1.3 शिक्षण को प्रभावित करने वाले कारक

Table of Contents

1.3 शिक्षण को प्रभावित करने वाले कारक: शिक्षक, शिक्षार्थी, सहायक सामग्री, निर्देशात्मक सुविधाएं, अधिगम का वातावरण और संस्थान।

(Factors affecting teaching related to: Teacher, Learner, Support material, Instructional facilities, Learning environment and Institution.)

1.1 परिचय – Introduction 

अमूर्त(Abstract):

सीखना मनुष्य का एक सहज स्वभाव है जो उसके वातावरण में मौजूद है या उसके अनुकूल परिस्थितियाँ हैं। अधिगम के लिए वातावरण के निर्माण को शिक्षण कहते हैं। शिक्षण का उद्देश्य शिक्षार्थी को सीखना है। जब तक सीखने वाला सीखने में सक्षम नहीं हो जाता तब तक इसका कोई अर्थ नहीं है। यद्यपि मनुष्य बिना सिखाए भी सीखता है, लेकिन उद्देश्यपूर्ण सीखने के लिए शिक्षण आवश्यक है। यही कारण है कि शिक्षण-अधिगम को एक संयुक्त अवधारणा के रूप में लिया जाता है।

जब हम शिक्षण-अधिगम को एक संयुक्त अवधारणा के रूप में लेते हैं, तो इसके पाँच घटक होते हैं – शिक्षार्थी (विद्यार्थी), प्रशिक्षक (शिक्षक), सिखाई जाने वाली सामग्री (पाठ्यचर्या), शिक्षण-पद्धति और शिक्षण-अधिगम के लिए वातावरण। शिक्षण-अधिगम की प्रक्रिया को प्रभावी बनाने के लिए इन पांचों घटकों का उचित रखरखाव आवश्यक है। उनसे संबंधित कारक शिक्षण-अधिगम को प्रभावित करने वाले कारक हैं। इस लेख का उद्देश्य शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया को प्रभावित करने वाले कारकों की जानकारी देना है।

कन्फ्यूशियस के अनुसार बिना चिंतन के सीखना व्यर्थ है

  सीखने के बिना प्रतिबिंब खतरनाक है।

शिक्षा एक प्रणाली है; शिक्षण एक क्रिया है; सीखना एक प्रक्रिया है

 शिक्षण अधिगम के बिना पूरा नहीं होता है। 

शिक्षण और अधिगम दोनों एक दूसरे के पूरक हैं।

हमारा लक्ष्य, हम हमारे सभी विद्यार्थियों को उनके अधिगम और सार्थक व प्रभावी तरीके से मूल्यांकन करने में सभी ग्रेड और पाठ्यक्रमों में सशक्त या सक्षम का बनाना है।स्कूल के बाद या स्कूल के साथ घर ही वह दूसरा महत्वपूर्ण स्थान है जहां विद्यार्थियों के व्यवहार और उनके उज्जवल भविष्य को निश्चित करने वाली शैक्षणिक और व्यवहारिक सफलता को,एक निश्चित दृष्टिकोण दिया जाता है।विद्यालय में ऐसे अनेक प्रभाव कारी तत्व विद्यमान होते हैं जो वहां पर संपन्न होने वाली शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को गहराई से प्रभावित कर सकते हैं।

 सामान्यतः यह स्वीकार्य होता है कि अच्छे शिक्षक पैदा नहीं होते अपितु वह बनते हैं अथवा तो वह प्रयासों के द्वारा बनते हैं।

अच्छे शिक्षक निरंतर और सोच समझकर किए गए अपने प्रयासों से अपने ज्ञान व कौशल का पोषण करते रहते हैं एक अच्छा शिक्षक बनने की एक महत्वपूर्ण शब्द शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को अधिक गहराई से समझने की है यह शिक्षण व्यवसाय की अधिक प्रशंसा के साथ-साथ शिक्षा प्रदान करने की प्रक्रिया को भी सुगम बनाता है।

1.2 शिक्षण की अवधारणा(Concept of Teaching):

शिक्षण घटनाओं का एक समूह है, जो शिक्षार्थियों के बाहर अधिगम की आंतरिक प्रक्रिया का समर्थन करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। शिक्षण (निर्देश) शिक्षार्थी के बाहर है। अधिगम शिक्षार्थियों के लिए आंतरिक है। यदि आप स्व-प्रेरित नहीं हैं तो आप दूसरों को प्रेरित नहीं कर सकते। 

शिक्षण कक्षा में शिक्षार्थियों को निर्देश देने का एक कार्य है। शिक्षण विद्यार्थियों को वांछित ज्ञान, कौशल और समाज में रहने के वांछनीय तरीकों को अधिगम और प्राप्त करने के लिए प्रेरित करता है। शिक्षण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें कुछ पूर्व निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए शिक्षार्थी, शिक्षक, पाठ्यक्रम और अन्य चर व्यवस्थित और मनोवैज्ञानिक तरीके से संगठित होते हैं। शिक्षक की एक महत्वपूर्ण भूमिका होती है क्योंकि वह उत्प्रेरक के रूप में कार्य करता है, सक्रिय रूप से अधिगम का अनुकरण करता है। शिक्षण एक कला है और कला शिक्षक के व्यक्तित्व, अनुभव और प्रतिभा से आती है।

1.3 अधिगम की अवधारणा(Concept of Learning):

