1.4.2 शिक्षक केंद्रित शिक्षण विधियां

(Teacher Centric teaching Methods)

शिक्षक केंद्रित शिक्षण विधियां ((Teacher Centric teaching Methods))

शिक्षक द्वारा शिक्षण कार्य करते समय कक्षा में पाठ्यवस्तु को सरल एवं बोतल में बनाने हेतु जिन प्रक्रियाओं का प्रयोग किया जाता है उन्हें शिक्षण विधियां कहते हैं शिक्षण विधियों का प्रयोग इस बात पर निर्भर करता है कि परिस्थिति कैसी है शिक्षण का मूल उद्देश्य अधिगमकर्ता को शिक्षा प्रदान करना है।

यह उद्देश्य जिस भी विधि से पूर्ण हो जिसमें अधिक अनुकूलता मिले वही विधि अपनानी चाहिए। यह विधियां बोलता है दो प्रकार की होती हैं।

 एक, शिक्षक केंद्रित विधियां (टीचर सेंट्रिक मेथड्स) मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि इस विधि में कक्षा का वातावरण अत्यंत औपचारिक होता है। जिसमें कुछ विद्यार्थी अपनी शंकाओं के समाधान के लिए शिक्षक से प्रश्न पूछ कर उसका समाधान कर लेते हैं किंतु अन्य अनेक विद्यार्थी असर नहीं कर पाते अतः उनका अधिगम अधूरा रह जाता है इस विधि में शिक्षकों के द्वारा मुख्यतः तीन कर्तव्यों का निर्वाह किया जाता है-

अधिगम कर्ताओं को वस्तुओं की सामान्य विशेषताओं या संपत्तियों की जानकारी प्रदान करना

विद्यार्थी इन विशेषताओं को स्मरण रखें ऐसे प्रयास करना

पाठ्य पुस्तक में निहित सूचनाओं का विद्यार्थियों के द्वारा पुनरावर्तन किया जाए ऐसा प्रयास करना।

शिक्षक केंद्रित शिक्षण   विधियां(Instructor Centric teaching Methods) तीन प्रकार की होती है व्याख्यान विधि व्याख्या प्रदर्शन विधि तथा ऐतिहासिक विधि।

शिक्षक केंद्रित शिक्षण की व्याख्यान विधि(lecture method of teaching)-

भारतीय परंपरा में यह विधि ऐतिहासिक महत्व के साथ विद्यमान रही है यह गुरुकुल शिक्षा पद्धति का आधार रही है तत्कालीन व्यवस्था में गुरु के अनुसार ही समग्र व्यवस्था का कुशल संचालन हुआ करता था और केंद्र में गुरु होते थे आधुनिक काल में इसे मौखिक शिक्षा विधि भी कहते हैं किंतु यह इस विधि के साथ इसलिए अन्याय होगा क्योंकि इसमें व्यवहारिक प्रशिक्षण या व्यवहारिक अनुभव पर भी उतना ही ध्यान दिया जाता था और व्यवहारिक विषयों को व्यवहारिक प्रशिक्षण के माध्यम से ही अदाओं को सिखाया जाता था।

दूसरा तर्क प्रश्न यह खड़ा किया जाता है कि यह एकपक्षीय विधि है किंतु भारतीय परिवेश के ऐतिहासिक दस्तावेजों की यदि हम पड़ताल करें तो हम पाते हैं कि शिष्यों को प्रश्न पूछने का न केवल अधिकार था बल्कि ऐसा करने वालों को उत्तम जिज्ञासु मानकर उनके प्रति सम्मान भी व्यक्त किया जाता था जैसे श्रीमद भगवत गीता में लिखा है-तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया।

अर्थात ज्ञानी जन अर्थात गुरुजनों के पास जाकर हैं कपड़े छोड़कर सफलतापूर्वक प्रणाम करो और फिर उनसे सम्मान पूर्वक प्रश्न करो तब तुम्हें वह सही उत्तर प्रदान करेंगे कहने का तात्पर्य है कि यह तर्क अनुचित है।

