व्यायाम की आवश्यकता तथा उसके मूलतत्व
योगिक अभ्यास (व्यायाम ) की आवश्यकता :
श्री योग वशिष्ठ मा रामायण नामक महान ग्रंथ में भगवान श्री राम के गुरु महर्षि वशिष्ठ जी उन्हें समझाते हुए कहते हैं की है राम जी व्यायाम के बिना या इसे और शुद्ध करके कहें तो योग-अभ्यास के बिना शरीर स्वस्थ और बलवान नहीं रह सकता।
मनुष्य को स्वास्थ्य, सामर्थ्य तथा दीर्घायु की प्राप्ति के लिए शारीरिक व्यायाम की सदैव आवश्यकता रहती है और अब भी है। आजकल तो यह अनिवार्य ही है, क्योंकि इसके द्वारा वे इस वर्तमान समय के कठिन जीवन-संग्राम मे अपनी, अपने सम्प्रदाय तथा अपने देश की रक्षा करने और अपनी आजीविका उपार्जन करने के योग्य हो सकते हैं। व्यायाम जीवन के लिए इतना आवश्यक है, जितना पुष्टिकर भोजन, निर्मल जल, शुद्ध वायु और सूर्य का प्रकाश ।
यहां यह समझ लेना भी आवश्यक है कि हमें शारीरिक अभ्यास अथवा व्यायाम कितना करना चाहिए तो इसके विषय में एक सामान्य समझ यह है कि हमारी जितनी शारीरिक शक्ति या समर्थ है उसका आधा ही हमें शारीरिक व्यायाम या अभ्यास में लगाना चाहिए जैसे माथे पर पसीना आ जाए या कांख में पसीना आने लगे तब हमें व्यायाम करना रोक देना चाहिए। अति सर्वत्र वर्जित के अनुसार यदि आप किसी भी चीज की आति करते हैं तो उसे फिर हानी होना या अहित होना निश्चित हो जाता है।
ऋषियों ने मंत्र और व्यायाम सहित एक ऐसी प्रणाली विकसित की है जिसमें सूर्योपासना का भी समन्वय हो जाता है। इसे सूर्यनमस्कार कहते हैं। सूर्य नमस्कार इन्हीं शब्दों से भगवान सूर्यनारायण को नमस्कार करने की पद्धति का पता चलता है।
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यह विधि लाखों वर्ष पूर्व आध्यात्मिक शक्तियों के सम्राट महानतम् ऋषियों के द्वारा प्रकाशित हुई है। दीर्घकाल की अनुभवाग्नि में तपकर परखी हुई है। इसमें व्यायाम एवं आसन दोनों का समावेश है। इसमें प्राणायाम एवं ही मंत्र के उच्चारण के साथ ही उपासना की जाती है। भगवान भास्कर आरोग्य, बल, बुद्धि व तेज के प्रदाता हैं।
शास्त्र कहते हैं कि सूर्यनमस्कार का अभ्यास करने वाला हजारों जन्मों तक दरिद्र नहीं होता। इससे शरीर के पुर्जे पुर्जे को व्यायाम मिल जाता है। प्राणायाम स्वयमेव हो जाते हैं। शरीर, मन व बुद्धि के सर्वांगीण विकास का पथ आलोकित हो जाता है। इसमें कुल १० आसनों का समावेश है। हमारी शारीरिक शक्ति की उत्पत्ति, स्थिति तथा वृद्धि सूर्य पर आधारित है। जो लोग सूर्यस्नान करते हैं, सूर्योपासना करते हैं वे सदैव स्वस्थ रहते हैं। सूर्यनमस्कार से शरीर की रक्तसंचरण प्रणाली, श्वास-प्रश्वास की कार्यप्रणाली और पाचन प्रणाली आदि पर असरकारक प्रभाव पडता है। यह अनेक प्रकार के रोगों केकारणों को दूर करने में मदद करता है। सूर्यनमस्कार के नियमित अभ्यास से शारीरिक और मानसिक स्फूर्ति के साथ विचारशक्ति और स्मरणशक्ति तीव्र होती है।
