वृन्दावनलाल वर्मा-विराटा की प‌द्मिनी pdf download

वृन्दावनलाल वर्मा की रचना “विराटा की पद्मिनी” एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक उपन्यास है। वृन्दावनलाल वर्मा हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध लेखक हैं, जिन्होंने ऐतिहासिक और पौराणिक विषयों पर अनेक कृतियों की रचना की है।

“विराटा की पद्मिनी” में उन्होंने महाभारत के एक प्रकरण को लेकर कथा की रचना की है। यह उपन्यास महाराज विराट की पुत्री उत्तरा और अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु के प्रेम और विवाह की कहानी को केंद्र में रखकर लिखा गया है।

मुख्य बिंदु:

  1. कहानी का पृष्ठभूमि:
  • कहानी महाभारत काल की है, जब पांडव अपने अज्ञातवास के समय विराट नगर में रहते हैं।
  • राजा विराट की पुत्री उत्तरा और अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु की प्रेम कहानी इस उपन्यास का मुख्य केंद्र है।
  1. चरित्र:
  • उत्तरा: राजा विराट की पुत्री, जो एक वीर और सुंदर राजकुमारी है।
  • अभिमन्यु: अर्जुन का पुत्र, जो अपने वीरता और साहस के लिए प्रसिद्ध है।
  1. प्रेम और विवाह:
  • उत्तरा और अभिमन्यु की प्रेम कहानी, जिसमें उनके विवाह और उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं को दर्शाया गया है।
  • उनके प्रेम और बलिदान की कहानी महाभारत के युद्ध के समय और उसके बाद भी महत्वपूर्ण रही है।
  1. ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संदर्भ:
  • वृन्दावनलाल वर्मा ने इस उपन्यास में महाभारत के समय की सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनैतिक स्थिति का भी विस्तृत वर्णन किया है।
  • पात्रों के माध्यम से उस समय के जीवन, संघर्ष, और मूल्यों को प्रस्तुत किया गया है।

महत्त्व:

  • साहित्यिक योगदान:
  • “विराटा की पद्मिनी” हिंदी साहित्य में ऐतिहासिक उपन्यासों के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
  • यह उपन्यास न केवल ऐतिहासिक घटनाओं का वर्णन करता है, बल्कि मानव संबंधों, प्रेम, और त्याग की गहरी भावनाओं को भी उजागर करता है।
  • शैक्षिक महत्त्व:
  • इस उपन्यास का अध्ययन साहित्य के विद्यार्थियों और इतिहास के शोधार्थियों के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह महाभारत की कहानियों को एक नई दृष्टि से प्रस्तुत करता है।

वृन्दावनलाल वर्मा की लेखनी का कौशल और उनके ऐतिहासिक दृष्टिकोण ने “विराटा की पद्मिनी” को एक उत्कृष्ट कृति बना दिया है, जो आज भी पाठकों के बीच लोकप्रिय है।

भक्त का हठ चढ़ चुका था, ‘नहीं देवी, आज वरदान देना होगा। यदि दलीपनगर के धर्मानुमोदित महाराज कुंजरसिंह से हार गए, यदि अलीमर्दान ने ऐसी अव्यवस्थित अवस्था में राज्य पाया, तो आपके मंदिर का क्या होगा? धर्म का क्या होगा? ’ ‘क्या चाहती हो गोमती?’ ‘यह भीख माँगती हूँ कि कुंजरसिंह का नाश हो, अलीमर्दान मर्दित हो और दलीपनगर के महाराज की जय हो।’ ‘यह न होगा गोमती, परंतु मंदिर की रक्षा होगी और अलीमर्दान का मर्दन होगा ।’ ‘यह वरदान नहीं है, यह मेरे लिए अभिशाप है देवी! मैं इस समय, इस तपोमय भवन में, इस बेतवा के कोलाहल के बीच चरणों में अपना मस्त क अर्पण करूँगी।’ कुमुद ने देखा, गोमती ने अपनी कमर से कुछ निकाला —इसी उपन्यास से.

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