इस तारतम्य में आधुनिक परिवेश में व्याख्यान मिली वह विधि है जिसमें केवल शिक्षक की ही अधिकारिता होती है अर्थात अधिगम कर्ताओं के कोई अधिकार नहीं रहते और उन पर व्यवस्थित होती जाती है ऐसा माना जाता है कि यह विधि विज्ञान की तुलना में कला संकाय के विषयों हेतु अपेक्षाकृत अधिक उपयोगी है।

व्याख्यान विधि के गुण(merits of lecture method)-

  • द्रुत शिक्षण हेतु यह उपयुक्त है।
  • यह प्रभावशाली वह आकर्षक है वह परंपराओं के अनुकूल है।
  • यह विधि मित्रता से परिपूर्ण है
  • यह विधि प्रेरणादाई है
  • इसमें तथ्यात्मक संप्रेषण की प्रधानता है।
  • इस विधि से विषय वस्तु का क्रम बद्ध अध्ययन संभव है।
  • यह विधि अवधारणाओं का विकास करती है।
  • इसके केंद्र में भावनात्मक जुड़ाव सम्मिलित है जिसमें अधिगमकर्ता, शिक्षक व विषय वस्तु से भावनात्मक रूप से जुड़े होने की अनुभूति से वे शीघ्र बोधगम्य होते हैं।

व्याख्यान विधि के दोष(demerits of lecture method)-

  • यह अनुभव करने के उपरांत सीखने के प्रतिकूल है।
  • यह गणित जैसे विषयों में प्रभावशाली नहीं है ऐसा आधुनिक शिक्षा मनोवैज्ञानिक मानते हैं।
  • यह तर्कशक्ति के विकास में अवरोधक हो सकती है।
  • यह आधुनिक शिक्षण कौशल के सिद्धांतों के विरुद्ध है।

2. शिक्षक केंद्रित शिक्षण की व्याख्यान प्रदर्शन विधि(lecture demonstration method)-

इस विधि में शिक्षक व्याख्यान के साथ प्रदर्शन या प्रेजेंटेशन का भी उपयोग करते हैं इसे भाषा युक्त प्रदर्शन विधि भी कहते हैं प्रदर्शन कार्य शिक्षक द्वारा भली-भांति अभ्यास सहित किए जाने पर यह सर्वश्रेष्ठ शिक्षण विधि सिद्ध हो सकती हैं।

व्याख्यान प्रदर्शन विधि के गुण(merits of lecture demonstration method)-

  • विद्यार्थियों की सक्रियता बढ़ती है।
  • शिक्षक विद्यार्थी सहभागिता में भी वृद्धि होती है।
  • यह विषय के प्रति विद्यार्थियों में रुचि उत्पन्न करती है।
  • यह सरलता से निष्कर्ष की ओर बढ़ती है।

व्याख्यान प्रदर्शन विधि के दोष(demerits of lecture demonstration method)-

  • विद्यार्थियों को सामान्य करण की ओर प्रेरित न करना।
  • यदि शिक्षक प्रमुख तत्वों के स्थान पर आंशिक महत्व के तथ्यों को संप्रेषित करता है तो यह शिक्षण प्रभावी नहीं रहता।
  • यदि प्रेजेंटेशन बहुत तीव्र गति से होता हो तो शिक्षण का उद्देश्य सफल नहीं होता।

3. शिक्षक केंद्रित शिक्षण की ऐतिहासिक विधि(Historical method)-शिक्षक केंद्रित शिक्षण विधियां

यह विधि ऐतिहासिकता पर निर्भर रहती है इसमें तथ्यात्मक जुड़ाव होने से महत्वपूर्ण तथ्य अवधारणाओं सिद्धांतों व कौशलों को नवीन ज्ञान कौशल से जोड़ने मैं महत्वपूर्ण सहयोग प्राप्त होता है।

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