146. कबीर के ‘बोजक’ की टीका महाराज विश्वनाथ सिंह जू देव ने किस नाम से की ?
(A) बोजक वाणी
(B) त्रिज्या टीका
(C) पाखंडखंडनरी
(D) सधुक्कड़ी संग्रह
उत्तर -(A) बोजक वाणी
147. रचनाओं को उनके रचनाकारों के साथ सुमेलित कीजिए ।
MPPSC सहायक प्राध्यापक परीक्षा-2022 द्वितीय प्रश्न पत्र हिंदी परीक्षा तिथि-09/06/2024-SET-B

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उत्तर – (A)
रसरतन के रचयिता कौन है? पुहकर कवि, कहते हैं कि जहाँगीर ने किसी बात पर इन्हें आगरा में कैद कर लिया था। वहीं कारागार में इन्होंने ‘रसरतन’ नामक ग्रंथ संवत् १६७३ में लिखा जिस पर प्रसन्न होकर बादशाह ने इन्हें कारागार से मुक्त कर दिया।
148. “इनकी भाषा बहुत चलती सरल और शब्दाडंबर मुक्त होती थी। शुद्ध ब्रजभाषा का जो चलतापन और सफाई इनकी और घनानंद की रचनाओं में है वह अन्यत्र दुर्लभ है।” आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने यह किस रचनाकार के लिए कहा ?
(A) मलिक मोहम्मद जायसी
(B) रसखान
(C) सूरदास
(D) नंददास
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उत्तर -(B) रसखान
१३२/हिंदी-साहित्य का इतिहास पृष्ठ क्रमांक -162
इन प्रवादो से कम से कम इतना अवश्य सूचित होता है कि आरंभ से ही ये बडे प्रेमी जीव थे। वही प्रेस अत्यत गूढ़ भगवद्भक्ति मे परिणत हुआ। प्रेम के ऐसे सुंदर उद्गार इनके सवैयों से निकले कि जन-साधारण प्रेम या श्रृंगार सबधी कवित्त-सवैयो को ही ‘रसखान’ कहने लगे – जैसे ‘कोई रसखान सुनाओ’ । इनकी भाषा बहुत चलती, सरस और शब्दाडंबर-मुक्त होती थी। शुद्ध ब्रज- भाषा का जो चलतापन और सफाई इनकी और घनानंद की रचनायो मे है वह अन्यत्र दुर्लभ है। इनका रचना-काल संवत् १६४० के उपरांत ही माना जा सकता है क्योकि गोसाई विठ्ठलनाथजी का गोलोकवास संवत् १६४३ मे हुआ था । प्रेमवाटिका का रचना कोल सं० १६७१ है। अतः उनके शिष्य होने के उपरात ही इनकी मधुर वाणी स्फुरित हुई होगी। इनकी कृति परिमाण मे तो बहुत अधिक नहीं है, पर जो है वह प्रेमियो के मर्म को स्पर्श करनेवाली है। इनकी दो छोटी छोटी पुस्तके अब तक प्रकाशित हुई हैं- प्रेम-वाटिका (दोहे) और सुजान-रसखान (कवित्त सवैया)। और कृष्णभक्तो के समान इन्होंने ‘गीताकाव्य’ का आश्रय न लेकर कवित्त सवैयो मे अपने सच्चे प्रेम की व्यंजना की है ब्रजभूमि के सच्चे प्रेम से पूरिपूर्ण ये दो सबैये इनके अत्यंत प्रसिद्ध है-
मानुष हों तो वही रसखान बसौं सँग गोकुल गॉन के ग्वारन । जौ पसु हों तो कहा बसु मेरो चरी नित नद की धेनु मझारन ॥ पाहून हों तो वही गिरि को जो कियो हरि छत्र पुरदर-धारन । जौ खगं हो तो वसेरो करौं मिलि कालिदि कूल कदव की डारन ।।..
या लकुटी अरु कामरिया पर राज तिहूँ पुर को तजि डारो । आठडु सिद्धि नवौ निधि के सुख’नद की गाय चराय विसारो ॥ नैनन सों रसखान जबै ब्रज के बन बाग तडाग निहारी । केतक ही कलधौत के घाम करील के कु’जनः ऊपर वारौ ।॥
अनुप्रास की सुंदर छटा होते हुए भी ‘भाषा की चुस्ती और सफाई कहीं नहीं जाने पाई है। बीच बीच मे भावो की बडी ही सुंदर व्यंजना है। लीला- पक्ष को लेकर इन्होंने बडी रंजनकारिणी रचनाएँ की है।’
149. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही नहीं है ?
(A) आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार जायसी में शुद्ध भावनात्मक रहस्यवाद मिलता है और कबीर में चिंतनात्मक ।
(B) आचार्य श्यामसुंदर दास के अनुसार कबीर हिन्दी के आदि रहस्यवादी कवि हैं और इनमें शुद्ध भावनात्मक रहस्यवाद की सुंदर सृष्टि हुई है।
(C) जायसी के लिए रहस्यात्मकता कबीर की भाँति साध्य है।
(D) कबीर ने अपने प्रियतम का साक्षात्कार केवल अंतःस्थल में किया है। बाह्य जगत् इनके लिए मिथ्या और माया का प्रतीक है।
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उत्तर – (C) जायसी के लिए रहस्यात्मकता कबीर की भाँति साध्य है।
भक्तिकाल के महान कवियों जायसी और कबीर के काव्य की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता उनका रहस्यवाद है। किंतु, दोनों कवियों के रहस्यवाद की प्रकृति भिन्न है। आचार्य शुक्ल का मत है कि जहाँ कबीर का रहस्यवाद रूखा व शुष्क है, वहीं जायसी का रहस्यवाद सुंदर व रमणीयहै।
150. “प्रभुजी तुम चंदन हम पानी, जाकी अंग-अंग बार समानी।” चर्चित पद के रचयिता हैं
(A) कबीर
(B) रैदास
(C) तुलसीदास
(D) सूरदास
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उत्तर – (B) रैदास
प्रभु जी तुम चंदन हम पानी। जाकी अंग-अंग बास समानी॥
प्रभु जी तुम घन बन हम मोरा। जैसे चितवत चंद चकोरा॥
प्रभु जी तुम दीपक हम बाती। जाकी जोति बरै दिन राती॥
प्रभु जी तुम मोती हम धागा। जैसे सोनहिं मिलत सोहागा।
प्रभु जी तुम स्वामी हम दासा। ऐसी भक्ति करै 'रैदासा॥
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