116. ‘मेरी तिब्बत यात्रा’ के खंडों को पहले से बाद के क्रम में लगाइए।
A. स-क्य की ओर
B. जैनम् की ओर
C. चाङ् की ओर
D. नेपाल की ओर
E. ल्हासा से उत्तर की ओर
नीचे दिए गए विकल्पों में से सही उत्तर का चयन कीजिए:
(1) B, A, C, D, E
(2) E, A, C, D, B
(3) B, E, A, C, D 00
(4) E, C, A, B, D
UGCNET-EXAM-SECOND-PAPER-HINDI- परीक्षा तिथि -18/06/2024
उत्तर – (4) E, C, A, B, D
A. स-क्य की ओर 3
B. जैनम् की ओर 4
C. चाङ् की ओर 2
D. नेपाल की ओर 5
E. ल्हासा से उत्तर की ओर 1
क्रम
खंड
1. ल्हासा से उत्तर की ओर
2. चाङ् की ओर
3. स-क्य की ओर
4. जेनम् की ओर
5. नेपाल की ओर
परिशिष्ट
1. ल्हासा की ओर
2. तिब्बत में सवा बरस (1929-30 ई.)
3. तिब्बत में तीसरी बार (1936 ई.)
4. तिब्बत में चौथी बार (1938 ई.)
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117. 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के पूर्व हुए विद्रोहों को, पहले से बाद के क्रम में लगाइए।
A. संथाल विद्रोह
B. संन्यासी विद्रोह
C. रामसो विद्रोह
D. सावंतवाड़ी विद्रोह
E. केरल में किसान विद्रोह
नीचे दिए गए विकल्पों में से सही उत्तर का चयन कीजिए:
(1) C, D, E, B, A
(2), B, C, D, E, A
(3) GB, D, A, E
(4) B, C, D, A, E
UGCNET-EXAM-SECOND-PAPER-HINDI- परीक्षा तिथि -18/06/2024
उत्तर – (4) B, C, D, A, E
A. संथाल विद्रोह (1855)
B. संन्यासी विद्रोह (1770-1820)
C. रामसो विद्रोह (1822)
D. सावंतवाड़ी विद्रोह (1844)
E. केरल में किसान विद्रोह
संथाल आंदोलन/विद्रोह (हूल), 1855:-
30 जून 1855 को, दो संथाल विद्रोही नेताओं, सिद्धू मुर्मू और कान्हू मुर्मू ने लगभग 60,000 संथालों को लामबंद किया और ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ विद्रोह की घोषणा की। सिद्धू मुर्मू ने विद्रोह के दौरान समानांतर सरकार चलाने के लिए लगभग दस हजार संथालों को जमा किया था। उनका मूल उद्देश्य अपने स्वयं के कानूनों को बनाकर और लागू करके कर एकत्र करना था।
संथाल लोग भारत की प्राचीनतम जनजातियों में से एक है, किन्तु वर्तमान में इन्हे झारखंडी (जाहेर खोंडी) के रूप में जाना जाता है। झारखंडी का अर्थ झारखंड में निवास करने वाले से नहीं है बल्कि “जाहेर” (सारना स्थल) के “खोंड” (वेदी) में पूजा करने वाले लोग से है, जो प्रकृति को विधाता मानता है। संथाल, गोंड और भील के बाद देश का तीसरा सबसे बड़ा अनुसूचित जनजाति समुदाय है। यह झारखण्ड की सबसे बड़ी जनजति है। 2022 में देश की 15वीं राष्ट्रपति बनी द्रौपदी मुर्मू इसी जनजाति से हैं। वह भारत की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति हैं।
संन्यासी विद्रोह
- संन्यासी विद्रोह बंगाल में वर्ष 1770-1820 के बीच हुआ था।
- बंगाल में वर्ष 1770 के भीषण अकाल के बाद संन्यासी विद्रोह शुरू हुआ जिससे घोर अराजकता और दुर्दशा उत्पन्न हुई।
- हालाँकि विद्रोह का तात्कालिक कारण हिंदुओं और मुसलमानों दोनों के पवित्र स्थानों हेतु जाने वाले तीर्थयात्रियों पर अंग्रेज़ो द्वारा लगाए गए प्रतिबंध थे।
रामोसी विद्रोह (1822)
सतारा में रामोसी विद्रोह चित्तूर सिंह के नेतृत्व में 1822 में हुआ था।
सावंतवाड़ी विद्रोह (1844)
1844 में सावंतवाड़ी के मराठा सरदार फोंड सावंत ने अन्य सरदारों के सहयोग से विद्रोह का नेतृत्व किया। विद्रोहियों ने अंग्रेजों के खिलाफ अपने संघर्ष में किलों पर कब्जा कर लिया, लेकिन अंततः गोवा में शरण ली। विद्रोहियों के पकड़े जाने के साथ ही विद्रोह समाप्त हो गया।
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118. ‘बाणभट्ट की आत्मकथा’ के पात्र हैं:
A. लोरिकदेव
B. मातृगुप्त
C. नागदत्त
D. कुमार कृष्णवर्द्धन
E. विरतिवज्र
नीचे दिए गए विकल्पों में से सबसे उपयुक्त उत्तर का चयन कीजिए:
(1) केवल A, B और C
(3) केवल B, D और E
(2) केवल A, D और E
(4) केवल C, D और E
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उत्तर – (2) केवल A, D और E
A. लोरिकदेव ✅
B. मातृगुप्त
C. नागदत्त
D. कुमार कृष्णवर्द्धन
E. विरतिवज्र ✅
इस उपन्यास में पात्रों का एक विराट संसार है। अनेक पात्र ऐसे हैं जो थोड़ी देर के लिए उपन्यास में आते हैं और अपनी छाप छोड़कर गायब हो जाते हैं। उपन्यास के प्रारम्भ में ही हमें ऐसे अनेक पात्र मिलते हैं। इस उपन्यास के अधिकतर पात्र आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी के मानस की उपज हैं। कथा का ताना-बाना उन्होंने इस तरह बुना है कि ये काल्पनिक पात्र भी हमें ऐतिहासिक लगने लगते हैं। निपुणिका (निउनिया), भट्टिनी, भैरवी, विरतिवज्र, अमोघवज्र, अघोर भैरव, महामाया, मदनश्री, अघोरघण्ट, चण्डमण्डना, सुचरिता, चरुस्मिता, विद्युत्पांगा आदि पात्र काल्पनिक हैं। भट्टिनी और निपुणिका ऐसे पात्र हैं जो काल्पनिक हैं, पर उपन्यास का पूरा कलेवर इन्हीं के इर्द-गिर्द सिमटा हुआ है। सुचरिता की भी गणना उपन्यास के महत्त्वपूर्ण पात्र के रूप में की जा सकती है। महामाया, विरतिवज्र आदि पात्र उपन्यास के उद्देश्य की सम्प्राप्ति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निर्वाह करते हैं।
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119. नवीनचंद्र राय ने किस पत्रिका का प्रकाशन आरंभ किया था?
