संप्रेषण के मूल तत्व/Fundamentals of Communication

(Acknowledgement : Based On ignou university study material on the topic)

संप्रेषण का अर्थ

जन्म लेने के बाद बच्चा जब पहली बार रोता है तो यह समाज के साथ उसका पहला संप्रेषण होता है उसके बाद हरेक क्षण और आजीवन संप्रेषण की यह प्रक्रिया जारी रहती है। हम पहले ध्वनि से, फिर शब्दों के जरिए संवेदनाओं आदि के माध्यम से परस्पर संप्रेषण करते चलते हैं। इसके लिए हम अपनी समस्त ज्ञानेन्द्रियों अर्थात कान और अपने शरीर के समस्त अंगों का उपयोग करते हैं भाषा की इसमें प्रमुख bhumika hoti hai.

संप्रेषण एक संवाद है, संपर्क है, एक-दूसरे तक अपनी बात पहुँचाने का प्रयास सुनकर देखकर पढ़कर, चित्र बनाकर हम एक-दूसरे तक अपनी बात पहुँचाते हैं और दूसरों की बात समझते हैं।

संप्रेषण के मूल तत्व

यह कहा जा सकता है कि समस्त मानव कार्यकलाप संप्रेषण ही है। हालांकि संप्रेषण की अनेक परिभाषाएँ दी गई हैं परंतु इसकी मूल अवधारणा यह है कि संप्रेषण में अर्थों का आदान-प्रदान होता है। कहने का तात्पर्य यह है कि संप्रेषण एक मानवीय कार्यकलाप होने के साथ-साथ एक प्रक्रिया भी है संप्रेषण की इस प्रक्रिया में वक्ता का संदेश श्रोता तक पहुँचता है और श्रोता उस पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करता है। मनुष्य का सोचना, मनुष्य की संवेदना और उसका संपूर्ण व्यवहार संप्रेषण के अंतर्गत ही आता है। इस पक्ष पर हम आगे विस्तार से विचार करेंगे।

संप्रेषण के विविध रूप

ऊपर बताया गया है कि मनुष्य अपने समस्त क्रिया-कलापों द्वारा कुछ न कुछ संप्रेषित ही करता है। उसकी आगिक अभिव्यक्ति बोलना, देखना, सुनना, पढना लिखना किसी न किसी रूप में अलग-अलग ढंग से संप्रेषण ही है। आइए इन पर अलग-अलग विचार किया जाए।

मौखिक संप्रेषण

ज्यादातर संप्रेषण बोलकर किया जाता है। भाषा इसका मूल आधार और माध्यम है। सुबह  उठते ही बोलने की प्रक्रिया के साथ संप्रेषण शुरू होता है और रात में बिस्तर पर जाने तक बोलने का यह क्रम जारी रहता है। बोलना भी एक कला है। बड़े बुजुर्ग कहते हैं सोच- समझकर बोलो। ऐसा बोलो कि सुनने वाले प्रसन्न हो जाऐं कबीर का यह पद तो आपने  सुना या पढ़ा होगा:

ऐसी बानी बोलिए मन का आपा खोए 

औरन को शीतल करे आपहु शीतल होए।

ऐसी वाणी का प्रयोग, जिसमें दूसरे प्रसन्न हो और अपना मन भी प्रसन्न रहे जीवन की  सफलता का रहस्य है। बोलते समय तीन बातों का ध्यान रखना जरूरी है. शब्दों और वाक्यों का चुनावः आप जो कुछ कहते हैं उसमें आपने शब्दों का चुनाव कैसे किया है या आपने किस प्रकार के वाक्य का प्रयोग किया है इसका बड़ा असर पड़ता है।

डॉक्टर – क्या सारी दवाइयाँ समाप्त हो गई?

मरीज़ – अभी कैसे खत्म हो सकती है?