अधिगम से तात्पर्य, नई समझ, ज्ञान, व्यवहार,कौशल, मूल्य, दृष्टिकोण और प्राथमिकताएँ  प्राप्त करने की प्रक्रिया विशेष से  है।  अधिगम छात्रों के लिए किया जाने वाला कार्य नहीं है, बल्कि कुछ ऐसा है जो छात्र स्वयं करते हैं। यह इस बात का प्रत्यक्ष परिणाम है कि छात्र अपने अनुभवों की व्याख्या और प्रतिक्रिया कैसे करते हैं।

सीखना एक “प्रक्रिया है जो परिवर्तन की ओर ले जाती है, जो अनुभव के परिणामस्वरूप होती है और बेहतर प्रदर्शन और फीचर लर्निंग की क्षमता को बढ़ाती है” (एम्ब्रोस एट अल, 2013)

1.4 शिक्षण और अधिगम प्रक्रिया की अवधारणा (Concept of Teaching and Learning Process):  शिक्षण द्वारा अधिगम, शिक्षण की एक विधि है जिसमें छात्रों को विषयवस्तु  की सामग्री,  अधिगम और अन्य छात्रों को पढ़ाने के लिए पाठ तैयार करने के लिए तैयार किया जाता है।

विषयवस्तु के साथ-साथ जीवन कौशलों के अर्जन पर भी विशेष बल दिया जाता है। शिक्षण और अधिगम एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें कई चर शामिल होते हैं। जब शिक्षार्थी अपने लक्ष्यों की ओर काम करते हैं और नए ज्ञान, व्यवहार और कौशल को शामिल करते हैं, जो उनके अधिगम के अनुभवों की श्रेणी में जुड़ जाते हैं, तो ये चर परस्पर क्रिया करते हैं। शिक्षण-अधिगम एक संयुक्त प्रक्रिया है जहां एक शिक्षक अधिगम की जरूरतों तक पहुंचता है, अधिगम के विशिष्ट उद्देश्यों को स्थापित करता है, शिक्षण और अधिगम की रणनीतियों को विकसित करता है, कार्य योजना को लागू करता है और निर्देश के परिणामों का मूल्यांकन करता है।

1.5 शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया का महत्व – Importance of teaching-learning process:  अधिगम शिक्षण से अधिक महत्वपूर्ण है। शिक्षण का कोई मूल्य नहीं है यदि यह छात्रों की ओर से अधिगम का परिणाम नहीं देता है। यह शिक्षक को उनकी निर्देशात्मक तकनीकों को निर्धारित करने, मूल्यांकन करने और परिष्कृत करने और उद्देश्यों को स्थापित करने, परिष्कृत करने और स्पष्ट करने में मदद करता है।

Teacher (शिक्षक)

यदि अधिगमकर्ता एक ओर खड़ा रहता है या एक बिंदु पर खड़ा रहता है और टीचिंग लर्निंग प्रोसेस अथवा शिक्षण अधिगम प्रक्रिया चल रही होती है तो उसके दूसरे छोर पर शिक्षक रहता है और वह एक दूसरे स्तंभ की तरह कार्य करता है। प्रथम स्तंभ हो गया अधिगमकर्ता या लर्नर और दूसरा स्तंभ या दूसरा छोर हो गया शिक्षक और यह शिक्षण की जो वांछित धारा का, शिक्षण की धारा का प्रवाह जो है वह शिक्षक से विद्यार्थी की ओर अथवा learner की ओर होता है,

 क्लास रूम में जहां शिक्षण अधिगम प्रक्रिया चल रही है, वहाँ।

1.विषय का ज्ञान (subject knowledge) –

सामान्यतः यह सर्वविदित है कि जिस शिक्षक में उत्तमशोध एवं शिक्षण की अभिवृत्ति होती है वह शिक्षक अपने ज्ञान को सदैव निखारता रहता है। नए ज्ञान को ग्रहण करते रहता है, स्वयं को अपडेट करता रहता है। तो ऐसे शिक्षक उस विषय में जिस विषय को वह पढ़ा रहा अपने विद्यार्थियों की अधिकाधिक गहन और सूक्ष्म जिज्ञासाओं को शांत करता है। और उसका विद्यार्थी उस शिक्षक से संतोष को प्राप्त करता है। जिसके कारण वह शिक्षक उत्तम शिक्षक होने का प्रभाव उत्पन्न करता है, एवं यश और कीर्ति का भागी होता है।

2.अधिगमकर्ता के ज्ञान का स्तर(Learners level of knowledge)

शिक्षा मनोविज्ञान के अंतर्गत इस बात को अत्यंत सूक्ष्मता से समझाया जाता है, कि जब आप एक शिक्षक की तरह अधिगमकर्ता को कोई शिक्षा देते हैं या किसी पाठ को प्रदान करने का प्रारंभ करते हैं तो सर्वप्रथम यह देखा जाता है कि उस अधिगमकर्ता के ज्ञान का क्या स्तर है। जो पाठ आप पढ़ाने जा रहे हैं या जिस विषय में आप बात करने जा रहे हैं उस विषय में वह अधिगमकर्ता कहां तक, कितना और कितनी अच्छी गुणवत्ता में वह उस विषय को जानता है।

