कबीर ग्रंथावली (संपादक- हजारी प्रसाद द्विवेदी) पद संख्या 179 -180 अर्थ सहित
पद: 179 दुलहिनि तोहि पियके घर जाना। काहे रोवो काहे गावो काहे करत वहाना।। काहे पहिरयौ हरि हरि चुरियाँ पहिरयौ प्रेम कै बाना। कहै कबीर सुनो भाई साधो, बिन पिया नहिं ठिकाना।। भावार्थ:- कबीरदास जी कहते हैं की हे मनुष्य अथवा तो है प्राणियों तुम तो उस दुल्हन की तरह है जिसे 1 दिन अपने … Read more