कबीर ग्रंथावली (संपादक- हजारी प्रसाद द्विवेदी) पद संख्या 184 -185 अर्थ सहित
पद: 184 हमरी ननंद निगोडिन जागे। कुमति लकुटिया निसि-दिन ब्यापै, सुमति देखि नहिं भावै। निसि-दिन लेत नाम साहबको, रहत रहत रँग लागै। निसिदिन खेलत रही सखियन-सँग, मोहिं बड़ो डर लागै। मोरे साहबकी ऊँची अटरिया, चढ़तमे जियरा काँपै। जो सुख चहै तो लज्जा त्यागै, पियसे हिलि-मिलि लागै। घूँघट खोल अंग-भर भेंट, नैन-आरती साजै। कहै कबीर सुनो … Read more