ताकि आप उस अधिगमकर्ता को या उसकी स्थिति को इस प्रकार जानकर वहां से उसे शिक्षा प्रदान करना प्रारंभ करते हैं। और वह आपके साथ जुड़कर विषय की अतल गहराइयों में जाता है, और आप उसे उस विषय का वांछित ज्ञान प्रदान करने में सफल हो जाते हैं। इस प्रकार शिक्षण प्रक्रिया सफलतापूर्वक संपन्न हो जाती है। जिस शिक्षक में यह क्षमता होती है कि उसका शिष्य वर्तमान में उस पाठ में किस बिंदु या स्तर पर स्थित है, तो यह जानकर वह सहजता से अपना शिक्षण कार्य संपन्न कर सकता है।

3.शिक्षक कौशल ( Teaching Skills)

शिक्षण कौशल को हम एक उदाहरण से बहुत अच्छी तरह समझ सकते हैं। जैसे हम पानी को एक स्थान से दूसरे स्थान पर किसी पाइप के माध्यम से ले जाते हैं। मानो हम वहां पर अपने फसल की सिंचाई करना चाहते हो,तो जब हम पाइप को एक दूसरे पाइप से जोड़ते हैं तब हमें यह ध्यान रखना होता है कि उस जोड़ में कोई लीकेज न रह जाए। दोनों पाइप का साइज इस तरह से हो कि वे दोनों फिट हो जाएं। और वहां पर पानी का रिसाव तक न हो। तो फिर हम अपने वांछित स्थान या गंतव्य पर पानी पहुंचाने में सफल हो जाते हैं। उसी तरह यह शिक्षण कौशल है, शिक्षण कौशल का अर्थ है कि आप कितनी कुशलतापूर्वक अपने विद्यार्थियों को वांछित या लक्षित विषय की शिक्षा सरलता पूर्वक प्रदान कर सकते हैं ।

और आपके विद्यार्थी उस विषय में निपुण हो सकते हैं। इस हेतु एक अच्छे शिक्षक में संप्रेषण का कौशल होता है। परस्पर वार्तालाप का कौशल होता है। अपने ज्ञान को साझा करने का कौशल होता है। उसे इन सब आवश्यकताओं का अच्छा अनुभव होता है, जिससे किसी विषय का अधिगम उत्तम रीति से संपन्न हो सके। वह विशेष छात्रों को शिक्षित करने के लिए विशेष कौशल से संपन्न होता है। किसी शिक्षक में कितना शिक्षण कौशल है यही इस परिणाम को निर्धारित करता है कि वह अधिगम प्रक्रिया कितनी सफल होगी अथवा कितनी असफल होगी।

4. शिक्षक का मित्रवत व्यवहार एवं  उपलब्धता-(Friendliness and approachability)-

यह है मानवीय स्वभाव है कि हम अथवा कोई भी अधिगमकर्ता तभी एक शिक्षक से अच्छी तरह सीख सकता है कि जब वह अपने शिक्षक से अच्छी तरह जुड़ाव का अनुभव करे। यदि वह शिक्षक से जुड़ नहीं पाता है, तब वह शिक्षण को प्राप्त नहीं कर सकता और शिक्षण प्रक्रिया अच्छी तरह संपन्न नहीं हो सकती। अतः एक शिक्षक को अपने विद्यार्थियों के मध्य मित्रवत होना चाहिए। ताकि कोई भी विद्यार्थी अपने शिक्षक से अपने मन में उत्पन्न जिज्ञासा के अनुरूप प्रश्न कर सके और उत्तर प्राप्त करके संतुष्ट हो सके। यदि कोई विद्यार्थी अपने मन में यह धारण करता है कि उसका शिक्षक उसका शत्रु है, तो वह उस शिक्षक से कभी कोई शिक्षा प्राप्त नहीं कर सकेगा। सबसे अच्छे शिक्षक या सर्वोत्तम शिक्षक हमेशा खुले अथवा उदार स्वभाव के होते हैं। वह दूसरों का हमेशा स्वागत करते हैं और उनसे हर कोई सरलता से मिल सकता है या उनसे मिलना संभव होता है। एक अच्छा शिक्षक अपने शिष्यों अथवा विद्यार्थियों के प्रश्नों को ध्यान से सुनता है और अपने व्यस्त क्रियाकलापों में से अपने विद्यार्थियों की समस्याओं को हल करने के लिए, उनके लिए उपलब्ध होता है।

5. व्यक्तित्व एवं व्यवहार (Personality and behaviour)-

एक शिक्षक अपने विद्यार्थियों के बीच एक आदर्श की तरह होता है एक नेतृत्वकर्ता की तरह वह अपने विद्यार्थियों का मार्गदर्शन करता है। शिक्षण और अधिगम की इस प्रक्रिया में वह एक तरह से प्रभावशाली केंद्र बिंदु होता है। जहां से विद्यार्थी अपनी समस्याओं के समाधान के लिए आशा पूर्वक उसकी और देखते हैं। वह शिक्षक ही  है जो अपने विद्यार्थियों के बीच उनकी समस्याओं के इतने सरल और प्रभावी  हल उन्हें प्रदान करता है। अपने विद्यार्थियों के मध्य वह शिक्षक एक रोल मॉडल की तरह उनके मन पर प्रभाव उत्पन्न कर देता है। शिक्षक की क्रियाएंँ, उनका व्यवहार और उनका व्यक्तित्व, उनके विद्यार्थियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण कारक का कार्य करता है। जिसका अनुकरण करके विद्यार्थी उन्हें अपने व्यक्तित्व में भी धारण करते हैं।

