6. हजारी प्रसाद द्विवेदी – नाखून क्यों बढ़ते हैं

Tag: ( हजारी प्रसाद द्विवेदी नाखून क्यों बढ़ते हैं? निबंध, निबंध – नाखून क्यों बढ़ते हैं?, हजारी प्रसाद द्विवेदी) बच्‍चे कभी-कभी चक्‍कर में डाल देनेवाले प्रश्‍न कर बैठते हैं। अल्‍पज्ञ पिता बड़ा दयनीय जीव होता है। मेरी छोटी लड़की ने जब उस दिन पूछ दिया कि आदमी के नाखून क्‍यों बढ़ते हैं, तो मैं कुछ सोच … Read more

7. विद्यानिवास मिश्र – मेरे राम का मुकुट भीग रहा है 

Tags: ( विद्यानिवास मिश्र मेरे राम का मुकुट भीग रहा है निबंध , निबंध मेरे राम का मुकुट भीग रहा है विद्यानिवास मिश्र) Tags: ( विद्यानिवास मिश्र मेरे राम का मुकुट भीग रहा है निबंध , निबंध मेरे राम का मुकुट भीग रहा है विद्यानिवास मिश्र,) महीनों से मन बेहद-बेहद उदास है। उदासी की कोई … Read more

8.अध्यापक पूर्ण सिंह – मजदूरी और प्रेम 

tag : ( सरदार पूर्ण सिंह मजदूरी और प्रेम निबंध,  सरदार पूर्ण सिंह,अध्यापक पूर्ण सिंह – मजदूरी और प्रेम,मजदूरी और प्रेम , majduri aur prem poorna singh,  ) tag : ( सरदार पूर्ण सिंह मजदूरी और प्रेम निबंध,  सरदार पूर्ण सिंह,अध्यापक पूर्ण सिंह – मजदूरी और प्रेम,मजदूरी और प्रेम , majduri aur prem poorna singh,  … Read more

9.कुबेरनाथ राय – उत्तराफाल्गुनी के आस-पास

 Tag: (कुबेरनाथ राय उत्तराफाल्गुनी के आसपास निबंध,निबंध उत्तराफाल्गुनी के आसपास कुबेरनाथ राय)    Tag: (कुबेरनाथ राय उत्तराफाल्गुनी के आसपास निबंध,निबंध उत्तराफाल्गुनी के आसपास कुबेरनाथ राय) वर्षा ऋतु की अंतिम नक्षत्र है उत्तराफाल्गुनी। हमारे जीवन में गदह-पचीसी सावन-मनभावन है, बड़ी मौज रहती है, परंतु सत्ताइसवें के आते-आते घनघोर भाद्रपद के अशनि-संकेत मिलने लगते हैं और तीसी के … Read more

10.विवेकी राय – उठ जाग मुसाफिर 

uth jaagmusafir nibandh-viveki rai      ‘उठ जाग मुसाफ़िर’ की भूमिका में विवेकी राय ने लिखा है- ‘‘कई बार चर्चाओं में यह बात आई कि ललित निबन्ध एक ठहरी हुई विधा है और इसमें अब ज्यादा कुछ लिखने-करने की सम्भावना नहीं है .’’(पृष्ठ ७) ठीक यही बात रामस्वरूप चतुर्वेदी ने अपनी पुस्तक ‘हिन्दी साहित्य संवेदना का विकास’ … Read more

नामवर सिंह : संस्कृति और सौंदर्य आलोचना

‘अशोक के फूल’ केवल एक फूल की कहानी नहीं, भारतीय संस्‍कृति का एक अध्‍याय है; और इस अध्‍याय का अनंगलेख पढ़नेवाले हिंदी में पहले व्‍यक्ति हैं हजारीप्रसाद द्विवेदी। पहली बार उन्‍हें ही यह अनुभव हुआ कि ‘एक-एक फूल, एक-एक पशु, एक-एक पक्षी न जाने कितनी स्‍मृतियों का भार लेकर हमारे सामने उपस्थित है। अशोक की … Read more