श्रीराम : भारतीय संस्कृति के निर्विवाद नायक

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आर्य द्रविड़ सिद्धांत

विदेशियों की आर्य और द्रविड़ थ्योरी हो या भारतीय राजनीति में वामपंथियों के द्वारा चलाए गए कुचक्र जिसमें भारतीय संस्कृति को धर्म के नाम पर भिन्न-भिन्न भागों में विभक्त कर दिया गया। जैसे जैन बौद्ध सिक्ख। इसकी अनेक विचारधाराओं को यह कहकर अपमानित किया गया कि यह मूर्ति पूजक है।  जैसे मूर्ति पूजा कोई जघन्य अपराध है।  जैसे मूर्ति पूजकों ने जैसे, उन्होंने सारे संसार का नाश कर दिया है।  संसार के सारे निर्दोष लोगों की हत्या कर दी है।  

भारतीय संस्कृति के सिद्धांत

किंतु नहीं, यह उनका कल्पित कुचक्र था जो उस सिद्धांत के विरुद्ध था जिसमें सत्य उसका आधार है।  भारतीय धर्म के अतिरिक्त शायद ही कहीं संसार के अथवा तो अधिक स्पष्ट रूप से कहूं तो पश्चिम के किसी भी रिलिजियस विचारधारा में यह तत्त्व सर्वश्रेष्ठता प्राप्त करता हो, जिसे हम सत्य कहते हैं। और सत्य की भी परिभाषा यहां पर उन सबसे उनकी वैचारिक सीमाओं से अतीत है।  जब हम कहते हैं कि सच्चिदानंद भगवान की जय तब हम यह जानते हैं कि वह ईश्वर सत्य स्वरूप है।  वह ईश्वर चैतन्य है।  वह ईश्वर आनंद स्वरूप है।  अर्थात् वह सत्य है।  वह चैतन्य है।  वह आनंद स्वरूप है।  यहाँ पर सत्य का अर्थ है।  जो पहले

जो पहले भी था अभी भी है  और बाद में भी रहेगा। और अधिक गंभीरता से देखें तो कि वह पहले अतीत में किसी भी समय जैसा था वह वर्तमान में भी वैसा ही रहेगा और भविष्य में भी वह वैसे का वैसा ही रहेगा उसमें कोई परिवर्तन नहीं आएगा ऐसा सत्य, ऐसा सत्य ही भारतीयता में परम सत्य अर्थात जगदीश्वर कहलाता है।  उसके साथ वह चेतन से परिपूर्ण है।  इसीलिए वह चैतन्य है।  और वह आनंद स्वरूप है।  इसीलिए समग्र भारतीय संस्कृति में आनंद से परिपूर्ण चेतन है।  

आनंद हमारा मूल स्वभाव :

यहां पर ट्रेजेडी का अविष्कार नहीं हुआ, वह पश्चिम में हुआ है।  क्योंकि वे लोग मानते हैं कि जीवन दुखमय  है। और उनके भी लोग यहां पर वह परंपरा लेकर आए जिसमें शोक दिवस नाम का भी कोई उत्सव होता है।  चाहे वह क्रिश्चियनिटी का हो या इस्लाम का यह तत्व भारतीय जनमानस में भारतीय संस्कृति में भारतीय धर्म के तत्व में कदापि विद्यमान नहीं रहा है।  क्योंकि हमारी संस्कृति का आधार है  आनंद। हम कहते हैं संसार का कण-कण आनंद से परिपूर्ण है और इसीलिए हम जड़ तत्व शिला को भी आनंद से परिपूर्ण मानते हैं। और उसके दर्शन से भी वही आनंद प्राप्त करते हैं जिसका नाम सच्चिदानंद है। स्वामी विवेकानंद कहते थे कि यदि मेरे गुरु एक मूर्ति पूजक नहीं होते तो मैं यह नहीं जान पाता कि मूर्ति पूजा से भी कोई ऐसा ब्रह्मज्ञानी संत उत्पन्न हो सकता है। अतः भाइयों मूर्ति पूजा का विरोध मत करो। स्वामी विवेकानंद स्वयं ही बहुत अधिक विचारशील व्यक्ति थे यह उनके समग्र उपदेश से भी दिखाई देता है।

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दान हमारी प्रकृति :

जब राम मंदिर के लिए चंदा इकट्ठा हो रहा था तब पश्चिम के विचारकों के आर्य द्रविड़ सिद्धांत या भारत में वामपंथियों के द्वारा चलाये जाने वाले सारे कुचक्र ऐसे ध्वस्त हो गए जैसे कि वह कभी थे ही नहीं। कुछ लोग कहते थे राम है ही नहीं। कुछ लोग कहते थे राम केवल उत्तर के हैं। कुछ लोग कहते थे राम का इतिहास नहीं है वे एक काल्पनिक पुरुष हैं। इसके उपरांत कि भारतवर्ष के कोने कोने में राम और कृष्ण के वास्तविक होने के चिन्ह आज भी भारत के भूगोल इतिहास और संस्कृति में अकाट्य  रूप से विद्यमान है। राम मंदिर के बनाने के लिए किए जाने वाले प्रचार दल प्रचार करते जहां-जहां से भारत वर्ष में गया वहां पर उसे अपार समर्थन मिला। साधुगणों या गृहस्थ या सन्यासी जो भी मिले उन्होंने अपनी क्षमता एवं श्रद्धा के अनुसार किसी ने ₹10 दिए तो किसी ने सोने की ईंटें दी तो किसी ने कुछ। यह मंदिर भारतवर्ष के कण-कण से बना है। एक-एक व्यक्ति का इसमें सहयोग है। 