6.शिक्षक में सामंजस्य का गुण एवं उसका मानसिक स्तर(level of adjustment and mental health of the teacher)-

शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को ध्यान में रखकर  इस विषय पर बात की जाए, तो वही शिक्षक इस प्रक्रिया में सर्वाधिक सफल हो सकता है जो अपने जीवन के दूसरे क्षेत्रों में इस प्रकार संतुलित एवं सधा हुआ व्यवहार करता है, कि उसके किसी भी प्रकार के दुष्प्रभाव उसके उत्तम शिक्षण स्तर की क्षमता को दुष्प्रभाव में नहीं आने देते हैं। जब शिक्षक इस प्रकार अपने को मानसिक रूप से स्वस्थ रखता है और अपने व्यक्तिगत और व्यवसायिक जीवन के सामंजस्य को संतुलित रूप से बनाए रखता है तो वह अपने शिक्षण कार्य को बहुत उत्तम ढंग से संपादित करेगा। इसकी इसमें पर्याप्त संभावनाएँ निहित होती हैं।

7. नियमितता(Discipline)-

एक अच्छा शिक्षक हमेशा नियमित होता है। वह समय पर अपनी क्लास रूम में जाता है। और समय पर अपनी कक्षा प्रारंभ और समय पर उसे पूर्ण करता है। वह महाविद्यालयों या विद्यालयों के नियमों एवं समय सारणी  का दृढ़ता से पालन करता है। और अपने विद्यार्थियों को एक सुरक्षित अधिगम का वातावरण प्रदान करता है। और इस प्रकार वह अपने नियमितता भरे व्यक्तित्व के द्वारा अपने संस्थान में सकारात्मकता कि वृद्धि करता  है। अच्छी नियमितता के बिना अच्छा शिक्षण अधिगम कार्य संभव नहीं है।

2. अधिगमकर्ता-learner

शिक्षार्थी से संबंधित शिक्षण को प्रभावित करने वाले कारक-

शिक्षार्थी शैक्षिक प्रक्रिया के अंतिम लाभार्थी हैं। इसलिए हमें उन्हें प्रभावित करने वाले कारकों पर विचार करने की आवश्यकता है। ताकि वांछित परिणाम प्राप्त करने के लिए हम उन पर नियमित रूप से दृष्टि रख सकें।

The level of aspiration and achievement motivation

आकांक्षा का स्तर और उपलब्धि प्रेरणा( achievement motivation) या प्रेरणा-motivation: 

शिक्षार्थियों को स्वयं ज्ञान प्राप्त करने के लिए एक निश्चित स्तर की प्रेरणा की आवश्यकता होती है। और तभी शिक्षक ज्ञान को साझा करने में सक्षम होंगे। इस प्रकार अधिगमकर्ता को भी तैयारी का एक आवश्यक स्तर बनाये रखना आवश्यक है। एक कक्षा में विद्रोही छात्रों को संभालना और बाकी छात्रों को उनसे अप्रभावित रखना शिक्षकों के लिए बहुत मुश्किल हो जाता है। छात्रों को अधिगम के प्रति सकारात्मक और उत्साही होने की आवश्यकता है। ताकि अधिगम एक रुचिकर और उपयोगी क्रियाकलाप हो जाए।

बुद्धिमत्ता-(Intelligence):

इस पहलू को नकारात्मक रूप से नहीं माना जाना चाहिए। लेकिन तथ्य यह है कि किसी भी अवधारणा को समझने के लिए बुनियादी बातों को स्पष्ट करने की आवश्यकता है, जो छात्रों से अपेक्षित है। शिक्षक के लिए विभिन्न बुद्धि स्तरों वाले छात्रों के साथ व्यवहार करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है। जहाँ कुछ बहुत धीमी गति से अधिगम वाले होते हैं और कुछ बहुत तेज़ अधिगम वाले होते हैं, इसलिए शिक्षक को अवधारणाओं को इस तरह समझाने की कोशिश करनी चाहिए कि यह एक ही बार में आसानी से समझ में आ जाए, जो वास्तविक जीवन के उदाहरण देकर भी किया जा सकता है।

पूर्व अधिगम का स्तर-Prior Learning:

शिक्षार्थियों के लिए सामग्री के संदर्भ को अधिक अच्छी तरह से समझने के लिए पिछली सीख बहुत महत्वपूर्ण है। पिछला अधिगम सामान्य रूप से नई सिखाई गई अवधारणाओं को आत्मसात करने के लिए नींव या बिल्डिंग ब्लॉक्स है।

तत्परता और इच्छा शक्ति(Readiness and will power )-

अधिगमकर्ता यह आधार पर होना आवश्यक है कि उसमें कैरियर पूर्वक शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को उसके वांछित समय तक होने देने तक मैं उस में रुचि बनाए रखें एवं लगातार लगा रहे और केवल लगाना रहे बल्कि तत्परता पूर्वक लगा रहे और इसके लिए प्रबल इच्छा शक्ति पावर का होना अत्यंत आवश्यक बिना इच्छा शक्ति के कोई भी कार्य संपन्न नहीं होता इसलिए अधिगमकर्ता में भी तत्परता एवं इच्छा शक्ति होनी ही चाहिए।

ध्यान या एकाग्रता और रुचि-(Attention and interest):