प्रश्न का जवाब प्रश्न में देकर मरीज ने डॉक्टर के प्रश्न का जवाब तो नहीं ही दियाउसने डॉक्टर को नाराज भी कर दिया। अगर वह जवाब देता जी नहीं, अभी चार गोलियाँ बची हुई हैं। ऐसे बोलने से संप्रेषण पूरा होता और डॉक्टर आगे के इलाज के बारे में सोचता। अतः शब्दों और वाक्यों का प्रयोग सावधानीपूर्वक करना चाहिए।  आवाज: आप अपनी बात नम्र आवाज़ में कहते हैं या जो-जोर से बोलते हैं, इसका भी असर ओता पर पड़ता है। यदि आप आक्रामक ढंग से बोलेंगे तो सुनने वाला नाराज होगा। यदि कोई ग्राहक किसी दुकान पर जाता है और दुकानदार से बोलता है कि ग्राहक मैंने यह साइकिल दो दिन पहले खरीदी थी, इसका पहिया टूट गया है, जरा बदल दो।

दुकानदार इसका पैसा लगेगा।

ग्राहक – अभी दो दिन पहले ही तो साइकिल खरीदी थी।

दुकानदार तो क्या साइकिल का बीमा करा लिया था? साइकिल बनवानी हो तो – बनवाओ वर्ना चलते बनो यहाँ से।

अब ऐसी स्थिति में क्या वह ग्राहक कभी उस दुकान पर दुबारा जाएगा।

इसी प्रकार आप कहीं नौकरी के लिए साक्षात्कार देने जाते हैं तो इसका चयनकर्ताओं पर काफी असर पड़ता है कि आप किस लहजे में बोलते हैं।

स्वरः आप जो कुछ भी बोलते हैं उसका अर्थ आपको सुनने वाला उसी ढंग से निकालता है। आपने किसी को बुलाया ‘इधर आओ। आपके ‘इधर आओ’ बोलने के तरीके से ही सुनने वाला समझ जाएगा कि आप उसे प्यार से बुला रहे हैं या आप उससे नाराज़ हैं। इसके अलावा आप जो कुछ बोलिए स्पष्ट बोलिए। अगर आप स्पष्ट नहीं बोलेंगे तो सामने वाला आपकी बात समझ नहीं पाएगा और आपकी बात उस तक पहुँच नहीं पाएगी। हाँ, इतना ऊँचा भी न बोलिए कि संदेश का संप्रेषण गलत ढंग से हो जाए।

आंगिक संप्रेषण

मनुष्य केवल बोलकर ही अपनी बात संप्रेषित नहीं करता। उसके सारे अंग आँख, हाथ, पैर, कंधे, सब संप्रेषण में सहयोग देते हैं। यह गैर-शाब्दिक, आंगिक या अमौखिक संप्रेषण है।

शारीरिक संप्रेषण की शुरूआत आपकी वेशभूषा और व्यक्तित्व से होती है। आप जैसे ही किसी अधिकारी के कमरे में प्रवेश करते हैं वह आपकी वेशभूषा और व्यक्तित्व से आपके बारे में धारणा बनाने लगता है। आप उसके सामने कैसे खड़े रहते हैं, कैसे बैठते हैं, इसका भी काफी असर पड़ता है। अक्सर लोगों को देखा गया है कि वे किसी दफ्तर में किसी अधिकारी की टेबुल पकड़कर झुक जाते हैं और तब तक झुके रहते हैं जब तक वह अधिकारी झुंझलाकर कह न दे कि जनाब जरा सीधे खड़े रहिए। आप जाने अनजाने सामने बैठे अधिकारी को अपने व्यक्तित्व के बारे में बता रहे होते हैं। अब उस अधिकारी ने आपसे कहा कि आपने जो फोटोकॉपी प्रस्तुत की है उसकी मूल प्रति दिखाइए । मूल प्रति निकालने से पहले आपने कंधे उचकाए, मुँह बनाया मानो आप कह रहे हों ‘बड़े आए मूल प्रति देखने वाले आपके इस व्यवहार से आपका बनता हुआ काम बिगड़ भी सकता है। इसके विपरीत यदि आपके पास मूल प्रति न भी हो और आप विनम्रता से मुस्कराकर बात करें तो शायद आपका काम हो जाए।

आँखें आंगिक संप्रेषण का सबसे सशक्त माध्यम हैं। जब कोई प्रसन्न होता है तो कहते हैं- उसकी आँखें हँस रही थीं। आपने लोगों को अक्सर यह कहते सुना होगा- ‘उसकी आँखें गुस्से से लाल थीं।

अपनी आँखों के जरिए आप न केवल अपनी प्रसन्नता या अप्रसन्नता जाहिर करते हैं बल्कि उसे दूसरों तक संप्रेषित करते हैं। किसी की आँखें नम हों तो हम जान जाते हैं कि वह दुःखी है। हाँ, कभी-कभी खुशी के आँसू भी निकलते हैं परंतु उस व्यक्ति की शारीरिक अभिव्यक्ति से पता चल जाता है कि उसके आँसू खुशी के हैं या दुःख के । आँखों से ही पता चल जाता है कि सामने वाला आपसे प्रसन्न है या अप्रसन्न है, उसका आना आपको अच्छा लगा है, वह आपको टालना चाहता है, आदि-आदि।