शरीर शास्त्र के सिद्धान्त :
(१) हमारा शरीर हमारी सब से उत्तम सम्पत्ति (property)है ।
(२) स्वास्थ्य की सम्पत्ति हमारी सबसे बड़ी पूंजी(Capital) है।
(३) रोग(बीमारी), स्वास्थ्य सम्बधी नियमों के भंग करने के लिए एक दंड है ।
(४) प्रत्येक पुरुष पुरुषार्थ का एक अति ज्वलन्त उदाहरण हो सकता है और प्रत्येक स्त्री स्त्रीत्व का एक सुन्दर सुदृढ़ तथा सुडौल नमूना बन सकती है, यदि जीवन के नियमों का दृढ़ता-पूर्वक पालन किया जाये ।
स्त्रियाँ और व्यायाम :
उन लोगों के लिए, जिनका यह मत है कि स्त्रियों को व्यायाम की आवश्यकता नहीं है, हमें संत कबीर के वचनों को सुनना चाहिए-
नारो निन्दा मत करो, नारी नर की खान ।
जिस खान से पैदा हुए, ध्रुव प्रहलाद समान ॥
(संत कबीर)
और यह कहने कि आवश्यकता है कि एक दुर्बल और अस्वस्थ माता स्वस्थ, बलवान तथा चिरायु होने वाले बच्चे उत्पन्न नहीं कर सकती । एक लड़की के जीवन की सब से बड़ी इच्छा यह होनी चाहिए कि मैं सुन्दर, सुदृढ़ तथा स्वस्थ बनूँ । स्त्री के लिए माता होना एक ईश्वरीय अधिकार है। संसार में सदा बलवान और स्वस्थ माताएंँ ही उत्तम बच्चे उत्पन्न करती आई हैं।
डाक्टर जोनाज सिल्यूपाज का कथन है कि एक देश का शारीरिक बल साधारणतः वहाँ को महिलाओं के स्वास्थ्य पर निर्भर है। अतः महिलाओं को भी उचित स्थिति के अनुसार सूर्य नमस्कार आदि का अभ्यास करना चाहिए।
गर्भावस्था में जब गर्भ का भार बढ़ने लगता है तब सूर्य नमस्कार का अभ्यास करना रोक लेना चाहिए एवं इस प्रकार मासिक धर्म की अवस्था में भी सूर्य नमस्कार नहीं करने चाहिए क्योंकि शरीर की अवस्था उसे सहन करने के लायक नहीं रह जाती है। गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को आलसी और निष्क्रिय बने रहने की लंबी आदत उनके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है और उनकी संतान अस्वस्थ पैदा हो सकती है अतः यथायोग्य सदा सक्रिय रहें,जितना सक्रिय रहना उनके लिए आवश्यक है। जिस अवस्था में भी जितना सक्रिय रह सकती है और उन्हें रहना चाहिए डॉक्टर वैद्य चिकित्सक आदि की सलाह के अनुसार।
नमस्कार करने कि विधि :
प्रातःकाल शौच स्नानादि से निवृत्त होकर कंबल या टाट (कंतान) का आसन बिछाकर पूर्वाभिमुख खड़े हो जायें। आगे दिये गये चित्र के अनुसार सिद्धस्थिति में हाथ जोड़कर, आँखे बंद करके, हृदय में भक्तिभाव भरकर भगवान आदिनारायण का ध्यान करें:
ध्येय : सदा सवितृमण्डलमध्यवर्ती नारायणः सरसिजासनसन्निविष्टः ।