आमतौर पर यह कहा जाता है कि छात्रों को उन पाठ्यक्रमों का अध्ययन करना चाहिए जिनमें उनकी रुचि है, लेकिन फिर स्कूली स्तर का बुनियादी ज्ञान होता है। जिसकी शिक्षार्थियों से अपेक्षा की जाती है। पढ़ाए जा रहे विषय में रुचि शिक्षार्थियों का ध्यान लंबे समय तक बनाए रखती है।

लक्ष्य निर्धारण और आकांक्षा- Goal setting and aspiration:

 छात्रों या शिक्षार्थियों के पास एक उद्देश्य या एजेंडा होना चाहिए कि वे वास्तव में क्यों अधिगम चाहते हैं और अधिगम की प्रक्रिया का अपेक्षित परिणाम क्या है। शिक्षार्थियों के पास अधिगम की प्रक्रिया से एक निर्धारित लक्ष्य होना चाहिए।

विषय वस्तु से संबंधित शिक्षण को प्रभावित करने वाले कारक

(Factors Affecting Teaching Relating To The Subject Matter)

विषय वस्तु उस सामग्री को संदर्भित करती है जो वितरित हो रही है, और उन्हें प्रभावित करने वाले कई कारक हैं और इसलिए वितरण योग्य की गुणवत्ता प्रभावित होती है जिसे नीचे समझाया गया है।

विषय-वस्तु का कठिनाई स्तर- (Difficulty Level of the Content) – 

यदि विषय-वस्तु की व्याख्या करना शिक्षकों के लिए और विद्यार्थियों के लिए सीखने-समझने के लिए काफी कठिन है तो विषय-वस्तु को समझने योग्य बनाने के लिए शिक्षक की ओर से अतिरिक्त प्रयास की आवश्यकता होती है।

कार्य की लंबाई – Length of the Task : –

यदि कार्य काफी लंबा है तो शिक्षार्थियों और शिक्षकों को इसका पालन करने में बहुत कठिनाई होती है। कार्य जितना लंबा होता है उसे अधिगम और समझना उतना ही कठिन होता है।

अध्ययन सामग्री की अर्थपूर्णता (Meaningfulness of the Content):-

प्रदान की जा रही अध्ययन सामग्री का कुछ ठोस अर्थ होना चाहिए और शिक्षार्थियों के लिए प्रासंगिक होना चाहिए। ताकि वे इसे समझने में समय और ऊर्जा लगाएँ तो उससे पर्याप्त वांछित अधिगम प्राप्त करें। 

कार्य की समानता और परिचितता ( Similarity and Familiarity of the Task):

यदि सौंपा गया कार्य और प्रदान की जा रही सामग्री शिक्षार्थियों को ज्ञात है तो शिक्षार्थियों और शिक्षकों के लिए भी विषय वस्तु का शिक्षण अधिगम सरल हो जाता है।

व्यवस्थित ( Systematic):

वितरण की प्रक्रिया और अध्ययन सामग्री का निर्माण (डिजाइन )जितना अधिक व्यवस्थित होगा, शिक्षार्थी और शिक्षक के दृष्टिकोण से समझ का स्तर उतना ही अच्छा  होगा। यदि सत्र पहले से सुनियोजित हो तो शिक्षा का प्रवाह बाधित नहीं होगा। व्यवस्थित होने से शिक्षकों के मन में स्पष्टता आती है और विभिन्न विषयों के वितरण के बीच भी समय व्यर्थ नहीं होता है। शिक्षार्थी भी अच्छी तरह से जागरूक रहते हैं और इसके लिए तैयार रहते हैं कि उन्हें क्या पढ़ाया जा रहा है।

जीवन में प्रासंगिकता – Relevance in life:

शिक्षार्थी द्वारा प्राप्त किसी भी ज्ञान की वास्तविक जीवन में भी कुछ प्रासंगिकता होनी चाहिए। इससे आवश्यकता के कारण अधीगमकर्ताओं में ज्ञानार्जन की लालसा जागृत होगी और यह शिक्षार्थियों का ध्यान लंबे समय तक बनाए रखेगी।

परिस्थिति से संबंधित कारक (Actors Related to Environment ) : 

1. प्राकृतिक पर्यावरण (Physical Environment): शिक्षण-अधिगम के स्थान पर शुद्ध वायु, प्रकाश एवं कम शोर की व्यवस्था की आवश्यकता होती है। इनके अभाव में बच्चे थक जाते हैं, जिसका प्रतिकूल प्रभाव पठन-पाठन पर पड़ता है।

2. सामाजिक पर्यावरण(Social Environment) : यदि बच्चों को परिवार, समाज, समुदाय और विद्यालय सभी स्थानों पर उचित सामाजिक और शैक्षिक वातावरण मिले तो उनकी शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया प्रभावी हो जाती है। यदि उपरोक्त में से किसी एक स्थान का वातावरण अनुकूल न हो, तो शिक्षण-अधिगम की प्रक्रिया कम प्रभावी होती है।

  1. शिक्षण-अधिगम का समय(Time of teaching and Learning) : सीखने-सिखाने की प्रक्रिया में समय सबसे महत्वपूर्ण कारक होता है। गर्म देशों में सुबह का समय और ठंडे देशों में दिन का समय अनुकूल होता है। सीखने-सिखाने की अवधि का भी इस पर बहुत प्रभाव पड़ता है।

4. थकान और आराम(Fatigue and rest ) : यह देखा गया है कि थकान शिक्षकों और छात्रों को ठीक से काम नहीं करने देती। अतः विद्यालय की समय सारिणी बनाते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि कठिन विषयों को आसान विषयों से पहले रखा जाए, एक कठिन विषय के बाद आसान विषय रखा जाए और बीच में अवकाश दिया जाए।

