कबीर ग्रंथावली (संपादक- हजारी प्रसाद द्विवेदी) पद संख्या 193 अर्थ सहित
पद: 193 मेरी अंखियाँ जांन सुजांन भई। देवर गरम सुसर संग तजि करि, हरि पीव तहाँ गई।। बालपनैके करम हमारे, काटे जानि दई। बाँह पकरि करि किरपा किन्हीं, आप समींप लई।। पानींकी बूँदेथे जिनि प्यंड साज्या, ता संगि अधिक करई। दास कबीर पल प्रेम न घटई, दिन दिन प्रीति नई।। रई =रत हुई। भावार्थ … Read more