United Nations In India
Image Source : Google
अभी-अभी समाचार मिल रहे हैं कि भारत सरकार ने संयुक्त राष्ट्र संघ को दी जाने वाली फंडिंग में 54% तक की कटौती की है। मुझे लगता है कि यह कदम अच्छा तो है किंतु यह पर्याप्त नहीं है, क्योंकि भारत हर तरह से UN को जब से वह बना है सपोर्ट करता है। वह शांति सेना के लिए हमारे देश से बड़ी संख्या में सैनिक भेजता है जो अपनी जान की बाजी लगाकर भी सारी दुनिया में शांति के लिए कार्य करते हैं। आर्थिक रूप से भी भारत अच्छी खासी सहायता संयुक्त राष्ट्र संघ को करता है लेकिन उसके उपरांत हमें फल क्या मिलता है, कि हमारे देश में कोई भी आतंकवादी हमला हो जाए कुछ भी हो जाए। उसके बावजूद संयुक्त राष्ट्र संघ में जब हम जाते हैं कि यह अपराधी है और इनको आपको आतंकवादी घोषित करना चाहिए तो संयुक्त राष्ट्र संघ उसमें कुछ नहीं करता है। चीन या ऐसा कोई भी देश वीटो कर देता है। वहां पर जो वीटो की शक्ति है। वह लोकतांत्रिक व्यवस्था के विरुद्ध है जिसमें किसी भी एक सदस्य को जिसके पास वीटो की शक्ति है उसके न कहने पर पूरा का पूरा मामला चौपट हो जाता है। फेल हो जाता है अर्थात् जैसे सांसद या राज्य विधानसभा में कोई बिल पास होता है लेकिन मत कम होने के कारण वह पास नहीं हो पाता वह फेल हो जाता है। उसी प्रकार वहां पर यदि पांच में से चार लोग आपके पक्ष में हैं किंतु एक ने यदि वीटो कर दिया, वीटो का अर्थ है कि उसने न कह दिया तो सारा का सारा बिल पास होने से रह जाता है।
इस तरह की अन्यायपूर्ण अनैतिक और अलोकतांत्रिक व्यवस्था संयुक्त राष्ट्र संघ में होने के बावजूद पता नहीं क्यों भारत की ओर से उन्हें सहायता की जाती है। आखिर हमें उनकी सहायता क्यों करनी चाहिए। क्यों करनी चाहिए? जो न्याय के विरुद्ध कार्य करते हैं जो नीति के विरुद्ध कार्य करते हैं जो यह नहीं देखते कि हम संसार में शांति और सुरक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान देते हैं हमें आखिर वहां पर बलिदान क्यों देना चाहिए जबकि उनकी नीतियां उनकी संरचना अनीति अन्याय और अलोकतांत्रिक नीतियों से भरी पड़ी हैं। इससे यह भी समझ आता है कि भारत सरकार को संयुक्त राष्ट्र की फंडिंग रोक ही देनी चाहिए और दूसरी सहायताएं भी वहां करना बंद कर देना चाहिए। क्योंकि हमारी लाठी और हमारा ही सर होता है। क्या हम इसीलिए ऐसा करते रहेंगे। हम ही उन्हें पैसे देते हैं और वह हमारे ही देश के विरुद्ध संस्कृति के विरुद्ध सुरक्षा के विरुद्ध हम पर अत्याचार करते हैं। आखिर यह क्यों स्वीकार्य होना चाहिए। यह किसी भी रूप में स्वीकार नहीं होना चाहिए क्योंकि यह तो एक छोटा नन्हा बच्चा भी समझ सकता है कि यदि उसके विरुद्ध कोई अन्याय होता है तो वह उसका विरोध करता है।
न्याय का सिद्धांत है कि कृत कारितानुमोदिता अर्थात जो करता है जो करवाता है और जो करने में सहयोग देता है वह सब उसके सहभागी होते हैं। सबका उसके परिणाम में हिस्सा है। अथवा तो उसके हिस्सेदार होते हैं। इस प्रकार से संयुक्त राष्ट्र संघ हमारे विरुद्ध जो अन्यायपूर्ण कार्यवाहियां करता है जो आतंकवादियों को जिस प्रकार से वह सहयोग देता है। उस तरह से हमें वह कतई स्वीकार्य नहीं होना चाहिए। क्योंकि हमारे मूल्य न्याय पर आधारित हैं हमारे सांस्कृतिक मूल्य समानता पर आधारित हैं और हमारे सामाजिक मूल्य लोकतांत्रिक व्यवस्था को समर्पित रहे हैं।
और इनकी ढकोसले बाज व्यवस्था के विरुद्ध हैं।
संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना में भारतीय योगदान
संयुक्त राष्ट्र शांतिरक्षा में भारत की सेवा का एक लंबा और विशिष्ट इतिहास रहा है। भारत ने किसी भी अन्य देश की तुलना में अधिक कर्मियों का योगदान दिया है। 1945 से आज तक, 253000 से अधिक भारतीय दुनिया भर में स्थापित 71 संयुक्त राष्ट्र शांति मिशनों में से 49 में सेवा दे चुके हैं। वर्तमान में, भारत से लगभग 5,500 सैनिक और पुलिस मौजूद हैं। भारत संयुक्त राष्ट्र शांति मिशनों में तैनात, सैन्य योगदान देने वालों में पाँचवाँ सबसे बड़ा देश है।
1950 के दशक में कोरिया में संयुक्त राष्ट्र अभियान में भारत की भागीदारी से शुरुआत हुई थी। कोरिया में युद्धबंदियों पर गतिरोध को सुलझाने में मध्यस्थ की भूमिका के कारण हस्ताक्षर किए गए कोरियाई युद्ध को समाप्त करने वाले युद्धविराम के बारे में भारत नेअपना सकारात्मक दायित्व निभाया था। भारत ने पांच सदस्यीय तटस्थ राष्ट्रों की अध्यक्षता कि थी।
भारत ने पर्यवेक्षण के लिए तीन अंतर्राष्ट्रीय आयोगों के अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया और 1954 के जिनेवा समझौते द्वारा वियतनाम, कंबोडिया और लाओस के लिए नियंत्रण स्थापित करने में सहयोग दिया।
संयुक्त राष्ट्र शांति मिशनों पर महिलाओं को भेजने की एक लंबी परंपरा है। 2007 में, भारत
संयुक्त राष्ट्र शांति सेना में पूर्ण महिला दल तैनात करने वाला पहला देश बन गया. लाइबेरिया में गठित पुलिस इकाई ने 24 घंटे गार्ड ड्यूटी प्रदान की और संचालन किया. राजधानी मोनरोविया में रात्रि गश्त और लाइबेरिया पुलिस की क्षमता निर्माण में मदद मिली। रोल मॉडल के रूप में पहचानी जाने वाली इन महिला अधिकारियों ने न केवल बहाली में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ,पश्चिम अफ्रीकी राष्ट्र में सुरक्षा, बल्कि संख्या में वृद्धि में भी योगदान दिया. ()
मनोज कुमार धुर्वे
- फाउंडेशन कोर्स हिंदी की अध्ययन सामग्री
- संवैधानिक सुधार एवं आर्थिक समस्याएं
- रहीम (1556-1626)
- Sant-Raidas-रैदास (1388-1518)
- CSIR UGC NET JRF EXAM RELATED AUTHENTIC INFORMATION AND LINKS ARE HERE