शिक्षण को प्रभावित करने वाले कारक जो शिक्षण सुविधाओं (शिक्षण की विधि) और पर्यावरण से संबंधित हैं:-

(Factors Affecting Teaching Relate To The Instructional Facilities (Method Of Teaching) And The Environment)

संस्थागत सुविधाएं शिक्षण प्रक्रिया का एक अभिन्न अंग हैं और वांछित परिणाम प्राप्त करने के लिए हमें इन्हें विनियमित करने की भी आवश्यकता है। शिक्षण सुविधाओं से संबंधित शिक्षण को प्रभावित करने वाले कुछ कारक हैं

क्रियाओं के माध्यम से अधिगम – Learning by doing: 

यदि छात्र संबंधित कार्य स्वयं करते हैं तो वे अधिक समय तक जानकारी बनाए रखेंगे। जितने अधिक छात्र किसी कार्य में व्यस्त रहेंगे, शिक्षार्थियों द्वारा प्रतिधारण का स्तर उतना ही अधिक होगा, इसलिए शिक्षकों को शिक्षार्थियों को कार्यों में अधिक से अधिक भाग लेने के लिए प्रयास करना चाहिए।

  1. उपयोग की गई विधि की स्थिरता – Stability of the method used:: यदि सामग्री के वितरण की विधि में निरंतरता है, तो शिक्षार्थी समय के साथ-साथ प्रक्रिया से परिचित होने के साथ-साथ अधिक जुड़ते जाते हैं।
  2. टुकड़ा-टुकड़ा या संपूर्ण शिक्षा – Piecemeal or whole learning: कई बार शिक्षकों का दृष्टिकोण अलग-अलग विषयों के लिए बहुत अलग होता है। कुछ शिक्षक एक समय में एक विशेष विषय से निपटते हैं और कभी-कभी कोई शिक्षक पूरे विषय से निपटते हैं और उसके अनुसार उपशीर्षक जोड़ते हैं। सत्र की रूपरेखा तैयार करते समय इस मामले में शिक्षार्थी की पसंद और वरीयता पर भी विचार किया जाना चाहिए।
  3. शिक्षक और पर्यावरण संबंधी कारक – Teacher and environment-related factors : शिक्षक को शिक्षार्थी की विचार प्रक्रिया के अनुरूप होना चाहिए। ताकि सामग्री को उसी संदर्भ में वितरित और समझा जा सके। भौतिक वातावरण, सामाजिक वातावरण, कक्षा की संस्कृति और कक्षा की समय सारिणी महत्वपूर्ण हैं और छात्रों को अधिगम के लिए प्रोत्साहित करने के लिए पर्याप्त अनुकूल होनी चाहिए।
  4. सस्वर पाठ – Recitation: कभी-कभी शिक्षक, छात्रों की भागीदारी के स्तर को बढ़ाने के लिए सस्वर पाठ की विधि को अपनाते हैं। जहाँ अधिगम वाले मौखिक रूप से सामग्री को दोहराते हैं ताकि सामग्री शिक्षार्थियों के में में अच्छी तरह से स्थिर हो जाये।

Factors Affecting Teaching Related To Institution

संस्था से संबंधित शिक्षण को प्रभावित करने वाले कारक

संस्था और उसकी संस्कृति, शिक्षा की गुणवत्ता को प्रभावित करती हैं। और यह शिक्षार्थियों, शिक्षकों और माता-पिता के मन में एक धारणा भी बनाती है, जो संस्था में शिक्षण अधिगम प्रक्रियाओं को भी प्रभावित करती है। यह विभिन्न कारकों से भी प्रभावित होती है जिन्हें नीचे समझाया गया है-

  • शिक्षक-छात्रअनुपात (Teacher-student ratio): संस्थान में जितने अधिक छात्र उपलब्ध हों, पाठ योजना उतनी ही अधिक संरचित होनी चाहिए। एक और पहलू यह है कि जितने अधिक छात्र होंगे, उनके सामाजिक कौशल उतने ही बेहतर होंगे और वे एक-दूसरे से उतना ही अधिक सीखेंगे।
  • शिक्षकों की गुणवत्ता और उनकी प्रतिबद्धता(Quality of teachers and their commitment): गुणवत्ता वाले शिक्षक ही संस्थान की प्रतिष्ठा को परिभाषित और निर्मित करते हैं। शिक्षकों को भी बताए गए कार्य को सबसे कुशलता से करने के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए।
  • अवसंरचना(Infrastructure): शैक्षणिक संस्थानों की अवसंरचना सामान्य रूप से शिक्षार्थियों के शैक्षिक अधिगम के लिए सहायक होनी चाहिए। सभी आवश्यक और अद्यतन तकनीकी साधनों का उपयोग किया जाना चाहिए और शिक्षण की प्रक्रिया में शामिल किया जाना चाहिए।
  • प्रबंधन(Management): कक्षाओं का उचित प्रबंधन इस अर्थ में होना चाहिए कि कक्षाओं में उचित संचालन के लिए कक्षा प्रबंधक नियुक्त किया जाना चाहिए। कक्षाओं को अच्छी तरह से बनाए रखा जाना चाहिए ताकि शैक्षिक ज्ञान वितरण में बाधा न आए।
  • स्थिरता(Stability): संस्थान के पास लंबे समय तक अस्तित्व में रहने की दृष्टि होनी चाहिए और लक्ष्य ज्ञान का प्रसार करना और आने वाले समय में अधिक शिक्षार्थियों की मदद करना होना चाहिए।
  • भौतिक और वस्तु संसाधन (Physical and material resources: ): कक्षाओं में प्रासंगिक सामग्री को शामिल करने के लिए उचित प्रावधान होना चाहिए। और बेहतर समझ के लिए कक्षाओं के संचालन के लिए उपयुक्त और आवश्यक तकनीक का भी उपयोग किया जाना चाहिए।

