कबीर ग्रंथावली (संपादक- हजारी प्रसाद द्विवेदी) के पद संख्या 204-205 अर्थ सहित
kabir ke pad arth sahit. पद: 204 काल खड़ा सिर उपरे, जागु बिराने मीत जाका घर है गैलमे, सो कस सोय निचीत।।1।। भावार्थ : मोह की निद्रा में सोए हुए लोगों को वे कहते हैं कि हे मित्र! सर पर काल खड़ा है किसी भी समय मृत्यु आ सकती है इसलिए अब परमार्थ को प्राप्त … Read more