केयूरवान् मकरकुण्डलवान् किरीटी हारी हिरण्मयवपुर्वृतशंखचक्रः ॥
सवितृमण्ड ल के भीतर रहनेवाले, पद्मासन में बैठे हुए, केयूर, मकर कुण्डल, किरीटधारी तथा हार पहने हुए, शंख-चक्रधारी, स्वर्ण के सदृश दैदीप्यमान शरीरवाले भगवान नारायण का सदा ध्यान करना चाहिए। (आदित्य हृदयः १३८)
आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर।
दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तु ते ॥
हे आदिदेव सूर्यनारायण। मैं आपको नमस्कार करता हूँ। हे प्रकाश प्रदान करनेवाले देव ! आप मुझ पर प्रसन्न हों। हे दिवाकर देव! मैं आपको नमस्कार करता हूँ। आपको मेरा नमस्कार है।
यह प्रार्थना करने के बाद सूर्य के तेरह मंत्रों में से प्रथम मंत्र ॐ मित्राय नमः। के स्पष्ट उच्चारण के साथ हाथ जोड़कर, सिर झुकाकर सूर्य को नमस्कार करें। फिर चित्रो में निर्दिष्ट स्थितियों का क्रमशः आवर्तन करें। यह एक सूर्यनमस्कार हुआ।
अभ्यास :
इस मंत्र द्वारा प्रार्थना करने के बाद निम्नाकिंत मंत्र में एक एक मंत्र का स्पष्ट उच्चारण करते हुए सूर्यनमस्कार की स्थितियों का क्रमबद्ध अनुसरण करें।
१. ॐ मित्राय नमः
२. ॐ रवये नमः
३. ॐ सूर्याय नमः
४. ॐ भानवे नमः
५. ॐ खगाय नमः
६. ॐ पूष्णे नमः
७. ॐ हिरण्यगर्भाय नमः
८. ॐ मरीचये नमः
९. ॐ आदित्याय नमः
१०. ॐ सवित्रे नमः
११. ॐ अर्काय नमः
१२. ॐ भास्कराय नमः
१३. ॐ श्रीसवितृसूर्यनारायणाय नमः
पहली स्थितिः
मंत्र : ॐ मित्राय नमः
दोनों पैरों की एडियाँ और अँगूठे परस्पर लगे हुए, संपूर्ण शरीर तना हुआ, दृष्टि नासिकाग्र, दोनों हथेलियाँ नमस्कार की मुद्रा में, अँगूठे सीने से लगे हुए।
दूसरी स्थिति :
मंत्र : ॐ रवये नमः
नमस्कार की स्थिति में ही दोनों भुजाएँ सिर के उपर, हाथ सीधे, कोहनियाँ तनी हुई, सिर और कमर से उपर का शरीर पीछे की ओर झुका हुआ, दृष्टि करमूल में, पैर सीधे, घुटने तने हुए, इस स्थिति में आते हुए श्वास भीतर भरें।
तीसरी स्थिति :
मंत्र : ॐ सूर्याय नमः
हाथ को कोहनियों से न मोड़ते हुए सामने से नीचे की ओर झुकें, दोनों हाथ-पैर सीधे, दोनों घुटने और कोहनियाँ तनी हुई, दोनों हथेलियाँ दोनों पैरों के पास जमीन से लगी हुई, ललाट घुटनों से लगा हुआ, ठोड़ी उरोस्थि से लगी हुई, इस स्थिति में आते हुए श्वास को बाहर छोड़ें।
चौथी स्थिति :
मंत्र : ॐ भानवे नमः
बायाँ पैर पीछे, उसका पंजा और घुटना धरती से लगा हुआ, दायाँ घुटना मुड़ा हुआ, दोनों हथेलियाँ पूर्ववत्, भुजाएँ सीधी कोहनियाँ तनी हुई, कन्धे और मस्तक पीछे खींचे हुए, दृष्टि उपर, बायें पैर को पीछे ले जाते समय श्वास को भीतर खीचें।
पाँचवी स्थिति :
मंत्र : ॐ खगाय नमः