संस्थान (Institution) –

शिक्षक, अधिगम की प्रक्रिया को प्रभावित करने वाली संस्था की प्रशासनिक नीति का पालन कर रहा है। इस बात की संभावना है कि शिक्षक जिस तरह से करना पसंद करते हैं, वैसा करना चाहते हैं, लेकिन संस्थान की नीति उन्हें अपने तरीके का उपयोग करने की अनुमति नहीं देती है। इससे शिक्षक में असंतोष पैदा होता है जिससे अधिगम की प्रक्रिया धीमी हो जाती है। ऐसा नहीं होना चाहिए कि शिक्षक जिस तरह से चाहते हैं उन्हें  अनुमति न दें। अपितु, संस्थान की नीति के अनुरूप अधिगम के मार्ग को बेहतर बनाने के लिए पाठ की प्रभावी योजना और परामर्श की आवश्यकता है।

एनसीईआरटी (नेशनल काउंसिल ऑफ एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग) ने अपने प्रकाशन कोर टीचिंग स्किल्स (1982) में निम्नलिखित शिक्षण कौशलों पर जोर दिया है।

  • निर्देशात्मक उद्देश्यों को लिखना(Writing instructional objectives)
  • सामग्री का आयोजन (Organizing the content)
  • पाठ की शुरुआत के लिए सेट बनाना(Creating set for introducing the lesson)
  • एक सबक पेश करना(Introducing a lesson)
  • कक्षा के प्रश्नों की संरचना करना (Structuring classroom questions)
  • प्रश्न nirmaanऔर उसका वितरण(Question delivery and its distribution)
  • प्रतिक्रिया प्रबंधन(Response management )
  • उदाहरण सहित व्याख्या करना(Explaining Illustrating with examples)
  • शिक्षण सहायक सामग्री का उपयोग करना(Using teaching aids)
  • प्रोत्साहन भिन्नता(Stimulus variation)
  • पाठ की गति (Pacing of the lesson)
  • विद्यार्थियों की भागीदारी को बढ़ावा देना (Promoting pupil participation)
  • (ब्लैकबोर्ड का उपयोग)Use of blackboard
  • पाठ के समापन को प्राप्त करना (Achieving closure of the lesson)
  • असाइनमेंट देना(Giving assignments)
  • छात्र की प्रगति का मूल्यांकन (Evaluating the pupil’s progress)
  • विद्यार्थियों की अधिगम की कठिनाइयों का निदान और उपचारात्मक उपाय करना(Diagnosing pupil learning difficulties and taking remedial measures)
  • कक्षा का प्रबंधन (Management of the class)

सूक्ष्म शिक्षण(Micro Teaching) –

माइक्रो-टीचिंग स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोध का एक उत्पाद है। इसे पहली बार 1961 में ड्वाइट डब्ल्यू एलन और उनके सहकर्मियों द्वारा अपनाया गया था। इसका तात्पर्य सूक्ष्म तत्व से है जो शिक्षण प्रक्रिया की जटिलताओं को व्यवस्थित रूप से सरल बनाने का प्रयास करता है।

शिक्षण एक जटिल प्रक्रिया है। इसे कठोर और सामान्य सेटिंग में महारत हासिल नहीं किया जा सकता है। इसलिए इसका अच्छी तरह से परिभाषित घटकों में विश्लेषण किया जाता है जिनका अभ्यास, शिक्षण और मूल्यांकन किया जा सकता है।

सूक्ष्म शिक्षण, विशिष्ट शिक्षण व्यवहारों पर ध्यान केंद्रित करता है और नियंत्रित परिस्थितियों में शिक्षण अभ्यास करने का अवसर प्रदान करता है। अतः सूक्ष्म शिक्षण द्वारा शिक्षक एवं शिष्य के व्यवहार में परिवर्तन किया जाता है तथा कौशल प्रशिक्षण द्वारा शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को अधिक प्रभावशाली बनाया जाता है।

शिक्षण क्षमता को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Affecting the Teaching Competence )

शिक्षण क्षमता और कुछ नहीं बल्कि कौशल, ज्ञान और तकनीक है जो शिक्षकों के पास होती है, जो उन्हें एक सफल शिक्षक बनाती है। शिक्षक के कौशल, ज्ञान और तकनीक अत्यधिक विकसित होते हैं और विभिन्न कारकों द्वारा लगातार बदलते रहते हैं, जिन्हें नीचे दिए गए उप-बिंदुओं द्वारा समझाया गया है।