लिखित संप्रेषण

आप बोलकर और देखकर तो संप्रेषण करते ही हैं, लिखकर भी अपनी बात दूसरों तक पहुँचाते हैं। आप पत्र लिखकर अपनी बात दूसरों तक पहुँचाते हैं। लेखक कहानी, कविता, नाटक, उपन्यास आदि लिखकर अपने को पाठकों तक पहुँचाता है। लिखना एक कला है। योजनाबद्ध ढंग से लिखकर आप अपनी बात सही ढंग से संप्रेषित कर सकते हैं। किसी भी प्रकार का लेखन करने के लिए पाँच बातों का ध्यान रखना चाहिए, क्या, क्यों, कौन, कब और कैसे। इन पाँच शब्दों को ध्यान में रखकर लिखने से आप अपना संदेश सही ढंग से प्राप्तकर्ता तक पहुँचा सकते हैं। इसी स्थिति में संप्रेषण पूरा होता है।

क्या

लिखते समय सबसे पहले यह ध्यान रखना चाहिए कि आपका संदेश क्या है? पत्र, रिपोर्ट, टिप्पण, लेख, कहानी कुछ भी लिखने से पहले यह तय कर लीजिए आपको लिखना क्या है? अर्थात सबसे पहले विषय का निर्धारण कर लीजिए।

क्यों

विषय तय हो जाने के बाद आप लेखन का उद्देश्य तय कीजिए। इसमें निम्नलिखित पक्ष शामिल हो सकते हैं:

सूचित करना

निवेदन करना

पुष्टिकरण करना

कौन

यह कौन आपका संदेश प्राप्तकर्ता है। यदि आपके सामने यह स्पष्ट है कि आप किसके लिए लिख रहे हैं तो आपका संदेश स्पष्ट होगा। आपके लिखने की शैली भिन्न होगी। यदि आप अपनी माँ के पास पत्र लिख रहे हैं तो उसकी शैली अलग होगी। यदि आप किसी अधिकारी को पत्र लिख रहे हैं तो उसकी शैली बिल्कुल भिन्न होगी । एक की शैली अनौपचारिक होगी दूसरे की शैली औपचारिक होगी।

कब

आप अपने लेखन में दिन और तारीख जरूर डालिए। खासकर पत्र लेखन में या कार्यालय का काम करते वक्त इस विधि का अवश्य उपयोग कीजिए

कैसे

आपके लेखन का सारा दारोमदार इस पर है कि आप कैसे लिखते हैं। यहीं आपकी भाषा की पकड़ और लेखन कौशल की परीक्षा होती है। आपकी भाषा पात्रानुकूल होनी चाहिए। तात्पर्य यह है कि आप किसे लिख रहे हैं और क्या लिख रहे हैं इसके अनुसार आपकी भाषा निर्धारित होनी चाहिए। मसलन माँ को लिखे पत्र और अधिकारी को लिखे पत्र की भाषा में स्पष्ट रूप से अंतर होगा। किसी भी प्रकार के लेखन के लिए सबसे पहले तथ्य जुटाना जरूरी होता है। तथ्यों को जुटाने के साथ-साथ उन्हें सिलसिलेवार लिख लेना चाहिए। सबसे पहले आप यह तय कर लीजिए कि आप किस विषय पर लिखना चाहते हैं। यदि आप पर्यावरण पर कोई लेख लिखना चाहते हैं तो आसपास के पुस्तकालय में जाइए और जरूरी पुस्तकें निकालकर पढ़िए और उसमें से अपने काम की चीजें नोट कर लीजिए। इसके बाद आंकड़ों और तथ्यों को सिलसिलेवार ढंग से लिखिए। 

इस प्रकार के लेखन से लेखक पाठक तक अपनी बात सही ढंग से पहुँचा पाता है। अर्थात वह संप्रेषण में सफल होता है।

