पद: 189
गुरु मोहि घुँटिया अजर पिलाई।
जबसे गुरु मोहि घुँटिया पियाई, भई सुचित मेटी दुचिताई।
नाम-औषधि आधार-कटोरी, पियत अघाय कुमति गई मोरी।
ब्रह्मा-विस्नु पिये नहिं पाये, खोजत संभू जन्म गँवाये।
सुरत निरत करि पियै जो कोई, कहै कबीर अमर होय सोई।।
भावार्थ :-
सुन संत कबीरदास जी कहते हैं कि मेरे गुरुदेव ने मेरी जन्म मरण की श्रंखला रूपी व्याधि को देखकर उस रोग को मिटाने के लिए मुझे ऐसी दवा या घुंटिया पिलाई कि मैं अजर हो गया अर्थात मुझे अब कभी वृद्धावस्था नहीं आएगी अर्थात में ब्रह्म रूप हो गया शरीर तो नष्ट हो जाएगा शरीर को तो वृद्धावस्था आएगी पर कबीरदास जी अपने को यहां आत्मस्वरूप से देखते हैं।
जबसे गुरु मोहि घुँटिया पियाई, भई सुचित मेटी दुचिताई।
वह कहते हैं कि इस प्रकार की औषधि या घूटी जब से मेरे गुरुदेवता ने मुझे पिलाई है तब से मैं पवित्र हो गया हूं और मेरी आस सुचिता या अपवित्रता नष्ट हो गई है मैं शुद्ध को प्राप्त हो गया हूं (अब जो मेरे दर्शन करता है मस्त हो जाता है।)
नाम-औषधि आधार-कटोरी, पियत अघाय कुमति गई मोरी।
ब्रह्मा-विस्नु पिये नहिं पाये, खोजत संभू जन्म गँवाये।
और मेरे गुरुदेव ने मुझे उसे नाम रुपी औषधि का रस कटोरी में भर भर कर इस प्रकार पिलाया है कि मैं तृप्त हो गया हूं स्वस्थ हो गया हूं और मेरी कुमति नष्ट हो गई है और इस प्रकार की औषधि ब्रह्मा और विष्णु भी नहीं पी पाए और इसे खोजते खोजते शिव शंभू का जन्म पूरा हो गया है अर्थात मैं उनसे भी अधिक भाग्यवान हूं ऐसा कबीर जी कहना चाहते हैं या भाव है।
सुरत निरत करि पियै जो कोई, कहै कबीर अमर होय सोई।।
जैसे पतंजलि के योगसूत्र का पहला सूत्र है कि योग: चित्त वृत्ति निरोध:। अर्थात चित्त की वृत्ति का विरोध करना ही योग है उसी प्रकार वही बात कबीरदास जी कहते हैं कि सूरत अर्थात चेतना को विलीन कर देने पर साधक सिद्ध हो जाता है उस सूरत को निरत करके जो यह औषधि का पान करता है तो वह कहते हैं कि वह अमर हो जाता है अर्थात वह अमर पद का अनुभव कर लेता है ब्रह्मा का अनुभव कर लेता है।