दाहिना पैर पीछे लेकर बायें पैर के पास, दोनों हाथ पैर सीधे, एड़ियाँजमीन से लगी हुई, दोनों घुटने और कोहनियाँ तनी हुई, कमर उपर उठायी हुई, सिर घुटनों की ओर खींचा हुआ, ठोड़ी छाती से लगी हुई, एड़ियाँ, कटि और कलाईयाँ इनमें त्रिकोण, दृष्टि घुटनों की ओर, कमर को ऊपर उठाते समय श्वास को छोड़ें।
छठवीं स्थिति :
मंत्र : ॐ पूष्णे नमः
साष्टांग नमस्कार, ललाट, छाती, दोनों हथेलियाँ, दोनों घुटने, दोनों पैरों के पंजे, ये आठ अंग धरती पर टिके हुए, कमर ऊपर उठायी हुई, कोहनियाँ एक दूसरे की ओर खींची हुई, चौथी स्थिति में छोड़ी हुई श्वास बाहर ही रोके रखें।
सातवीं स्थिति :
मंत्र : ॐ हिरण्यगर्भाय नमः
घुटने और जाँचें धरती से सटी हुई, हाथ सीधे, कोहनियाँ तनी हुई, शरीर कमर से ऊपर उठा हुआ। मस्तक पीछे की ओर झुका हुआ दृष्टि ऊपर, कमर हथेलियों की ओर खींची हुई, पैरो के पंजे स्थिर, मेरुदंड धनुषाकार, शरीर को ऊपर उठाते समय श्वास भीतर लें।
आठवीं स्थिति :
मंत्र : ॐ मरीचये नमः
कमर उपर उठायी हुई दोनों हाथ पैर सीधे, दोनों घुटने और कोहनियाँ तनी हुई, दोनों एड़ियाँ धरती पर टिकी हुई, मस्तक घुटनों की ओर खींचा हुआ, ठोडी उरोस्थि से लगी हुई एडियाँ, कटि और कलाइयाँ इनमें त्रिकोण श्वास को बाहर छोड़ें। नौवीं स्थिति में पीछे आगे जानेवाला पैर प्रत्येक सूर्यनमस्कार में बदलें।)
नौवीं स्थिति
मंत्र : ॐ आदित्याय नमः
बायाँ पैर आगे लाकर पैर का पंजा दोनों हथेलियों के बीच पूर्व स्थान पर, दाहिने पैर का पंजा और घुटना धरती पर टिका हुआ, दृष्टि ऊपर की ओर इस स्थिति में आते समय श्वास को भीतर लें, (चौथी और नौवीं स्थिति में पीछे आगे जानेवाला पैर प्रत्येक सूर्यनमस्कार में बदलें)
दसवीं स्थिति :
मंत्र : ॐ सवित्रे नमः
यह स्थिति तीसरी स्थिति की पुनरावृत्ति है, दाहिना पैर आगे लाकर बायें के पास पूर्व स्थान पर रखें, दोनों हथेलियाँ दोनों पैरों के पास धरती पर टिकी हुईं, ललाट घुटनों से लगा हुआ, ठोड़ी उरोस्थि से लगी हुई, दोनों हाथ-पैर सीधे, दोनों घुटने और कोहनियाँ तनी हुई, इस स्थिति में आते समय श्वास को बाहर छोड़ें।
ग्यारहवीं स्थिति:-
मंत्र : ॐ अर्काय नमः
नमस्कार की स्थिति में ही दोनों भुजाएँ सिर के उपर, हाथ सीधे, कोहनियाँ तनी हुई, सिर और कमर से उपर का शरीर पीछे की ओर झुका हुआ, दृष्टि करमूल में, पैर सीधे, घुटने तने हुए, इस स्थिति में आते हुए श्वास भीतर भरें।
बारहवीं या सिद्ध स्थितिः-
मंत्र : ॐ भास्कराय नमः
प्रारंभिक दूसरी स्थिति के अनुसार संपूर्ण शरीर तना हुआ, दोनो पैंरों की एडियाँ और अँगूंठे परस्पर लगे हुए, दृष्टि नासिकाग्र, दोनों हथेलियाँ नमस्कार की मुद्रा में, अगूंठे छाती से लगे हुए, श्वास को भीतर भरें, इस प्रकार एक सूर्यनमस्कार पूर्ण होता है।