kabir ke pad arth sahit.
पद: 164
दुलहिन अँगिया काहे न धोवाई।
बालपने की मैली अँगिया बिषय-दाग परि जाई।
बिन धोये पिय रीझत नाहीं, सेजसे देत गिराई।
सुमिरन ध्यानकै साबुन करि ले सत्तनाम दरियाई।
दुबिधाके भेद खोल बहुरिया मनकै मैल धोवाई।
चेत करो तीनों पन बीते, अब तो गवन नागिचाई।
पालनहार द्वार हैं ठाढ़े अब काहे पछिताई।
कहत कबीर सुनो री बहुरिया चित अंजन दे आई।।
भावार्थ :-
इस पद में कबीर दास जी साधकों को या मुक्ति की इच्छा करने वालों को एक दुल्हन के रूप में देखते हैं यहां पर दुल्हन स्वरूप का रूपक प्रयोग किया गया वह कहते हैं की है दुल्हन तूने अंगिया अर्थात अपने शरीर पर धारण किए हुए वस्त्र क्यों धोकर स्वच्छ नहीं कर लिए हैं। यह जो वस्त्र है यह बाल्यावस्था से ही रंग में लगे हैं अर्थात ऐसे कर्म या चेस्ट है जो आपको आत्मानुभूति से विमुख ता की ओर ले जाए ऐसी चेस्ट में बाल्यावस्था में भी बहुत हो जाती है क्योंकि बाल्यावस्था एक तरह से बुद्धिहीन ताकि या अल्प बुद्धि की अवस्था होती है और अल्प बुद्धि के कारण बहुत सी गलतियां उस अवस्था में होती रहती हैं इसलिए वह कहते हैं कि यह अंगिया जो है बाल्यावस्था से ही मेली होने लगी है।
और इसमें इंद्रियों के जो विषय हैं देखना सुनना बोलना स्पर्श शब्द स्पर्श रूप रस और गंध यह जो पांच विषय है उसका हमारे चित्र पर ऐसे जो दाग लगे हुए हैं जो हमें ईश्वर से विमुख करते हैं तो उसे हमें धोकर साफ कर लेने चाहिए ताकि हम सरलता से ईश्वर की ओर जा सके। क्योंकि यहां रूपक दुल्हन के रूप में है अर्थात कबीर दास जी कहते हैं कि यदि आप अपनी अंगिया नहीं धोओगे अर्थात अपने चरित्र को स्वच्छ नहीं करोगे अपने चरित्र के देशों को नहीं निकलोगे तो फिरविवाह के उपरांत जी प्रियतम के साथ उत्तम सेज पर चयन करना है वह तुम्हें सोने नहीं देगा वह तुम्हें धकेल कर नीचे गिरा देगा ।
इसलिए अपने वस्त्र को अर्थात अपनी चित्त शुद्धि रूपी कार्य को कर डालो अर्थात साधना करो। इस चित्र शुद्धि रुपए या मन को शुद्ध करने रूपी कार्य के लिए सुमिरन अर्थात ईश्वर का स्मरण और उसका ध्यान तुम्हें साबुन की तरह उपयोगी सिद्ध होगा अर्थात उसकी सहायता से तुम यह कार्य सुगमता से कर सकोगी। इसके लिए उस सत्य स्वरूप ईश्वर का नाम जप तुम्हें धोने के लिए आवश्यक पानी जो बहते हुए कल कल छल छल नदियों से प्राप्त होता है इस प्रकार तुम्हारे लिए उपयोगी सिद्ध होगा। इस प्रकार हे बहुरानी तेरे मन में जो यह दुविधा है की प्रियतम से मिलन होगा कि नहीं होगा तू अपनी चित्र सुधीर उसी कार्य को करके यह दुविधा त्याग दें कि अवश्य ही चित्त शुद्धि के उपरांत मिलन होगा।
अब तुम्हें बेपरवाह नहीं रहना चाहिए क्योंकि जीवन की तीन अवस्थाएं व्यतीत हो चुकी है और चतुर्थ अवस्था में अवश्य ही यह कार्य कर लेना चाहिए। कबीर जी कहते हैं कि वह ऐसे पालनहार अर्थात ईश्वर तुम्हारे द्वार पर आकर खड़े हैं और अब उनका स्वागत सत्कार अवश्य करना चाहिए नहीं तो फिर पछताना पड़ेगा इसलिए कबीर दास जी कहते हैं की है बहुरानी अब चित्त को ठीक तरह से स्वच्छ कर लो और अपना अभीष्ट प्राप्त करो।
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