संचार माध्यम

संचार माध्यम संप्रेषण का एक सशक्त माध्यम है। रेडियो, टेलीविजन, समाचार-पत्र, होर्डिंग, बिल, पैंफलेट, इंटरनेट आदि जनसंचार माध्यम अपनी माध्यमगत विशिष्टता के अनुसार संप्रेषण करते हैं। रेडियो आवाज के माध्यम से जन-जन तक संचार का संप्रेषण करते हैं। टेलीविजन, कम्प्यूटर, फिल्म, वीडियो, इंटरनेट जैसे दृश्य माध्यम भी संप्रेषण के सशक्त माध्यम हैं। इसके अलावा सड़क के किनारे लगे बड़ी-बड़ी कंपनियों के होर्डिंग, समाचार पत्रों में छपे विज्ञापन, खतरे संबंधी सूचनाएँ यातायात संकेत, टेलीफोन पर होने वाली बातचीत आदि संप्रेषण के कई रूप हैं जिन पर विस्तार से हम अगली इकाइयों में अध्ययन करेंगे।

संप्रेषण के विविध रूपों की जानकारी प्राप्त करने के बाद इस प्रश्न पर विचार करना जरूरी हो जाता है कि संप्रेषण का प्रयोजन क्या है? मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह अकेला नहीं रह सकता। वह संप्रेषण के जरिए ही समाज से जुड़ता है। आइए देखें, संप्रेषण मनुष्य के लिए क्यों जरूरी है?

व्यक्तिगत जरूरत

यह अपने आप में स्पष्ट है। लोग काम करने, खाने पीने, रहने, प्यार और जीवन से जुड़े सभी व्यक्तिगत पहलुओं के लिए संप्रेषण करते हैं। अपनी जरूरतें पूरी न होने पर उसकी माँग करते हैं। UNIVER

व्यक्तिगत संबंध

जब भी हम किसी रिश्तेदार मित्र या जान-पहचान वाले से मिलते हैं तो सबसे पहला सवाल यही होता है ‘कैसे हैं आप? इसके अलावा लोग अपनी आँख, हाथ, शब्द और भाव-भंगिमा से भी दूसरों से संबंध बनाने का प्रयास करते हैं।

सूचना

हमें कई प्रकार की सूचनाएँ प्राप्त करनी होती हैं। सूचना संग्रहण का काम बचपन से ही शुरू होता है। जब वह पहली बार पूछता है ‘यह क्या है?’ सूचना संग्रहण की यह प्रक्रिया आजीवन चलती रहती है। जनसंचार माध्यमों के विकसित होने से सूचना क्षण भर में एक स्थान से दूसरे स्थान तक तीव्रता से पहुँचाना संभव हो गया है।

आपस में बातचीत

अपनी बात दूसरों तक पहुँचाने और दूसरे की बात सुनने के लिए भी संप्रेषण संपन्न होता है। ‘गप्प’ संप्रेषण का एक मजेदार और मनोरंजक उदाहरण है। लोगों को ‘गप्प मारने में बड़ा मजा आता है। इसके जरिए हम एक-दूसरे की भावनाओं, विचारों, दृष्टिकोणों को  जानने-समझने का प्रयास करते हैं।

आग्रह

विज्ञापन इस प्रकार के संप्रेषण का सबसे ज्वलंत उदाहरण है। विज्ञापन का निर्माण इस प्रकार किया जाता है कि वह ज्यादा से ज्यादा लोगों को पसंद आए। रेडियो, टेलीविजन और समाचार पत्र के विज्ञापनों को याद कीजिए। याद कीजिए कि शैंपू, टूथपेस्ट, डियोड्रेट, साबुन, डिटर्जेंट पाउडर आदि के विज्ञापन में किस प्रकार ग्राहकों से आग्रह किया जाता है। उसे कई तरीकों से लुभाने का प्रयास किया जाता है। इस प्रकार के संप्रेषण में ग्राहक की आकांक्षा, इच्छा, लोभ और अन्य व्यक्तिगत कमजोरियों का लाभ उठाया जाता है।

मनोरंजन

यह भी मनुष्य की जरूरत है। हँसना, हँसाना, दूसरे के दुःख-सुख में हिस्सा लेना, यह सब मनुष्य की स्वाभाविक वृत्तियों में शामिल है। मनोरंजन के लिए लोग सिनेमा देखते हैं, टेलीविजन देखते हैं, घूमने फिरने जाते हैं, यहाँ तक कि कुछ लोग मनोरंजन के लिए पढ़ते भी हैं। इन कारणों से भी संप्रेषण की जरूरत पड़ती है।