कबीर ग्रंथावली (संपादक- हजारी प्रसाद द्विवेदी) पद संख्या 177-178 अर्थ सहित
पद: 177 अँखियाँ तो झांई परी, पंथ निहारि-निहारि। जीभड़ियाँ छाला पड्या, राम पुकारि-पुकारि। विरह कमंडल कर लिये वैरागी दो नैन । माँगै दरस मधूकरी छके रहैं दिन रैन ॥ सब रंग तात रबाब तान, विरह बजाबै नित्त और न कोई सुनि सकै, कै साईं कै चित्त।। भावार्थ :- संत कबीर जी कहते हैं कि ईश्वर … Read more