  • आर्थिक कारक(Economic factors): यह गलत समझा जाता है कि शिक्षक मौद्रिक लाभों से प्रेरित नहीं होते हैं, लेकिन वास्तव में, प्रत्येक व्यक्ति कहीं न कहीं मौद्रिक लाभों से संचालित होता है जो वह इससे प्राप्त करता है। शिक्षक दिन के अंत में व्यक्ति होते हैं और उन्हें खुद को बनाए रखने के लिए धन के मामले में कुछ प्रेरणा की भी आवश्यकता होती है और यह सामान्य रूप से एक शिक्षक की दक्षताओं पर आधारित होता है।
  • सामाजिक कारक(Social Factor): शिक्षक जितना अधिक सामाजिक होगा अर्थात जितना अधिक संवादात्मक या अधिक बहिर्मुखी। शिक्षक उतना ही बेहतर होगा क्योंकि  शिक्षक शिक्षार्थियों के साथ व्यवहार करने में सक्षम होगा। शिक्षक जितना अधिक व्यस्त होगा उतना ही iअंततः शिक्षार्थी भी शिक्षक के साथ सहज हो जाएंगे।
  • भाषाई कारक(Linguistic factors): शिक्षक से यह अपेक्षा सामान्यतः की ही जाती है कि जिस विषय में शिक्षक अपना अध्यापन कार्य करवा रहे हैं और जिस भाषा में वे अध्यापन कार्य संपन्न करा रहे हैं उस भाषा में वह निपुण हो और साथ ही विद्यार्थियों और शिक्षक की भाषा यदि एक ही होती है तो शिक्षण अधिगम का कार्य अधिक अच्छी तरह सफल और संपन्न होता है।
  • अध्यापन मनोवृत्ति(Teaching attitude): शिक्षक को शिक्षार्थियों और विषय वस्तु के प्रति भी हमेशा सकारात्मक दृष्टिकोण बनाये रखने की आवश्यकता होती ही है । शिक्षक का यह सकारात्मक दृष्टिकोण यह भी सुनिश्चित करेगा कि शिक्षार्थी भी अधिगम की प्रक्रिया के प्रति सकारात्मकता और आकर्षणयुक्त ऊर्जा कि अनुभूति करें।
  • व्यक्तित्व(Personality): व्यक्तित्व गुणों का एक समूह है जो सामूहिक रूप से एक व्यक्ति के व्यवहारिक पैटर्न को निर्धारित करता है, यह एक शिक्षक की सीखने की योग्यता को भी प्रभावित करता है। शिक्षक का व्यक्तित्व ऐसा होना चाहिए जो शिक्षार्थियों का ध्यान आकर्षित करे।

सहायक सामग्री (Support materials) – – शिक्षक सहायता प्रणाली उपकरण का सेट है जो शिक्षकों की क्षमता में सुधार करके छात्र की उपलब्धि में सुधार करेगा। विभिन्न शिक्षण सहायता और सहायता प्रणाली निर्णय लेने के तरीके को प्रभावित करती है और छात्रों को जानकारी दी जाती है। यह उस क्षेत्र का विश्लेषण करने में मदद करता है जिसमें छात्र प्रदर्शन कर रहे हैं।

यह शिक्षकों को प्रभावी रणनीतियों के उपयोग से छात्रों के अधिगम को बढ़ाने के लिए नए कौशल हासिल करने में भी मदद करता है। यह एक विशाल क्षेत्र है जिसमें उपकरण, मूल्यांकन विधियों और व्यावसायिक विकास के प्रभावी उपयोग के माध्यम से समग्र अधिगम की प्रक्रिया में सुधार करने के लिए शिक्षक द्वारा काम किए जाने वाले कई उप खंड शामिल हैं।

  • छात्र आकलन और अंक -Student assessments and scores
  • शिक्षण रणनीतियाँ और पाठ योजनाएँ (Teaching Strategies and lesson plans)
  • मानक और बेंचमार्क(Standards and benchmark)
  • पारंपरिक, आधुनिक और आईसीटी आधारित उपकरणों का प्रभावी उपयोग(Effective use of traditional, modern and ICT based tools)

निष्कर्ष(Conclusion) –

शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया शिक्षा प्रणाली में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया को प्रभावित करने वाले अनेक कारक हैं, इनमें से किसी एक के अभाव में शिक्षण-अधिगम की प्रक्रिया प्रभावी नहीं हो सकती। विद्यार्थी कितना ही सीखने को उत्सुक हों लेकिन यदि शिक्षक गपशप में अपना समय नष्ट कर दे तो शिक्षण-अधिगम संभव नहीं हो सकता।

दूसरी ओर, एक शिक्षक कितना भी ज्ञानी और कुशल क्यों न हो, यदि छात्र सीखने में सक्षम नहीं हैं और सीखने के लिए तैयार नहीं हैं, तो शिक्षण-अधिगम संभव नहीं हो सकता है। इसी प्रकार शिक्षण-अधिगम की प्रक्रिया में विषयवस्तु, शिक्षण विधियाँ तथा शिक्षण-अधिगम वातावरण का अपना महत्व है।

शिक्षण को प्रभावित करने वाले कारकों के लिए कई विद्वानों के लेख उपलब्ध हैं जो विभिन्न प्रमुख मुद्दों जैसे शिक्षक छात्र संबंध, सामाजिक आर्थिक स्थिति, स्कूल की नीति, प्रेरणा और अन्य पर बात करते हैं। इसमें माता-पिता की अपेक्षा शामिल है। तो कुल मिलाकर इसे धीमा करने के लिए अधिगम की प्रक्रिया में कई कारक भाग लेते हैं।

 Key words – Teaching, Learning, Teaching-learning Process

( शिक्षण, सीखना, शिक्षण-सीखने की प्रक्रिया)

References: 

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