अकाल और उसके बाद / नागार्जुन

कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदासकई दिनों तक कानी कुतिया सोई उनके पासकई दिनों तक लगी भीत पर छिपकलियों की गश्तकई दिनों तक चूहों की भी हालत रही शिकस्त।दाने आए घर के अंदर कई दिनों के बादधुआँ उठा आँगन से ऊपर कई दिनों के बादचमक उठी घर भर की आँखें कई दिनों के … Read more

सतपुड़ा के जंगल

सतपुड़ा के जंगलभवानीप्रसाद मिश्र सतपुड़ा के घने जंगल नींद में डूबे हुए-से, ऊँघते अनमने जंगल। झाड़ ऊँचे और नीचे चुप खड़े हैं आँख भींचे; घास चुप है, काश चुप है मूक शाल, पलाश चुप है; बन सके तो धँसो इनमें, धँस न पाती हवा जिनमें, सतपुड़ा के घने जंगल नींद में डूबे हुए-से ऊँघते अनमने … Read more

गजानन माधव मुक्तिबोध-भूल-गलती कविता

भूल-गलती आज बैठी है जिरहबख्तर पहनकर तख्त पर दिल के; चमकते हैं खड़े हथियार उसके दूर तक, आँखें चिलकती हैं नुकीले तेज पत्थर सी, खड़ी हैं सिर झुकाए           सब कतारें                    बेजुबाँ बेबस सलाम में, अनगिनत खंभों व मेहराबों-थमे                            दरबारे आम में। सामने बेचैन घावों की अजब तिरछी लकीरों से कटा चेहरा कि जिस पर काँप … Read more

सरोज-स्मृति

सरोज-स्मृति(सूर्यकांत त्रिपाठी निराला)ऊनविंश पर जो प्रथम चरण तेरा वह जीवन-सिंधु-तरण; तनय, ली कर दृक्-पात तरुण जनक से जन्म की विदा अरुण! गीते मेरी, तज रूप-नाम वर लिया अमर शाश्वत विराम पूरे कर शुचितर सपर्याय जीवन के अष्टादशाध्याय, चढ़ मृत्यु-तरणि पर तूर्ण-चरण कह—“पितः, पूर्ण आलोक वरण करती हूँ मैं, यह नहीं मरण, ‘सरोज’ का ज्योतिःशरण—तरण— अशब्द … Read more

Asadhya Veena-असाध्य वीणा

पूरी कविता पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें। लिंक गूगल डॉक्स में खुल जाएगी इसलिए गूगल डॉक्स ऐप आपके मोबाइल में हो यह निश्चित करें। https://docs.google.com/document/d/e/2PACX-1vQMh2OOnehWIX7Mmdm19-nh-GA9DB97UmNd8owoFf81JoPeG-_X4yEESTIQrcI3m1E1mEnfEQWbC4Qp/pub

Yama-Mahadevi Verma pdf download

यामा महादेवी वर्माYama Mahadevi Verma‘यामा’ में शामिल रचनायें नीहार, रश्मि, नीरजा और सांध्यगीत काव्य संग्रहों में से ली गई हैं । नीहार (प्रथम याम) निशा की, धो देता राकेश-विसर्जनमैं अनन्त पथ में लिखती जो-मिटने का खेलनिश्वासों का नीड़-संसारवे मुस्काते फूल, नहीं-अधिकारघायल मन लेकर सो जाती-निर्वाणजिन नयनों की विपुल नीलिमा-समाधि के दीप सेछाया की आँखमिचौनी-अभिमानघोर तम … Read more

मातृभूमि  – अर्थ साहित

मैथिलीशरण गुप्त एक नीलांबर परिधान हरित पट पर सुंदर है,सूर्य-चंद्र युग मुकुट मेखला रत्नाकर है।नदियाँ प्रेम-प्रवाह फूल तारे मंडन हैं,बंदी जन खग-वृंद शेष फन सिंहासन हैं!करते अभिषेक पयोद हैं बलिहारी इस वेष की,है मातृभूमि !  तू सत्य ही सगुण मूर्ति सर्वेश की॥ दो मृतक-समान अशक्त विविश आँखों को मीचे;गिरता हुआ विलोक गर्भ से हमको नीचे।करके … Read more