बड़े, गरीब-अमीर सभी विलासिता में डूबे हुए थे। कोई नृत्य और गान की मजलिस सजाता था, तो कोई अफीम की पीनक ही में मजे लेता था। जीवन के प्रत्येक विभाग में आमोद-प्रमोद का प्राधान्य था। शासन-विभाग में, साहित्य-क्षेत्र में, सामाजिक अवस्था … Read more

मध्यप्रदेश की  भाषा और बोली (MP Ki Bhasha Aur Boli)

मध्यप्रदेश की मुख्य भाषा हिन्दी है। प्रदेश में हिन्दी का व्यवहार व्यापक रूप से होता है। हिन्दी की लिपि देवनागरी है। हिन्दी का प्रयोग यहाँ गाँव से लगाकर शहर तक सरकारी काम-काज, शिक्षा, पठन-पाठन और सामान्य पत्र व्यवहार में किया जाता है। हिन्दी के साथ अन्य भाषा-भाषी लोग भी मध्यप्रदेश में रहते हैं। जो अपनी-अपनी … Read more