(1) हिंदी चीप्ति प्रकाश
(2) ज्ञान प्रकाशिनी पत्रिका
(3), आर्थ दर्पण
(4) देश हितैषी
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उत्तर – (2) ज्ञान प्रकाशिनी पत्रिका
नवीनचंद्र ने ब्रह्मसमाज के सिद्धान्तों के प्रचार के उद्देश्य से समय-समय पर कई पत्रिकाएँ भी निकालीं। संवत् 1924 (मार्च, सन् 1867) में उनकी ‘ज्ञानप्रदायिनी पत्रिका’ निकली जिसमें शिक्षासंबंधी तथा साधारण ज्ञान विज्ञानपूर्ण लेख भी रहा करते थे।
120. “हिया जरत रहत दिन रैच। आम की हरिया कोयल बोले तनिक न आवत चैन।”
यह गीत ‘गोदान’ में कौन सा पात्र गाता है?
(1) होरी
(2) धनिया
(3) भोला
(4) पटेश्वरी
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उत्तर – (1) होरी
नीम और सिरस और करौंदे अपनी महक में नशा-सा घोल देते थे। होरी आमों के बाग में पहुँचा तो वृक्षों के नीचे तारे-से खिले थे। उसका व्यथित. निराश मन भी इस व्यापक शोभा और स्फूरती में जैसे डूब गया। तरंग में आ कर गाने लगा –
“हिया जरत रहत दिन-रैन । आम की डरिया कोयल बोले, तनिक न आवत चैन।”
सामने से दुलारी सहुआइन, गुलाबी साड़ी पहने चली आ रही थी। पाँव में मोटे चाँदी के कड़े थे, गले में मोटे सोने की हँसली, चेहरा सूखा हुआ, पर दिल हरा। एक समय था, जब होरी खेत-खलिहान में उसे छेड़ा करता था। वह भाभी थी. होरी देवर था: इस नाते दोनों में विनोद होता रहता था। जब से साहजी मर गए, दुलारी ने घर से निकलना छोड़ दिया। सारे दिन दुकान पर बैठी रहती थी और वहीं से सारे गाँव की खबर लगाती रहती थी। कहीं आपस में झगड़ा हो जाय, सहुआइन वहाँ बीच-बचाव करने के लिए अवश्य पहुँचेगी। आने रुपए सूद से कम पर रुपए उधर न देती थी। और यद्यपि सूद के लोभ में मूल भी हाथ न आता था जो रुपए लेता, खा कर बैठ – रहता – मगर उसके ब्याज का दर ज्यों-का-त्यों बना रहता था। बेचारी कैसे वसूल करे? नालिश-फरियाद करने से रही, थाना-पुलिस करने से रही, केवल जीभ का बल था, पर ज्यों-ज्यों उम्र के साथ जीभ की तेजी बढ़ती जाती थी, उसकी काट घटती जाती थी। अब उसकी गालियों पर लोग हँस देते थे और मजाक में कहते- क्या करेगी रुपए ले कर काकी, साथ तो एक कौड़ी भी न ले जा सकेगी। गरीब को खिला-पिला कर जितनी असीस मिल सके, ले-ले। यही परलोक में काम आएगा। और दुलारी परलोक के नाम से जलती थी।
होरी ने छेड़ा – आज तो भाभी, तुम सचमुच जवान लगती हो। सहुआइन मगन हो कर बोली आज मंगल का दिन है, नजर न लगा देना। इसी मारे मैं कुछ पहनती ओढ़ती नहीं। घर से निकलो तो सभी घूरने लगते हैं, जैसे कभी कोई मेहरिया देखी ही न हो। पटेश्वरी लाला की पुरानी बान अभी तक नहीं छूटी।
होरी ठिठक गया, बड़ा मनोरंजक प्रसंग छिड़ गया था। बैल आगे निकल गए।
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