धर्म का विरोधी कैसा धर्म:

यह उन दुष्टों के जिन्होंने मंदिर विध्वंस को अपना धार्मिक कर्तव्य मानकर नष्ट कर दिया। उनका वह धन जो प्रजा से ही लूट कर लिया गया था उसके राजकोष से नहीं बना है।  यह अत्यंत पवित्र मंदिर है।  जो लोगों के अपनी मेहनत की कमाई के कण-कण से, उनकी भावनाओं की समग्रता से, यह मंदिर भारतीय संस्कृति की एकता के तत्व को साक्षात करता है। वह कहता है हम किसी भी प्रकार से बंटे  हुए नही हैं। हमारे मार्ग अलग-अलग हैं पर हम अंत में उसी राम तक जाते हैं जहां पर सभी को जाना है।  वही ब्रह्म, वही सच्चिदानंद वही अहम् ब्रह्मास्मि। वही तत्वमसि। हम सब वहीं जाने वाले हैं इसलिए इसमें संघर्ष कैसा। हाँ! हम सब का मार्ग अलग हो सकता है, हमारे चलने का ढंग अलग हो सकता है।  किंतु हमारा आपस में कोई संघर्ष नहीं है। केवल प्राण प्रतिष्ठा के द्वारा आज समग्र भारत वर्ष और विश्व में जहां भी भारतवर्ष के लोग निवास करते हैं उनमें अपार हर्ष है। और यह हर्ष एकता का है।  समग्रता का है।  परस्पर सहयोग का है।  यह  हर्ष उधार का हर्ष नहीं है। यह हर्ष अपने स्वयं के सहयोग का है अपनेपन का है।

सार्वत्रिक सिद्धांत

यह जीवन के किसी अंग, एक अंग की बात नहीं है।  यह केवल इतिहास की बात नहीं है।  यह केवल संस्कृति की बात नहीं है।  यह केवल सभ्यता की बात नहीं है।  यह समग्रता की बात है।  क्योंकि हम भारतवासी सदा समग्रता का चिंतन करतेहैं। हम खंड-खंड का चिंतन नहीं करते हम अखंड का चिंतन करतेहैं। और इसीलिए हम यहां पर कहते हैं –

सर्वे भवंतु सुखिनः 

सर्वे संतु निरामया:

सर्वे भद्राणि पश्यंतु 

मां कश्चिद दुख भाग भवेत।।

 क्योंकि हम जानतेहैं। की समग्रता से ही कोई हल निकाला जा सकता है।  एक के सुखी होने से हम सब सुखी नहीं हो सकते बल्कि सभी के सुखी होने से ही एक दूसरे को सुख मिल सकता है। यह हमारी संस्कृति के आधार तत्व हैं।

जब मंदिर के लिए चंदा इकट्ठा करना था तब तो लोगों ने जितना हो सकता था धन दिया और वह इतना था कि वह मंदिर समिति के लोगों की अपेक्षा से बहुत अधिक था। उन्होंने कभी किसी से मांगा नहीं, खुशामद नहीं की, कोई प्रलोभन नहीं दिया। ऐसा आश्चर्य केवल भारतीय संस्कृति में ही संभव है। हम भारतीय दान को अपने जीवन का अभिन्न अंग मानते हैं। और हम जानते हैं कि यह हमारे जीवन का विकास करता है। दान हमारे इतने भीतर तक बसा हुआ है कि हम कहते हैं की कोई भी समस्या का निराकरण स्नान दान आदि से ही होता है। 

प्राण प्रतिष्ठा के लिए जिस किसी को भी निमंत्रण पत्र भेजा गया या मंदिर समिति की ओर से कोई लेकर गया। कुछ वामपंथियों को छोड़कर और उन बाकी सभी बड़ी विभूतियों ने अत्यंत हर्ष व्यक्त किया है।  यूट्यूब पर देखने से पता चलता है।  कि जैसे यूट्यूब राममय हो गया है।  दूसरे जो चैनल हैं अखबार हैं और कोई भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म हैं राममय हैं।  उनसे पता चलता है कि राम की जो संवेदना है।  वह कितनी मुखर हो रही है। 

भारतीयता पर गर्व की अनुभूति:

अब कोई भी व्यक्ति राम का नाम लेने से और भगवा वस्त्र से अपने को छोटा अनुभव नहीं कर रहा बल्कि एक गर्व की अनुभूति कर रहा है।  यह करवट लेता हुआ देश आज हम देख रहे हैं। अब ऐसा प्रतीत होता है कि हमारा समाज और उसकी राजनीति उसके खेल का मैदान जैसे भारतीय संस्कृति हो गया है।  और इस समय यह गेंद वर्तमान की भारतीय जनता पार्टी जैसे राजनीतिक दल के पास बनी हुई है।  ऐसा लगता है कि दूसरे दलों को भी अब इसी मैदान पर आकर खेलना होगा अन्यथा वे साफ कर दिए जाएंगे। यह परिवर्तन भले ही शीघ्रता से और सरलता से लोगों को समझ में न आए पर वस्तुत: वास्तविक रूप से यही है।  एक बहुत बड़ा परिवर्तन है।  जो भारत को समग्रता से परिवर्तित करने के लिए सक्षम है।  हम अब अपने को सम्मान से देखने लगेहैं। यह परिवर्तन कोई एक दिन की बात नहीं है।